- 5/31/2025
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00:00सिरिपूरम नामक एक सुन्दर गाव में आंजिनेलू उसके बेटे उत्तेज के साथ एक छोटे घर में रहता था।
00:10उसका बेटा बहुती तेज और बुद्धिमान था। इसलिए उसके कक्षा में वो हमेशा पहला आता था।
00:18आंजिनेलू अंडे का व्यापार करता था। वो अंडे को बेचकर उसके बेटे को पड़ाता था। एक दिन आंजिनेलू साइकल पे अंडों को लगाकर उन्हें बेचने के लिए निकलता है।
00:31अंडे, अंडे, एक अंडा सिर्फ एक रुपए, आये बाबो, आये। ऐसे उसकी चीके सुनकर सारी लोग अंडे खरीदने बाहर आते हैं।
00:42एक ड़जन अंडे देदो। भाया, मुझे भी एक आधा ड़जन अंडे देदो। जी मेम साब। ऐसे कहकर वो उन अंडों को उन लोगों को बेचता था।
00:55ऐसे ही आंजनेलू गली-गली घूमकर अंडे बेचते हुए उसके बेटे की पढ़ाई करवाते हुए रहता था। और ऐसे बहुत साल बीच जाते हैं। कुछ साल बाद उसके बेटे का पढ़ाई खतम होता है। और पढ़ाई खतम होने के तुरंत बाद उसको एक अच्छ
01:25पड़े की उनका अच्छा देख बाल कर पाऊंगा ऐसे सोचते हुए वो खुशी खुशी उसके पापा के पास जाता है पापा मुझे नौकरी मिल गई है आपसे आपको ऐसे मेहनत करने की कोई जरूरत नहीं है ये अंडों का व्यापार भी छोड़ दीजे पापा मैं आपका
01:55कोई काम करे बिना नहीं रह सकता बिटा इसलिए तुम अपना नौकरी करो मैं इन अंडों को पेचते ही रहूंगा एक दिन आएगा जब मैं कोई भी काम कर नहीं पाऊंगा तब तुम मेरा ख्याल रख लेना बिटा अब तो मुझे ऐसे ही रहने दो अरे मैंने तो सोचा कि
02:25बिना खाली रहना पसंद ही नहीं करते हैं इसलिए मुझे नौकरी करते हुए जो भी पैसे आते हैं उन्हें बचा कर मुझे पापा के लिए कुछ बड़ा खरीदना होगा आकि उन्हें कभी काम करने की जरूरत ही ना पड़े ऐसे ही कोई व्यापार शुरू करना होगा मु
02:55हाँ, अब तक मैंने जो पैसे बचाए हैं, इससे तुम एक रिस्टॉरंट ही रख सकता हूँ।
03:01ये फैसला करके वो उसके बचचत के पैसों से उस गाउं में ही बहुत बड़ा रिस्टॉरंट शुरू करता है।
03:08इतने नए और बड़े रेस्टारंट को देख उस गाव के सारे लोग उस रेस्टारंट को जाना शुरू करते हैं। उतने सारे लोगों से भीड़े तुस रेस्टारंट को देख उत्तेज बहुत खुश होता है।
03:20अरे रेस्टारंट में तो बहुत सारे लोग आ रहे हैं। यही वक्त है मैं ये रेस्टारंट पापा को दिखाऊंगा और उन्हें बताऊंगा कि इस रेस्टारंट का मालिक वही होंगे। ये सुनकर तो वो बहुत खुश होंगे।
03:35ये फैसला करके वो उसके पापा के पास जा ही रहा था कि रस्ते में उसके पापा अंडों को बेचते हुए दिख जाते हैं। उनके पास जाकर कहता है।
04:05अचानक एक बड़े महेंगी गाड़ी में एक औरत वहां आती है। सुनिए अंडे कितने में मिलेंगे। एक अंडा पांच रुपय का है जी। छे अंडों को अगर पच्चिस रुपय में दोगे तो मैं ले लोंगी। बना एक भी अंडा यहां से नहीं लोंगी।
04:35पास तो मैंने एक अंडे का डाम कम करके ची अंडे लिया है। ऐसे वो खुश होकर अंडे लेकर वहां से चले जाती है।
04:44पापा आप तो आपने बेच दिया ना। चलिए मेरे साथ। वो उसके पापा को उसके रेस्टॉरेंट ले जाकर उन्हें वहां बिठाता है।
04:53पापा आपको ऐसे गली-गली घूमकर अंडे बेचने की जरूरत ना हो। इसलिए मैंने अपनी नौकरी में आए हुए पैसों को बचा कर ये रेस्टॉरेंट शुरू किया।
