00:00दुर्गापूर की सामराज, वो दुर्गापूरम की सामराज था।
00:05उस सामराज के एकदम बीच में, उची परवत पे, बहुत ही सुन्दर महल को स्थापित किया है सिम्हपूरी के वमशकों ने।
00:15अब उस सामराज का पालन कर रहा है विजय सिम्हा।
00:19महल पे खड़ा होकर देखा जाए, तो सारा सामराज दिख जाएगा।
00:24इसी वज़र से उसको निर्मित किया था पूर्विकों ने।
00:27विजय बहुत ही शक्तिशाली था।
00:29वो जिस भी सामराज पे दंड यात्रा करे, वो सामराज उसका हो जाता था।
00:35युत्वूमी पे विजय सिम्हा का साहस देखना बहुत भयंकर था।
00:41वो उसके सामराज पे मोजुद प्रजा की बहुत अच्छी ख्याल रखता था।
00:46उस सामराज के चारो और विजय सिम्हा की तरफ पालन करने वाला कोई भी राजा नहीं था।
00:53विजे सिम्हा की कई दंड यात्रों में से एक में दो राजा उसके सामने हार कर प्रान बिक्ष मांगते हैं। उन में से एक भरत था और दूसरा नरसिम्हा। तब विजे सिम्हा उन दोनों के प्रान को बक्ष कर उसी के सामराज में उन दोनों राजाओं को छोटे पदवों म
01:23धीत थे उस सामराज में मुसीबतों को देखकर समझकर उन्हें जाकर उनके राजा को बताकर उसका परिशकार निकालते थे
01:32लेकिन कुछ दिन बाद भरत को हंकार आता है मैं इस राजा का सेवक बनकर नहीं रह पाऊंगा ऐसे सोचता है
01:41तब भरत नरसिम्हा के पास जाकर ऐसे कहता है
01:45नरसिम्हा मुझे इस राजा के पास सेवक की तरण नहीं रहना है
01:50भरत क्या तुम भूल गए अगर हम यहां से चले गए तो वो हमारा जान ले लेगा
01:57अगर हमें यहां से जाना है तो कुछ गल्ती करना है
02:01राजा को क्रोधित करने वारे काम करना होगा
02:04तो फिर क्या करे भरता तुम ही बताओ
02:08मुझे एक उपाय सुचा है नरसिमहा
02:10ऐसे नरसिमहा को उसका उपाय बताता है भरत
02:15उसके बाद एक दिन जब राजा सामराज में नहीं था
02:19वो दिन देखकर उनके योजना को लागू करते हैं ये दोनों।
02:24दुर्गापुरम सामराज में आखिर में रहने वाली दुर्गादेवी मंदर में मौजूद देवी के लिए गहने बनवाने के लिए राजा ने सब के पास पैसे लेने के लिए कहा है।
02:37ये बोलकर वो गाव में मौजूद सारे लोगों से पैसे लेते हैं।
02:42भारत और नरसिमा प्रजा से ये कहते हैं कि वो दोनों खुद इन गहनों को बनवाने के लिए जिम्मदारी ले रहे हैं।
02:50भारत उन गहनों को रागी से बनवा कर उन पे सोने का रंग लगवाता है।
02:57देखने में तो वो सची सोने के ही आभरन लगते हैं।
03:03भारत तब उन गहनों को दुर्गा देवी के सामने पेश करता है।
03:11प्रजा तो यही सोचती है कि वो सब सच है।
03:14भरत और नरसिम्हा की योजना ये थी कि वो सारी प्रजा से ये कहे कि उनकी राजा ने सोने का गहने बनवाने के लिए पैसे लेकर रागी से गहने बनवाता है।
03:27इसी कारण वो ये प्रजा से कहलाना चाते हैं कि उनकी राजा ने उनको धोका दिया है।
03:33और ये भी कि बहुत पहले से बहुत बार राजा यही करते आये हैं।
03:42इनके बुरे विचार तो ये थे कि प्रजा में राजा के खिलाफ जहर भरे।
03:49एक दिन राजा मंदर आकर दुर्गा देवी को पहनाए गहनों को देखते हैं। पहली बार में उन्हें पता चलता है कि वो सोने के गहने नहीं हैं। उसके बाद प्रजा में मौझूद कुछ लोगों से राजा को पता चलता है कि क्या हुआ है।
04:05सज जाने के बाद राजा भरत और नर्सिमहा को बुलवा कर सामराज के एकदम बीच में उन दोनों को पेड़ पे रसी से बांद कर उन दोनों के धोके को प्रजा के सामने बाहर लाते हैं। और उसी प्रजा के सामने उनको सिक्षा भी मिलता है।
04:24जिक्षा ये थी कि उन दोनों को बहुत मेहनत करके मा दुर्गा के लिए सच्ची सोने के गहने बनाना होगा।
04:54लेकिन ये दोनों अपने दिमाग में राजा के खिलाफ जहर भरते हैं कि उन दोनों को प्रजा के सामने पेड़ से बांद कर अपमान किया था।
05:24असलिए वो दोनों गुड़ाचारी इन दोनों के बुरे विचार के बारे में राजा को कह देते हैं।
05:30और विजे सिम्हा क्रोध में इन दोनों को एक सबक सिखाने की फैसला लेता है।
05:36इस दिन गुजरने के बाद विजे सिम्हा ये घोशना देता है कि उसकी शादी का दिन है।
05:42और बस उसका सारा सामराज और प्रजा उस दिन को एक त्योहार की तरह मनाते हैं।
05:48उसी संदर्व के कारण विजे सिम्हा, नरसिम्हा और भरत को उसके आस्थान में बुलाकर उनको खाना परोस्ता है।
05:58लेकिन राजा कुछ नहीं खाते हैं। भरत को शक आने के कारण राजा से वो ऐसे पूछता है।
06:05राजा आप भी तो हमारे साथ खा सकते हैं
06:09नहीं भरता वहां रानी मेरी इंतजार कर रही है
06:13तुम लोग खा लो
06:15ये बात सुनकर वो दोनों वापस खाने लग जाते हैं
06:18वीजे सिनमा उसमें नींद की गोली मिलाते हैं
06:22और इसी कारण खाते खाते ही भरत और नर्सिमहा बेहोश हो जाते हैं
06:27जैसे ही वो आंग खोलते हैं
06:30वो अपने आपको सामराज के बीच पेड़ पे पाते हैं
06:34और उनके सामने राजा क्रोधित होकर बैठे हुए होते हैं
06:39उनको देख ये दोनों
06:40राजा हमें माफ कीजिए ऐसे विंती करते हैं तब राजा मैंने तुम लोगों को बहुत मौके दिया है लेकिन तुम लोगों ने मेरी कतल करने की योजना की अब मैं तुम्हें माफ नहीं करूँगा ये कहकर विजे सिम्हा उन दोनों को एक बड़े पत्तर को उनके पीट पे
07:10होती की तो उनको ऐसे ही सिक्षा मिलेगी ये कहकर वो अपने घोड़े पे बैठकर गुसे में वहां से चले जाते हैं इस कहानी का नैतिक है बदलाव जिंदगी में सबको बदलने की आवश्यक्ता होती है और उसी के मौके भी मिलते हैं अगर हम तब भी नहीं बदले तो कह
07:40के रूप में मिलती है लेकिन उन्होंने उस मौके का फैदा उठाया इसलिए अंत में उन्हें सिक्षा ही मिली है