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00:00मैं डॉक्टर हूं पेशे से तो एक तरफ तो यह होता था कि सब लगे हुए हैं साइंटेस्ट उनके गाइडलाइन्स के लिए वैक्सिनेशन के लिए और बहुत कड़ी मेहनत कर रहे हैं और अपने हार को भी स्वीकार कर रहे हैं और वहीं कोई दूसरा आदमी एक चूरन नि
00:30महिलाई मरी थी वो भी विल्कुल गरीब महिलाई और बच्चे कुछ छोटे-छोटे उपने बच्चे लेकर आई थी तियाद करिए कि कोविड के आंकड़े आपको पिशली चार बार में कितनी वार पढ़ने को मिलें कोई नाम भी लेता है चहां पर भी लोकधर्म और अं�
01:00सी विमारी थी तो उनके लिए भी एक गाइडलाइन बना पाना और ये कहपाना की पक्के तोर पे कि इस तरह से ट्रीटमेंट होता है और हम लोग देखते जा रहे थे कि हर कुछ टाइम पे वह चेंजिस होता था तो एक तरफ तो ये होता था कि सब लगे हुए हैं साइंट
01:30कि सच्चे अध्यात में के लिए कोई सालों साल मेहनत कर रहा है तो उसका उसको हम नहीं जान पाते हैं लोगों तक बात नहीं पहुँच पाती है और कोई रात और रात सेंसेशन बन जाता है मतलब हर कोई विदम दिवाना हो जाता है कि यही है सच्चा अध्यात में चाहे �
02:00कि सबसे ज़्यादा बीमारी
02:03और मौत
02:04किन तबकों में हुई है
02:06तो जो सबसे ज़्यादा अवैज्ञानिक थे
02:12उन में ही
02:14यहां बात यह बस नहीं है कि
02:18डॉक्टर रिसर्च कर रहे हैं
02:21और डॉक्टरों को श्रेय नहीं मिला
02:23बलकि डॉक्टरों के साथ
02:24तो मार पिटा ही हो गई थी बीच पीच में
02:26और कोई आके चूरन निकाल देता है
02:29उसको श्रेय मिल जाता है
02:30जो चूरन बनाने वाले को श्रेय दे रहे हैं
02:34मरे भी सबसे आदा वही
02:35यह एक ऐसी महामारी थी
02:46जिसमें
02:48एक बड़े हद तक
02:50हम अपनी तकलीफ के लिए खुद जिम्मेदार थे
02:55बीमारी की पूरी प्रक्रिया के कई बिंदू थे
03:01जहां बीमारी को रोका जा सकता था
03:03प्रिवेंशन भी करा जा सकता था
03:06शट प्रत्षयत नहीं पर काफी हद तक हमारे हाथ में था
03:09prevention भी हो सकता था
03:12उसके बाद बीमार हो गए हैं
03:14तब भी कई
03:16साउधानियां थी जो बरती जा सकती थी
03:18उसके बाद कई
03:20प्रगारगी दवाईयां थी
03:21जिनको लिया जा सकता था
03:24उद्ल का पूरा कोर्स था
03:25जिनको follow करा जा सकता
03:27काफी कुछ था जो हमारे हाथ में था
03:29काफी कुछ हमारे हाथ में नहीं भी था
03:31इसके बाद भी
03:35इतने व्यापक
03:38पैमाने पर मौते हुई
03:39मिलियन्स में
03:45कौन से वर्ग थे समाज के
03:47जो सबसे ज्यादा
03:49इसकी चपेट में आये
03:54वही तो
03:56चूरन
03:57ऐसे ही चलता रहा है
04:02हमारा चुनाव होता है
04:03अध्यात्मिके नाम पर भी जिनको चूरन
04:06सुईकार है
04:08वो ऐसा चुनाव कर सकते हैं
04:12और फिर सबसे ज्यादा दुख भी
04:14वो ही भुग देंगे
04:15अध्यात्मिक चूरन का
04:20गरीबी का
04:22अशिक्षा का
04:24बहुत बहुत सीधा
04:26और एकदम गहरा रिष्टा होता है
04:28जो गरीब और अशिक्षित लोग होते हैं
04:33वही ज्यादा चूरन चाटते हैं
04:36और जितना वो चूरन चाटते हैं
04:41उतने ज्यादा वो गरीब और अशिक्षित रह जाते हैं
04:45इस पर बाकाइदा एक नहीं बहुत सारी रिसर्च है, कि समाज कितना अंध विश्वासी और लोकधार्मिक है, इसका सीधा कोरिलेशन शिक्षा के इस्तर, समरिध्धी के इस्तर और महिला सशक्ति करण के इस्तर से है.