05:08इसका मालिक आप हो पापा। मैं अपना नौकरी करूंगा।
05:13क्या? क्या ये सब सच है बेटा? मुझे तो तुम्हारी बाते सुनकर बहुत बहुत खुशी हो रही है।
05:20तुमने मेरे लिए ये रेस्टॉरेंट लगाया? हाँ पापा ये सब आप ही का है।
05:25चलो सबसे पहले हम आपकी मन पसंद खाना खाएंगे।
05:30ये कहकर उस रेस्टॉरेंट के बावर्ची से उत्तेज उसके पिताजी के मन पसंद व्यंजन बनवाकर उन्हें खिलाता है।
05:39और वो दोनों खुशी खुशी खा ही रहे थे कि इतने में कार में आकर आंजेलू से अंडे लेकर जो लड़की गई थी वो वहाँ रेस्टॉरेंट आती है उसकी सहेली के साथ।
05:53उत्तेज और उसके पिता के कुछ ही दूर में वो उसके दोस्त के साथ बैठती है।
05:59उसे देख उत्तेज उसके पापा से कहता है पापा वो देखो यही तो वो लड़की थी ना जो आपके पास अभी अभी अंडे खरीद कर गई थी।
06:11हाँ बेटा वो तो यही लड़की थी।
06:14तब वो दोनों देखते हैं कि वो लड़की उस रेस्टारेंट में वो और उसके सहीली के मन पसंद खाना मंगवा कर उसमें से थोड़ा ही खाकर बाकी सारा छोड़ देती है।
06:26और जब रेस्टारेंट वालों ने बिल का पैसा चार हजार कह दिया था तो उसने अपनी दोस्त के सामने दिखावा करने के लिए पांच हजार वहां देती है।
06:38मैडम ये लीजे आपके हजार रुपए। वो हजार रुपए तुम तिप की तरह समझ कर रख लो। ये कहकर वो उसके दोस्त को वहां से लेकर चले जाती है।
06:51उत्तेच उस लड़की को ऐसे करते हुए देख आश्चर चकित हो जाता है।
06:56पापा, क्या आपने ये देखा? वो लड़की एक मामूली अंडे का व्यापार करने वाले व्यक्ती से बहस करके कम दाम में अंडों को लेती है।
07:08और वही लड़की एक महेंगी रिस्टॉरेंट में चार हजार की चका पांच हजार देखकर दिखावा करती है।
07:16क्यों पापा, लोग भला ऐसे क्यों करते हैं? मैंने ऐसे बहुत लोगों को देखा है, जो गरीबों के पास बहस करते हैं और उनको परेशान करके उनसे कम दाम में चीज़े खरीते हैं।
07:30और महेंगी दुकाणों में तो ऐसे नहीं करते हैं, बहस का तो कोई मौका भी नहीं है।
07:35बेटा, यही तो लोगों का बरताव है, महेंगी लोगों के पास दिखावा और करीबों के पास बहस।
07:43जिन लोगों के पास पहले से ही सब कुछ है उन्हें और पैसा देते हैं और दिखावा करते हैं
07:50और जिनके पास कुछ भी नहीं है जो रोटी सबजी के लिए लड़ते हैं उनके पास बहस करते हैं
07:56और उनको ऐसा लगता है कि वो उन्होंने जीत लिया है।
08:00तुम ऐसा कभी मत करना बीटा।
08:03पापा, ना ही मैं ऐसे करूँगा, नोर ना ही अपने दोस्तों को करने दूँगा।
08:08आपके अंडों को इसी रेस्टोरेंट में उपयोग कीजे।
08:11और यहां का मालिक बन जाएए पापा, आप ही इसका देखबाल कीजे।
08:16जरूर करूँगा बीटा।
08:18तब से उत्तेच के पिता आंजनेलू उस रेस्टोरेंट का ख्याल रखते हुए
08:23और उत्तेच उसके नौकरी करते हुए खुश रहते हैं।
08:28वो इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि अगर कोई मामुली के पास गए हैं तो बहस नहीं करना है।
08:34सब के व्यापार को प्रोचाहिप करते हुए वो खुश रहते हैं और सभी को खुश रखते हैं।
08:42एक गाउं की एक छोटी सी घर में मधुकर नामक एक आदमी रहता था।
