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00:00:00Mood बहुत खरावे को पूछता है क्यों बतानी पाता है कुछ भी नई सो के उठे और पा रहे हैं कैसी मन उदास हो
00:00:06क्योंकि मनुष्य का मन बहुत अशान्त रहता है बाहर कुछ होता है वो आकरके आपके मन को पूरे तरीके से जोड जाता है
00:00:13प्रक्रतिकनियम निर्भरता का है
00:00:15भाई तुम बाहर वाले के
00:00:18अभी
00:00:18मूड पर मिजाज पर निर्भर हो
00:00:21बिल्ली को बैठा दिया है
00:00:23तो सीख लैप्टॉप के सामने
00:00:25इधर से उपर से कर रही है
00:00:28पंजा मार रही है
00:00:29जो जो कर सकती सब कर रही है
00:00:30कुछ भी कर लो यह मत कर आओ
00:00:31क्योंकि मैं देह हूं
00:00:33मैं चेतना नहीं हूं यह सिखाने की कोशिश
00:00:34नाक सास नहीं ले सकती
00:00:37संसार के बिना
00:00:38आख देख नहीं सकती
00:00:41संसार के बिना
00:00:42कान सुन नहीं सकते
00:00:44संसार के बिना
00:00:45कदम कहां रखो गए
00:00:47यदि जगत नहो
00:00:49जो प्राक्रतिक होगा, वो प्रचलित होगा, वो बहुत असानी से जीतेगा, उसका प्रचलन करने में आपको प्रचार भी नहीं चाहिए होगा
00:00:57जानने वालों ने कहा है कि इस जीत में बड़ी भरी हार है
00:01:02आप सही काम करने के लिए ही बने हो
00:01:05गलत कामों में इसलिए उलज जाते हो, क्योंकि तुम्हारी साधारण व्रित्ति निर्भरता की रहती है
00:01:35और उस व्रित्ति को समर्थन देने के लिए और सहारा देने के लिए हमारे पास लगातार अनभावगत प्रमाण रहते हैं
00:01:50अगर ये मेज नहो तो मैं ऐसे जुक कर नहीं बैठ सकता हूँ
00:02:00मेरी खूनियों को मेज की सतह का सहारा है
00:02:07इसलिए मैं जैसे बैठा हूँ जैसे बैठा हूँ
00:02:11एक बहुत साधारन सा रूज मर्रा का नभाव है
00:02:17लेकिन वो पर निर्भरता के सिधान्त को पुष्ट कर रहा है
00:02:25जहां एक और ये निर्भरता हमें शारिरिक अस्तित तो देती है
00:02:47दूसरी और ये कुछ और भी हमें दे जाती है
00:02:50शरीर का अस्तित तो नहीं हो सकता बिना जगत पर आश्रित होए
00:03:01पुहनियों को मेज का सहारा है
00:03:07शरीर के पूरे वजन को
00:03:15इस सुफे का सहारा है
00:03:17आप जो लिख भी रहे हो
00:03:25उसमें भी कलम कागज पर और कागज कलम पर आश्रित है
00:03:33दोनों के मद्धे जो घर्षण है
00:03:39पर इस पर संघर्ष है और वही संघर्ष उनका संबंध है
00:03:45सारे संबंध ऐसे ही होते हैं
00:03:47आपस में घर्षण के उससे आप पाते हो कि आप लिखाई सामने आ रही है
00:03:57नहीं लिख पाओ गया आप सिर्फ यदि कागज हो और सिर्फ यदि कलम हो
00:04:04आप देखी आपने कलम को भी कैसे पकड़ा है
00:04:09एक तरफ को अंगूठा जोर लगा रहा है दूसरी तरफ को उंगली
00:04:15और दोनों विपरीत दिशाओं में जोर लगा रहे हैं
00:04:17और चूंकि दोनों विपरीत दिशाओं में जोर लगा रहे हैं
00:04:21इसलिए पकड़ बनी हुई है
00:04:23कलम कागज को नीचे धकेल रही है
00:04:31कागज अगर चलाई जाए नीचे तो क्या होगा
00:04:36कुछ लिख नहीं पाओगे
00:04:38लिखाई इस बात पर आश्रित है
00:04:40कि कागज कलम को उपर धकेल रहा है
00:04:44इस धक्का मुक्की में
00:04:48कुछ लिखा लिखी हो जाती है
00:04:51तो जो पूरा भौतिक अस्तित तो है
00:04:57वो लगातार प्रमानित करता रहता है
00:04:59कि दूसरा जरूरी है
00:05:03और दूसरे के बिना कुछ नहीं चल सकता
00:05:07है न?
