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  • 2 days ago
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00:00भारत हो, ग्रीस हो, सादूंगों की एक परंपरा रही है, वो घूमते बहुत थे, चलते इसलिए नहीं रहते थे कि पाव में खुजली है, चलते इसलिए रहते थे, कहते थे कि जो मिला है वो बाटना है भई, बताना है सबको अपनी जगए गाट के क्या करेंगे, लेकिन हम �
00:30हम भी रोटी पे मरते हैं, ये भी रोटी गई वास्ते खट-खटा रहा है बाहर, तो फिर उहां बाहर आ करके रोटी डालने के लिए दुआर, और सादू को दुआरी तो खलवाना था, खोला नहीं कि फिर उतने अलग निरंजन के आगे और सब कर दिया, निरंजन से शुर
01:00इसा देना पड़ता है, कोई तरीका ही नहीं है इसके अलावा आप से रिष्टा बनाने का

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