08:48वो गन्ये की रस बना के बेचता था।
08:51मधुकर को बहुत महनत करके काम करने की मान सिकता था।
08:56एक तिन मधुकर गन्ये की रस बना के बेच रहा था।
09:00तब
09:00मधुकर तुम गन्ने की रस बहुत अच्छा बनाते हो
09:09हाँ मधुकर तुम्हारे हाथों में जादू है
09:12ऐसे गन्ने की रस पीते मधुकर की फ्रशन्जा गरते थे लोग
09:18मुझे आलसी ना होके मेरे गन्ने की रस के बारे में सबको पता चलने के लिए
09:24अच्छा और स्वादिष्ट रहने वाली गन्य की रस बनाना होगा
09:29ऐसे हर रोज वो और स्वादिष्ट गन्य की रस बनाने का प्रायत्न करता था
09:35वो दिन प्रती दिन स्वादिष्ट और ताजा गन्य की रस बनाने के कारिन उस गाउ में बहुत प्रसित था
09:43एक दिन मदुकर देर रात तक दुकान में ही रहके और नए तरीके से गन्ने की रस बनाने का प्रैत्न कर रहा था
09:53मुझे कल आज से पहतर गन्ने का रस बना के बेचना होगा
09:59ऐसे सोचकर दुकान में ही रहके दन्ने का रस बना रहा था
10:04इतने में उस गाउं में घूम रही एक देवता उस तरफ से गुजरते हुए प्यासी होने के कारण गन्य की रसका दुकान को खुला देख सोचती है
10:15लगता है वहाँ कोई गन्ने की रस का दुकान खुला है
10:19कम से कम उससे मेरा प्यास बुचेगा
10:22लेकिन मैं ऐसे नहीं जा सकती हूँ
10:25ऐसे सोचके देवता एक आदमी की नकल में दुकान को जाती है
10:30भाय साब मुझे बहुत प्यास लगी है
10:36एक गलास गन्ने का रस मिलेगा
10:38जी भाय साब
10:40अभी मैं इनको अधरक और नीम्बू को मिला के बनाये हुए गन्ने की रस देता हूँ
10:46अगर अच्छा है तो वो मुझे बोलेंगे
10:49और मैं कल से ही सब को बिच सकता हूँ
10:52ऐसे सोचकर वो अधरक और नीम्बू मिला के गन्ने का रस पना के उस आदमी को देता है
11:00वो आदमी रस स्वादिश्ट रहने पर एक और गलास मांगता है
11:05अरे वाह तुम गन्ने का रस बहुत अच्छा बनाते हो
11:09अगर तुम हर रोज इसी वक्त पे अपना दुकान खुला रखते हो
11:13तो मैं आकर गन्ने का रस पी के चला जाओंगा
11:17मेरे पास पैसे नहीं है
11:20ऐसे कहकर मदुकर को स्वादिश्ट करने का रस बनाने के लिए एक बैक देकर चला जाता है
11:27मदुकर उस बैक को जब खोल के देखता है
11:30तो उसमें सोने को देख खुल शोता है
11:33मुझे हर रोज इस समय तक दुकान को खुला रखना होगा
11:38तभी मैं और पैसे कमा पाऊंगा
11:41ऐसे हर दिन वो उस आदमी के आके रस पीने तक दुकान खुला रखता था
11:48वो तेरता एक आदमी के नकल में हर रोज आके रस पीके उसे एक सोने का बैक देके चली जाती थी
12:02मदुकर हर सुबा ज्यादा मेहनत करके दने का रस बनाके उसे बेचके मिलने के पैसे से ज्यादा उसे शाम में उस आदमी के एक गलास पीने से कमा रहा था
12:15और इस वज़े से वो दिन पूरा महनत करने के पजाए सिर्फ शाम में ही दुकान खोलने का फैसला लेता है
12:24मुझे हर रोज सुबह गन्य का रस बना के बेचने की जरूरत नहीं है
12:29अब से सिर्फ उस आदमी के आने के समय पर दुकान खोल के स्वादिष्ट करने का रस बना के उन्हें देना है बस
12:38उनके दिये हुए सोने से मैं आराम से जी सकता हूँ
12:43ऐसे सोचकर मदुकर उस आदमी के आने के समय पर ही दुकान खोलता था
12:48ऐसे उनके देवे सोने से खुशी-खुशी जी रहा था
12:53एक दिन मदुकर उसके दोस से मिलता है
