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  • 2 days ago

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00:00आचार जी हमें ये शिखाये गया अबत्तन से कि सत् 게 की ही होती है
00:06आज के दौर में युबाओं के संदर में और आज के सोक के संदर में
00:10नहीं है
00:20तिको इस दुनिया में जिताने के लिए बापरे बाप कमर टूट जाती है
00:25आप देखते ही हो
00:26इस दुनिया की जो बात है, इस दुनिया में सत्य में वो जैते बहुत यदा-कदा होता है, बिरल घटना होती है, कि सत्य जीत गया
00:34अपने भीतर सच को पालना पड़ता है, हर इंसान को मा बनना पड़ेगा, नर हो नारी हो
00:39जो सूत्र बिल्कुल नहीं पता होने चाहिए, वही हम पकड़ लेते हैं, और जो हमारे काम के हैं, उनको ऐसे यह हटाओ, तो मेरी भी बातों में कुछ
00:47कभी कभार धोके से कुछ उपर की बाते आ जाती होंगी, उनको पकड़ के मत बैट जाईए, और मेरे ही उपर आके उधृत कर देते हैं, तुने जो बोला था न मेरे बात रिकॉर्डिंग है उसकी, एकदम खट से चारशीट फाइल होती है, पंगाने के लिए ही सब बोलता
01:17आचारजी हमें ये सिखाये गया है बस्तन से कि सत्तमिव जैते, जीत हमेशा सत्त की ही होती है, जो हमारा आदर्स राश्टिय बाक्त भी है, आज के दौर में यूबाओं के संदर में और आज के सोक के संदर में, ये बात कितनी हद तक प्रासांगिक है?
01:36नहीं है, बहुत बहर मैंने यह समझाया है, बहुत अच्छा प्रश्टने पहले तो, सत्य में हो जायते हैं हम जानते हैं उपनिशदों से ही आता है, कहां से आता है, सब लोग लिखिये कम्यूनिटी पर किस उपनिशद से आता है, ये मैंने बहुत बार बोला है कि पारमार
02:06मैंने उपमा देते हुए कहा है कि सत्य हमारे लिए एक बहुत छोटे से बच्चे जैसा है एक नन्हे पौधे जैसा है हमारा सत्य वो उसको हम जिताएंगे कि हरवाएंगे वो हमारे उपर है
02:20सत्य के तल पर सत्य ही है तो उसे हराने कोई हो गई नहीं वहां अद्वायत है सत्य के तल पर तो सत्य मात्र है तो उसे कौन हराएगा तो वहां अद्वायत है तो वहां बिलकुल आप कह दीजे जा करके कि सत्य में उजयते
02:37रिशे उसी तल पर रह रहे हैं तो उसी उचाई से उन्होंने उद्गोश्णा कर दी कि सत्य में हो जाते हैं ठीक है बिल्कुल ठीक है लेकिन हम आप जहां रहे हैं जिस दुनिया में वह द्वैत का नहीं तल है वह द्वैत का तल है
02:51वहां सबकुछ अंकार के लिए वहां द्रिश्चा द्रिश्चा खेल चल रहे हैं अब अंकार को अपने आपको बचाना है संसार को भोगना है अंकार के लिए तो यह चलता है
03:08तो हंकार जब सोयम को बचाएगा तो सत्य कहां से जीत जाएगा
03:12सत्य की जीत तो हंकार की हार में है
03:16और हंकार हंकार माने हम और आप हम तो बोलते हैं कि
03:19नहीं हमें अपने हिसाब से चलना है हमीं होशी आ रहे हैं
03:22अपनी बुद्धि लगाएंगे अपना स्वार्थ पूरा करेंगे
03:24पैदा हुए हैं अपनी कामनाई पूरी करने के लिए
03:26जब अहंकार ये सब करेगा तो सत्य कहां ते जीत जाएगा
03:30तो ये इस दुनिया की जो बात है
