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00:00एक लंब ऐसा में पहले एक गाउं में रत्नदीप और रानी नामत पती-पत्नी रहते थी।
00:07रत्नदीप खुद के होटल में दोसा तयार करके बेचता था।
00:12वो दोसा बनाता था और उसकी पत्नी सबको वो परोषके उनसे पैसे लेती थी।
00:19रत्नदीप सिर्फ स्वादिश दोसा ही नहीं बनाता था बलकि उन्हें बहुत ही कम दाम पे बेचता था।
00:27इस कारण गाउं के सारे लोग उसी के पास आके दोसा खरीद के खाते थे।
00:34वो एक अच्छा इंसान था और सब के मदद करता था। लेकिन उसकी पत्नी लालची थी।
00:41उस गाउं में उसके हाथ का अंडा दोसा बहुत प्रसत था।
00:46क्योंकि उसकी ही तरह और कोई अंडा दोसा नहीं बना पाता था।
00:51इतना ही नहीं उस दोसा को कम दाम पे बेचने पर सभी वही आते थे।
00:57उसके पत्नी को दोसा को कम दाम पे बेचना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।
01:03इतना ही नहीं गाउं में कोई भी उसके पती की तरह दोसा नहीं बना पाएगा।
01:09इस बात का उसे पहत कर्व था
01:11एक दिन जब रतनदी दोसा बना रहा था
01:14उसे कुछ दूरी में एक बूड़ा आदमी बैठे हुए और कामते हुए दिखाई देता है
01:20आरे रे दिखने में बहुत बूड़ा है पता नहीं कि उन्होंने कुछ खाये भी
01:25ऐसे सोचकर उनके पास जाता है
01:29भाय साब आप यहां क्या कर रहे हो
01:34बेटा चलने की ताकत नहीं होने के कारण
01:39यहां थोड़ी देर रुक के जाने के लिए बैठा हूँ
01:43आपको देखके लग रहा है कि आपने शायद कुछ नहीं खाया
01:47मेरे साथ आईए बगल में ही मेरा होटेल है
01:50कुछ खाके जाईए
01:52मगर मेरे पास पैसे नहीं है बिटा
01:56पैसे देने की कोई जरूरत नहीं है
01:58होटेल मेरा ही है
02:00आप बस मेरे साथ आओ
02:02ऐसे कहके उस बुड़े आदमी को उसके साथ
02:06अपनी होटेल लेके बिठाता है
02:09वो गरम-गरम दोसा बनाके
02:11उसके पत्नी को उनको परोसने के लिए कहता है
02:14उसकी पत्नी को वो करना अच्छा नहीं लगने के बावजूद
02:19उस बूड़े आदमी को दोसा परोसती है
02:21भूका रहने के कारण
02:24वो बूड़ा आदमी दोसा को जल्दी-जल्दी खा लेता है
02:28उस आदमी को ऐसे खाते होए देख
02:31प्रप्नदीब उसके लिए पानी लेके आता है
02:33मेरे भूके पेट को तुमने भरा है
02:37इसके बदले में मैं मेरे पास की छोटा सा तौफ़त तुमें देना चाता हूँ पेटा
02:43आपको कुछ भी देने की कोई जरूरत नहीं है भैसा
02:46मेरे खुशी के लिए तो स्वीकार करो पेटा
02:49ऐसे बोलके वो बूड़ा आदमी उनको दोसा बनाने के लिए
02:54एक तवा दे के वहाँ से चला जाता है उस आदमी के जाने के बाद
03:00उसकी पत्नी उसके पास आकर कहती है क्यों जी पहले तो आप सब को
03:06कम दाम में दोसा बेच रहे हैं और उपर से आप रस्ते में जाते हुए
03:11अंजान लोगों को बुलाके उन्हें मुफ्त में खिलाके भेज रहे हो इससे क्या कोई लाभ है
03:17ऐसे दोसा बनाने से हमारे पास कुछ नहीं बच रहा
03:21अब हमारा इतना कटन स्तिती भी नहीं है कि हमारे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है ना