12:56क्या हुआ मदुकर आजकल दुकान नहीं खोल रहे हो
13:00कुछ नहीं व्यापार अच्छा नहीं चल रहा
13:04इसे दुकान नहीं खोल रहा हूँ
13:06मुझे अब से दुकान खोलने की कोई जरूरत नहीं है
13:10मैं अगर थोड़ी देर शाम में दुकान खोलूँगा
13:13तो मुझे दिन पूरा मैनत करने से भी दुगना पैसा मिलेगा
13:17हर रोज उस आदमी के आने के टाइम पे वो दुकान खोलता था
13:24और उसे ताजे गन्ने का रस बना के देता था
13:29ऐसे कुछ दिनों में सुबा दुकान ना खोलने के कारण उसकी आदते बदल गई थी
13:35मैनत से काम करने वाला मदुकर अब कोई मैनत के बिना आराम से रहने लगा
13:41एक दिन मदुकर उसके पास के सारे पैसे गिनते हुए
13:46उस आदमी के आने के समय पे दुकान नहीं खोलता है
13:49वो आदमी आके देखता है कि दुकान खोला नहीं है और वहां से चले जाता है
13:55गिन्ती में व्यस्त मदुकर को अचानक याद आता है कि वो दुकान खोलना बूल गया
14:01लेकिन समय तब तक बहुत हो चुका था
14:04और वो दुखी होता है कि अब तक वो आदमी चला गया होगा
14:08अरे रे, आज के आने वाले पैसों को खो दिया मैंने
14:12कल मैं उस आदमी के आने के समय से पहले ही दुकान खोल दूँगा
14:18ऐसे सोच कर पैसे कमानी की सोच में मगन होकर
14:22और दुख के कारण वो पूरी रात नहीं सो पाता है
14:26सुबह होने के बाद भी वो सोई बिना सोचते ही रहता है
14:31आज मैं उस आदमी को ताजा गरने का रस पिला के ही चैन से सो पाऊंगा
14:36ऐसे सोच के वो सोई बिना बैचे रहता है
14:40मगर शाम को वो अपनी नींद रोक नहीं पाता है
14:43उस आदमी के आने से पहले बहुत समय है न
14:47इस पीच मैं थोड़ी देर के लिए सो के उठ जाओंगा
14:50और सो जाता है
14:52ऐसे उस आदमी के आने के समय पे भी सोते ही रहता है
14:57आदमी जब गन्य का रस पीने दुकान आता है
15:00तो दुकान फिर से बंद रहता है
15:02ये दुकान दार न जाने क्यों आजकल अपना दुकान नहीं खोल रहा
15:07कल भी दुकान बंद ही था
15:09कल से यहाँ ना आना ही बैतर होगा
15:13ऐसे सोचके वो आदमी वहाँ से चला जाता है और जब तक मदुकर उठता है तब तक तो बहुत देर हो चुकी होती है
15:21हाई भगवान आज भी मैं दुकान खोल नहीं पाया वो आदमी आकर देख के चला भी गया होगा
15:28अगले दिन वो ध्यान से दुकान उस आदमी के आने के समय पे खोलता है
15:34लेकिन बहुत देर इंतजार करने पर भी वो आदमी लोट के नहीं आया
15:39ऐसे मदगर कुछ दिन और इंतजार करता है
15:43मगर वो आदमी लोट के नहीं आता है
15:46उस आदमी का लोटके ना आने का वज़ा मैं ही हूँ
15:49मेरे दो दिन दुकान ना खोलने के वज़ा से ही उसने आना बंद कर दिया
15:54मुझे दुगना पैसा मिलने पर मैंने मेहनत करना बंद कर दिया
15:59मेरे पास के पैसे सारे खतम हो जा रहे हैं
16:03अगर मैं कल से वापस दुकान को हमेशा की तरह सुबा नहीं खोला, तो मुश्किल हो जाएगा।
16:11अगले दिन से वो सुबा ही दुकान खोल के गन्ने का रस बना के बेशना शुरू करता है।
16:17मगर बीच में कुछ दिन आलसी बनने के कारण काम नहीं कर पाता है।
16:21लेकिन खुशी से जीने के लिए अपने आपको बदल के मेहनत से गन्ने का रस बेच के काम करने लगता है।
16:30कुछ दिनों में वापस उसे मेहनत की आदत लग जाती है।
