Skip to playerSkip to main contentSkip to footer
  • 2 days ago

Category

😹
Fun
Transcript
00:00एक समय में वाइकुंटपुरम नामक के गाव में वा और पार्वती नामक पती-पत्नी रहते थे।
00:08एक समय में वो पहुत अमीर थे।
00:13लिकिन कुछ समय बार अन्य वजाओं के कारण वो उनका सारा जायदात खो देते हैं।
00:19और पार्वती भी उसके पती शिवा को खो देती है।
00:23पार्वती के दो बच्चे थे।
00:25शिखंडी और शिवरानी।
00:28शिवरानी बहुत भोली थी और वो हर बात मानती थी।
00:32दूसरी तरफ शिखंडी को हमेशा जल्द बाजी थी और इतना ही नहीं उसे गुसा भी बहुत जल्दी आता था
00:39शिखंडी एक लड़के से प्यार करती है वो उसके दोनों घरवालों को बिठा के बात करवा के उस लड़के से शादी कर लेती है
00:47कुछ दिनों बाद शिखंडी उसके ससुराल चले जाती है किन शिवरानी उसके मा को सहारा देते हुए उन्हीं के घर पे रह जाती है
00:56ऐसे कुछ दिन बीच जाते हैं जैसे जैसे दिन बढ़ते गए इसे ही पारवती का सेहत भी बिगरता गया
01:03और क्योंकि मा की हालत ठीक नहीं है शिवरानी उसके मा के साथ हर वक्त रहते हुए उनके हर काम करते हुए उनकी अच्छी देखबाल करती है
01:12फैसला करती है कि उसके पास मौजूद समपदा को दोनों बेटियों को देना चाती है
01:17इसलिए वो उसकी बड़ी बेटी शिखंडी को बुलाती है
01:20अपनी मा की इस हालत के बारे में सुनते ही शिखंडी डर के मारे भाग के मा के पास पहुँचती है
01:27और वहाँ अपनी मा को उसी हालत में देखो बहुत दुखी होती है
01:31रानी और शिखंडी रोने लगते है
01:34बेटी मुझे समझ में आ गया कि ये मेरे आखरी दिन है
01:40इसलिए तुम्हें एक आखरी बार देखने का मन कर रहा था
01:46इसके बाद तो कुछ भी हो जाए है
01:48मुझे कोई परवा नहीं
01:51मारे पूरवजों के बारे में तो तुम दोनों को पता ही है
01:54वो बहुत अमीर थे
01:56उसके बाद कुछ कारणों के वज़े से हमारी पूरी चाहदाद चली गई
02:02उसके बाद अगर मैंने कुछ बचाया है
02:05तो वो सिर्फ ये दो चीज है
02:08इसमें दो हार है
02:10पहला वाला एक सोने का हार है
02:14कम से कम दस तुलों का होगा
02:16दूसरा एक मनी हार है
02:19ये हमारे पूरवजों से मिलते आ रहा है
02:22हाँ ये हमेशा मेरे ही गले में था
02:26ये कुछ दो तुलों का होगा
02:30इन दोनों में जिसको जो लेना है तुम ही फैसला करो
02:34लेकिन याद रखना इसमें मौजूद कीमती चीज सिर्फ निस्वार्थी को मिलते हैं
02:42अच्छे से सोच समझ कर फैसला करना बेटी
02:45दोनों खूप समझ कर एक फैसला करते हैं
02:49पहले बड़ी बेटी सिखंडी
02:51मा, स्वार्थ की तो कोई बात नहीं है
02:54लेकिन इसमें मौझूद दस तुलों का हार मुझे चाहिए
02:58उसके बाद छोटी बेटी शिवरानी
03:00यही चाती थी कि पूरवजों से आता हुआ यहार उसी को मिले
03:05क्योंकि उसके अनुसार उससे ज्यादा कीमती चीज और कोई हो ही नहीं सकती
03:09यह सुनकर पारवती थोड़ा सा हसकर ऐसे कहती है
03:13तुम दोनों के फैस्ते अच्छे हैं
03:16यह कहकर उन दोनों को एक-एक हार देती है
03:19उसके बाद शिखंडी वो हार लेकर धीरे से वहां से चले जाती है
03:24रानी इधर आओ बेटी
03:27मुझे बहुत दुख हो रहा है कि मेरे जाने के बाद तुम अकेली बढ़ जाओगी
03:33दुख इस बात की है कि मैं तुम्हारे लिए कुछ ने कर पाई
03:36कम से कम तुम्हारी शादी भी
03:39लेकिन याद रखना बेटी अच्छों को अच्छा ही होता है
03:43ये कहकर वो गुजर जाती है
03:46एक तरफ शिखंडी का जीवन बहुत ही अच्छा होता है
03:50उसका पती एक अच्छा व्यापार भी शुरू करता है
