00:00एक दिन जलते हुए सूरज में भूब के मारे मंदाकिनी रेल्वे स्टेशन में पड़े कचरे में खाने के लिए ढूंगती रहती है।
00:09उसी समय में उसी स्टेशन में दूसरी तरफ साब एक रुपए दो साब ऐसे आते जाते लोगों से भीक मांगती है मोहिनी।
00:18ऐसे वो दोनों एक दूसरे की तरफ देखते हैं और उन दोनों के बीच में कच्चे आम के तुक्डे बेचने वाला एक आदमी रहता है।
00:48साथ में रहते थे, रंगया बहुत बीमार था, उनको ना खाने के लिए खाना था, ना ही रंगया की बीमारी का इलाज करवाने के पैसे, जहां देखो उस घर में बतकिस्मती नाच रही थी, बीमारी बढ़ने के कारण रंगया गुजर जाता है, दोनों लड़कियों के साथ �
01:18पाचों को लेकर सडक पे घूमते हुए आखिरकार रेलवे स्टेशन पहुच जाती है रतालो, वहां इदर उदर घूमती रहती है, उस दोरान उसे वही मौजुद एक आदमी कच्चे आम के तुकड़े बेचते हुए नजर आता है, उसको देख कम निवेश के पैसों से ज
01:48वो छिप कर उस पेड के सारे आम को चोरी कर लेती है, उसके बाद उन कच्चे आमों का तुकड़े करके रेलवे स्टेशन में नमक और मिर्ची का पाउडर लगा कर बेचने लगती है, कच्चे आम के तुकड़े, कच्चे आम के ताजा तुकड़े, आईए बाबु आईए
02:18ऐसे चिला चिला कर सारा दिन वो रेल्वेर प्लाट्फॉर्म पे आम के तुकडों को बेचते रहती हैं। ऐसे दिन भर चिलाने के बाद उसे कुछ पैसे मिलते हैं। ऐसे उन तीनों को उस दिन थोड़ा खाना नसीब होता है।
02:33ऐसे ही अगले दिन भी और थोड़े आम को चूरी करके उनके तुकडों को बेचकर पैसे कमाती है।
03:03करबान देता है। उस आदमी के पास मौजुद कोड़े से रत्तालू को मारने ही जाता था कि मोहिनी मंदाकिनी दोनों उस मालिक के पाउँ पढ़कर
03:13ऐसे वो दोनों उस मालिक के दोनों पाउँ पे गिरकर रोते रहते हैं।
03:33करना पड़ा। ऐसे रत्तालू रोते हुए उस आदमी से कहती है। लेकिन फिर भी वो मालिक कोड़ा से रत्तालू को मारने ही जा रहा था।
03:42ठीक तबी उस मालिक की पत्नी वहा आती है। छोड़ दीजे जी। जो हो गया सो हो गया। कह रही है ना गलती हो गया।
03:50उसके दो मासुन बच्चे हैं लड़किया हैं उनके मुदे कर छोड़ दीजे। ये सुनकर मालिक देखो आएंदा अगर यहां तुम नजर आई तो इस बर जिन्दा नहीं छोड़ूगा। ऐसे क्रोतित होता है।
04:07आएंदा ऐसे कभी नहीं करूंगी साब मुझे माफ कर दीजे। तब वहां उसके दोनों बच्चों को लेकर रत्तालू निकलने ही जा रही थी कि मालिक की बीवी वहां आकर ये लो ये कच्चा आम लेकर जाओ और कभी भी चोरी मत करना। ऐसे कहती है वो आम लेकर जी मैं स
04:37बच्चे हुई बीच को वो बाहर बरामदे में फेक देती है। उस रात पूरा वो अपने बच्चों को अपने पास सुला कर रोते ही रहती है कि उसकी जिन्दगी भला ऐसे क्यों हो गया।
05:07कर कुछ देर बाद तीनों होश में आते हैं। खुशी के मारे कुछ पके आम, कुछ कच्चे आम लेकर तीनों उन आमों को रेलवे स्टेशन ले जाकर एक कच्चे आम, एक पके आम और एक कच्चे आम के तुकड़े बेच रहे थे। उस दिन से वो जितने भी आम पेर से त
05:37उनको भर पूर बेचते थे। ये करके आए हुए पैसों से वो बाकी सारा साल भी खुशी से जी लेते थे।
06:07जायदात नहीं है क्योंकि तुम दोनों को भी बता है कि इतने दिन हम कैसे जीए। अब मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है। आपसे तुम दोनों एक दूसरे का सहारा बनो। अब हमारे पास सिर्फ ये घर और हमारे बरामदी की वो आम की पेर बचा है। इन सब का इस्तमा
06:37कोहीं दी मंदाकिनी से ऐसे कहती है। मा की आखरी चाहिए थी कि इस घर और उस पेड़ का इस्तमाल करके हमें सफल होना है। मैं अपना हिस्सा बेचकर शहर जाना चाहती हूं। कहो तुम्हें घर चाहिए कि पेड ऐसे कहती है। अगर हमारा आधा आधा हिस्सा है तो दोन
07:07यही रहकर हम दोनों एक व्यापाश शुरू करते हैं। अगर दोनों का आधा हिस्सा बटवारा करेंगे तो उनको बेचना मुम्किन नहीं होगा। और वैसे भी मुझे यहां नहीं रहना है। ठीक है फिर तुम ही इन दोनों का बटवारा कर दो। उसमें क्या बड़ी बा
07:37चिस्सों से मैं भी भला क्या ही करोंगी। शहर कैसे जाओंगी। अगर वो नाइंसाफी है तो यह भी नाइंसाफी है। आच्छा तो ठेक हैं। पेड़े नीचे का भाग तो मेरा ही है नना मैं उसके साथ जो भी करूं मेरी मर्जी। यह कहकर वह कुल्हाड यृ से पेड�
08:07जला देती है, कुछ देर बाद आम का पेड नीचे गिर जाता है और उनका घर सत्यानाश, ऐसे वो दोनों बिना सोचे समझे, गुसे में ये सब करने के कारण ही उनका जिंदगी पलड जाती है, ना उनके पास काम करने के लिए कुछ है, ना खाने के लिए कुछ, सडक पे भी
08:37इतना बड़ा परिनाम होगा, ये उन्हें नहीं पता था, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी, नैतिक, दर्वासा खड़ खड़ा कर आये होए किस्मत को और मौके को कभी ना नहीं करते, अगर उनका सही उप्योग नहीं किया, तो जिंदगी पलड जाएगी