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00:00रामो एक डब्बे के पास चाई पी रहा था, वातावरन भी बहुत ठंडा था, आस्मान पे पूरा बादल छा गया, इतने में दिबे में मौजुद रेडियो में खबरे शुरू हो गया
00:11कृपया ध्यान दे, वातावरन बहुत खराब है, बहुत जोर की बारिश होने वाली है, आशा करते हैं कि सबी सलामत रहेंगे
00:21ये सुनते ही रामो साइकल पे निकल गया, बहुत तेजी से साइकल चला रहा था, उस पहाड के चारो और रामो के ही तरह कुछ गरीब लोग रह रहे थे, जब भी ऐसे बड़ी बारिश ये तुफान आये, उस पहाड के चारो और जो गरीब लोग रहते हैं, वो हमेशा हड
00:51रामो भी अपने मन में ऐसे सोचता है, पताने क्या ही होगा, कब ये बारिश कम होगा, भगवान जाने की पहार से नीचे आ रहे है, पानी से हमारे घर रहेंगे भी, कि नहीं, घर पे तो नानी है, मैं तो कही पे भी जा सकता हूँ, उस बूड़ी औरत को मैं कहां लेके जा
01:21आड़ा सा बारिश शुरू हो गया था, बिजविया गरजने लगे और एक भड़क में पानी टायर में आधा भर चुका था, बहुत मैंनत के बाद रामो अपने घर पहुंचता है, घर जाते ही
01:34अरे पापरी, मैं तो डर गई थी बेटा, कहा था तू, बारिश में भी घूमना ज़रूरी है क्या
01:45ऐसे उसके जवाब का इंतजार किये बिना उसे डांटी रहती है रामो की नानी
01:50अरे बूड़ी औरत, मैं कोई टाइम पास नहीं कर रहा था, बीच रस्ते में बहुत जोर की बारिश हुई थी, उस बारिश में मैं साइकल भगा कर आया
01:59ऐसे ये दोनों बहस कर रहे थे, उसके दोरान उन्हें दिखाई देता है कि सारे लोग मिलकर एक जूंड की तरह कई बढ़ रहे थे
02:08अरे मंगतायरू, कहा जा रहे हो सबी जूंड मन कर, ऐसे चिला कर पूछती है
02:15इस बार बारिश देखकर हमें लग रहा है कि हमारे घर टूब जाएंगे
02:20इसलिए हम पहाड के उपर मौजूद मंदिर तक जा रहे हैं, आप लोग भी आओ चलो
02:27ऐसे कहती है मंगतायरू, क्या बारिश में खाना को अंदे रहा है, खाना खाने तू इतना दूर जा रही है, पागल औरत हमेशा खाती रहती है, ऐसे कहती है नानी
02:39यह क्या, बूड़ी औरत ने ऐसे कह दिया, अब यह मंगतायरू न, इस पे चिलाने लग जाएगी
02:46हाँ हाँ, मुझे ही खाने की पड़ी रहती है हमेशा, तू एक काम करा बूड़ी, तू यही पे मर जा, दस दिन बाद आकर तेरे श्रत धानजली की खाना खाऊंगी मैं
02:56ऐसे उस पर गुसा करके वहाँ से चली जाती है
03:00क्या कह रही है बेटा वो, कुछ तो बड़ बड़ आकर चरी गई है
03:06मुझे कुछ नहीं सुनाए दिया
03:09तुम यही बैटकर ऐसे ही बात करती रही न, तो इस बाड़ के साथ साथ तू भी चल जाएगी
03:14कल आकर तेरी श्रद्धांजनी की खाना खाएगी बोल रही थी वो
03:18क्या, इतनी बड़ी बात बोल दिया, उस बुककड लड़की ने
03:23अब दादी तुम उसे बुककड बुलाओगी तो वो ऐसे ही कहेगी न
03:27रुक, मैं उसको एक सबक सिखाती हूँ
03:31ऐसे कहकर वो उसके पीछे ही चल जाती है, पहाड के मंदिर तक
03:36कुट्टे की तरह हमेशा गाव में फिरने घूमने से बढ़कर कोचने करता
03:45एक छत्री तो खरीद लेता तो, ऐसे कहती है रामू की नानी
03:49इससे पहले की रामू कुछ कहे, एक रॉकेट की तरह एक छत्री उड़कर रामू के पास आती है
03:56तूरंत रामू वो छत्री लेकर उसे खोलता है
03:59भगवान की कृपा, लगता है कि भगवान नहीं खुद ये छत्री बेजाया हमें
04:06ऐसे कहकर वो एक लंबी सांस लेता है
04:08तब ही वो सोचता है कि चलो कम से कम भीगेंगे तो नहीं
04:12कि इतने में उसकी नानी
04:14अरे बेवकूफ, तू अकेले छत्री को ले लेगा क्या
04:18उसमें मेरे लिए भी थोड़ा जगा रखो
04:20ऐसे कहकर छत्री के नीचे आ जाती है बुड़ी औरत
04:24और बस तुरंट छत्री बड़ा बन जाता है
04:27ये देख वहां मौजुद सारे गाउंवाले और उसकी नानी सब चौंग जाते है
04:33क्या कर दिया तूने? कुछ जादू का मंत्र बोला है क्या?
04:38ये दुगना कैसे बन गया?
04:41अयो नानी तुम्हारे सामने ही तो ये सब हुआ
04:44फिर मुझे क्यों पूछ रही है कि मैंने कुछ किया?
04:47मैं तो यही हूँ, चुप चाप खड़ी रहे
04:50इस सब के दोरान
04:51मंगतायरो तुरंट रामू के छत्री के नीचे आ जाती है
04:57तुरंट चत्री चार गुना बड़ा बन जाता है
05:00वहां के सारे लोग आश्चेर चकित हो जाते हैं
05:04फिर एक के बाद एक उस चत्री के नीचे खड़ा होने लग जाते हैं
05:08जैसे जैसे लोग आने लगे तैसे तैसे वो चत्री बढ़ता गया
05:13वो छत्री इतना बढ़ गया कि उस पहाड को उस पहाड के नीचे मौजुद उनके घरों को और लोगों को सब को भीगने से बचा रही थी
05:23इसी कारण बारिश का एक भी बूंद उस पहाड पे नहीं गिर रहा था
05:28ये सब भगवान की कृपा है उन्होंने खुद हमें और हमारे गाउं को बचाने के लिए ये सब किया है ये कहकर पास में मौजुद मंदर को देख सभी प्रार्थना करते हैं
05:41आगले दिन जब बारिश रुख जाता है छत्री के नीचे से एक एक करके लोग चले जाते हैं और तैसे तैसे छत्री भी छोटा बनते गया
05:50तब रामु फैसला करता है कि जब बारिश या बार की चेतावनी कोई दे रहा है तो ये छत्री ही लक्षमन रेका की तरह हमारे और हमारी गाउं की रक्षा करेगी इसलिए इस छत्री को हमारे पास सुरक्षित रखना होगा
06:05तब वो पहाड पे मौजूद मंदिर में भगवान के पैरों के पास उस छत्री को रख कर उस पहाड से सबी नीचे उतर कर अपने अपने घरों को चले गए ऐसे रामु को जो छत्री मिली थी वो उस पहाड को और उस पहाड के नीचे मौजूद गाउंवालों को सुरक्षि