00:05:10दर्शन का आपने कुछ अध्यान करा हो नहीं करा हो
00:05:22कोई शिक्षा लेओ नहीं लेओ
00:05:24तो जोजमर्रा के अनुभव ही शिक्षक बनकर
00:05:30हमें द्वायत दर्शन में दिक्षित कर जाते हैं
00:05:35आपकी आखें खुली हो और सामने कोई भी विशय हो ही नहीं
00:05:47कुछ नहीं है
00:05:50तो आप विक्षित होने लगेंगे
00:05:54आपको लेगा आपके पास आखें हैं ही नहीं
00:05:58आखों की हस्ती को भी प्रमाण किसी दूसरे से मिलता है
00:06:06दूसरे नहों तो आख नहीं होगी
00:06:09एक बार को आप कल्पना कर लिजे कि आप देख रहे हैं
00:06:14पर सामने कोई विशयवस्तु नहीं है देखने के लिए
00:06:20बस खाली स्थान है आपको लेगा आपके वह आखें नहीं है
00:06:25आखों को भी प्रमाण वो वस्तु दे रही है
00:06:32जिससे रोशनी टकरा कर आख में आ रही है
00:06:34कुछ नहों जिससे टकरा कर रोशनी आपकी आख में ने आए
00:06:39तो आख भी जैसे विलुप्त हो जाएगी
00:06:50तो शरीर तो पूरे तरीके से संसार पर निर्भर है
00:06:57और मन में भी संसारिक सामगरी भरी रहती है
00:07:03तो यह जो लगातार हमें प्रमाण मिलते रहते हैं
00:07:11यह चुपचाप हमारा जीवन दर्शन बन जाते हैं
00:07:16बहुत कम लोग होते हैं जिन्होंने दर्शन पढ़ा होता है
00:07:24चाहे व्यक्तिगत रुची के कारण
00:07:27और चाहे शैक्षनिक विशाय के रूप में
00:07:32बहुत कम लोग होते हैं
00:07:33आप में से कितने लोग फिलोसफी में मास्टर्स हो गए रहे हैं
00:07:37आप में से कितने लोग हैं जिन्होंने व्यक्तिगत रुची के कारण
00:07:49थोड़ा बहुत दर्शन पढ़ा है
00:07:50कुछ हाथ अब खड़े हुए
00:07:53लेकिन दर्शन में पारंगत हम सब हैं
00:08:01हम सब के पास
00:08:02एक जीवन दर्शन होता जरूर है
00:08:05फिलोसफी ओफ लाइफ
00:08:06ऐसा कोई नीजिस के पास नहीं होती
00:08:07सब के पास
00:08:10बस उनको पता नहीं है कि वो चीज़ जो उनके पास है
00:08:15उसको ही जीवन दर्शन बोलते हैं
00:08:21वो जिस चीज़ को
00:08:22यहीं मजाक में विक्त कर देते हैं
00:08:25वो वास्तव में उनकी तत्व मिमान सा है
00:08:28लेकिन तत्व मिमान सा
00:08:33ऐसा उन्होंने सुना नहीं होता पहले कभी
00:08:40तो वो कहेंगे नहीं कि यह तो
00:08:45मेरी तत्व मिमान सा है
00:08:46वो हैंगे नहीं है तो
00:08:47कुछ भी बोल देंगे
00:08:50साधारन तर पर लाइफ का फंडा है मेरी
00:08:53आम तर पर जितने भी वाक्य
00:08:59देख भाई से शुरू होते हैं
00:09:02वो लोगों का व्यक्तिगत जीवन दर्शन ही होते हैं
00:09:06बस उनको पता नहीं होता कि वो
00:09:08अपने दर्शन को अभिव्यक्त कर रहे हैं
00:09:12भले वो दर्शन दो कौड़ी का हो
00:09:13पर है वो दर्शन ही
00:09:15कोई अगर लिख दे दो और दो आठ