03:29जितना है उतने में दूसरों का सहायता करते हुए खुश रहना चाहिए
03:34अपने पती के बाते सुनकर रानी गुसे में वहां से चले जाती है
03:40जितनी भी बार कहूं इनसे ये नहीं बदलेंगे
03:46सबकी सहायता करते ही रहते हैं
03:50अगर मैं उनको बताए बिना दोसा का दाम बढ़ाऊंगी, तब ही हमारे पास कुछ तो पैसे बचेंगे।
03:58ऐसे फैसला करके अपने पती को बताए बिना दाम बढ़ाती है।
04:04आम दोसा पंदरा रुपे का और अंडा दोसा पचिस रुपे का।
04:09ऐसे होटल को आये हुए लोगों को बोलती है।
04:13आपके होटल में स्वादिश्ट खाना बनने के अलावा, कम दाम पर मिलने के कारण ही हम सब आपके पास आते हैं।
04:21मगर अब आप ऐसे दाम अच्छानक बढ़ाते हैं, तो कैसे होगा।
04:26अरे, आपको दोसा चाहिए तो खाये, वरना नहीं, मेरे पती की तरह अगर कोई और इस गाओ में स्वादिश्ट दोसा बनाता है, तो उसी के पास जाके दोसा खाओ।
04:38ऐसी कचिन तरीके से कहती है।
04:41दाम बढ़ाने के बावजूत, खाने के लिए सभी उसी होटल को आते हैं।
04:47कुछ दिन बाद, पैसे बचते हैं और ये देख, रानी बहुत खुश होती है।
04:53मेरे दाम बढ़ाने के बावजूत, अगर लोग इसी होटल में खा रहे हैं, तो इसका मतलब ये हैं कि मैं दाम और थोड़ा बढ़ा सकती हूँ।
05:03आज से अन्रा दोसा पच्चास रुपए और आम दोसा पच्चीस रुपए का है।
05:09ऐसे होटल को आए हुए सब को बोलती है।
05:13अरे, आपके होटल के दोसा चाहे कितना पर स्वादिष्ट क्यों नहों।
05:18ऐसे दाम बढ़ाते जाओगे तो लोग कैसे खरीद पाएंगे।
05:22अरे, आपको अकर चाहिए तो इधर आके खाईए। वरना चले जाईए।
05:28ऐसे अभिमानी स्वबाव से कहने के कारण वो आदमी उसके सामनी से ही दूसरे होटल को चला जाता है।
05:37उसको देख बाकी लोग भी चले जाते हैं।
05:41तब से सब उनके होटल को आना ही बन कर देते हैं।
05:45रानी, क्या हुआ? कुछ दिनों से कोई भी होटल को नहीं आ रहा।
05:51हमारे जैसे और दूसरा कोई भी दोसा नहीं बना सकेगा।
05:56इसलिए कभी न कभी उन सब को लोटके आना ही पड़ेगा।
06:01मेरी पत्नी की लालज की बारे में तो मुझे पता ही है।
06:05या तो उसने होटल को आई हुए लोगों को कुछ कहा होगा।
06:09या फिर क्या मुझे बताए बिना उसने दाम बढ़ा दिया होगा।
06:14ऐसे सोचके कुछ नहीं कहता है और वहां से चला जाता है।
06:19ऐसे बहुत दिन बीटने के बाद सभी उसके होटल के बजाए उसके सामने के होटल को जाते हैं
06:27मेरे लालची स्वबाफ के वज़े से ही मैंने दाम बहुत ज्यादा बढ़ा दिया
06:33और अभी सारी लोग हमारे होटल के बजाए सामने वाले होटल को जा रहे हैं
06:39ऐसे सोचकर दुखी होती है
06:42उसको ऐसे दुखी देख उसका पती उसके पास आकर पूछता है
06:48कम से कम अब तो सच बोलो लोग हमारे होटेल क्यों नहीं आ रहे हैं
06:54ऐसे पूछने पर रानी अपने पती को सब सच बता देती है
06:59देखा तुमने तुम्हारे लालच के वज़े से हमें क्या भुकतना पड़ रहा है
07:05कम से कम तुम्हारा स्वबाब अब बदलो और हमेशा की तरह वही दाम लगाओ
07:11तभी हमारे पास सारी ग्राहक आ जाएंगे
