00:00मुक्ति उल्टी होती है जब आप कर रहे होते हैं तो उस वक्त तो लगता है जिन्दगी खराब है आधा गंटा आधा गंटा करो आधे गंटा में लगता है जान निकल गई क्या हो गया मेरे साथ लेकिन सुबह थोड़ा बहतर है रात में आप करो यह एक दो घंटे के लिए �
00:30इसमाइल पर मत जाना है रात की इसमाइल से सुबह की पाइल्स तक है यह अभी की इसमाइल है सुबह कुछ और है भोग का मतलब ही है मजा आ गया मुक्ति का मतलब ही है जान में कर गया अब इस से और मैं क्या ठेट वाशा में बुनूँ अब इस से और मैं क्या ठेट वाश
01:00आसान काम नहीं होता है
01:02हमेशा भोग की तरफ भाग जाता है
01:04अजारिमाग भोग की तरफ ही
01:06इसमें सामंजस कैसे बनाएं
01:08और मुक्ति के दिशा में प्रयासरत कैसे रहने
01:10हमेशा वो इस तकी कैसे बनाए रहने
01:12देखिए मुक्ति की पहचान ये होती है
01:14कि वो हमेशा कुछ तोड़ेगी
01:17हम सब अपने-अपने
01:19धर्रों में
01:22बहुत सुविधा से बैठ जाते हैं
01:24वो जो धर्रे होते हो
01:27मौत के धर्रे होते हैं
01:28मैं बहुत सूख्स्म Oudharan दूँगा
01:31तो फसेगा तो मैं बहुत स्थूल Oudharan ही
01:33दिये देता हूँ देह का
01:34देह का
01:36देह का आकार भी
01:38एक ढर रहा है
01:39ठीक है अब मान लिजिए
01:43मेरी बाहा है या आपकी बाहा है
01:44हमारी बाहा एक आकार ले चुकी है
01:47अब हमें उस आकार से
01:49कोई तकलीफ तो हो नहीं रही है
01:50नहीं हो रही है ना
01:52काम तो चली रहा है भले वो जो आकार है वो न तो स्वास्थे का सूचक है न सौंदर्रे का आम आदमी की जैसी बहां होती है ठीक है पुरा शरीर ही ले लिए जैसा एक आदमी का शरीर होता है आदमी वाने सब स्री पुरुश
02:16उसमें से न तो स्वास्थे की कोई सूचना आ रही होती है न उसमें कोई सौंदर्रे होता है लेकिन हमें कोई असुविधा हो रही होती है क्या
02:25तो स्वास्थ भी नहीं है उसमें और सौंदर्य भी नहीं है लेकिन सुविधा तो पूरी रहती है ये गजब बात है और यही इनसान की जिन्दगी का दुर्भाग्य है कि स्वास्थ भी नहो और सौंदर्य भी नहो जीवन में तो भी सुविधा हो सकती है जीवन में
02:47अब लेकिन अगर मुझे अपनी बाह में स्वास्थ लाना है और सुन्दर लाना है तो क्या होता है फिर
02:59बहुत दर्द होता है
03:01मुक्ति की हमेशा निशानी दर्द है
03:05मुक्ति कुछ तोड़ती है
03:07मुक्ति कुछ तोड़ेगी हमेशा तोड़ेगी
03:13आपका पेट निकल पड़ा है
03:16और निकला हुआ पेट
03:20स्वास्थ की द्रिष्ट से
03:24खतरे की बहुत बड़ी घंटी होता है
03:26शरीर के किसी भी अंग से ज्यादा
03:30पेट
03:33की महत्ता होती है ना
03:36सब कुछ तो उसी में घुसा हुआ है
03:37पेट को अंदर करके देखिए
03:43कितना मुश्किल काम होता है
03:44मुझसे पूछिए ना
03:45मैं बता रहा हूँ कितना मुश्किल होता ही नहीं
03:48लगे रहो लगे रहो
03:49बाकी सब आप अपने शरीर के अंग ठीक कर सकते हो
