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  • 2 days ago
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Transcript
00:00हम रिशिकेश से आगे जाया करते थे शिविर के लिए
00:03तो उसमें रास्ते में एक पढ़ता है जिल मिल ढ़ाबा
00:05दस साल पहले की बात होगी
00:07तो एक बार मैंने हुआ लडाई देखी
00:08रात के दो बजे की बात होगी
00:10महा बस आकर रुकी
00:11तो उसमें से निकल करके
00:13लोग पशाब करने लग गए
00:14तो बढ़ाई की आवाज आई
00:15कुछ धुम धढ़ाता हो रहा हो
00:17मेरी रुची न जगे
00:18ऐसा कैसे हो सकता है
00:19मैं गया मैंने का देखूं क्या है
00:21वो ढ़ावे का मालिक कह रहा है
00:22यार तुम सब यहां
00:24खुले में पशाब कर रहे हो
00:26मेरे लोग नहीं रुकेंगे बद्गू के मारे
00:27मैंने का इसकी बात तो सही है
00:29पर वो इतनी सी बात पर नहीं कुपित था
00:31वो बोला कि मुझे पता है कि
00:33तुम लोग उतरो के पशाब करोगे
00:34तो मैंने यहां पर लाइन से छे तुम्हारे लिए बनवा दिये हैं मूत्रा ले
00:38यहां कर लिया करो तो मैंने देखा हो छे के छे खाली थे
00:41तो अब तो बात रोचाथ हो गई कि छे खाली हैं
00:44तो यह सब जाकर कि खुले में क्यों पिशाफ कर रहे हैं
00:46और वह जो मालिक था वहां तडपा जाए है
00:49जब हथाप आई की नौबात आगई तो उनमें से एक बोलता है
00:51बोलता है देख भाई हमारी तो खले में ही उतरती है
00:54बोलडा यह सब कमरा बंद कर रखा है और यह सब है
00:57ऐसे में हमारी उतरती ही नहीं
00:59जब तक कुछ पढ़ियां खुली साफ जगह ना हो हम मूते ही नहीं यह है कि सामने उपलब्द भी है शोचाले तो भी वहां नहीं जाएंगे
01:07जहां लोग खाना खा रहें उनके बस 20 हाथ बगल में जा करके वो खुले में पिशाप कर रहा है और वहां महिलाएं भी मौजूद हैं वो भी खा पी रही है और हम अंग प्रदर्शन का इलजाम अक्सर स्त्रियों पर लगाते हैं वो तो फिर भी कुछ बाहर बाहर के अंग प
01:37तब तक देश दुनिया हमें न देखें तब तक उपलब धी कैसे होगी सुबा की

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