03:53और खूब पैसे कमाता है
03:55कुछ दिन के बाद शिवरानी की शादी भी पक्की होती है
03:59अपनी गलौती बहन को शादी के लिए बुलाती है
04:02लेकिन शिखंडी सोचती है कि कहीं उसे पैसे खर्च करने ना पड़ जाए
04:07इसलिए वो अपनी बहन के शादी पर भी नहीं जाती है
04:10आखिरकार शिवरानी का शादी पड़ोसी गाव में खेती करने वाले किसान से होती है
04:16ऐसे समय बीच जाता है
04:18बुरी किसमत के कारण उस साल बारश बहुत ज्यादा गिरता है
04:23और उसी कारण किसानों के सारे खेत सत्या नाश हो जाते है
04:27खेती के लिए लाए पैसों को चुकाने के लिए उनके पास पैसे ना होने के कारण
04:32शिवरानी और उसके पती दोनों सोचते हैं कि कर्ज कैसे चुकाए
04:37रानी तुम्हारी बहन शहर में अच्ची सिती में है न उससे कुछ पैसे मांगेंगे क्या
04:46इसके बाद जो फसल आएगा न उसमें उनके पूरे पैसे चुका देंगे
04:50जैसे ही शिखंडी को ये बात पता चलती है
04:52अयो हमारे पास कहा है पैसे ऐसे जूट बोलने लगती है
04:57ये सुनकर रानी निराश होके चुपचाप खाली हाथ अपने घर वापस चले जाती है
05:04दस दिन बाद शिखंडी के पती ने जो व्यापार लगाया था उसमें नुकसान आने के कारण वो पैसे खो जाते हैं
05:12सब को पैसे वापस लौटाना था दूसरी तरफ रानी अपने पती को ऐसे देख नहीं पाती थी
05:18इसलिए वो फैसला करती है कि उसके मा के दिय हुए मनिहार को बेच कर वो पैसे चुका देगी
05:25हार को बेचनी जब दुकान जाती है तब दुकानदार इस हार को देखतर ऐसे कहता है
05:30बेटी रानी इस हार में एक बहुत कीमती वज्र है
05:35उसका मूल्य कम से कम एक करोड का होगा
05:39आप अब गरीब नहीं रहोगे
05:41ये सुनकर शिवरानी बहुत खुश होती है
05:44उसी खुशी में उसे अपनी मा की बात याद आती है
05:47कीमती चीज निजवर्थों को ही मिलता है
05:51आये हुए उन पैसों से उसके सारे कर्श चुका देती है
05:55ये बात जानकर शिखंडी उसके कर्श चुकाने के लिए
06:00मदद मांगने के लिए शिवरानी के पास जाती है
06:03रानी तुम्हारी सहायता मांगते हुए भी मुझे बहुत शर्मा रही है
06:08क्योंकि जब तुम्हारी बुरा हाल था मैंने तुम्हारी मदद नहीं की
06:12और तो और तुम्हारी शादी में पैसे खर्च करने की जरूरत बढ़ जाएगी
06:16ये सोच कर मैं तुम्हारी शादी को तक नहीं आई
06:19लगता है कि उसी कारण मेरा आज ये हाल हो गया है
06:23मुझे माफ कर दो बेहन
06:25अब मुझे कुछ पैसों की जरूरत है
06:28क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो
06:30हरे दीदी इतनी बड़ी बाते क्यों
06:34मैं तुम्हारी बेहन हूँ
06:36तुम्हारी सहायता नहीं करूंगी
06:38तो और किसकी करूंगी
06:39ये कहकर वो उनके कर्स के लिए नहीं
06:42बल्कि सुख शांती से जीने के लिए और भी पैसे
06:46देकर उसके दीदी को वापस उसके शहर भेज देती है
06:50कुछ दिन बाद रानी ये फैस्वा करती है
06:53कि जितने पैसे उसको चहिए है
06:56वही उसके पास रखकर
06:57बाकी से वो उसके मा के नाम एक आश्रम खड़ा करेगे
07:01मा, पूरवजों से आता हुआ ये हार बेचने के लिए मुझे माफ कर दो
07:06ये कहकर वो उसकी मा के नाम पे एक आश्रम स्थापित करके सबकी मदद करते हुए रहती है
07:13एक समय की बात है जब दूर एक राज में रहता था एक सच्चा और अच्छा महराज
07:22वो बहुत बुधिमान था और उसने एक शानदार सनहासन खड़ा किया था
07:27महराज अत्यन धनवान भी था उनकी पास थे साथ गुप्त कक्ष जहांपर वो अपना सारा सोना और धन रखा करते थे
07:37और केवल उनकी को उनकक्षों की पहुंच थी उनकक्षाओं को खोलने की चाबी उनकी चड़ी थी जिसको वो हमेशा अपने पास ही रखते थे