00:09:20तो वो बहुत बुरा गणित तक यह है
00:09:24पर जो उसने लिखा
00:09:26वो आता तो गणित का एक शेत्र में है ना
00:09:30दो और दो आठ और किस शेत्र में आएगा
00:09:33कला है साहित्य है क्या है
00:09:35गणित ही है गलत गणित है पर गणित है
00:09:39वैसे ही हम सब गलत दार्शनिक हैं
00:09:42पर दार्शनिक तो है
00:09:43बस हमारा जो पूरा जीवन दर्शन है
00:09:50वो पर निर्भरता का है
00:09:52द्वैत दुनिया का सबसे प्रचलित सिध्धान्त है
00:09:57क्योंकि द्वैत सबसे प्राकृतिक सिध्धान्त है
00:10:00जो प्रकृतिक होगा जितना ज्यादा
00:10:02वो प्रचलित होगा उतना ज्यादा
00:10:05आपको अगर
00:10:11किसी व्यापार आदि में सफलता पानी हो
00:10:16या आपको समाज में कोई स्थान बनाना हो
00:10:21आप कुछ ऐसा पकड़िये
00:10:25जो जंगल के बहुत करीब का हो
00:10:27प्रक्रतिके बहुत निकटका हो
00:10:30वो लोगों को खीच लेगा वहां आपको सभलता मिल जाएगी
00:10:32और अगर आपको अपनी जिन्दगी संघर चुनोतियों से भर लेनी हो
00:10:39तो कुछ ऐसा करिए जो लोगों को प्रक्रति से दूर आत्मा की और ले जाता हो
00:10:46आप आओगे खड़ी चड़ाईए अतिशय मुश्किल है
00:10:51जो प्रक्रतिक होगा वो प्रचलित होगा वो भहुत असानी से जीतेगा
00:10:57उसका प्रचलन करने में आपको प्रचार भी नहीं चाहिए होगा
00:11:00उसका प्रचलन स्वयम ही हो जाएगा आपको प्रचार काहे के लिए करना है
00:11:07प्रक्रति के साथ होना
00:11:08मने धलान पर पानी छोड़ना और शर्थ लगाना कि ये नीचे की और जाएगा
00:11:18प्रकृति के साथ होने का अर्थ है आप धलान पर पानी छोड़ें और फिर किसी से सौसों की लगा लें कि ये तो नीजे ही जाएगा
00:11:29और आप जिससे सौसों की लगा रहे हैं वो कोई हमारे जैसा है जो कह रहे हैं नहीं हम धार कूलट के दिखाएंगे
00:11:37गिर तो सभी जाते हैं हम किसी को उठा कर दिखाएंगे क्या संभावना कौन जीतेगा आपको जीतना हो आप प्रक्रति के पक्ष में खड़े हो जाएंगे बहुत असानी से जीतेंगे
00:11:51क्योंकि पानी का नीचे जाना पानी पर निर्भर करता ही नहीं है
00:12:04पानी का नीचे जाना पानी से बाहर की किसी ताकत पर निर्भर करता है
00:12:10यही पर निर्भरता है यही द्वैत है यही प्रक्रति है तीनों को एक जानिए
00:12:19एक ताकत है हमसे बाहर की जो हमारे जीवन का और हमारे नियतिका निर्धारन करती है यह द्वैत है
00:12:34और पानी से बाहर वो ताकत निसंदे हमें दिखाई देती है उस ताकत का क्या नाम है उस ताकत का नाम है धलान उस ताकत का नाम है गुरुत्वाकर्शन जहां गुरुत्वाकर्शन है और जहां धलान है वहाँ पानी मजबूर है पानी को हारना पड़ेगा पानी की किस्मत प