03:52पेट निकल गया उसको वापस अंदर एकदम
03:55लाना बड़ा मुश्किल हो जाता है
03:56आपकी बहां कमजोर है
04:00महीने दो महीने में आप करोगे
04:03आपको अंतर पता चलने लगेगा
04:04पेट में बड़ा समय लगता अगर
04:06पेट खराब हो गया तो
04:07अब आप एब्स एब्स समझते न आप
04:13ये
04:14आप इसकी एक्सरसाइज कर रहे हो
04:16देखेगा दर्द कितना होता है
04:17छाती का व्यायाम कर लो
04:21कंधे का कर लो
04:22हाथ पाओं का कर लो
04:23वो फिर भी जेल लोगे
04:24अब पेट का जब करया जाता है न तो कराही कराह
04:27निकलती आ
04:28जान चली जाती है पेट का करने में
04:31और उसी पेट में आप पिज़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़�
05:01सौंदर लेकिन सुविधा है
05:03स्वाद है और एक सतही
05:05सुकून है
05:05और वही पेट ठीक करने
05:09पे आओ
05:09तो कितना कश्ट जेलना पड़ता है
05:12ये मुक्ति और भोग की निशानी है
05:14पिज़ा में भोग है
05:15एब्स में मुक्ति है
05:17स्थूल उदाहरन ले रहा हूं
05:18कोई बोले कि ये देखो
05:20ये पेट की चर्बी से मुक्ति समझा रहे थे
05:23तो और किससे समझाओ
05:24जिस चीज से समझाई जा सकती उसी भी समझाओंगा
05:27मुक्ति का अर्थी होता है किसी चीज का तूटना
05:35वो बुरी लगेगी ही लगेगी
05:37कंठर कभीर बोलते
05:43हसत खेलत हरी मिलें
05:46तो कौन दुहागन होए
05:47हसते खेलते नहीं मिलते
05:50हस हस कंत न पाइया
05:53जिन पाइया तिन रोए
05:54तो यह जो आपके आदर्श होते हैं
05:58न स्माईलिंग
05:59और आपके जितने आदर्श हैं
06:00आप उनकी फोटो देखिए
06:01कभी भी हो क्या कर रहे होते हैं हसी रहे होते हैं किसी भी क्षेतर से हो आज कल ज्यादा पैसे के इक शेतर से होते हैं या तो पैसे या ग्लैमर इनी दोनों के शेतरों से आधर्श होते हैं या फिर मनवंजन से होते हैं कुछ या फिर कुछ राजनीति से होते हैं वो सब के सब
06:31डटे हुए हो कि गिर ना पड़ो
06:33मज़ा तो नहीं आ रहा होता मुक्ती की दिशा में
06:39अब भोग में तो पिज़ा तो मज़ा ही मज़ा आ रहा है
06:43पेट भले ही उससे आधा इंच और बढ़ जाएगा सुबह
06:45लेकिन मज़ा तो आ गया, रात तो गुलजार हो गई
06:50सुबह जो होगा देखा जाएगा क्या करना है
06:55मुक्ती उल्टी होती है
06:58जब आप कर रहे होते हैं वह एब्स
07:00तो उस वक्त तो लगता है जिन्दगी खराब है
07:04आधा गंटा आधा गंटा करो आधे गंटा में लगता है जान निकल गई
07:07क्या हो गया मेरे साथ
07:08लेकिन सुबह थोड़ा बहतर लगता है
07:11रात में आप करो ये
07:14एक दो घंटे के लिए ऐसा लेगा जिन्दगी इससे बुरा कुछ हो नहीं सकता था
07:20मेरे साथ जो अभी अभी हुआ है
07:21लेकिन सुबह बहतर लगता है
07:23पिज़ा उस वक्त अच्छा लगता है
07:25और सुबह पता चलता है कि ये क्या है
07:27ये पर किसी ने बूला
07:34ये क्या है इसमें ऐसे निशान था बहुत बड़ा स्माइल का
07:37बोला स्माइल पर मत जाना