03:32इस दुनिया में सत्य में वो जैते बहुत यदा-कदा होता है
03:36बिरल घटना होती है कि सत्य जीत गया
03:38यहां तो जूट ही जीतता है
03:41यहां कितनी बार में आप लोगों से कहता हूँ ना कि जूट है
03:47ये दुनिया है अपने आप फैलता है जूट इसमें
03:50और सत्य को इस धुनिया में जिताने के लिए बाप रे बाप कमर तूट जाती है आप देखते ही हो
03:58और क्या कर रहे हो जो करने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए किसको जिता रहे हो जो जीता ही हुआ है सत्य में हो जैते सत्य को कौन हराएगा
04:08जो जीता हुआ है उसको जिताने के लिए कमर तोड महनत करनी पड़ती है वो जीता फिर भी नहीं इतना दुरबल है सत्य कि वो जीता हुआ है तब भी उसको जिताने के लिए आपकी संस्ता भी तो यही कर रही है जीते हुए को जिताने के लिए कमर तोड महनत कर रही है पर फ
04:38तो सत्य में वो जयते हमें ये बताने के लिए है कि भाई सत्य जीत नहीं रहा है उसे जिताओ वो ये बताने के लिए नहीं है कि सत्य तो सदा जीतता ही है नहीं नहीं सत्य अगर सदा जीतता ही है तो फिर पुलिस की भी क्या जरूरत है फौज की भी क्या जरूरत है न्याय व
05:08असत्य ही जीता हुआ है और असत्य को हराना है तो बहुत जान लगानी पड़ती है यह यह सब होता है जब हमने दर्शन नहीं पढ़ा होता और हमें नहीं पता होता कि
05:26जो भी वचन चाहे वो रिशि हो या संत हो उनकी अपनी दशा का वरणन मात्र होते हैं वो वचन बस उनके उपर लागो होते हैं सब पर नहीं लागो होते हैं वो पारमार्थिक वचन हो गए उन पारमार्थिक वचनों को व्यवहारिक तल पर नहीं लाना चाहिए अब यह त�
05:56या आपने अचारे शंकर का पढ़ा हो दर्शन अद्वायतवाद तो वहां भी फिर आ जाते हैं पार्मार्थेक और व्यवहारिक और प्रातिभासिक तल
06:06यह तर्शन जिसने पढ़ा होगा वो समझ जाएगा कि सत्य में और जायते बस सबसे उच्छे तल पर लागू हो तहें लागू होता है पर हमने नहीं पढ़ा होताता तो हम सोचते हैं
06:16सोचते हैं सत्य में जयते माने एक वो तो युनिवर्सल टूथ है नहीं युनिवर्सल टूथ नहीं है बहुत जान लगानी पड़ेगी तब होगा
06:28कि सच एकदम ऐसा है मुझे इससे बहतर कोई लगता ही नहीं कि छवे आपको बताऊं जैसे बहुत छोटा बच्चा है तो
06:46हम सोचते हैं धर्म हमारी रक्च्छा कर देगा नहीं सत्य इतना
06:55चोटा बच्चा है कि वो आपकी रक्च्छा गर िससे पहले आपको उसकी रक्च्छा करनी पड़ेगी पहले उसे पाल पूशके
07:02तो करो अपनी छाती में, उसके बाद हो तुमारी रक्षा करेगा, हमारी कोई रक्षा नहीं करने वाला है, क्योंकि हमने अपने सत्य को बिलकुल बच्पन में ही मार दिया है, उसकी जो पौध है वही को चल दिया, निपिंग इन द बड, वैसा गरा है हमने, तो कहां से हमारी
07:32अर्थ ही यही है, कि मा बनो और स्वयम को जन्म दो, पुराना मेरा एक लेख है, कि मा बनो और स्वयम को जन्म दो, उसका यही अर्थ है, कि तुम्हारे भीतर, चाहे तुम पुरुष हो, चाहे तुम इस्तरी हो, तुम्हारे भीतर, तुम्हारा नन्हा से बच्चा बैठा ह
