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  • 2 days ago

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00:00गोपालपुरम का गाउं था, उसमें योहान और मेरी नामक माध्यमवर्ग का एक छोटा परिवार रहता था।
00:09योहान उसी गाउं के सरकारी पाटशाला में एटेंडर का काम करता था और मेरी खेती का काम करती थी।
00:18योहान का वेतन महीने का 8000 रुपए था, योहान और मेरी का एक बेटा भी था और उसका नाम जोसेफ था।
00:28जोसेफ बच्पन से ही अपने माता पिता की स्तिती समझ कर उन्हें कभी परेशान नहीं करता था।
00:36बड़े होने के बाद जोसेफ MSC Physics का पढ़ाई करता है। उसके उचे मार्क्स भी आये हैं।
00:44और क्यूंकि जोसेफ को पता था कि सरकारी पाटशाना और कॉलेज में पैसे कम लेते हैं।
00:50के और ज्यादा परेशानी नहीं होगी। उसने उसकी सारी पढ़ाई सरकारी संस्थानों में ही खतम किया था।
00:58जोसेफ बहुत शांत था। ज्यादा किसी से बात नहीं करता था। सबसे मिल जुलकर भी नहीं रहता था।
01:05उसकी दुनिया तो अलग थी, जोसेफ बचपन से अध्यापक बनने की सपने देखता था, उसे बचपन से फिजिक्स का सबजेक्ट बहुत पसंद था, बचपन से जोसेफ अपने ही घर में फिजिक्स से सम्मदित बहुत परयोग करता था, उसके MSC खतम होने के बाद, जोसे�
01:35जोसेफ के माता पिता को भी खुशी होती है कि बहुत जल्दी उसे एक नौकरी मिलने वाली है,
01:46कुछ दिन बाद एक कॉलेज में जोसेफ अध्यापक की नौकरी के लिए इंटरव्यू के लिए जाता है,
01:53उसको पूछे गए सारे प्रश्णों का डरते हुए ही सही समातान देता है जोसफ
01:59उसके सामने खड़ा हुआ प्रिंसिपल जोसफ से कहता है कि वो एक डेमो क्लास दे
02:05और क्योंकि वो जोसफ की पहली बार थी कि इतने लोगों के सामने उसे बात करना था
02:10जोसफ बिचारा डर जाता है
02:13और वो स्टेज पे खड़े होकर बात नहीं कर पाता है
02:17ये देख प्रिंस्पल जोसफ से ऐसे कहता है
02:21तुम टीचर नहीं बन सकते
02:23टीचर सब के सामने बात करता है
02:26तुम तो बात नहीं कर पा रहे हो
02:28टीचर को सबको कंट्रोल में रखने की जरूरत होती है
02:31पर तुम में तो वो गुण ही नहीं है
02:34ये कहते हैं वो जोसफ को वहां से बाहर भिजवा देते हैं
02:39और क्यूंकि वो प्रिंस्पल जोसफ से ऐसे कहता है
02:41जोसफ को लगता है कि वो शायद जिन्दगी में कभी भी अध्यापक नहीं बन पाएगा
02:47और वो बहुत निराश होता है
02:49घर जाकर अपने माता पिता को जो कुछ भी हुआ बताता है
02:53और क्योंकि जोसफ के पिता बुजर्ग थे
02:56वो गयते हैं कि वो घर की जिम्मदारी नहीं ले पाएंगे
03:00और अब हो काम भी नहीं कर पाएंगे
03:02इसलिए घर की सारी जिम्मदारी जोसफ को ही लेना पड़ेगा
03:06जोसफ को इसे दुखी ना देख पाने के कारण
03:09उसके पिता जिस पाच्छाला में वो एटेंडर का काम करते थे
03:14उस प्रिंसिपल से बिंती करके जोसिफ को वहां अध्यापक की नौकरी दिलवाते हैं
03:20जोसिफ कुछ दिन बुरा मानता है लेकिन उसे एसास होता है कि अगर वो घर पे रहेगा तो घर नहीं चलेगा
03:28इसलिए वो उसके पिता के दिलवाय हुए टीचर जॉब को जाता है
03:32और क्योंकि उस पाच्छाला में सारे बच्चे थे जोसिफ को उन्हें देख कोई दर नहीं लगता है
03:38सबको बहुत अच्छा सिखाता था
