00:00वो धर्मपूरी का सामराज था और उस राज का युवराजा प्रताप्रुद्रु प्रताप्रुद्र के पूर्वचों ने बहुत लडाया लड़के बड़ी महनत से उस सामराज को खड़ा किया था जब प्रताप्रुद्र के राजा बनने का समया आया था वो उस राज को कां
00:30था लेकिन उसकी राज पर तंड्यात्र करने अगर कोई आया तो बस मिंटों में युद्ध खतम हो जाता था ऐसी रहस्य युद्ध विध्या थी उसकी ऐसे ही राज के विशय में बहुत सावधानी और होश्यारी से उस राज का निर्मान किया था प्रतापृद्र के पता वि
01:00राज के सारे समस्यों को प्रतापृद्र परीक्षा करता था जैसे ही वो राजा बन गया था वो सामराज को अती सुन्दर बना दिया था नुकसान भरे खेतों को वापस हरा भरा बना दिया प्रतापृद्र के सभा में एक ही मंत्री था विश्वाचार्य विश्वाचार्य
01:30प्रतापृद्र जो भी फैसला लेता था, वो पहले विश्वाचारे के साथ चर्चा करके ही लेता था
01:36विश्वाचारे को प्रतापृद्र अपना गुरू मानता था
01:39इसलिए वो जो भी शुबकारे करने चाता था सबसे पहले विश्वाचारे की आशिरवाद लेता था
01:46विश्वाचारे जी को नमस्कार
01:49आचार्या आशिरवाद दीजे कि आज हम जो काम करने वाले हैं उसमें हम सफल हो
01:54विजयोस्तु प्रतापृद्र
01:56ऐसे ही प्रतापृद्र जो भी करता था विश्वाचारे को कहके ही करता था
02:02ऐसे राज का अच्छी देखबाल करता था प्रतापृद्र
02:06उसकी प्रजा अगर मुश्किलों में थी तो राजा उनकी मुश्किल सुनकर उनकी सहायता करता था
02:12उसकी प्रजा में अगर कोई भूका भी था तो उसके धान्य घर से वो धान्य के साथ ही धन को भी देता था
02:19कुछ समय बाद धर्मपूरी गाउं में बहुत ज्यादा बारिश गिरने के कारण सारे राज का सत्या नाश होता है
02:29राज में मौजुद सारे खेत खराब हो जाते हैं और उसके साथ ही प्रजा के घर भी इस मुश्किल के कारण सभी बहुत परेशान होते हैं
02:38राज प्रजा के पास मौजुद सारा आहार खतम हो जाता है। इस सब के बारे में मंत्री के द्वारा युवराजा प्रता पृत्र पता करता है।
02:48महाराजा, राज में मौजुद सारे खेत खराब हो गये हैं, उसके साथ ही प्रजा के घर भी, अब तो उनके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा है महाराजा, पशुपक्षी को साथ लेकर सभी भूके पेट रो रहे हैं महाराजा, महामंत्री ये कैसे हो सकता है, तुरं
03:18थोड़ा थोड़ा करके हमने अगर बांट भी दिया, वो फिर भी हमारे प्रजा में सिर्फ 75 प्रतिशत लोगों को ही मिल पाएगा, राज में आहार भी नहीं है, अब क्या करेंगे, मंत्री सभा, आप इसका उपाई बोलिए, हमारे पडोसी मित्र राजाओं से अगर हमने �
03:48भूके तो नहीं रह पाएगा, लेकिन हमारे पास और कोई चारा नहीं है मंत्री की बाते सुनकर प्रता प्रुद्र उसके खायालों में खो जाता है, कुछ देर बहुत सोचने के बाद ऐसे कहता है, सैनिको तुरंत विश्वाचारी जी को यहां लाया जा, ये आदेश देत
04:18हमारा राज अब बहुत मुश्किलों में है, हमारे राज में सिर्फ 75 प्रतिशत लोगों को हम खाना दे पा रही है, बाकियों को तो ऐसे भूके नहीं चोड़ पाएंगे, आपको ही कोई उपाय ढूनना पड़ेगा विश्वाचार्या, प्रता प्रुद्र की बाते सुनकर
04:48मेरे साथ बस दस सैनिकों को भेज दीजे, ये कहकर वहां से चले जाता है विश्वाचार्या, वहां से विश्वाचार्या भूके प्रजा के पास जाकर ऐसे कहता है, सभी सुनिए, तुम सब के पास जो भी गाय मौजूद है, उनका दूद निचोड़ कर उसे हमारे राज क
05:18करवा के जमा कि ये गन्यों से उसका रस निकलवाता है, और उसे भी सैनिक और प्रजा राज रसोई में दूद और गन्ये की रस के साथ पहुंच जाते हैं, और उस सब को वहां से भिजा देता है विश्वाचार्या, ये सब लाने के लिए धन्यवाद, लेकिन अब तुम �
05:48विश्वाचार्य के आदेश के अनुसार ही बावर्ची गन्ये की मिठाई बनाता है, आचार्या गन्ये की मिठाई तयार है, हो गया क्या, ठीक है, अब तुम भी यहां से चले जाओ, उस बावर्ची को भी रसोई घर से बाहर बिजा कर विश्वाचार्या उस गन्ये की मि�
06:18सैनिकों आहार तयार है
06:20राजा और प्रजा को यहां बुलाओ
06:23सभी वहाँ पहुचते हैं
06:27और वहाँ पहुचते ही
06:28वहाँ मौजुद गन्नी की मिठाई को देख
06:31बहुत खुश होते हैं
06:32पहली बार सारी प्रजा को थोड़ा-थोड़ा करके परोसो
06:36उसके बाद जिन-जिन को चाहिए
06:38वो आकर दूसरी बार परोसेंगे
06:40लेकिन सारी प्रजा
06:41पहली बार खाने से ही पेट भरने के कारण
06:45वहाँ से खुशी-खुशी चले जाते हैं
06:48आहार सबके खाने के बाद भी बहुत बच जाता है
06:53प्रता प्रद्र को ये बात समझ में नहीं आती है
06:56कि जो आहार पहले इस सब प्रजा के लिए काफी नहीं था
07:00वो अचानक सबके खाने के बाद भी इतना बच कैसे गया
07:05विश्वचार्या आपने ऐसी कौन सी मंत्रा डाली है
07:09कि अचानक अब यही आहार सबके लिए काफी हो गया
07:13ये आपने कैसे किया
07:15महाराजा ये कोई माया या मंत्रा नहीं है
07:18पूर्वा आपके जन्वदिन के समारोह में आपने हलवा बनवाया था
07:23याद है वो हलवा इतना स्वादिश था
07:26कि मैं खाने से पहले ही उसके दो कप खा लिया
07:29लेकिन ज्यादा मीठा होने के कारण मैं और ज्यादा नहीं खा पाया
07:35इतना ही नहीं उसी दिन आपके जन्वदिन के समारोह में मौझुद बहुत सारा खाना
07:40मैं खा ही नहीं पाया
07:41उस दिन मुझे समझ आया
07:44कि नीठा ज्यादा होने पर हमारा पेट जल्दी भर जाता है
07:49बस उसी मंत्रा को मैंने यहां इस्तमाल किया है
07:52हालाकि हमारे पास आहार कम था
07:54लेकिन उस गन्ने की मिठाई में गन्ने का रज ज्यादा मिलाने के कारण
07:59लोगों को लगा कि उन्होंने ज्यादा खा लिया बस इतनी सी समस्या के लिए आप इतने परेशान होगे
08:07ये सुनकर प्रतापृद्र विश्वाचारे को प्रणाम करता है विश्वाचारे हस्ते हुए वहाँ से चले जाता है
08:17उसके बाद आने वाले आपत्ती के बारे में पहले ही सोचकर प्रतापृद्र ने उनके धाने कारिक्रमम में कुछ आहार जमा किया था
08:28ऐसे कुछ समय बीच जाने के बाद राज में एक नास्तिक आदमी आता है
08:42वो उस राज में आकर ऐसे कहता है कि वो भगवान में विश्वास नहीं करता है
08:49और उनके भगवान से उसका कोई लेना देना नहीं है ऐसे वो हल्ला मचाने लगता है
08:56इस धर्ती पे भगवान नामक कोई नहीं है सब बस एक माया है माया
09:01ये सब देख राज्य के सैनिकों उस नास्तिक को बंद करके उन्हें राजा के पास लेकर जाते हैं
09:09प्रभू ये गाव में हल्ला मचा रहा है कि भगवान नहीं है और ये भगवान में विश्वास ही नहीं करता इसलिए उसको आपके पास लेकर आएं हैं प्रभू
09:23क्या नास्तिक हो तुम भगवान में विश्वास नहीं करते हो तो फिर तुम्हें ये जन्म कहां से मिला है मेरा जन्म मेरे मा तापिता के वज़े से हुआ है भगवार के वज़े से नहीं ऐसे राजा के हर प्रश्न का वो उल्टा सीधा जवाब देता था
09:38ये सुनकर विश्वाचारे उसके पास जाकर ऐसे कहते हैं
09:43ओ, तो तुम कहते हो कि भगवान नहीं है
09:47हाँ, नहीं है
09:49तो जिस भगवान का हम पूजा करते हैं, उनका देन तुम नहीं लेते हो, है न?
09:54हाँ तुम्हारे भगवान का दिया हुआ कुछ भी मैं नहीं छूँँगा
09:59मैं सिर्फ मनुष्य के बनाया कुछ छूँँगा
10:02ओ ऐसे कहते हो
10:05हाँ ऐसे ही है
10:08तो फिर तुम सास लेना बंद कर दो
10:11क्योंकि तुम्हारी ये सास हमारे पूजे हुए वायू भगवान का है
10:17हनुमान के पिता
10:18वायू को तो किसी मनुष्य नहीं बनाया
10:21ये बात सुनकर उस आस्थान में मौजूद सभी हसने लगते हैं
10:26प्रता प्रुद्र के साथ ही उस नास्तिक को भी विश्वाचारी की बाते सुनकर दंग रह जाते हैं और बोलना बंध हो जाता है
10:35मुझे माव कीजिये प्रभू आइंदा ऐसा कुछ नहीं करूंगा
10:40ये देख प्रता प्रुद्र विश्वाचारी का अभिनंदन करता है और विश्वाचारी वहां से हसते हुए चले जाता है
10:49तब से विश्वाचारी की बाते और उनके के काम के बारे में सभी बहुत अच्छा बोलते थे