05:15जहां पर भी लोकधार्म और अंध विश्वास बहुत ज्यादा पाए जाते हैं, वहां तीन चीजें हैं, जो आकड़ों में एकदम उभर कराती हैं, पहला, शिक्षा बहुत कम होगी, एवरेज नंबर ओफ इयर्स ओफ स्कूलिंग, वो बहुत कम निकलेंगे,
05:40दूसरा, इंकम बहुत कम होगी, एवरेज फैमिली इंकम बहुत कम निकलेंगे, तीसरा, पर्टिलिटी रेट बहुत ज्यादा होगा, चार का, पांच का होगा,
05:56तो देखिए न, जो चूरन चाट रहे हैं, उनका क्या हो रहा है फिर, और ये एक कुछक्र, विशियस साइकल है,
06:06कमजोर हो, पढ़े लिखे नहीं हो, गरीब हो, तो चूरन चाटोगे, और चूरन चाटोगे, तो चूरन चाटने वाले ने चूरन बनाया ऐसा है, कि वो तुमको और गरीब रखेगा, और अशिक्षित रखेगा,
06:21ये जो बड़े आप लोकधार्मिक आयोजन और जलसे देखते हैं, इसमें क्या पढ़े लिखे लोग बहुत बैठे होते हैं, इसमें जो बिचारे बैठे होते हैं, उनकी इस्थिति दयनी है, उनको देखकर रोना आए,
06:44अभी कहीं पर, आपड़ हातरस यहीं पर, पश्चे मिन उत्तर प्रदेश में कुछ महीने पहले भगदर मची थी, किसी बाबाजी क्या हैं, तो वहां का आपने वीडियो फुटेज और ये सब देखा होगा,
07:06नब्य प्रतिशत तो महिलाएं मरी थी, वो भी विलकल गरीब महिलाएं, और बच्चे कुछ छोटे छोटे अपने बच्चे लेके आई थी,
07:15और जो वहां पर उनके मरने के बाद जो पड़ा हुआ था वो, फटी साड़ियां, चपलें, चूड़ियां, ये सब, सस्ते जो उनके जोले,
07:29अमीर थोड़े ही इन चीजों में मारे जाते हैं, पुम्भ में भी वो दुखत भगदर मची थी, उसके बाद की आपने फुटेज देखी होगी,
07:51आपको क्या लग रहा था, वहां अमीरों की मृत्ति हुई है,
07:59गरीब आदमी को सबसे ज़्यादा जरूरत होती है वास्तविक धर्म की,
08:07और सबसे ज़्यादा गरीब ही होता है जिसको लोगधर्म का चूरण चटा दिया जाता है,
08:15और जो गरीब है वही सबसे कटर लोगधर्मिक बनता है, वो जान दे देगा फिर,
08:20क्योंकि उसके जिंदगी में और कुछ तो है ही नहीं
08:24तो उसको ढालधस के तौर पर
08:31सांतोना के तौर पर
08:33जो लोकधर्म का चूरन मिल जाता है
08:35वो उसको अपना प्राण बना लेता है
08:36यह जिंदगी है मेरी
08:37उसके बाद आप उससे आके बोलोगे ना
08:40कि तू
08:41तो
08:43मिथ्य अभ्रम में जी रहा है
08:46वो कट्टा निकाल के खड़ा हो जाएगा
08:50कहेगा मेरे धर्म का आपमान मत करना
08:52आस्था पर भहस की कोई गुझाईश नहीं है
08:58उस बिचारे को पता भी नहीं है
09:04कि जिस चीज के पक्ष में
09:06वो जान देने को तयार है
09:09उसी चीज ने उसकी जान और जिन्दगी बरबाद कर रखी है
09:14अब देखते नहीं हो
09:22अभी हमने कहा कि कोविड ऐसी तरासदी थी
09:26जिसमें कम से कम कुछ हद तक
09:28यह हमारे हाथ में था कि हम अपने आपको बचा पाएं
09:31परोडों में मौते हुई ना
09:36दुनिया में इतनी सारी रसदियां होती रहती है
09:43एक व्यक्ति भी मरे तो दुख़त होता है
09:48पर एक व्यक्ति की मृत्ति और एक करोड की मृत्ति में अंतर तो है
09:53इतना तो हम मानेंगे कहीं पाँच लोग, साथ लोग, पंदरा लोग, सौ लोग भी अगर हताहत हो जाएं
10:00वो उसका उल्लेक बार बार होता है
10:04होता है न