00:13:04तो भी ढलानना हो तो भी कुछ नहीं होगा जहां पड़ा है वहीं पड़ा रह जाएगा पर बाहर से ये दोनों आपको सहयोगी उपाए मिल गए हैं तो आप शर्थ लगाई है निश्चत है आप जीतेंगे
00:13:21जो आपके खिलाफ शर्थ लगा रहा है उसको पानी के भीतर चेतना जगानी पड़ेगी और उस चेतना को आश्वस्त करना पड़ेगा मेहनत कर उपर चड़ शिखर से प्रेम जगा बड़ा मुश्किल है
00:13:42और जो पर निर्भरता के पक्ष में शर्थ लगा रहा है उसे कुछ नहीं करना हो कर रहे पानी माने जड़ पडार्त सोया पड़ा है तमसा है सोया रहे इसके सोने में भी जीत है
00:13:56तो सोया पड़ा रहे जीत मिल जाएगी
00:14:01लेकिन जानने वालों ने कहा है कि इस जीत में बड़ी भारी हार है
00:14:13बहुत हार है
00:14:22जब तुम पर निर्भरता के पक्ष में खेलते हो तुमको बड़े सा हारे मिल जाते है
00:14:29तुमारी अपने कोई जिम्मेदारी ने रह जाती
00:14:32पानी की कोई जिम्मेदारी है धलान से नीचे बहने की
00:14:34मस्त बेहोश पड़ा है तो भी क्या हो रहा है
00:14:38बह रहा है
00:14:40मिट्टी का धेरा छोड़ दीजे नीचे गिर रहा है
00:14:43अरे आप बेहोश आदमी छोड़ दो ठलान पे
00:14:45बेहोश है तो क्या होगा
00:14:48लुड़कता जाएगा
00:14:50उसे क्या करना है कोई थिम्मेदारी है
00:14:52कुछ नहीं
00:14:54लेकिन जानने आलों ने काया
00:14:57यह जीत नहीं हुई यह हार हो गई
00:14:58यह हार हो गई
00:15:04तुम्हारे भीतर कुछ ऐसा है जो
00:15:10पूरी आजादी के लिए फड़ फड़ाता है
00:15:14तुम दूसरों को अपना सहारा समझ रहे हो
00:15:20वो दूसरों से ही घबराता है
00:15:25आप कहते हो लेकिन आप मेरी सुविधाई नहीं
00:15:34जीवन के नियम के खिलाफ बात कर रहे हो
00:15:37जीवन का नियम है कि
00:15:41बना कर चलना पड़ता है
00:15:44दूसरों का आश्रह तो लेना ही पड़ता है
00:15:47वो प्रकृति के नियम गिनाएगा
00:15:48ठीक वैसे जैसे किसी को बोलो
00:15:51कि भाई शुद्धशा कहारी हो जाओ
00:15:52तो आपको फूट चेन का नियम बताने लग जाए
00:15:55वो कहें देखो जीवन का नियम ये है
00:15:57कि मक्षी को मेढ़क ने खाया
00:16:02मेढ़क को साप ने खाया
00:16:04हम साप को खाएंगे
00:16:07ये नियम है
00:16:11उसने बिल्कुल ठीक बोला है
00:16:13रक्रती में तो ऐसे ही चलता है
00:16:17पर तुम्हारे भीतर कुछ ऐसा है
00:16:19जो बहुत बुरा मानता है जब ऐसा चलता है
00:16:29और अगर तुम्हें यही सब करना था
00:16:32तो तुम वैसे ही रह जाते ना
00:16:35जैसे मक्षी, मेढ़क और साप रहते हैं
00:16:41न समाज, न सभ्यता, न संस्कृति, न विद्या, न ग्यान ऐसे रहते हैं
00:16:48यह सब तो चेतना के लक्षन होते हैं न
00:16:52सभ्यता, संस्कृति, विद्या, ग्यान, चेतना
00:16:56तुम चेतना हो