07:47चड़ी के ऊपर एक हरा रत्न था जिसको कक्ष के दरवाजे के ताले लगाने की छेब में डालना होता है जिससे वो बड़ा दरवाजा खुल जाता है
08:00अब सारे धन दौलत में महराज को एक चीज बहुत प्यारी थी जो सात्वे कक्ष में रखा हुआ था
08:07वो एक सुन्दर अंगोटी थी जिसको महराज की मा ने मरने से पहले दिया था
08:13अटहा महराज ने उस अंगोटी को एक शीशे के बकसे में रखा था
08:18हर रोज अपनी मा की याद में वह उस अंगोटी को देखा करते थे
08:23और फिर अपने चड़ी से दर्वाजा पर ताला लगा देते थे
08:27उसी राज में देव नामक एक व्यक्ति रहता था
08:35देव एक चोर था
08:40लोगों का जेव मारना
08:45और छोटी मोटी चोरी दुकानों से करना उसका काम था
08:54मगर अब देव इन छोटी मोटी चोरियों से उप गया था
08:58अब कुछ बड़ा करना चाता था अमीर बनने के लिए
09:02अब एक ही जगा इस लायक थी महराजा का महल
09:07पर वो उधर जाएगा कैसे
09:10महराजा से ही सीधा कैसे चोरी करेगा
09:13देव लालची था और कई दिनों तक इस महा चोरी की योजना बना रहा था
09:19एक दिन देव महल के इर्द गिर्द खूम रहा था
09:28जब उसकी मुलाकात उसकी एक बच्पन के दोस्त से हो गई जो अब एक महल का पहरेदार था
09:36प्रणाम मेरे दोस्त कैसे हो
09:40बहुत खूब देव अब मैं राज महल के दर्वाजे की पहरेदारी करता हूँ
09:46बहुत समय के बाद हम मिले हैं तो तुम क्या करते हो
09:50देव ने सोचा कि यहीं मौका है अंदर खुसने का
09:54जरसल मैं एक लेखक हूँ और हमारे राजयों की अनोखी सुन्दरता के बारे में लिख रहा हूँ
10:01मैं दूर दूर तक यात्रा करता हूँ और उन जगाओं के बारे में उनका खाना पीना उनके संसकारों के बारे में लिखता हूँ
10:10अब मेरा अगला विशे महराज के इस किले के बारे में है और उसके वास्तुकला के बारे में
10:16और मैं महराजा को प्रशमसा करना चाहता हूँ ऐसा अनोखा महल बनाने के लिए
10:21इसलिए मैं यहाँ जानकारी के लिए आया था
10:25परन्तु इधर कोई मेरी सहाता के लिए है ही नहीं
10:29इस महल के कई अनोखे चमतकार है
10:33मैंने तो ये भी सुना है कि इधर साथ गुप कक्षाए हैं
10:38जहाँ पर महराज अपना सारा ख़जाना रखते है
10:40अच्छा ये तो काफी अनोखा लगता है
10:44और कुछ बता सकते हो तुम मुझे
10:47अरे हाँ और इन कक्षाओं के बारे में तो बहुत लोग जानते हैं
10:52पर बहुत कम को पता है कि इन कक्षाओं को केवल महराज की चड़ी से ही खोला जा सकता है
10:58ओ! वही जिस्पी हरा रत में लगा है
11:02वाह मुझे तो पता ही नहीं था
11:05हाँ हाँ वही
11:08खेर उमीद है तुम्हें कुछ तो जानकारी मिल गई
11:11अब मैं चलता हूँ फिर मिलेंगे देव
11:14देव ने अपनी दोस्त को अलविदा कहां और वापस घर चला गया
11:20देव ने सोचा कि ये साथ कक्षाय तो बहुत हो जाएंगे
11:24तो अब उसको एक कक्षा चुना पड़ेगा जिससे उसका सारा जीवन सवर जाएगा
11:29पर महराज की छड़ी को वर चुराएगा कैसे
11:33देव ने एक योजना बनाई साथवे कक्ष की चोरी करने का
11:37पीच रात का समय था देव महल के अंदर घुज गया जब उसका पहरेदार दोस्त दर्वाजे पर सो गया था
11:47देव ने महराज की कमरे की और देखा और एक रसी को दिवार पे लगे एक डंडे पर डाला और खुद को ओपर खींचने लगा
11:56खिड़की से जहांके देखा तो महराज सोय थे धीरे से वह कमरे में आया और वही थी चड़ी
12:08देव ने चड़ी ली और महल की स्टीडियो से कक्षों तक पहुंच गया परत्तु हर एक कक्ष पर एक पहरेदार था
12:17देव ने कुछ जानवर की आवाज निकाली और पहरेदार देखने चलेगे कि वह है क्या