07:39रात की स्माइल से सुबह की पाइल्स तक है ये
07:43अभी की स्माइल है सुबह कुछ और है
07:48भोग का मतलब ही है मदा आ गया
07:57मुक्ते का मतलब ही है जान निकल गई
08:00अब इससे और मैं क्या ठेट वाशा में बूलू
08:05आचायर जी समय के साथ
08:14ये काम मुक्ती वाला काम भी आनन देने लगता है
08:17कि जैसे एक जाम्पल देंगे शुरुआत में जैसे रात में सत्र अटेंड होना सुरू हुआ
08:22तो इतना आधा घंटा एक घंटा बैटना वी बड़ा मुस्खिल हो जाता था
08:26सोने का होता था भागी जाता था लेकिन अब सत्र का इंतजार होता और नीद आती ही नहीं है
08:31जब यह होने लग जाए तो समझिए कि अब समय आ गया है और उची चुनोती स्विकार करने का
08:39क्योंकि बिलकुल ऐसा हो सकता है कि आपने पेट का व्यायाम शुरू करा
08:45तो 15-20 दिन तो जान निकली रही फिर धीरे धीरे शरीर ने अपने आपको उसके नुकूल बना लिया
08:52तो इसका मतलब यह है कि अब आप अपने ट्रेनर से बोलिए
08:56कि सहाब अब मज़ा आना शुरू हो गया है
09:03तो अब अगले स्थर की दीजिए अगले दीजिए
09:07तो फिर रुकना कहाँ पे रुकना कहीं नहीं है
09:11ऐसा हो जाना है कि बाहर कश्ट जेलने की शमता बढ़ती जाए और बढ़ती जाए
09:19कि भीतर आप सुकून में रहो भले ही बाहर कश्ट चल रहा है
09:24यह मुक्ति है
09:25यही तो हो गई न बाहर के कश्ट से मुक्ति
09:27तो और कड़ा और कड़ा तुम हमको व्यायाम कराते चलो
09:32तो फर्क क्या पढ़ रहा है दुख तो व्यायाम में पहले भी होता था
09:36दुख अभी भी हो रहा है क्योंकि पहले आपको हलकी व्यायाम में दुख हो जाता था
09:39जब हलके वयायम में आपको
09:42तकलीफ होनी कम हो गई तो आपने क्या बोल दिया
09:44वेट्स बढ़ा दो, रेप्स बढ़ा दो, एक्सेसाइस चेंज कर दो
09:46तो दुख तो आपको अभी भी हो रहा है
09:50बस पहले यतना था कि 10 किलो में हो जाता था
09:5210 किलो के वदन में, अब आपने 40 किलो करवा लिया है
09:55तो दुख तो बराबर का हो रहा है
09:56तो फिर आपने तरक्की क्या करी, तरक्की हुई कि
09:59पहले 10 किलो में जो दुख होता था
10:01वो सिर्फ शरीर में नहीं होता था
10:03वो भीतर भी हो जाता था
10:06अब 40 किलो में जो दुख होता है उसर्फ शरीर में होता है भीतर नहीं होता
10:09ये मुक्ते है
10:12मुक्ते इसमें नहीं है कि पहले 10 किलो में दुख होता था अब 10 किलो की आदत पढ़ गई है तो अब 10 किलो में कोई दुख नहीं होता
10:22ये फस मत जाईएगा
10:24कि पहले रात में जगते थे बहुत तकलीफ होती थी जगाते थे रात में दो बज़े चार बज़े तक तक बहुत तकलीफ होती थी अब दो बज़े चार बज़े के आदत पड़ गई है
10:32तो इसका मतलब यह हम मुक्त हो गए ने इसमें नहीं मुक्त हो गए
10:35मुक्त तब है जब बाहर चुनोतियों का स्तर बढ़ता रहे
10:44और भीतर बढ़ती हुई चुनोतियों के मद्ध भी शानती रहे
10:48वो मुक्त कहलाती है
10:49और मुक्त की फिर महानता इसी में है