07:14आएंदा मैं ऐसे कभी नहीं करूँगी अब सब आप ही की मर्जी
07:19रत्नदीब अगले दिन से उसी दाम पे दोसा बना के बेशने लगता है
07:26आम दोसा सिर्फ 10 रुपे का और अंडा दोसा सिर्फ 15 रुपे का
07:31ऐसे जोर-जोर से चलाने पर उसके सारे ग्राहक सामने के होटल से उसके होटल वापस आ जाते हैं
07:39ऐसे कुछी दिनों में वापस होटल भीड़ित रहने के खारण दोसा बनाने में देर लगता है
07:46इसलिए रत्नदी फैसला करता है कि एक और तवा खरीदने की आवश्यक्ता है
07:52आरे हाँ उस बूड़े आदमी का दिया हुआ तवा तो है ही
07:58ऐसे सोचके अंदर जाके उस तवे को बाहर लेके आता है
08:03उसमें एक दोसा बनाते ही वो एक दोसा बहुत सारा दोसा बन जाता है
08:11और ये देख वो आश्यर चकित रह जाता है
08:14हाँ ये क्या माया है रानी रानी एक बार तरा हाँ जी क्या हुआ
08:22ये देखो तो सही ऐसे उसके विसान ने उस तवे पे दोसा बनाता है
08:29और तुरंत वो कई दोसा बन जाना देख वो भी दंग रह जाती है
08:34ये कौन सा जादू है जी एक दोसा कई दोसा में बदल रही है
08:39तुमें वो बुड़ा आदमी याद है उसी का दिया हुआ तवा है ये
08:44और तुम ने उस दिन उनको दोसा मुफ्त में देने के कारण गुस्सा किया था
08:49ये सब आपके सहायता करने के वज़े से ही मुम्किन हुआ है जी
08:53ऐसे उस दिन से अंडा दोसा को कम दाम पे बेच के
08:58बचे हुए दोसा को गरीब लोगों को मुफ्त में देके पती पत्नी दोनों खुजी से जीने लगते हैं
09:06डबबा वाला
09:08बिश्नुपूर नामक एक काउ में अमित नामक एक डबबा वाला अपने परिवार के साथ रहता था
09:16अमित एक बहुत ही साधारन परिवार का आदमी था
09:20उसकी पत्नी हिमा सिलाई करके थोड़े बहुत पैसे जमा करती थी
09:26और उनके बेटा अमर पढ़ाई करता था
09:30अमित घर का सारा खर्चा डबबे वितारन करके जो पैसे मिलते थे उससे चला लेता था
09:37अमित हर दिन सुबा आट बजे उटके अपने साइकल पे शुरू होके घर घर को जाके नाश्ते के डिबबे एक खटा करता था
09:50और उन डिबबे में से कुछ पाटशाला में, कुछ कारखानों में समय पर पहुचाता था
09:57ऐसे ही हर दिन बहुत डबबे वितारन करके डबबे के 10 रुपे लेता था
10:03आये हुए पैसों के साथ अपने बेटे को एक अच्छे स्कूल में पढ़ाता था
10:09अमित जिस स्कूल में डबबे पहुचाता था, उसी स्कूल में उसका बेटा अमर पढ़ता था
10:14उसके पिता का हर दिन ऐसे धूप और बारिश में साइकल चलाना, पसीने में मेहनत करना अमर को बहुत दूप देता था
10:25ऐसे जब एक दिन अमित घर पे था तो अमर ने समय देखकर
10:29पिता जी मुझे आपसे बात करना है
10:32हाँ बोलो बेटा, कैसे पढ़ रहे हो तुम?
10:36मैं अच्छा पढ़ रहा हूँ पापा, आपसे कुछ बात करना चाता हूँ
10:41बोलो बेटा
10:43पापा, आप मेरे लिए और मेरे स्कूल के फीस के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं
10:50आप ऐसे धूप और बारिश में बहुत दूर के किलोमीटर साइकिल चलाते हुए डब्बे पहुचाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा
10:57मैंनत के बिना पैसे कहां से मिलेंगे बिटा?