03:41और क्यूकि वो पाठशाला था जोसिफ को वेतन में सिर्फ 6,000 रुपए मिलते थे
03:47तब जोसिफ को समझ में आता है कि 6,000 से उसकी सपने सच नहीं हो पाएंगे
03:54इसलिए जोसिफ को लगता है कि उसे और पैसे कमाने पड़ेंगे
03:58इसलिए वो सुबह उठकर साइकल पे चलकर सारे घरों को अख़बार देता था
04:05ऐसे ही वो सुबह अख़बार डालता था और उसके बाद स्कूल चले जाता था
04:13पैसे ऐसे ही कमाकर वो पैसे अपने माता पिता को दे देता था
04:18कुछ दिन ऐसे ही बच्चों को पढ़ा कर आदत होने के बाद जोसेफ उसी इंटर्व्यू को जाता है जहाँ प्रिंसिपल ने उसे बाहर निकाल दिया था
04:28लेकिन उसके दूसरे प्रैत्न में भी जोसेफ दर के मारे कुछ नहीं कह पाता है
04:34उसको समझ में नहीं आता है कि उसको ऐसे क्यों हो रहा है इसी लिए वो उसके बच्चपन के पसंदीदा अध्यापक रामकृष्णा के पास जाता है
04:44नमस्ते अध्यापक
04:47आ जोसेफ कैसे हो बेटा मैं ठीक हूँ अध्यापक क्या हुआ बेटा ऐसे आए हो
04:55सर मैं भी आपी की तरह अध्यापक बनने की सपने देखता रहा और अब मैं सरकारी पाच्चाला में अध्यापक का काम भी कर रहा हूँ
05:05बच्चों को सिखाता हूँ मैं लेकिन मैं कॉलेज में अध्यापक बनकर उन बच्चों को सिखा नहीं पा रहा हूँ
05:13अरे ऐसे क्या? मुझे तुम्हारी स्तिथी समझ आ गई है. तुम्हें कॉलेज में सब के सामने बात करने की हिम्मत नहीं आ रही है. बस पहले तुम्हें हिम्मत जताना होगा.
05:27मैं ऐसे कैसे कर पाऊंगा साब? तुम पहले तन की शक्ति बढ़ाओ. हर रोज भागना या कसरत करना ऐसे कुछ करो. तब तुम्हें थुड़ी हिम्मत मिलेगी. उसके साथ ही मन की शक्ति भी बढ़ेगी. जी मास्टर, धन्यवाद.
05:47ये कहकर वहाँ से घर पहुंचता है जोसेफ. उसके बाद वो हर रोज स्कूल से लोटाने के बाद, वो सोच में पढ़ जाता है कि क्या करे. आखिर में फैसला करता है कि उसके गाव में मौझूद मिट्टी की परवत चड़ने और उतरने से काम हो जाएगा.
06:06ऐसे ही एक दन परवत पे जाकर ठकान के कारण बैटकर सोचने लगता है कि वो आखिर कॉलेज में बात क्यूं नहीं कर पा रहा है.
06:16तब उसे एक जवाब मिलता है. बच्चे मुझसे कोई सवाल नहीं पूछेंगे. इसलिए मुझे उनसे डर नहीं लगता है. लेकिन कॉलेज में मौझूद स्टूडन्स जब मुझसे सवाल पूछेंगे तो उनसे बात करने की या समाधान देने की हिम्मत मुझ में नहीं है
06:46वो उन पेड को स्टूडन्स समझ कर उनको पाट सिखाने लगता है. ऐसे वो हर रोज करता था और उसकी आदर डाल लेता था. कुछ ही दिनों में उसमें हिम्मत आती है. जिस कॉलेज में वो दो बार डेमो क्लास नहीं दे पाया, उसी कॉलेज में जाकर आखरी बार एक मौ
07:16एक आखरी मौका देती है. उस समय में वो जैसे ही परवत पे बात करता था, वैसे ही उन स्टूडन्स से बहुत हिम्मत से बात करता है. उसके सिखाने की तरीका और उसकी हिम्मत देख प्रिंसिपल जोसेफ की तारीफ करके उसको फिजिक्स की अध्यापक की नौकरी देते ह
07:46उसके माता-पिता को ये खुशकबरी देता है. ऐसे ही वो उसकी मन पसंद नौकरी करते हुए कुछ दिन बात पैसे जमा करके बड़ा सा घर लेता है और अपने माता-पिता का बहुत अच्छा ख्यार लगता है. कहानी का नैतिक है कमजोरी. अपनी कमजोरी को खुद पैच

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