00:00एक लंबय समय पहले अवंतिपुरम नामक की गाउं था। उसमें अंकया और सुबबया नामक दो व्यक्ति अगल बगल वारे घरों में रहते थे। उन दोनों में से अंकया बहुत अमीर था। वो फसल का व्यापार और मिठाई का व्यापार करता था।
00:17सुबबया हर रोस के वेतन का काम करता था। अंकया के घर के ठीक बगल में एक छोटी गर में रहता था। अंकया को उसके अमीर घर के बगल में सुबबया एक गरीब घर में रहना पसंद नहीं आता था।
00:33उसको ऐसा ऐसास होता था कि उसके वजे से उसकी घर की सुन्दरता घट रही है।
00:39वो हमेशा यही सोचता था कि मौका मिलने पर वो सुब़या का घर हासल करके उसे वहां से भेज देगा।
00:47अंकया सुबबया पर गुसा के कारण हमेशा उससे कोई ना कोई विशय पर जबान लड़ाता था
00:53लेकिन सुबबया हमेशा अंकया की इज़त करता था
00:58एक दिन अंकया उसके मिठाई के दुकान में उसका व्यापार करते रहता है
01:02वही से गुजर रहा सुबया अंकया को उसके दुकान में देखकर उसके पास जाता है
01:08अंकया साथ कैसे हो आप?
01:10ये देख अंकया एक अजीब सा चेहरा बना कर सुबया को देख आँ ठीक है चल रहा है
01:17ऐसे कहकर वापस उसके काम पे लग जाता है
01:20अरे वाँ, आज तो सारी मिठाईया एकदव अच्छी सुगंद आ रही है
01:25कोई नई मिठाईया बना रहे हो क्या साब?
01:28ऐसे पूछता है सुबया और सुबया को हमेशा तंग करने के बारे में सोचने वाला अंकया ऐसे कहता है
01:34आँ ठीक है ठीक है पैसे देकर निकलो यहां से
01:37पैसे? पैसे क्यों साब?
01:41क्या क्यों? अब तक मेरे दुकान में बैटकर सारे मिठाईयों का सुगंद सुग लिया तुमने उसके पैसे
01:48हाँ? क्या? सूंगने की पैसे भी देने पढ़ेंगे? ये कहा कि नाइनसाफी है साब
01:54इनसाफ नाइनसाफी के बारे बात मत करो पहले पैसे दे कर यह से निकलो
01:59ऐसे कहता है अंकईया और क्यूंकि सुबबया उसके बातों के व्यतरेक नहीं बात कर पाया
02:05वो चुपचाप पैसे देकर वहां से चले जाता है
02:09और दूसरी तरफ अंकया अपनी चालाकी पे खुश होकर ऐसे सोचता है
02:15आज तो इसको बड़ा अच्छा बकरा बनाया मैंने
02:18ऐसे अपने आप में खुश होते रहता है
02:21कुछ दिन बार एक दिन अवंतिपूरम पूरा उची तापमान से जल रहा था
02:27और अंकया उसके बंगला के बाहर बरामदे में ठंडी हवा के लिए इधर उधर चलते रहता है
02:34उसी समय वो देखता है कि उसके घर की सीमा के एक पेड़ के च्छाओं के नीचे
02:40सुबईया बिस्तर लगाकर आराम से विश्राम करते रहता है
02:45उसके पेड़ के नीचे सुबईया को आराम से सोते हुए देख अंकया को बिल्कुल पसंद नहीं आता है
02:52क्रोध में वो सुबईया के पास जाकर ऐसे कहता है
02:55है सुबईया
02:57उसकी आवाज सुनकर सुब़या अचानक उठ जाता है
03:00उसे देख उसको नमस्कार करता है
03:02साब, क्या हुआ साब?