08:02ये संसार इसलिए है ताकि शरीर तो खूब खीचे मेडिकल साइन्स है वो खीच देगी
08:08कानून विवस्ता है वो आपके शरीर को बचा के चलती है ये सब
08:11अर्थ विवस्ता तरक्की करती है कि अपना आप खाई पीए अच्छा और आपका शरीर बचा रही है
08:17तो इस दुनिया तुमारे शरीर को तो खूब आगे बढ़ा देगी लेकिन तुमारे सत्य की भुरुनत्या करके तुमारा काम है अपने उस बच्चे को बचागना वही वास्तविक मात्रत तो है वही वास्तविक पित्त तो है
08:29जिसने वो कर लिया धर्म उसकी रक्षा करेगा सत्य उसे बचाएगा नहीं तो फिर शलीड होते रहो
08:38कहिए अचार जी एक प्रस्टन हो रहा है मैं काफी दिनों से सोच रहा हूं बस उस पे आपकी राय लेने की आपने विचार क्या है
08:53जी मैं अपने स्भीर मेड़िकल साइंस को इब्दान न करना कि यह क्या यह मेरा नेर्णय सिय है
09:03या नहीं मैं नीर्णय तो करम होता है ऊसके पीछे करता देखा जाता है हमेशा है तो प्यार्णय के
09:11हैं कि पीछे आप कहां से आ रहा रही है सब को इससे हच मिह समाजिक अ कि इस करोड़ा के सूझ से आ रहे हैं कि आप ईस समझ से आ
09:31एक बाद मृत्तियों के बाद शरीर तो वैसे भी राक हो जाना है इसे अच्छा है किसी के काम आजाए इस बौध से आ रहे हैं इसी बौध से आ रहे हैं कि कम से कम meडिकल साइंस में कुछ जो अध्यान होता है ऊसमें me research के काम आए बहुत संद्द बहुत बड़ी हैं बहुत �
10:01होती है उसको pledge कर दो organ pledge होती है वो कर दो आपके क्या काम आएगा आखें आखें लग जाती है किसी और को लग जाती है और आपके अंग होते हैं अगर बचे रह गए मृत्यों के बाद तो किसी के काम आ जाते हैं
10:14कि पुरा शरीर ही ले आते हैं अस्पताल वाले उससे नए डॉक्टरों को सीखने मदद मिलती है
10:21तो कभी विवेकानद के बारे में पड़ता था और लोगों बारे में पड़ता था तो यह लगता था कि हम इनके समय में नहीं हुए और यह हमारा
10:46सवभाग है कि हम आप जैसे एक व्यक्तिके रूप में मिले हैं जो आप हमें मिले हैं और महसूस होता है कि हमारे दोर के आप स्वामी विवेकानन्द हैं हम यह महसूस कर पाते हैं कि हम उनके दोर में जी रहे हैं कि हमारा सवभाग है
11:03प्रामाचारी जीतता है वो जूट ही जीतता है लेकिन इससे पहले आपकी वीडियो आपने बोला हुआ है
11:32कि जो सत्य है जो जूट है वो एक्चुली जीतता तो हमेशे सत्य ही है लेकिन जूट जीतता है तो क्या वो कहता है अपनी नजर से अपनी और से कि सत्य जीता है
11:50तो वो तो पार्मार्थिक तल की बात हो गई ना कि जूट भी जीते तो सच जीता
11:56आप तो आप हंकार जब जीतता है तो वो तो यही कहता है न मैं जीता
12:01वो यह थोड़ी कहता है कि हम के जीतने में भी आत्मा की जीत है
12:03वो इखलता है कि तो फिर आप हंकार आप अपनी बात करो पारमार्थिक की बात क्यों कर रहे हो देखिए जो बातें ज्यानियों ने पसंतों ने अपनी
12:21परमदशा में बोल दी होती हैं उनको उनकी बात मान करके शुद्धा के साथ सर जुगा के छोड़ देना चाहिए