10:52कि वो आपको सक्षम कर देती है
10:55बाहर बड़ी से बड़ी और बड़ी उत्तरोतर बड़ी चुनोती स्वीकार करने के लिए
11:01मुक्ताद्मी को कभी आप चुनोती के एक स्थर पे ठहरा हुआ नहीं पाएंगे
11:06वो कहेगा अब अगला अब अगला अब अगला अब और अन्त कहां पर है
11:15अंत कहीं पर नहीं क्योंकि अंत हो गया, अंत कहां हुआ, अंत भीतर हो गया है, भीतर जो भोग की चाहती उसका अंत हो चुका है, भीतर जो सुख दुख का ग्रहक था उसका अंत हो चुका है, तो बाहर अब चुनोतिया अंत है, वो एक से भी बड़ी चुनोति लेता रहता ह
11:45समुद्र शास्त्री थे, आस्ट्रेलिया के थे शायद, उनकी अभी पिछले कुछ वर्षों में मृत्य हुई है, देखिए का क्या है, तो वो पूरा जीवन यही करते रहे, वो यही सब मचलियों के साथ, और सब जो समुद्री प्राणी और समुद्र के भीतर, जो कोरल रीव
12:15होती है, स्टिंग रे, उसकी ऐसे सीम्क सी निकली होती है, अंतता वो उनके छाती में घुज गई सीधे, उनका हार्ट पंक्चर हो गया, उनकी वही करते हुए मृत्ति हुई, वही करते हुए मृत्ति हुई, जो उन्होंने जीवन भर करा था, जो उनने सबस्यादा प्रे�
12:45यह कि नहीं, वर्ल्ड फेमस विश्व प्रसिद्ध ऐसे करके श्रिंखला आती थी, जिसमें कम सकम 50-60 अलग-अलग किताबे थी, और जादा रही होंगी, तो उसमें विश्व प्रसिद्ध रोमांचक का रनामे, विश्व प्रसिद्ध परवतारोही, विश्व प्रसिद्ध �
13:15तो उसमें मुझे, मुझे अचंबा भी लगता था, और मैं सबसे आदा आक्रिष्ट भी होता था, उधारन के लिए उन परवतारोहीयों से, जिन्होंने एक चोटी लांग दी, फिर दूसरी लांग दी, फिर तीसरी लांग दी, और अब वो 70 के हो गए हैं, 75 के हो गए हैं,
13:45क्योंकि किसी ने किसी दिन तो अंत आ नहीं था, हर बार थोड़ी होगा कि आप जाओगे और आपका जो आरोहन है, वो सफल ही होगा, और सफलता पूरुवका आप शिखर को छू करके वापस भी लोटा होगे, कोई ना कोई तो ऐसा हो नहीं था, कि इस बार गएंगे तो अ
14:15फिर ऐसे लगाया, फिर इस तरही किसे लगाया, फिर और अपने लिए चुनाती बढ़ाई, और चुनाती बढ़ाते बढ़ाते एक देनों सागर में ही सो गए, जबकि वो चाहते तो रुख सकते थे, हर तरह का सम्मान मिल गया, सब लोग जान गई, प्रसिद्धी हो गई,
14:45इस देश में आजादी पाली, तो उन्होंने देखा कि दुनिया के और कौन से देश हैं, जो अभी गुलाम है, तो उन दूसरे देशों में चले गए, वहां की करांती में सहायता देने के लिए, और उस दूसरे देश में जाके मारे गए, यह बात मुझे अजीब लगे, ल
15:15भारती यह कम थी, तो यह भी तो हो सकता है, यह मुक्ति है, मुक्ति है, अब मुक्त व्यक्ति को इसलिए मैं कहता हूँ, आप घोर कर्म में रत पाएंगे,
15:35उसके पास अब रुकने कोई वज़ा है नहीं, वही बात जो कृष्ण बोल रहे हैं, कि मुझे पाने को कुछ नहीं है, लेकिन फिर भी मैं सदा कर्म में रहता हूँ,
15:48कुछ नहीं है पाने को, क्या है पाने को, जो पाया जा सकता था, वो तो उन लोगों ने पा लिया था,