10:04याद करिए कि कोविड के आंकड़े आपको पिछली चार बार में कितनी बार पढ़ने को मिलें, कोई नाम भी लेता है
10:11हमने अपनी सामुहिक इस्मृति, कलेक्टिव मेमुरी में कोविड को दफन कर दिया है
10:24ताकि हमें ये याद न गरना पड़े कि जो मौते हुई उसमें से कम से कम आधी हमारी मुर्खता और हमारी गैर जिम्मेदारी के कारण हुई
10:41जितनी बार कोविड से संबंधिद आकड़े याद करोगे, उतनी बार ये सुईकार करना पड़ेगा
10:48कि हम जिम्मेदार हैं इन मौतों के, उतनी बार सुईकार करना पड़ेगा, हम याद ही नहीं करते
11:019-11 हर साल आता है, आप 9-11 की बात करते हो, 9-11, 9-11
11:05कितनी मौते हुई थी 9-11 में? कुछ हजार
11:11कोविड जिस दिन फूटा था भारत में कोई याद करता है, किसे ख़बार में छपता है?
11:20आज के दिन भारत में उतरासदी शुरू हुई थी, जिसने सुतंत्र भारत में सबसे ज्यादा लोगों को काल के गाल में फेक दिया
11:30कभी होता है? और सिर्फ अभी 4 साल बीते हैं कोई नहीं बात करता है, यहाँ तक कि राजनेतिक पार्टियों के मैनिफेस्टों में, घोशना पत्रों में भी उसका जिक्र नहीं है
11:46नपक्ष नविपक्ष कोई नहीं बात करना चाहता है
11:50हमने उसको एक मास बरियल दे दिया है कोईड की पूरी बात को
12:01क्योंकि वहाँ अगर हम जिम्मेदारी निकालने लगे तो दिखाई देगा कि यह एक आदमी जिम्मेदार है
12:06कि सब कुछ ही बदला जाना चाहिए हमने कहा हम ऐसे करेंगे जैसे कुछ हुआ ही नहीं था
12:23और ऐसा सब जगों पर नहीं है
12:24कुछ विक्सित देश है यूरोप के जिन्होंने अपना पूरा मेडिकल सिस्टम ही रिवैम्प कर दिया कोविड के बाद
12:33वो कह रहे हैं कि अगला म्यूटेशन कभी भी आ सकता है हम तयार है अब आएगा तो हम तयार है
12:41जितनी तयार ही हो सकती है पूरी तरह तयार कोई भी नहीं हो सकता
12:48और भारत जैसे कुछ देश है भारत पाकिस्तान पाकिस्तान में भी बहुत मौते हुए
12:54जिन्होंने क्या करा है
12:57collective memory से ही wipe out कर दिया
13:01नहीं, ऐसा तो कुछ हुआ ही नहीं था
13:03कौन कह रहा है करोड लोग मरे
13:05नहीं, ऐसा तो कुछ हुआ नहीं था
13:07हमें तो याद नहीं है, let's get on with life
13:09जब हम यह फैसला कर लेते हैं
13:15कि हमें facts
13:17कोई नहीं देखना
13:20तब हमें कोई नहीं बचा सकता
13:25मैं स्वचता हूँ, evil की परिभाशा ही यही है
13:34the deliberate refusal
13:37to acknowledge facts
13:39जो व्यक्ते इस स्थिते पर आ गया
13:42अब आप उसे नहीं बचा सकते
13:43शायद यही point of no return है
13:46जहाँ पे facts सामने खड़े हों
13:49और आप कहें कि no
13:50अब कोई तरक्षेश नहीं रहता
13:55अब क्या बता होगे
13:57अमस्या थी
14:05समीकरण हल नहीं हो रहा था
14:07तो कोई कहे कि नहीं
14:09अभी संदेय है, समझ में आती यह बात
14:11आपने सब हल करके
14:13सामने रख दिया, hence proved
14:15और तब भी व्यक्ति क्या कह रहा है, no, नहीं
14:19ऐसा तो नहीं है, अब आप कुछ नहीं कर सकते
14:22यह यह evil है, यही evil है
14:24फीतरी उर्वाग्रह, prejudices
14:33इतने जबरदस्त
14:34कि वो सच्चाई सामने खड़ी है
14:39तब भी देखने से इंकार कर रहे हैं
14:41उसके सामने अब आप कोई तरक तथ्य सुबूत रख दो