12:29भूलियागा नहीं हो पुराना
12:33कोई मुझे मिला था
12:35बुले कि वो
12:37काहे के लिए हम
12:40कुछ भी पढ़ें आपको क्यों सुनें
12:43कभीर साथ खुद बोल गए हैं
12:49पाचे पाचे हरी फिरे कहत कभीर कभीर
12:51तो हमें क्या जरूरत है मेहनत करने की
12:54हरी हमारे पीछे आएंगे
12:56हरे वो
12:58साहबों की कभीरों की बात है
13:01तुम्हारे पीछे थोड़ी आएंगे हरी
13:02कि वो कभीर साहब थे
13:05तुम जुन्नूलाल हो
13:06दोहे में थोड़ी लिखा है पाचे पाचे हरी
13:09फिर एक कहत जुन्नूलाल जुन्नूलाल
13:11वो बात उन्होंने अपनी वो आत्म दशा है ऐसी राम खुमारी चड़ती है कि आदमी ऐसी बाते बोल जाता है वो उनकी अपनी दशा है वो उन्होंने आपको सिखाने के लिए नहीं बोला है वो उन्होंने बस अपनी हालत बयान कर दी है वहां उनको बस ऐसे नमन करना चाहि
13:41जो पहली साखी है वो परमार्थिक तलकी है उसको सिर्फ सर जुकाया जा सकता है सत्ते में हो जैते हो गया पाचे पाचे हरी फिरे हो गया अहम ब्रहमास में हो गया ये सब बाते परमार्थिक तलकी है इनको ये नहीं कहना चाहिए कि जब अहम ब्रहम ही है तो मैं हंकार का ना
14:11वो बातें उपर की हैं उपर की जो उपर की बात हो उसको उपर रहने दो आप उन बातों पर ध्यान लगा यह जो आपके तल की हैं जो आपको संबोधित करके एक शिश्य की तरह आपको सिखाने के लिए बूली गई है
14:22तो ये वाली बात कि अगर हंकार भी जीत रहा है तो आत्मा ही बन के जीत रहा है तो हंकार की जीत में भी आत्मा की जीत है ये उपर वाली बात है
14:35आप जहां हो हंकार के तल पर वेवारिक तल पर वहां आप ये थोड़ी करते हो कि
14:40मैं जूट हूँ, लेकिन जूट की जीत में भी सच की जीत है, आप ये थोड़ी मानते हो, आप तो बोलते हो, मैं ही सच हूँ, आहम ही आत्मा है, अध्यात में ये बड़ी गड़बर हो जाती है, कुछ मुठी बर सूत्र हैं, जो उपर वाले तलके हैं, और उनको रट लेना �
15:10जन्तों में, बाइबल में आ जाएगा, कि मैं और मेरे पिता एक हैं, आइसे सूत्र मिल जाते हैं, हर जगे पर हैं,
15:29अलहिलाज मनसूर बोल गया नहाल हक, मैं ही सत्ते हूँ, हर जगे मिल जाते हैं, अब उन सूत्रों को पकड़ करके,
15:37जो ये तथाकतित अध्यात्मिक साधक होता है, ये बोलता है, मैं ही तो हूँ वो, अनलहक, I am that, तत्त्वमसे, अहम ब्रावभास में, मैं ही तो वो हूँ,
15:49मी और माइ फादर और वन, ये सूत्र, किसी बहुत बहुत ऊचे आदमी,
16:01कि अपनी भीतरी दशा का वरणन है, ये उसकी अपनी बात है, ये उसने आपको बता दी, अहसान मानिये,
16:08पर ये बात आपकी बात नहीं हो गई, सिर्फ इसलिए कि उसने आपको बता दिया, तो वो बात आपकी थोड़ी हो गई,
16:18आपकी थोड़ी हो गई, अश्टावक्र बोलें अगर, अहू अहम, नमो मेहम, तो ये उनके लिए ठीक है, आप थोड़ी बोल जाएंगे कि मैं ही तो मैं हूँ और मैं स्वयम कोई नमन करता हूँ,