00:16:57इसलिए तुम वैसे नहीं रहते हो जैसे मच्छर मक्षी रहते हैं
00:17:01तुम जंगल से बाहर निकल के आए
00:17:02क्योंकि जंगल में तुम्हारी चेतना को चैन नहीं मिल रहा था
00:17:08साप कभी नहीं चाहता हो जंगल से बाहर निकल के आए
00:17:11कितने ही प्राणियों की प्रजातियां सिर्फ इसलिए विलूप्त हो गई
00:17:18क्यों क्यों उन्हें जंगल से बाहर निकाल दिया गया
00:17:20उन्हें जंगल से बाहर निकाल दो वो खत्म हो जाते हैं
00:17:24उन्हें आप
00:17:26उमारने की जरूरत नहीं है आप बस उनका जंगल काट दीजे
00:17:30वो अपने आप समाप्त हो जाते हैं
00:17:31मनुष्य अकेला है जो जंगल से बाहर निकल के आया
00:17:34और फलता फूलता गया और फैलता गया
00:17:38बाकी आप बता दीजे कौन है जंगल से निकला खुटता है अकेला
00:17:43पर वो इसलिए फैल पाया क्योंकि इनसान उसको अपने पीछे-पीछे बांदे हुए था
00:17:49बिल्ली
00:17:52ये सब वो है जो मनुष्य पर ही आश्रित है गाए भैंस
00:17:58जो आप इतने आश्रित हो जाते हो तो फिर मनुष्य ने उनका तो कृत्रिम गरभधान भी करना शुरू कर दिया
00:18:05उनकी आबादिया बढ़ा दी
00:18:06तो वो एक अलग कहानी है और कृत्रिम कहानी है कि जवर्दस्ती आप इसी जानवर को पैदा कर दे है वरना कोई जानवर प्रक्रते से बाहर आना नहीं चाहता वो अपना उसी विवस्था में ही चल सकता है और प्रसंद रह सकता है
00:18:22मनुष्य बहार आया क्योंकि मनुष्य इस पर निर्भरता के सिधान्त से सेहमत नहीं हो सकता
00:18:32मनुष्य बहार आया क्योंकि मनुष्य के भीतर कोई है जो अस्तित्तुगत सवाल पूछता है जो पूछता है
00:18:41कौन
00:18:43जब वो सवाल पूछा जाता है
00:18:48तो उत्तर यह आता है कि
00:18:49यदि मैं देह हूँ
00:18:51तब तो मुझे दूसरों पर आशरित रहना पड़ेगा
00:18:53देह
00:18:56को ऑक्सीजन भी कहां से मिलती है
00:19:00बाहर से ही मिलती है भाई
00:19:03अन जल
00:19:05सब कहां से मिलता है बाहर से
00:19:07जन्म भी कहां से मिलता है बाहर से मिलता है
00:19:11देह कोई अपनी जननी स्वायम थोड़ी है
00:19:13बाहर के दो मनुश्यों से जन्म मिल जाता है
00:19:16तो जहां तक देह की बात है
00:19:20अगर मैं सिर्फ देह हूँ तो फिर बात बिलकुल ठीक है कि
00:19:23पर निर्भर होकर जीओ
00:19:24अगर मैं देह हूँ तो पर निर्भर होके जीने में कोई दिक्कत नहीं
00:19:29फिर तो जैसे मक्खी और मच्छर और मेंधक और साप और तिंदुआ वैसे हम
00:19:34वो देह हैं
00:19:37आप उनको चेतना की तरह संबोधित करो
00:19:41तो उन्हें कुछ समझवें नहीं आएगा
00:19:44वो देह हैं बस देह के चलाए चलते हैं और वैसा
00:19:49कि उनका पूरा तंत्र है उन्हें उस तंत्र से आप डिगा भी नहीं सकते