11:02भविश्य में तुझे एक बड़ा ओफिसर बनाऊंगा
11:05नेरी तरह इसे छोटे काम नहीं करना है तुम्हें
11:08और पसंद करे तो सब कुछ अच्छा लगता है बिटा
11:12पिताजी के बाते सुनकर अमर सोचता है कि वो सारी बाते सच है
11:18पर फिर भी उसे तसल्ली नहीं होती है
11:21और अपने पिता को ऐसे महनत करना देख नहीं पा रहा था
11:26उसने सोचा कि इन सब का हल सिर्फ उसका अच्छा पढ़ना ही होगा
11:32इसलिए वो दिन रात महनत से पढ़ाई करता है
11:36ऐसे पढ़ाई करते वक्त अमर को अपने पिता का काम आसान करने के लिए एक उपाय सूचता है
11:43तुरंत वो उसके विचार सारे एक पेपर पे लिखता है
11:47अगले दिन अमर अपने पिता के घर होते समय देख अपने विचार सारे उनसे कहता है
11:55पापा आपके ही काम में मेहनत के बिना आपके साथ ज्यादा लोग काम करते हुए
12:02अब की आपकी आमधनी से भी ज्यादा पैसे कमाने के लिए मेरे पास एक उपाय है
12:08और इसमें आपको निवेशकने की भी कोई ज़रूरत नहीं है
12:11क्या बात कर रहे हो तुम द्यापार चलाने की ख्रमता हम में नहीं है
12:17जा जाके पढ़ो बेटा
12:19ये क्या बात हुई जी पहले सुनो तो सही कि वो क्या कहना चाता है
12:25अगर वो ये कह रहा है कि निवेशके बिना ज्यादा पैसे कमाने का उपाय है
12:30और वो भी इतने छोटे उमर में आपको तो खुश होना चाहिए ना
12:35मेरी बात तो सुनिये पता जी सच्ची में ये मुम्किन है
12:39ठीक है बोलो मैं अभी अब तो जानू ये कैसे मुम्किन है
12:44और ऐसे अमर अपने पता को उसके विचार बताना शुरू करता है
12:50पापा हमारे गाउ में कुल मिलाके 350 परिवार है
12:55आपके गिंतिके अनुसार डब्बा देने वालों के परिवार में
13:00कारखानों में काम करने वाले, सरकारी कारियाले में काम करने वाले, स्कूल और कॉलिज जाने वाले होंगे
13:06इसलिए उन सारी जगाओं में मैं अपने दोस्तों के साथ नौकरी का मौका है
13:13इच्छुक लोग आवेदन कर सकते हैं
13:16निमन लिकित पता पे आके अपना नाम और बाकी विवरन दे के नौकरी तुरन चुरू कर सकते हैं
13:23ऐसे पेपर में लिखके दिवारों पे चिपताएंगे
13:27उसके बाद जितने भी लोग आते हैं उन सब को यही काम समान रूप से विवजद करेंगे
13:36महीने के अंत में आये हुए पैसों में आदा हम उनको दे देंगे और आदा हम रख लेंगे
13:42ठीक है तुम्हारे गिंती तो मुझे समझ नहीं आ रहे पर इसे हम इमानदारी से कोशिश करेंगे
13:49बढ़ाई का ग्यान तुम्हारा है बटा और जिम्मतारी का डर है मेरा
13:53मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि तुम्हारा सोच गलत है
13:57तुम जाके तुम्हारे दोस्तों के साथ दिवारों पे नौकरी का अफसर के पेपर चिपकाओ
14:02उसके बाद हम देखते हैं कि क्या करना है
14:05ऐसे कहकर अमित वहां से चला जाता है
14:09अपने पिता का दिया हुआ अफसर देख अमर अपने दोस्तों के साथ
14:13स्कूल, सरकारी कार्याले, कारखाने, कॉलेज जैसे जगाओं के बाहर उन पत्रिकों को चिपकाता है
14:25और इतना ही नहीं बहाँ पे लोगों को भी उसने बताया कि उसके पता ने एक नया व्यापर शुरू किया और उसमें नौकरी का अफसर है
14:35सभी को अमित के व्यक्तित्व के बारे में सालों से पता है क्योंकि वे डब्बा वाले की तरह सालों से काम कर रहे हैं
14:43तो इसलिए गाओं के लोग उसके पास काम करने के लिए सहमत होते हैं
14:49नौकरी के बारे में विज्याप्त करने के कुछ ही दिनों में 60 लोग अमित के घर नौकरी के लिए आते हैं।