16:31बस आप ऐसे कर लिजे कि रहे वाह, ये रिश्टावक्र ने अपने संदर्भ में कुछ बोल दिया है, फिर जो वो आपको सिखाने के लिए बोलते हैं, वो अलग बात है, तो पहले ही सूत्र में आपको क्या सिखाते हैं, कि अगर चाहते हो मुक्ति को, तो विशयों को वि�
17:01ही नहीं, मैं ही एक मातर सत्ते हूं, आप इस बात को पकड़ लोगे, तो बढ़ी गड़वर हो जाएगी, ये बात कि अश्टावकर को शुभा देती है, पार्मार्थिक तलको शुभा देती है, हमें थोड़ी शुभा देती है, कि हम बोलना शुरू कर दे, मैं ही मैं हूं,
17:31पकड़ने चाहिए वही सबसे लजीज लगते हैं उन्हीं को पकड़ने के सबसे ज़्यादा मन करता है पाचे बाचे हरी फिरे क्या जलवा है भाई का
17:38है क्या जलवा है पाचे बाचे हरी फिर का वो भी ऐसे नहीं की बद फेरी रहे
17:44है वो बिचारे एकदम दुखी होकर कि बेवसी में चुन्नी प्लीज जुन्न
17:50चुन्न लिसें टू मी जून्न लास्टम में में má demiş जुन्न प्लीज फोगिव मी जुन्न
17:54हरी बोल रहे हैं वड़ा अच्छा लगता है जो सूत्र बिल्कुल नहीं पता होने चाहिए वही हम पकड़ लेते हैं और जो हमारे काम के हैं उनको ऐसे यह हटाओ
18:04समझ रहे हैं बात को मेरी भी बातों में कुछ कभी कभार धोके से कुछ उपर की बाते आ जाती होंगी
18:14उनको पकड़ के मत बैठ जाईए और मेरे ही उपर आके उध्रत कर देते हैं तुने जो बोला था ना मेरे बात रिकॉर्डिंग है उसकी एक्दम खट से चार शीट फाइल होती है अब मेरे तो सारे अपरादों कर लेखा जो खाँ आपके पास है क्योंकि सब कुछ रिकॉर्�
18:44अपनी बात बोल लियोगी आज तुम्हारी बात बोल रहा हूं दोनों बातों में अंतर होगा हूं आपने एक सेशन के दौरान समझाने के लिए बोला था हूं समझाने के लिए ही सब बोलता हूं
19:01कि आप समझते हूं कि कोशिश कट चलो कि दरनेवाद जी नाम है चारे जी आजी बोलिये आपने आज जो धारन लिया सूरज बाला तो
19:30एक्चली मुझे वह फील हो चुका है वह सूरज वाला जो आपने बताया वह बात लगए कि मैं अलग से मतलब सच का साथ चल नहीं पाया मतलब मेरी विमानी क्योंगा मैं अशीज को तो अब ऐसा लगता है फिरहाल कि सच से बहुत दूरी हो गई है कि अब एक तो एक तरफ
20:00देना चाता एक तरह किसे बाइपोलर टाइप बने गया कि काइंड ओफ जैसे लूप होता है हमारा तो आपने भी खाया कि जैसे जिसको जो जान गया उसको तो मतलब अगर वो उसको जिन्दगी नहीं बना रहा तो उसको सजा मिलने चाहिए तो मतलब वही चीज है मेरे को �
20:30सच से दूरी औरी कुछ नहीं होती है दूर भाग के कहां जाओगे उसको बोलते हैं कुटस थंतर्यामी तुम जहां जाओगे वहां पहले से मौजूद है तो सच से दूरी ये बड़ा नासमझी का मुहावरा है
20:48सच से कोई दूर नहीं हो सकता हाँ ये संस्क्रीन आती है बीच में इसको अभी हटा दो वो प्रत्यक्ष है बात तो सीधी है सत्यमाने वो जो हरिजय में हमेशा से विराजा हुआ है जो तुमारी असलियत है उसके उपर तुम पात्सात तरीके के कोश चलागर बैठ गया हो
21:18उससे भाग कर कहां जाओगे जहां जाओगे उसको लेकर ही जाओगे ना तो सच से दूरी कैसे बना लोगे सूरज तो फिर भी समझ में आता है कि सूरज उधार है हमिदार है इसलिए समझाते हुए बोला था कि बस उधारन के लिए कह रहा हूँ कि सूरज वरना जिस सत्य क