00:19:53उन्हें उस तंत्र से डिगाओगे तो बहुत परिशान हो जाएंगे
00:19:56आप मेढ़क को स्कूल भेज़ दो उसकी मौत आगे इबिलकुल
00:20:01टर रा टर रा के मर जाएगा कहेगा क्या कर क्या रहे हो मेरे साथ तुम ये
00:20:07इससे बड़ा अत्याचार हो सकता है बिल्ली को बैठा दिया है
00:20:12तो सीख लैपटॉप के सामने और इधर से उपर से कर रही है पंजा मार रही है जो जो कर सकती ही सब करीगाई
00:20:20कुछ भी कर लो ये मत कराओ क्योंकि मैं देह हूँ मैं चेतना नहीं हूँ मुझे सिखाने की कोशिश मत करो
00:20:26इसलिए जब जानोरों को सिखाया जाता है तो उसको भी अत्याचारी माना जाता है जानते हो
00:20:30जैसे सरकस होते हैं सरकस में जानों को प्रिशिक्षन देते हैं या पुलिस वाले अपने कुत्तों को प्रिशिक्षन देते हैं या जैसे ओलिम्पिक्स में एक प्रतिसपर्धा होती है एक विस्टेरियन बोल के जिसमें घोडे घोड़सवारी आप जानते ही हो उसको भी अत्
00:21:00दोड जाते घोडे की तरह
00:21:01क्यों काई घोडे पे चड़ गए और कह रहे हो
00:21:04पदक मुझको मिल गया और घोडा कह रहा
00:21:06इस सब में मेरा क्या
00:21:07आरी बात समझा
00:21:11उसे नहीं चाहिए
00:21:14आपको चाहिए
00:21:16आपको आपके सवालों के जवाब नहीं मिलें
00:21:20आप परिशान हो जाते हो जानवरों के पास सवाल नहीं होते,
00:21:23उनके पास अधिक से अधिक बहुत शारीरिक स्थर्की उतसुकता होती है,
00:21:30वो उन्मभी होती है, कुछ हो रहोगा ज्ञागेंगे क्या चल रहा है,
00:21:33और उस जाकने में इतना ही होगा कि कहीं पर कुछ खाने पीने का चल रहा है कि
00:21:36इतसे आदा कुछ नहीं
00:21:38अगर मैं देहें हूँ तो पर निर्भरता ठीक है
00:21:46जैसे पशु पर निर्भर होता है
00:21:48उसके लिए सब ठीक है उसे कोई समस्या नहीं होती
00:21:50मैं देह भर नहीं हूँ
00:21:54अगर मैं देह भर नहीं हूँ
00:21:55तो पर निरभरता फिर मेरे लिए ठीक नहीं है
00:21:57तिर्फ इतना नहीं कि ठीक नहीं है
00:22:00वो नर्ख है मेरा
00:22:01तो अब हम बात कर रहे है
00:22:06psychological अस्तित्व
00:22:09बनाम physical अस्तित्व
00:22:13जहां तक इस शारिरिक
00:22:17जैविक अस्तित्तों की बात है
00:22:19पर निर्भरता तो रहेगी
00:22:20पर वही चीज
00:22:23जब मानसिक
00:22:25पर निर्भरता बन जाती है
00:22:28तो बहुत खतरनाक हो जाती है
00:22:30लेकिन
00:22:31खारिरिक के मानसिक बनने के
00:22:34बड़े कारण होते है
00:22:35क्योंकि मन भी बन किस से रहा है
00:22:39तमाम तरह के भौतिक
00:22:41अनुभवों से
00:22:42तो जो नियम
00:22:45जो सिध्धान्त वो
00:22:46भौतिक जगत में
00:22:49लागू होते देखता है
00:22:51उसको वो अनुमान के तौर
00:22:53पर मान लेता है कि वो भीतरी जगत