14:46वो नहीं सुनेगा
14:49उसके लिए तो फिर वही है
14:52कि अरुजुन यह पहले ही मरे हुए है
14:55इनकी मृत्य पर अब कोई कष्ट नहीं होना चाहिए
14:58लेकिन
15:01कष्ट तो कृष्णों को होता है
15:06अरुणा बुद्धों का अनेवारे लक्षन है
15:12तो पूरा प्रयास करते हैं कि
15:15कोई जड़ हो जाए पूरी तरह
15:19उससे पहले उसको जगाए
15:21लेकिन बहुत बड़ी तादाद में लोग होते हैं
15:26जो कह देते हैं हमें अब नहीं जगना
15:28हमारा वो बिंदो आ गया है जहां से अब हम
15:32बचाए नहीं जा सकते
15:33हमें कितनी भी हकीकत दिखा लो
15:36हमें नहीं देखनी
15:37बार बार दिखा लो हमें देखना ही नहीं
15:40शायद ये भी प्रक्रतिक का एक तरीका है
15:44जैते शरीर में होता है न
15:51कोई सेल या टिशू
15:54जब बहुत डैमेज हो जाता है
15:57तो फिर शरीर
15:59उसका उपचार करने की कोशिश नहीं करता
16:03कोशिश की जाती है पर शरीर खुदी समझ जाता है
16:09कि इसका अब उपचार करने में बहुत
16:11संसाधन लग जाएंगे और बहुत समय लग जाएगा
16:15उतने संसाधन और उतना समय दिये जाने चाहिए
16:19बल्कि जो स्वस्थ कोशिकाएं और उतक हैं उनको
16:23तो शरीर फिर स्वयम ही जो damaged part होता है उसको मार देता है
16:31शरीर कहता है कि अब इसको बचाया अगर तो इसको बचाने में
16:37बाकी शरीर नहीं बचेगा शरीर खुद ही मार देता है उस हिस्से को
16:42शायद वैसा ही कुछ अध्यात्मिक तल पर भी होता है
16:49कि सब लोगों पर प्रयास करा जाता है कि सब बच जाएं
16:57पर कुछ ऐसे बिंदों पर पहुंच चुके होते हैं जहां अब उन पर बहुत ज्यादा मेहनत लगेगी
17:03तब भी पता नहीं बचें न बचें
17:05तो फिर उनको छोड़ देना बहतर होता है
17:08कि इनको बचाने में जो दूसरे बच सकते थे वो भी नहीं बचेंगे
17:13दुनिया के अध्यात्मिक नक्षे पर
17:22हम तो नहीं चाहते कि भारत
17:25वो जग है बन जाए
17:28जिसको बचाना अब बहुत मुश्किल है
17:34तो फिर छोड़ ही दो
17:36पर हमारे चाने न चाने से क्या होता है
17:40फैसला तो भारतियों को करना है
17:42नमस्ते सर
17:45सर जिग्यासा के बारे में आज बात हुई कि
17:49विशे के प्रती जिग्यासा विज्ञान
17:51और विशे और विशेता के दोनों के प्रती जिग्यासा वो अध्यात्मि
17:55तो सर जैसे विज्ञानिकों के बारे में सोच के
18:01जब हम पढ़ते हैं विज्ञान को
18:03जब चीजें समझते हैं, तो मैं अपना comparison करता हूँ उनके साथ, तो यह जितना जादा और समझो, जैसे एक Einstein की relativity की example लो, तो यह clear हो जाता है कि जितनी जग्यासा की intensity उनमें थी, मेरे में तो उनके comparison में कुछ भी नहीं है, यह Einstein की example ले रहे हैं, किसी छोटे से, जिसने छोटी
18:33कुछ भी नहीं है उनके सामने, जबकि मैंने एक बहुत बड़ा अपना जीवन का हिस्सा विज्ञान को समझने में दिया है, और सर एक बार आप भी डिसकस कर रहे थे कि Einstein भी द्वैतवादी ही थे, तो सर दूसरी तरफ यह देखते हैं कि मैं ही अपने उपर प्रश्न उठ
19:03और जैसे अपने उपर प्रश्न उठाना भी एक तरह से चाहे हम बाहर से कुछ भी सुन लूम है, लेकिन जो भी थोड़ा सा अपना भ्रम तोड़ा है, वो एक तरह से अपनी ही independent discovery ही है एक तरह से, ऐसा लगता है, कि वो बाहर से नहीं मिल सकती, वो एक तरह से हम वैसे ही ज