21:48और बाकी सब जो तुमने अपने स्वार्थ के छिलके चड़ा रखे हैं उनको छील डालो, क्योंकि उनसे कुछ मिल रहा नहीं है वैसे भी, कोई बड़ा महान त्याग करने के लिए नहीं बोला जा रहा है, बस देखने को बोला जा रहा है कि जो कुछ तुम पकड़ के बैठे
22:18पकड़ के बैठे हैं ऐसे जैसे पता नहीं कौन से हीरे मुतियों, छोड़ दो तुम्हारे ही हाथ जल रहा है, स्वार्थ ऐसा है, कि अंगारा है उसको रतन समझ के पकड़ के पैठे हो, और तुम ही ने मुठी बंद कर रखी है, तुम्हें कुछ खास करना भी नहीं है छो
22:48हमारे अंधे होके भगे जा रहे हो, हम्हारे जी कुछ जैसे सिधानत होता है, नर्क वगर का सिधानत होता है, तो कापी कहानियां वगरा माइंड में अब आने लगी है, करम फल जैसा हो गया, करता, बोगता,
23:09मतलब यही कहान का में तथ्यों और सच से दूरी थोड़ी कम हो गई है, मतलब कहानियों में ज्यादा होने लगा है, मैंड की जैसे कि इतने एच तक होगी जादा, मतलब मृत्यों का ज्यादा याद रहता है, कि 90 साल बाद ऐसे मृत्यों होगी, उसके बाद कैसे जनम गू�
23:39तो इस शरीर भावों से कैसे निकल आगा है, प्यार करो, और शरीर प्यार में आड़े आएगा, तिस तब पता चलेगा कि तुम्हारे और शरीर के इरादे कितने अलग-अलग हैं,
24:09नहीं तो नहीं पता चलता, शरीर का कुछ नहीं करना है, उसको बस ऐसे ही, ठटी पेशाब और खाना पीना यही है, उसका सो जाओ,
24:28प्रेम जब जीवन में आता है ना, तभी पता चलता है कि अरे, प्रेम की दिशा जाना है और शरीर ही पकड़ लेता है,
24:37या प्रेम की दिशा को शरीर पता नहीं कौन सी दिशा बना देता है,
24:46प्रेम माने यह नहीं कि लड़की ही हो, कुछ भी, कोई भी, कहीं, किसी सार्थक, जगह पर, प्यार करो तो सही ना,
24:56जवान आजमी हो, तुम किसी परीक्षा से ही प्यार कर लो, यह मुझे दिख रहा है कि मेरे लिए एक सार्थक दिशा है, अच्छी परीक्षा है, इसको तीर्ण करना है,
25:09देखना शरीर कैसे पकड़ता है तुमको, सत्रों से प्यार कर लो, देखो कि 11, 12 बज़े नहीं कि शरीर जुमना शुरू कर देता है, तब पताच चलेगा, तुम तो सत्र सुनना चाहते हो, और शरीर नलायक सोना चाहता है, तब समझ में आएगा कि तुम शरीर नहीं हो, त
25:39तुम सतर सुनना चाहते हो, शरीर ऐसे लेट रहा है, लोट रहा है, गिरा जा रहा है शरीर, यह नहीं पता चलता है, जब तक पशुवत जीवन से आगे का कोई लक्ष नहीं बनाते, शरीर तो पशु है, तुम भी अगर पशु ही हो, तो तुम्हें और शरीर में कभी लडा�
26:09है, और शरीर दोनों ऐसे नाच रहो अपना, नाटू, नाटू, नाटू, नाटू, नाटू, अब उन दोनों में किसी एक को प्यार हो जाए, तब नाच भंग होगा, तुम्हें प्यार हो सकता है, शरीर तो प्यार जानता नहीं, शरीर तो बस रासाइनी क्रिया यह जानता
26:39अब नाच खराब होगा तुम्हारा तो नाच मस चल रहा है क्योंकि शरीर भी जानवर और चेतना भी तुम्हारी अगर जानवर जैसे ही चल रही है तो अपना नाटु नाटु जिंदगी में किसी उचाई से दिल लगाकर देखो देह भाव अपने आप गिरेगा