16:34उसे उसकी गलती का एसास होता है और तब से वो आसानी से गन्नी का रस बना के उसे बेच के उसे पैसों से खुशी-खुशी जीता है।
16:44तो इस कहानी का नैतिक क्या है? मेहनत से जीने की जरूरत एक आदत बनना चाहिए।
16:50तब ही हम अच्छे स्तान में रहेंगे और साहस से हर मुश्किल का सामना कर सकते हैं।
17:00एक बार एक शहर में बंधन नाम का एक ठेकेदार अपने माता-पिता के साथ रहता था।
17:12लोग उसकी एक काम की बहुत प्रशंसा करते थे।
17:16तो इस वज़े से धीरे-धीरे वो बहुत एहंकारी हो गया।
17:22बंधन की शादी हो गई। और उसकी पतनी एक बहुत सुन्दर औरत थी।
17:29मगर सुन्दरता के साथ वे बहुत लालची थी।
17:34हर दिन जब बंधन अपने काम के लिए घर से बाहर जाता,
17:40तो उसकी बतनी कुछ काम नहीं करती।
17:43वो बस घर में बैटकर अपने आपको सवारती रहती थी।
17:48यहां तक की उसने अपने साथ ससुर की भी सेवा नहीं की।
17:55क्यूंकि बंधन अपनी बीवी के प्यार में इतना अंधा हो चुका था।
18:00वो ये सब चीजें देखता ही नहीं था।
18:03तो उसकी पतनी ये सब चीजों का फाइदा उठाती थी।
18:07एक शाम जब बंधन थक के घर वापस लोटा तो उसकी पतनी भाग कर उसके पास आई।
18:17और बोली बंधन मेरे प्रिये मेरा जन दिन आने वाला है तो आप मुझे जन दिन में क्या तौफा देंगे।
18:26ओ, तो तुम्हारा जन दिन आ रहा है। तुम बताओ मेरी प्रिये तुमें क्या चाहिए।
18:35अच्छा, तो मैं जो मांगूंगी क्या आप मुझे लाकर देंगे।
18:40हाँ, हाँ, बिल्कुल।
18:42ठीक है, मैं थोड़ा सोचती हूँ और फिर आपको बताऊंगी।
18:47बंधन की ये बाते सुनकर उसकी पत्नी बस यही सोचती रही कि क्या तौफा मांगना चाहिए।
18:54जब वो किसी औरत को साडी में देखती तो सोचती कि क्या उसे साडी चाहिए।
19:00चाहिए और जब वो मंदिर में जाती और रस्मुरेवाजों को देखती तो सोचती कि क्या उसे चान्दी का थाल चाहिए
19:10जब वो घर में बैटी रहती और अपने आपको सवारती रहती तो सोचती कि क्या उसे एक बड़ा सा सोफा चाहिए
19:19और फिर जब वो अपनी पुरानी सोने की चूडियों को देखती
19:23तो सोचती कि क्या उसे नई चूडिया लेनी चाहिए
19:27ऐसे ही इतने सारे खयाल उसके दिमाग में आए
19:31फिर अचानक उसे लगा कि उसे एक हीरों का बड़ा हार मांगना चाहिए
19:38फिर एक दिन शाम के वक बंधन काम से घर लोटा
19:43उसकी पत्नी फटाफट बंधन के पास गई और उसे बताया कि उसे क्या चाहिए
19:51बंधन थो उसे देख कर चौग गया और थोड़े समय तक कुछ बोला ही नहीं
19:57अरे मेरे प्रिये क्या हुआ आप चुप क्यों है अरे बताये न आप बोल क्यों नहीं रहे
20:04मेरी प्रिये क्या तुमने मुझसे हीरों का बड़ा हार मांगा है
20:10हाँ क्या तुम्हें पता है कि उसका मूल्य कितना होता है
20:15नहीं मुझे नहीं पता, मुझे नहीं लगता कि वो दस लाख रुपए से नीचे आता है
20:21हाँ तो क्या, अरे मगर मेरे पास उतना पैसा नहीं है
20:27मैं इतनी रक्म तो दस घर बनाने के बावजूत भी कठा नहीं कर सकता
20:32अच्छा, अरे लेकिन मेरे पास एक योजना है
20:37आपको दस घर बनाने की जरूरत ही नहीं है
20:41मेरे पास एक तर्कीब है
20:43आप बस एक महिने में पाँच घर ही बनाईए
20:47और उनसे दस घरों का मूल्य प्राप्त कीजिए
20:51क्या, ऐसे कैसे हो सकता है?