12:27तुरंट देव साथ वे कक्षे की और गया और चड़ी से दर्वाजे को खोल दिया
12:32देव ने अपना भोरे निकाला और जितना हो सका उसमें डाल दिया
12:39शीशे के बक्से वाली अंगोटी भी उठा लिया और जल्दी से दर्वाजे को बन करकी वहां से चला गया
12:47अगले दिन महराज जब नीन से जाके तो हैरान परिशान हो गया उनकी छड़ी लापता थी
13:01और कक्ष में जाके देखा तो उनकी मा की अंगोटी भी गायब महराज आग बुबूले हो गए
13:10पर उनको पता था कि चोर को कैसे पकड़ा जाए
13:15तुरंट उन्होंने एक पत्र लिखा अपने राज के लिए
13:21मैंने अपनी सबसे कीमती चीज खो दी है एक अंगोटी और किसी ने उसको चुड़ाया है
13:29अगर किसी को भी ये मिले तो मुझे वापस लोटा दे और बदले में उसको धेर सारा ख़साना भेंट में दिया जाएगा
13:36कई दिनों तक बहुत लोग आगे आए नकले अंगोटियों के साथ पर महराज अपनी मागी अंगोटी को अच्छी से पहचानते थे
13:51तो सब को वापस फेच दिया करते थे
13:53जब ये खबर देव तक पहुंची तो उसने देखा कि वो अंगोटी तो उसी के पास थी
14:00देव को अब और खजाने की लालश लग गई ये तो कोई पुरानी अंगोटी लगती है
14:06मैं महराजा को बोलूगा कि मुझे कहीं मिली और फिर भेंट में दिया खजाना भी ले आऊंगा
14:12देव महराज के पास गया और बोला
14:21प्रणाम महराज
14:23मुझे ये अंगोटी मिली है तो आपको दिखाना चाहता था
14:28अगर ये आपकी है तो ले ले और मुझे बतले में कुछ ने चाहिए
14:33महराज ने अंगोटी की और देखा और उसको पहचान लिया
14:40धन्यवाद ये मेरी ही है
14:43देव अखणने लगा अब वो और भी धन्वान बनने वाला था
14:48क्यूंकि महराज खुश लग रहे थे
14:50एक मिनिट इस अंगोटी को तो तुमने ही चुराया है ना
14:55ये अंगोटी खोई नहीं थी
14:57मैंने वो पत्र इसी लिए भेजा था
15:00क्यूंकि मुझे पता था कि चौर बहुत लालची होगा
15:03कई लोगों ने नकली अंगोटिया लाई थी
15:06बर केवल तुमने असली वाली लाई
15:08क्यूंकि तुम ही चौर हो
15:10सैनिको ले जाओ इसको
15:12और सलाखों के पीछे डाल दो हमेशा के लिए
15:15नहीं नहीं महराज
15:30वार्नासी नामक एक शहर में था एक जवान लड़ता देव
15:39जो अपनी विद्वा मा के साथ रहता था
15:49उनकी थी एक एकड़ की जमीन जिसमें वा काम करके अपनी रोजी रोटी कमाते थे
15:54एक दिन अचानिक से आई दो सैनिक और देव को बिना उसकी कोई गलती कैद खाने ले गए
16:14देव की माने सैनिकों से बहुत भीग मांगा
16:16और उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी और उसको कैद खाना ले गए
16:24देव की मा अब बे सहारा बन दे क्योंकि उसका खयाल रखने वाला और कोई नहीं था
16:34इन सब की वज़े से अब खेती का काम भी रुख गया
16:38इसी तरह दिन बीटते और सारा खेत सोक कर नश्ट हो गया
16:44कमाने का उनका यही जरिया था और अब मा के पास कोई खाना भी नहीं बचा
16:49देव की मा को समझ नहीं आया कि वह क्या करे
16:53वह अपने बेटे से बात करना चाहती थी
16:56शायद वो उसको बताए कि वह क्या करे
16:59देव की मा गई एक गुरुजी के पास एक पत्र लिखने में उनकी मदद मागने
17:05गुरुजी मेरे बेटे को बंधी बनाया गया है बिना उसकी कोई गलती के
17:10अब मेरा खयाल रखने के लिए कोई नहीं रहा
17:13कृपियां आप देव के लिए मेरी तरफ से एक पत्र लिख रे
17:17देव की मा आप जैसा जाहे में वैसा ही करूँगा
17:22आप होसला रखी सब ठीक हो जाएगा
17:25गुरु ने पत्र लिखा
17:39और फिर देव की मा उसको कैद खाना ले गई
17:42दर्वाजे पर पहरेदार में मा को रोका
17:47कौन हो तुम?