19:33अब आप गीता समझा रहे हो सर, तो अब अध्यात में भी मेरा जो ये curiosity है वो आपके comparison में कुछ भी नहीं है, लेकिन अगर आप से comparison करूं तो विज्ञान के क्षेत्र में सर आपने भी कोई breakthrough नहीं किया, तो ये जिग्यासा, आप example भी देते हो सर, लेकिन वो breakthrough में नहीं आ�
20:03और विश्याईता कि दोनों की एक साथ करनी इतनी मुश्किल क्यों पड़ती है, उनको भी जो मतलब space और time को भी एक तब देख पा रहे हैं, जब वो verifiable भी नहीं है, उस time पर, ये जो दो होते हैं, इन में से एक है, जो दूसरे दोरा प्रक्षेपित है, उस दिशा में आप
20:33जितनी diversities हैं, उनको समझेंगे, बहुत कुछ है, आप वहाँ करते रहेंगे, और एक के बाद एक करके, वहाँ परत दर परत रास खुलते रहें, वहाँ से वो बिंदो आना, जहां से आप पलट करके विश्यता की और मुड़े हैं, उसमें बहुत समय लगता है, जिक्स अ�
21:03खुयम को जानने से, तो ये ज्यादा आसानी से स्पष्ट हो जाता है, कि वो इससे निकला है, ये दो हैं, पर इन दोनों में सिमेट्री नहीं है, ये उससे नहीं आता, जग्यासा करने वाला इधर है न, मानि जो चेतन है वो इधर है, तो वो इससे आता है, वो इससे आता ह
21:33यह ज्यादा आसान हो जाता है
21:35उसको जान लेना
21:36आप जैसे अश्टावकर गीता में जाते हैं
21:40तो बार-बार
21:41रिश्री अश्टावकर संसार की बात करते हैं
21:44कि
21:45मैं सागर हूँ
21:47जिसमें संसार का जो
21:49पोत है वो
21:51अपना उपर नीचे होता रहता है
21:53कई बरों कहते हैं मैं सागर हूँ
21:55और प्रक्रति की सारी चुब विधताई हैं
21:57वो मेरे बुलबुले हैं
21:59जो इधर गया है वो उधर की बात कितने आसानी से कर लेता है
22:02पर आप किसी वैज्ञानिक को नहीं पाएंगे
22:04जो उधर गया है और सेल्फ की बात करने लग गया
22:06क्योंकि उधर से इधर का रास्ता आसानी से नहीं आता
22:11हलनकि आएगा
22:13वहाँ पर भी आपको अगर आखरी बात तक पहुँचना है
22:17तो आपको अब्जर्वर की और मूरना पड़ता है
22:19उसमें देर लगती है
22:20यहाँ पर वह बहुत असानी से हो जाता है
22:23इसलिए आत्मग्यान जब हम कहते हैं
22:27तो आत्मग्यान में संसार अपने आप शामिल हो जाता है
22:30हम कहते हैं न दुनिया को जाने बेना खुद को नहीं जाना जा सकता है
22:34जो खुद को जानने लग गया है
22:36यह था पिंडे तथा ब्रहमांडे यह सब बुलते हैं न तो यह इसमें एक चीज बेमेल है एसेमेट्रिकल है जो भीतर की और जाता है उसकी बाहर की और टुकड़े टुकड़े करके जानने की जिग्यासा नहीं रहती है वो बाहर को एक मुनोलित के रूप में जानना शुर�
23:06तो आप अश्टावकर से आकर के कहेंगे कि लॉज बता दो उस तरीके से जैसे फिजिक्स उनका वर्ण करती है तो नहीं बता पाएंगे लेकिन जो कुछ फिजिकल है उसके नेचर को वो हुब हुब बता देंगे
23:20इससे आखरी जो निशकर्ष निकले का वो ही है कि अगर एक यह आतरा और एक यह आतरा है आएंगी दोनों अध्यात्म में ही विज्ञान की आत्म ग्यान की लेकिन इन में से अगर एक है जो थोड़ी सी शेष्ट है दूसरे से तो वो यह वाली है इसलिए बिलकुल हो सकता ह