20:54क्या ये संभव है?
20:56हाँ हाँ, ये बिल्कुल संभव है
20:58पाँच घर बनाने के लिए
21:00आपको जितनी भी सामगरी लगती है
21:03जैसे की मिटी, पेंट, लकडी, इंटे, पानी, सीमेंट
21:08आप उतना ही मंगवाईए
21:10और रिसीट में और लोगों से दुगना दाम मांगिए
21:16यहाँ तक की आप अपने पुराने मिस्त्रियों को निकाल दीजिए
21:21और नए मिस्त्रियों को रखिए
21:23आधे दाम में
21:25तो पैसा तो आप दस घरों का ही लेंगे
21:29बनाएंगे सिरफ पांच घर
21:31मगर ऐसा कैसे संभव है?
21:34क्या तुम्हें लगता है कि लोग इतने मूर्ख हैं
21:39कि उन्हें पता ही नहीं लगेगा?
21:41अरे लोग आपकी बातों का पूरा विश्वास करेंगे
21:45उन्हें पता है आप बहुत अच्छे और मेहनती ठेकेदार है
21:50और आप हमेशा अच्छा काम ही तो करते है
21:53बंधन भी अपनी पत्नी की बातों में आ गया
21:57उसमें भी लालज भर गई
21:59इसी तरह बंधन ने इस तरकीब को अपनाया
22:04जैसा उसकी पत्नी ने कहा था
22:06उसने पैसों की हेरा फेरी करनी शुरू कर दी
22:23और मिस्त्रियों को भी आधे पैसे दिये
22:33तो ऐसे करते करते उसने पांच घर बना लिये
22:50और उसे उन घरों का मूल्य भी मिलने लग गया
22:57बंधन ने हेरा फेरी कर जो पैसे कमाये थे
23:03उनसे वो अपनी पत्नी के लिए एक बड़ा हीरों का हार खरीदने गया
23:09वो हार देख कर उसकी पत्नी तो छूम हुटी
23:19मगर ये खुशी बहुत लंबे समय तक नहीं थी
23:25बंधन ने जो घर उस लालची योजना के कारण बनाए थे
23:30वो ठीक नहीं थे
23:32दो घरों की चटाने तो गिर गई थी
23:36और तीन घर तो योजना के मुताबिक बने ही नहीं थे
23:40उन घरों के मालिकों ने आकर खुब हला मचाया
23:45उन्होंने आस पडोस में भी बता दिया
23:50कि कैसे बंधन एक चोर ठेकेदार है
23:53बंधन ने अपनी अच्छे ठेकेदार होने की पहचान भी गवा दी
23:59अब कोई उसके पास अपना घर बनवाने नहीं आता था
24:03बस ये सब जानकर बंधन को अपनी गलती का बहुत एसास हुआ
24:17वो अपनी बीवी से बहुत दुखी था
24:20और उसने उसे बताया कि जो उसने सोचा था वो बिलकुल गलत है
24:25उसने ये भी कहा कि सिरव बहारी सुन्दरता काफी नहीं होती
24:29बंधन और उसके परिवार वालों को खूब समस्याओं का सामना करना पड़ा
24:34फिर कुछ समय बाद उसकी बीवी वो हीरों के हार को बाजार में ले गई और उसे बेच आई
24:43उसे बेचने से जो उन्हें रक्म मिली उससे उन्होंने अपना घर चलाया
24:48तो बच्चो इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
24:54बाहारी सुन्दरता महत्वपूर नहीं होती
24:57मन की सुन्दरता ही एक अच्छे इंसान की निशानी होती है
25:03इंसान को दयालुता और सच्चाई का रास्ता हमेशा अपनाना चाहिए
25:08धन्यवाद
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