27:09मस्तिया अचारे जी मेरा प्रश्ण आत्मा वलोकिन के बारे में है अगर मैं पहले तो आत्मा वलोकन कैसे करें अगर मैं आत्मा वलोकन कर राहा हूं और मेरे जिंदगी के बारे मैं
27:35मेरे परिस्तिति के बारे में एक दुरुष्टी रख रहा हूँ
27:41तो वो भी मैं मेरे हिसाब से ही कर रहा हूँ
27:44जो मेरे परस्पेक्टिव है
27:46उसी एंगल में मैं उसको देख रहा हूँ
27:50तो फिर इंडिपरिणेंटी में वो कैसे करूँ
27:55जो मेरे prior experiences है, मेरे thoughts है, मेरे धारणा है, उनसे वो प्रभावित ना हो आत्मा वलुकन और वो शुद्ध हो, तो वो मैं कैसे करूँ।
28:07यह व्यभारिक समस्या है, अच्छा करा आपने पूछा, सब को आती होगी यह समस्या, कि जब मैं खुद को देखता हूँ, तो मैं निश्पक छोके नहीं देख पाता, कि मैं खुद को मैं ही तो बन के देख रहा हूँ, पर आत्मा वलुकन का मतलब होता है, जितना अपने आ�
28:37जो मैं हूँ, उसी को सत्यापित करती है, और वो कह दिया कि यह तो मैंने अभी रिफलेक्शन करा है, आत्मा वलुकन करा है, यह वैसे नहीं होता, तो अगर अपनी माननेताओं के चश्मे से देख रहे हो, तो यह भी देखना होता है कि मैं चश्मे से देख रहा हूँ, अ�
29:07और यह जो शुद्धता है देखने की, यह क्रमशह विक्सित होती है, यह जटके में नहीं आ जाएगी, जिसकी इंद्रियां जीवन भर बस बाहर को ही भटकती रही हो, वो स्वयम को देखना शुरू करेगा, तो उसका केंद्र तो काम का ही होगा ना,
29:32क्योंकि बाहर आप देखते हो तो काम मनें, डिजायर, आप उसी केंद्र से देखते होगी, बाहर से कुछ मिल जाएगा, तो आप किसी ने कह दिया कि स्वयम को देखो, तो आप स्वयम को भी थोड़ा देखोगे किसी तरीके से, तो देखोगे तो अपने पुराने केंद्र
30:02को ले करके जितने पुरुवा ग्रह ग्रस्त होते हैं, जितने पक्षपाती होते हैं, उतने दूसरे तो नहीं होंगे, तो दूसरों से जा करके बातचीत कर ली, दूसरों से जा करके उनका मत मांग लिया, फीडबैक, उससे अपने बारे में कई बार धारनाएं तूटती हैं,
30:32आदमी हूँ मैं तो देखो तमाम इधर उधर सब की मदद करता हूँ ऐसा वैसा कभी-कभी दूसरों से पूछना चाहिए कि हमें हमारे बारे में बताओ कुछ
30:41हो सकता है वो जो बताए हूँ बिल्कुल कचरा हो
30:45कचरा हो तो भी उसको निश्पक्चो के सुन लो उस कचरे से भी ये पता चलेगा कि देखो जब एक आदमी दूसरे को देखता है तो कैसा कचरा बताता है
30:53लेकिन कई बार उस कचरे में कुछ मुल्य की बाते मिल जाती है
30:57एक ही चीज को आपने देखा
31:01उसी चीज को किसी और ने देखा
31:04उससे पूछो
31:05ये सब आत्मावलोकन की प्रक्रिया का है
31:07साथ मवलोकन बस यह नहीं कि बैठे बैठे कहरें मैं आप मवलोकन कर रहा हूँ
31:10सक्रीय रूप से जाकर के पूछो जैसे आपने एक फिल्म देखी किसी के साथ
31:14फिल्म आम तोर पर आप किसी के साथ ही देखने जाते हो