14:56आये हुए 60 लोगों को 5 अलग-अलग भाग के जगाओं के लिए विबिजन करते हैं।
15:0212 लोग कारखानों के लिए, 12 सरकारी कार्याले के लिए, 24 लोग स्कूल और कॉलिज के लिए और 12 को पाकी जगाओं के लिए विबिजन करते हैं।
15:13इन सब को डब्बे खटा करके उन्हें उनके जगाओं पे पहुचाना था और सब काम पे लग जाते हैं उनके साइकल पे।
15:22पहले महीने बाद डब्बा बेशने वाले परिवार उनको उनके महीने का पैसा 600 दे देते हैं।
15:36ऐसे 175 परिवार 600 रुपए महीने को भरने के बाद अमर के पिता के पास एक लाख पांच हजार रुपए आते हैं।
15:48एक लाख पांच हजार रुपए? उसमें से आधा तो हमारे साथ काम के करमचारियों को देने में ही जाएगा।
15:56फिर भी 52,500 रुपए तो बच जाते हैं। मेरा बेटा तो हीरो है। अमित ऐसे बहुत ही कम समय में एक अमीर व्यापारी बन जाता है।
16:06आमित के जीत का गाउं के सारे लोग अभिनंदन करके उसका सतकार करते हैं। पर उस समय पर आमित कहता है कि सतकार उसे नहीं बलकि उसके बेटे का करना चाहिए।
16:19इस जीत के पीछे मैं नहीं बलकि मेरा बेटा है। 16 साल के मेरे बेटे से मेरी महनत और पसीना देखा नहीं जा रहा था। और उसने तब इस व्यापार के बारे में सोचा।
16:33मेरे पास आके उसने इस उपाय के बारे में कहा, पड़ा लिखा ना होने के कारण, मुझे तो ये सब समझ में नहीं आया, पर उसने हार नहीं मानी और मुझे इस व्यापार के बारे में सब कुछ समझाया, नौकरी के अफसर के बारे में सब को बताया और मुझे यहां तक �
17:03कोई जरूरत नहीं होती है अगर अपने मन में कुछ ठान ले और क्रुशी करे तो सफलता जरूर मिलेगी
17:10दूद वाला
17:13बिकनूर नामक एक नगर में रहता था एक राजा चंद्रसेना
17:20उसका मंत्री कबीर सिंग उसके दूद का कारोबाण समालता था
17:28उन्होंने बहुत सारी स्वस्थ गायों को पाला जो अच्छा और गाढ़ा दूद दे दे थे
17:36ये दूद सारे गाव में बेचा जाता था
17:49कबीर सिंग खुद सब कुछ समालता था
17:52कबीर सिंग की पीडी भी महराजा के लिए काम करते आ रहे थे
17:57और इस वज़ा से चंद्रसेना उसका बहुत आदर करते थे
18:02कबीर सिंग ने भी राजा को कभी भी निराश नहीं किया
18:10सारे गाव में उसका अच्छा नाम था
18:12हर रोज कबीर सिंग खेत पर जाता था उसने बहुत लोगों को काम पे रखा गायों की देख बाल के लिए ताकि वे अच्छे से खाए और सीहत मन रहें
18:25गायों को घास चराने के लिए वह दिन में कम से कम दो बार भेजता था
18:40वह हमेशा ध्यान रखता था कि दूद साफ सुत्रा रहे
18:44दूद निकालने के बाद वह दस दूद वालों को देता था ताकि वह गाओं में जाकर बेचते
19:02दूद वाले कबिर सिंग को पैसे देते थे और कबिर जाकर चंदरसेना को
19:09चंदरसेना ने देखा कि कैसे कबिर इमानदारी से काम करता था और उस पे पूरा भरोसा रखा
19:20महराज कबिर के साथ अच्छा बरताव करते थे और कबिर राजा के बारे में भी अपने बहनों को बताया करता था
19:28एक दिन जब कबिर घर वापस आया
19:31तो उसने अपने बहनों को बहुत गुसे में और परिशानी में देखा
19:39क्या बात है तुम सब इतने गुसे में क्यों हो
19:43हम तीनों की उमर हो गई है शादी के लिए
19:47पर क्या फैदा शादी के लिए पैसे ही नहीं है
19:51कपड़े और गेहनों को छोड़ो हमारे पास खाने पीने के लिए पैसे काफ ही नहीं है
19:57मैं तुम लोगों के लिए ही इतना मेहनत करता हूँ
20:01अगर इससे भी खुश नहीं हो तो मेरी सारी मेहनत ही बिकार हो रही है