15:58वो आराम से कह सकते थे, कि अब क्या करना है, आराम से, एक उम्र हो गई है, बुढ़ापा गुजारो, जैसे, आम आदमी लाला ही तरहता है, कि रिटायर्मेंट एट फॉट्टी फाइव, जवान लोग सब है, इनकी सबसे बड़ी तमन्ना यही रहती है, एक से एक इंफ्ल
16:28पर वो अपनी साइकल लेकर चड़ गया था, बस वो उपर ही कहीं जा करके, वहीं पर अपना सो गया, जिसमें आरी यह बात, मरने का इस से अच्छा तरीका क्या हो सकता है, जो उच्छे से उच्छा काम है, जिसमें जिस पर दिल आ गया है तुम्हारा, जिसको अपना प्रे
16:58वही करते हुए ठीक उसी के बीचों बीच बस समा दे, मौत थोड़ी है वो, यही तो निश्कामता है, किसी उद्देश के लिए काम कर रहे होते हैं, तो काम रुख जाता, यहा कोई उद्देश ही नहीं, एकदम निरुद्देश करम है, बस करना है, इसलिए कर रहे हैं, अ
17:28यह मुक्ति है, पिज्जा कितना खा लोगे, रुकना पड़ेगा, प्रिश्ण लेकिन कभी नहीं रुकते, यह भोग और मुक्ति में अंतर होता है,
17:44कोई पुछे कुछ, टार्गेट तो बताईए, क्योंकि टार्गेट का मतलब होगा, वह रुकना पड़ेगा भाई, लोग सोचते हैं कि, जो मुक्त पुरुश है, वो टार्गेट इसलिए नहीं डिफाइन करता, कि अगर डिफाइन कर देगा, तो पाना पड़ेगा, बात �
18:14वो अपना टार्गेट इसलिए नहीं डिफाइन करता, वो अपना लक्ष इसलिए नहीं परिभाशित करता, क्योंकि अगर डिफाइन कर देगा, तो रुकना पड़ेगा, वो कहता है, क्यों कहते हैं कि इतना ही करना है, उतना ही तो करने को मिलेगा, वो कहता है, यह तो आनन
18:44और प्रेमी जब टार्गेट नहीं बनाता जब अपना लक्ष सीमा बद्ध नहीं करता तो उसकी वज़ाए यह होती है कहता है अगर सीमा बना दी तो उसके बाद करने को नहीं मिलेगा तो कोई सीमा नहीं है
18:57हमें तो अनंत करना है
18:59आरी बात समझे
19:06टार्गेट तो घटिया चीज होती है
19:10टार्गेट तो नालाइकों के लिए होती है जिनके दिल में न प्रान हो न प्रेम हो
19:17उनको देना पड़ता है कि इतना कर ले बस तू किसी तरीके से
19:22जिन ये बस प्रेम होता है उनको टार्गेट दो तो अपमान मानेंगे
19:27तो कहेंगे तुमने हमें रोक दिया
19:32तुमने हमें हमारी आउकात बताई है ये
19:34कि ये संख्या हमारी आउकात है
19:36गगंद मामा बाजिया पड़े निशाने घाव
19:57गगंद मामा बाजिया पड़े निशाने घाव
20:08खेत बुहारे सूरमा मोहे मरण काचाव
20:18रिसादो मोहे मरण काचाव
20:25जिस मरने से जग डरे मेरो मन आनंद
20:36जिस मरने से जग डरे मेरो मन आनंद
20:47कब मरि हो कब भेटि हो पूरण परमानंद
20:57रिसादो पूरण परमानंद
21:04विरह भुवंगम तन बसे मंत्र नलागे कोई
21:16कोई राम वियोगीना जिये जिये तो बौरा हो एरे सादो
21:27राम वियोगी ना जिये, जिये तो बौरा हो एरे साधो, जिये तो बौरा हो
21:43साधोर एक संदूर की, काजर की आना जाए
22:07तन मन में प्रितम बसा, दो जा कहा समा, एरे साधो, दो जा कहा समा