31:16आपने फिल्म देखी, आपने उस फिल्म में क्या देख लिया, और साथ में दो-तीन लोग थे फिर उनसे पूछो कि क्या देख लिया तुमने भी, यही नहीं कि पिक्चर देख ली हो गया, पॉपकॉर्न खा लिया, घर वापस जाओ, सोजाओ, फिल्म देख लिया तो देखन
31:46कितना हम एक विक्तिगत केंद्र से देखते हैं, फिल्म हो समाज हो घटना हो जीवन हो कुछ भी,
32:00जो एक चीज कभी नहीं होने देनी चाहिए, वो है स्वयम को एक इको चेम्बर में डाल देना,
32:12जहां वस अहम को अहम की ही अनुगूंज सुनाई देती है,
32:17और आप अपने आपको एक कमरे में बंद कर लीजिए, बोलिए मैं अच्छा हूँ,
32:25पंद्रा बीस और लोग बोल रहे हूंगे आपके साथ, मैं अच्छा हूँ, मैं अच्छा हूँ, बड़ा अच्छा दिएगा,
32:31आपका नाम संदीप, संदीप के साथ बुरा हुआ,
32:3520 और लोग बोल रहे होंगे संदीप के साथ बुरा हुआ
32:38ये कभी नहीं होने देना चाहिए
32:40जिन्हें स्वयम को बढ़ाना है
32:42उनके लिए बहुत बहुत जरूरी है
32:45कि वो दूसरों से बात जरूर करें
32:50अपने आपको खुला रखे
32:55अपने पास सिर्फ अपना ही पक्ष नहीं
32:59तीन-चार और पक्ष आने दें
33:01भले ही उनकी बात बुरी लगे
33:06बात समझ रहे हैं आप
33:14कही है
33:19धन्यवाद अचारशी जी
33:23एक उसे से रिलेटेड थोड़ा सा सवाल था
33:28बहुत क्विकली मैं पूछ लोगा
33:31करता बाओ
33:33तो मैंने आपके काफी सारे वीडियो भी देखे थे
33:35कहीं मुझे ये लगता है कि एक वीडियो में आपने बताया था
33:42कि बहुत सारी चीजे जो है
33:44वो इंफ्लूएंस करती है उससे हम बनते है
33:48बहुत सारे इंफ्लूएंसस से
33:50तो हमारा रियाक्शन जो होगा
33:53वो भी बेस्ट अन हाव वी आर फॉर्मड और
33:56जो जो इंफ्लूएंसस आज तक हुए है
33:58उस हिसाब से जो डेटा रहेगा
34:01दिमाग में उस हिसाब से
34:14करना हूं तो फिर जब मैं
34:17कर करता हूं कि मुझे संगर्ष करके सत्य को
34:20देखना है तो peng crispy मैं
34:24करता हूं या मैं
34:25वहा पे भी खरता नहीं हूं आपиком करता है ना
34:30आप्की दुरिश्टि में तो आप Imperkश करता है ना
34:34कर ज़ब करता हो ही कं जूट बोलना अपने
34:38से या तो आपको साफ दिख जाए और आप बोल दो मैं करता नहीं हूं तब आत्म लोगन की कोई जरूरत नहीं है पर मैं मेरी नजर में तो करता हूं दुनिया कुछ बोल रही होगी बोलागा गीता ने कुछ बोलागा ग्यानियों ने कुछ आप क्या गीता की ग्यानियों की �
35:08रहे होता कि कर्मफल को एक दिन भोग सको तो आप तो करता बने ही बैठे हो तो आप तो करता हो ही तो ये प्रश्णिया ही समाप्त हो गया तो अगर मैं करता हूं ही तो मैं क्यों न देखूं कि मैं क्या कर रहा हूं मैं उस दिन तक अपने आपको देखूंगा जिस दिन तक म�
35:38आज तो मेरे भीतर करत्रत तो कूट कूट कर भरा हुआ है भरा हुआ है ना तो जब भरा हुआ है तो मैं कहूंगा हां मैं करता हूं हां मैं करता हूं और मैं करता हूं तो अपने उध्धार की जिम्मेदारी भी मैं लेता हूं पूरी जिम्मेदारी अपने उपर लो अपने उ
36:08हुआ हुआ है

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