23:50पाएगा यह गौर से पकड़ी है लेकिन यह कभी भी नहीं हो पाएगा कि कोई आत्म ग्यानी ऐसी बात बोल दे जो अवैज्यानिक हो
24:04वैज्यानिक ऐसी बात बोल सकता है जो अबुध की हो लेकिन बुद्ध ऐसी बात नहीं बोलेंगे जो अवैज्यानिक हो
24:14साम आइंस्टीन ने पता नहीं कितनी बात है ऐसी बोली है
24:19जिन में बोध तो छोड़ी है विज्ञान भी नहीं है
24:23जब यूनिवर्स का प्रोबिबिलिस्टिक मॉडल सामने आने लगा
24:28तो आइंस्टीन की बड़ी प्रसित दुखती है
24:30God does not play dice with the universe
24:32पहली बात तो हाँ यूनिवर्स प्रोबिलिस्टिक ही है तो dice वाली बात गलत हो गई
24:38दूसरे इतना कुछ करने के बाद भी उनके भीतर एक यहूदी होने के नाते
24:44एक Creator God की अधारणा अच्छे से बैठी हुई थी
24:49रूसी वे ज्यानिक थे
24:54वो Big Bang नहीं मानना चाहते थे
24:59क्योंकि उनका ये था कि अगर Big Bang मान लिया
25:03तो Big Bang का मतलब होगा कि एक बिंदू आ गया जहां से सब शुरू हुआ है
25:07तो फिर माने God को भी मानना पड़ेगा
25:09अगर कहीं से सब शुरू हुआ है तो उससे पहले God रहा होगा
25:13उनका तर्क तो उन्हें कहा हम Big Bang ही नहीं मानेंगे
25:17उन्हेंने कहा कि यह जो यूनिवर्स है
25:22यह एक उसिलेटिंग यूनिवर्स है
25:26जिसमें एक Big Expansion होता है फिर एक Big Crunch होता है
25:30लेकिन जो Crunch होता है वो यह सिमेट्रिकल होता है
25:33तो वो कبھی भी जा करके एक Dense Point में कल्मिनेट नहीं होता
25:37वो ऐसे आता है ऐसे ऐसे और पिर वो यूनिवर्स हैसे पल्सेट करता रहता है
25:44और ऐसे वो इटर्नली पल्सेट कर रहा है तो फ्यारी किसी ने बनाया नहीं
25:48इटर्नल है और ऐसे ऐसे कर रहा है
25:50अब ये रूसी वैग्यानिक क्यों कर रहे हैं ये इसलिए कर रहे हैं
25:54ताकि जो मार्क्सिज्म लेलिनिज्म है उसको कायम रखा जा सके
26:00वैग्यानिक अपने पुर्वाग्रहों से मुक्त हो गया हूँ ये बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है
26:05इसी तरीके से मनुष्य अलग-अलग होते हैं जैसे जैसे जैसे जेनेटिक्स ये बात सामने लाने लगी
26:13रूसीयों ने फिर इसको मानने से इनकार कर दिया
26:16क्योंकि पूरा मार्क्सवाद इस बात पर आधारित है कि हम सब बिल्कुल एक समान है
26:20साम्मे वाद का मतलब ही है यह ना साम्मे सब में समता है
26:25अब जेनेटिक्स तो ये सामने आने लग गई कि समता नहीं है
26:29लोगों में अलग-अलग तरीके एक समता हैं गोण योग्यता हैं होती है
26:33तो उन्होंने बहुत समय तक
26:35जेनेटिक्स के फील्ड को ये अवरुद करने की भी कोशिश करी
26:38तो वैग्यानिक के भीतर बोधना हो
26:43ये बिलकुल संभव है
26:44वैग्यानिक के भीतर कई तरह कि माया बैठी हो
26:47पुर्वाग्रह बैठे हो ये संभव है
26:49लेकिन ग्यानी के भीतर अवैग्यानिक दृष्टि हो
26:53ये संभव नहीं है
26:54वैग्यानिक तो वो सब भी होते हैं
26:59रॉकट छोड़ने से पहले
27:00नारियल फोड़ना ये सब वैग्यानिक हो कही तो काम है

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