00:22:55पर भी लगेगा
00:22:56तो यह अनुमान लगा लेता है
00:22:59कि जैसे शरीर संसार पे निर्भर है
00:23:01वैसे ही मन को भी
00:23:03संसार पे निर्भर रहना पड़ेगा
00:23:05मन भी फिर संसार की चीजों से भर जाता है
00:23:12इसके पीछे तर्क जो समझ रहे हो न
00:23:16क्या शरीर चल सकता है
00:23:18अगर आपको कपड़ों की दुकान से कपड़े न मिले होते
00:23:20क्या नहीं चल सकता ठंड में मर जाएंगे
00:23:22क्या आखे देख पाती है अगर चश्मे की दुकान से चश्मे ना मिले होते
00:23:25क्या कुछ नहीं दिखाई देता
00:23:26क्या लिख पाते है अगर कलम की दुकान से कलम ना मिली होती
00:23:29कुछ नहीं लिख पाते
00:23:30बोल पाते हैं ये माई क्या घर में उगाया है
00:23:34क्या आपकी शरीर से निकला है
00:23:37संसार से लेकर क्या आयो न
00:23:39ये शरीर की दुनिया में चलता है
00:23:43तो मन यहीं से उदाहरण उठा लेता है
00:23:48शरीर के तर्क को मन अपना तर्क बना लेता है
00:23:52और जो हम मन कह रहे हैं तो और से क्या आश्रित है अहम
00:23:55अहम कहता है
00:23:57मैं देह हूँ जैसे देह सब पर आश्रित है
00:24:01तो मैं भी सब पर आश्रित हूँ
00:24:03अहम जब संसार पर आश्रित होने लग जाता है
00:24:06तो मन संसार से भरने लग जाता है
00:24:10अगर आपका
00:24:12मन बहुत भरा भरा रहता है
00:24:15दुनिया भर की सौ चीज़ें
00:24:16आपके ख्यालों में घुमती है
00:24:18तो इसका मतलब यह है कि
00:24:19आपने देह को अपना आधर्श बना लिया है
00:24:21आप कहरे हो जो चीज़ें देह पर लागू होती है
00:24:25वही मुझपर लागू होती है
00:24:26आपने अपने और देह के बीच में
00:24:29आइडेंटिटी बना दिये
00:24:30आप करें हो मैं देह हूँ
00:24:31तो जो नियम देह पर लगेगा वो नियम फिर
00:24:34मुझपर भी लगेगा
00:24:36देह पर क्या नियम लग रहा है
00:24:37पर निर्भरता का
00:24:39तो मैं भी फिर क्या हूँ
00:24:41पर निर्भर हूँ
00:24:42और आपने जैसे ही का आप पर निर्भर हो
00:24:44वैसे ही आपका जो पूरा ये
00:24:47क्षेत्र है
00:24:48ये ये अहम का अड़ा है
00:24:51संक्यतिक तोर पर
00:24:53ये अहम का अड़ा है
00:24:55इसके केंद्र में एकदम एक बिंदू है
00:24:57उसका क्या नाम है तो इसको फिर किस से भर लेगा वो संसार से भर लेता है
00:25:03समस्या बस यह होती है कि संसार से भरने के बाद भी उसको वो नहीं मिलता है
00:25:09जो उसका सुभाव है और उसमें बड़ा वो बुखलाया रहता है कहता है
00:25:15देह को तो चैन मिल गया
00:25:17उधारण के लिए गला
00:25:19ये प्यासा था
00:25:22तो बाहर से मंगाया गया पानी
00:25:25और प्यासे गले को
00:25:27एक घूट पानी दिया
00:25:31गला क्या बोला?