20:06आप तो महराजा के मंत्री हो ना पर आप अपनी आमदने किसी भी जरूरत मन को दे देते हो
20:13और आप दूद का कारोबार भी समाल रहे हो ना अकेले उसमें भी कोई मुनाफ़ा नहीं मिल रहा है आपको
20:19ऐसा क्यूं? शायद हमारी कोई फिकर नहीं है इसलिए
20:24तीनों बहने रोने लगी और कबीर को बहुत बुरा लगा
20:29अब तुम सब मत रो मुझे बरदाश नहीं होता अब बोलो में क्या करूं मैं वही करूंगा
20:37वैसे आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं आप दूद का सारा कारोबार समालते हो ना
20:44अगर आप उसमें थोड़ा पानी मिला कर बेचोगे तो आप ज्यादा बेचपाओगे
20:51हाँ और अधिक दूद से अब ज्यादा मुनाफ़ा भी कमा सकते हो
20:55पर ये तो धोका हुआ मैं राजा के साथ ऐसा नहीं कर सकता
21:00कभीर सिंग ने ऐसा करने से मना कर दिया था और उसकी बेहनों ने उसको भावो करके
21:06जैसे तैसे उससे ये काम करवा ही दिया
21:14कभीर सिंग अक्सर कमाय गए पैसे राजा को देता था
21:22और बाखी के पैसे अपनी बेहनों को देनी लगा
21:26मुझे ऐसा करना नहीं पसंद, यह आखरी बार है, इसकी बाद मुझे यह सब करने के लिए नहीं बोलना
21:35कबिर की बाते सुनकर, बहनोंने उसको पैसे वापस के और घर छोड़कर जाने का नाटक करने लगे
21:42कबीर के पूछने पर तीनों ने धमकी दी कि वे घर चोड़ कर चली जाएंगे
21:47मजबूर होकर कबीर को उनकी बात माननी ही पड़ी
21:51कमाये गए पैसे राजा को देखर
21:58अधिक पैसे अपनी बहनों को देनी लगा
22:02ये सिलसला कई दिनों तक चलता रहा
22:06कुछ ही समय में कबीर के बहने नए नए साडियां और गहने खरीदने लगे
22:13और अच्छा खासा खाने भी लगे
22:16उनकी जिन्दगी ही बदल गई
22:18घर पर बैठे बिना तीनों सच धच के बाहर गुमने लगे
22:22सब के आगे दिखावा करने के लिए
22:25गाउं के सारी लोग हैरान रहे गए और आपस में बाते करने लगी
22:36ये तीन भेने कबीर की कमाई को ऐसे इस्तिमाल कर रहे हैं
22:41मैंने कभी नहीं देखा किसी को ऐसा करते हुए
22:45पर कबीर सिंग के पास इतने पैसे आये कहां से
22:50सब लोग कबीर के बारे में बाते करने लगे और बाकी के मंतरी कबीर की कमाई पर इरशा करने लगे
22:57तो इस बात पर जांश करना शुरू कर दिये
23:00जल्द उनको सच पता चल गया कि वह दूद में पानी मिला कर बेच रह था
23:0670% राजा को देकर बाकी के 30% अपने जेब में डाल रहा था
23:11खेट के कारिगरों से मंत्रियों ने ये बात का पता लगाया
23:15सारे मंत्री गए राजा के पास
23:18और उनको पूरा सच बता दिया
23:22अब क्योंकि राजा को कबीर से बहुत लगाव था
23:25उनको इस बात पर यकीन ही नहीं हुआ
23:28पर उनके पास और कोई रास्ता नहीं था
23:31सिवाए कबीर को दंड देने का
23:34तीनों बहने आय कैद खाने अपने भाय को देखने के लिए
23:39और उनको बहुत बुरा लगा
23:40कि उनकी ही वज़ा से उनका भाय आज जैल में बंद पड़ा है
23:45बहनों को अपनी गल्ती का एहसास हुआ
23:48और तीनों गए महराजा के पास
23:50और उनको सब सच बताया
23:52कि असल में ये सब उन तीनों की ही गल्ती है
23:55और कबीर दोशी नहीं है
23:57उन्होंने राजा से भीक मांगी
23:59कबीर को छोड़ने के लिए
24:01जब राजा न ये सब सुना
24:03तो उन्होंने तीनों बहनों को भी
24:05कबीर के साथ कैद खाने में ही डाल दिया
24:08और कहा
24:09दंड केवल गलत करने वाले को ही नहीं
24:12गलत सोचने वाली को
24:14और गलती में हिस्सा लेने वाली को भी मिलनी चाहिए