03:05निगालो, पैसे निगालो
03:07मुझे पूचे बिना मेरे ही पेड के नीचे तुम विश्राम कर रहे हो
03:11तुम्हारी इतनी हिमत
03:13दो, पैसे जल्दी दो मुझे
03:15क्या? पेड के नीचे सोने के लिए भी पैसे देने पड़ेंगे अब
03:19ये कहा कि नाइंसाफी है साब
03:22एई, मेरे पेड के नीचे सोकर
03:25मेरे पेड की हवा लेकर
03:27मेरे खिलाफ बात कर रहे हो
03:29पहले तुम पैसे निकालो
03:31बात मत करो, पैसे निकालो
03:33और क्योंकि सुबवया उनके व्यत्रेक
03:35बात नहीं कर पाया
03:36उन्हें कुछ कह नहीं पाया
03:38वो चुप चाप उसके पास बचे कुछ पैसे देकर
03:42इसे तो मैं भगा कर ही रखूँगा
03:44ये फैसला करके
03:45अंकया वहां से चले जाता है
03:47एक दिन अंकया अपने फसल की दुकान में काम करते रहता है
03:51वहां एक कववा आकर उसके फसल को खाने लगती है
03:56उस कववे को देख अंकया उसे वहां से भगा देता है
04:00वो कववा वहां से उड़ते उड़ते
04:02दुकान के बगर में मौजूद पेड़ पे उसके घोसले के अंदर चले जाता है
04:07इतने में सुबवया अपने पैसों के लिए अंकया के दुकान को जाता है
04:12ठीक तबी कववा उसके घोसले के बाहर आकर सुबवया के उपर से उड़ता है
04:18उतने में कववे के पैर पे मौझूद सोने का हार सुबवया पे गिरता है
04:24ये देखते ही अंकया तुरन सुबवया के पास जाकर
04:28वो मेरा सोने का हार है देदो मुझे
04:30ये क्या सब आपके आँखों के सामने ये कववे ने सोने का हार मुझ पर गिराया
04:36तो ये मेरा होगा ना
04:38इस बार सुबवया फैसला करता है
04:41कि वो ये सोने का हार अंकया को नहीं देगा
04:44वो कवा अभी-भी मेरे दुकान में फसल खाके गया है
04:47इसलिए वो मेरा है
04:49ऐसे वो दोनों लड़ने लग जाते हैं
04:52उन दोनों को लड़ते देख
04:53गाउ का सरपंच वहां आकर
04:56पूछते हैं कि हुआ क्या
04:57जब सरपंच को बात पता चलता है
05:00उनको अंकया का लालत समझाता है
05:02इनसाफ तो यही है कि ये हार सुबवया को मिलना चाहिए
05:06ऐसे कैसे होगा
05:08उस कवे ने मेरे दुकान का फसल खाया है
05:11उसे मेरा ऐसान चुकाना होगा
05:13और इसलिए वो सोने का हार भी मेरा है
05:16अच्छा वो फसल किसका है
05:18वो मेरा है साब
05:20कल ही मैंने वो सब अंकया को बेच दिया है
05:23उन्होंने तो अब तक उसके पैसे भी नहीं दिये
05:26और क्या
05:27क्यूंकि उस कव्वे ने सुब्वया के दिये हुए फसल खाये हैं, वो हार भी सुब्वया को ही मिलेगा, ऐसे नहीं चलेगा, वो सारा फसल मेरे दुकान में था, इसलिए वो मेरे ही होंगे, तब सरपन सोचता है कि अंकया को सबक सिखाना पड़ेगा, ठीक है, वो हार तुम
05:57अभी दे दूँगा, वो सुब्वया को उसके पैसे दे देता है, और क्योंकि सरपन्च के बातों को वो ठुकरा नहीं पाया, सुब्वया वो पैसे लेकर अंकया को वो हार देने ही वाला था कि, सरपन्च कहता है, रुको सुब्वया, रुको, ऐसे कहकर अंकया से, हाँ, अ
06:27ये बिना उसके फसल को एक पूरा दिन तुमने अपने दुकान में रखा है अब उसका किराई भी तो देना पड़ेगा ऐसे कहता है सरपंच सरपंच के बाते सुनकर वो ऐसे सोचता है ठीक है ठीक है अब सोने का हार तो मेरा ही होगा ना ठीक है मैं बाकी पैसे भी लोटा द�
06:57कही हिवाला था कि सरपंच फिर से रुको सुभया, रुको अंकया की और देखते हुए।
07:03अंकया.. सुभया के फसंद यहां रहने कें कारण ही न वो कववा यहां आकर फसल खाया और इसी तरफ जाते जाते उस ने उस हार को सुभया पर गिरा दिया
07:14इसलिए इसके कारण तुम्हें और कुछ पैसे सुबया को देना होगा
07:18अब तक मैंने उसको अलड़ी दुगने पैसे दिये हैं
07:23ये तो बहुत नाइंसाफ है
07:24अच्छा अगर एक कवा तुम्हारे दुकान में फसल खाने के कारण
07:29वो हार तुम्हारे हासल होना इंसाफ ही है तो ये भी इंसाफ है
07:33एक सोने के हार के सामने ये सारी तो छोटी चीज़े हैं
07:38ये सोचकर अंकया कहता है थोड़ा और पैसे सुबया को देता है
07:44खुशी से वो सारा पैसे लेकर सुबया सरपंच की शुक्रियादा करके
07:49वो सोने का हार अंकया को देखकर दोनों अपने-पने रस्ते चले जाते हैं
07:55अगली दिन सुबह पुलीस अंकया के दुकान आकर
07:59तुमको जो सोने का हार कल मिला है
08:01वो हमारे गाओं के जमनदार की बीवी का है
08:04इसलिए उसे हमें वापस कर दो
08:06ऐसे पूछते हैं
08:08ये सुनकर अंकया कहता है, जाओ साप, वो मेरा हार है, वो मैं बहुत पैसे देकर खरीदा हूँ, ऐसे कहता है, तब पुलीस हमारे पास इसके सबूत है, आपका ऐसे जूट कहना बहुत नाइंसाफ है।
08:22ये कहकर अंकया को बेडियां लगाकर वहां से पुलिस स्टेशन ले जाते हैं
08:27तो इस कहानी का नैत क्या है?
08:30अंकया के लालच के कारण उसके पैसे भी गये और हार भी उसका इज़त भी गया
08:37जेल जाकर उसे जेल में रहना पड़ गया
08:40आशा एक आदमी को जितना उपर लेता है लालच उतना ही उसे नीचे गिराता है