17:53मैं ये पत्र अपने बेटे देव को दिना चाहती हूँ
17:56आपको अंदर जाने की आवश्यक्त नहीं है
17:59इस पत्र को उस जिब्बे में डाल दो
18:01देव की माने वैसा ही किया और वहां से चली गई
18:05कैट खाने पर जो भी खाना पत्र या तौफ़े आते थे
18:09पहले पहरेदार उनको जांशते थे
18:12और तब ही कैदियों तक पहुँचाते
18:14इसी तरहां देव की मा का पत्र भी
18:17पहले पहरेदार ने जांचा
18:19और फिर देव तक पहुँचाया
18:24मा का पत्र पढ़कर देव को बहुत बुरा लगा
18:29वह सोच रहा था कि वक क्या करे जब उसके बाजो में एक और कैदी ने बोला
18:34है देव तुम्हारे परिवार ने क्या भेजा है तुम्हारे लिए
18:40कुछ नहीं भाई बस ये पत्र है
18:44मेरी पत्नी ने मेरे लिए मेरा मन पसंद केक भेजा है
18:48पर इन पहरदारों ने तो इनको पूरा खराब कर दिया
18:52तो हमें जो भी मिलता है हर एक चीज की जान्च होती है क्या
18:57हाँ जी भाई साब
18:59देव को इस बारे में पता लगने की बाद उसने वापस अपनी मा को एक पत्र लिखा
19:05पहरदार एक एक करके पत्र पढ़ते गए जब एक पहरदार ने बोला
19:11हेई देखो इस पत्र में क्या लिखा है
19:14क्या है जरा दो इधर
19:17पहरेदार ने फिर जोर से पत्र को पढ़ा
19:20मैया आप मेरे चिंता ना करे
19:23बहुत साल पहले बापु ने हमारे खेत में एक मटका चुपाया था
19:28जिसमें बहुत सारा सोणा और ख़जाना रखा है
19:32आप उस मटके को खोद निकालो और फिर उस धन से आपकी सारी परेशाने समाप्त हो जाएगी
19:38अच्छा चलो भाई जल्दी जाकर इस ख़जाने को ढूड निकाले
19:43दोनों पहरेदार लालची बन गए और देव के खेत पर जाकर जमीन खोदने लगे
19:50खोदते खोदते उन्होंने पूरे एक एकड की जमीन को खोद दिया
19:55और उनको कोई खजाने का मटका मिला ही नहीं
19:58जल्द वे ठक गए
20:00क्या करे ये ना जानकर दोनों पहरेदार वापस कैद खाना चले गए
20:04अगली सुभा जब देव की मा जागी
20:09तो उसने देखा कि सारा जमीन जोता हुआ था
20:14और ताजे मित्टी बाहर आई हुई थी
20:16देव की मा ने फिर से खेती बाड़ी का काम शुरू किया
20:20और अन्य बीच बोया
20:22धीरे धीरे वा पैसे कमाने लगी
20:25और कुछी समय में उसने काफी पैसे जमा लिये
20:28जिससे उसने अपने बेटे को जेल से रिहा करवा लिया
20:32अगर मन से कोई चीज चाहिए होती है
20:39तो उसको पाने के लिए कोई न कोई रास्ता निकल आता है

Recommended