00:25:33मौज
00:25:33बाहर की चीज आई
00:25:36तो गले की तो मौज हो गई
00:25:39पर बाहर की चीज आई
00:25:41इसकी मौज क्यों नहीं हुई
00:25:43क्योंकि हम क्या है
00:25:48हम तो देह है
00:25:49हम क्या बोल रहा है
00:25:52हम तो देह है
00:25:53तो जो चीज देह पर चलती है वही
00:25:56हम पर भी चलनी चाहिए
00:25:58तो बाहर की चीज आई
00:25:59उसने देह कि तो
00:26:00शीतल सुगंध है ते चल
00:26:06गलातर हो गए
00:26:09आप वो कुछ नहीं बोलेगा
00:26:10कम सकम घंटे भारो चुप रहेगा
00:26:11लेकिन इसको तुम कितना भी पानी पिला दो
00:26:17कुछ पिला दो
00:26:18ये तो टर्राता ही रहता है
00:26:20ये हुआ कि कुछ दे दिया तो एकदम
00:26:23मौन हो गया हो
00:26:24हुआ ऐसा
00:26:26ऐसा तो होता नहीं
00:26:27नींद में भी नहीं होता
00:26:29जितने सपने मनुष्य लेते हैं उतने जानवर नहीं लेते हैं
00:26:32आप जानते हो जानवर भी सपने लेते हैं
00:26:34पर कोई तुलने ही नहीं है
00:26:36मनुष्य जितने सपने लेता है
00:26:38अगर आप नींद की अवध ही लें
00:26:40सपनों की अवध ही लें
00:26:41तो मनुष्य और जानवर के सपनों में कोई तुलना ही नहीं है
00:26:44क्योंकि मनुष्य का मन बहुत अशान्त रहता है
00:26:49जानवर को उतनी समस्या है नहीं
00:26:52और मैं खोजूंगा पढ़ूंगा कोई ऐसा शोध हुआ हो
00:26:56जहां ये पता चल सके कि जो जानवर
00:26:59अपनी प्राक्रते के स्थिते में वनों में रहते हैं
00:27:03वो कितने सपने लेते हैं
00:27:05और उनकी तुलना में जो जानवर कैद में रहते हैं
00:27:08वो कितने सपने लेते हैं
00:27:10तो इसमें मेरा हैपोथेसिस ये है
00:27:13कि जो कैद वाला जानवर है उस ज्यादा सपने लेता होगा
00:27:17अब ऐसा कोई शोध हुआ है के नहीं हुआ है मैं नहीं जानता हूना चाहिए
00:27:22बड़ा अरोचक निश्कर शायेगा अनुमान से कह रहा हूं कुछ और भी आ सकता है
00:27:27जंगल का जानवर तो शायद सपने एकदम ही कम लेता है शून ने बराबर
00:27:33पर जो घरों वाले जानवर है या कतल खाने वाले जानवर है या जो आइनिमल फार्म्स के जानवर है ये बहुत सपने लेते है बाद समझ में आ रही है
00:27:47हमें चैन नहीं है
00:27:52क्योंकि हमने देह को यह अपना आदर्श बना लिया है
00:27:56तो हम परनिर्भर हो जाते हैं
00:27:58तो यह बड़ी भारी समस्या खड़ी हो गई मानोता के सामने
00:28:02किसकी समस्या चैन की
00:28:03तो क्या करें
00:28:05तो कुछ लोगों ने
00:28:08कुछ जिम्मेदार लोगों ने कहा कि
00:28:09हम इस समस्या
00:28:10को ज़रा देखना समझना चाहते है
00:28:13उन में से एक है
00:28:15हमारे
00:28:17महराज लाउद्जू
00:28:19तो इन्होंने अपने तरीके से
00:28:23उस समस्या को संबोधित किया है
00:28:25और उस समस्या
00:28:27के बारे में हमें कुछ बातें बताई है
00:28:30जहां से समधान आता है
00:28:33ठीक है?
00:28:34एक बहुत रोचक बात हो आज कह रहे हैं
00:28:36कह रहे हैं
00:28:37ताओ
00:28:37खाली पन से भरा हुआ है
00:28:41पर कभी समाप्त नहीं हो सकता
00:28:43ताओ स्वयम खाली है
00:28:44पर समाप्त नहीं हो सकता
00:28:46अनन्थ है
00:28:47खाली है पर अनन्थ है
00:28:49इन एक्जॉस्टिबल
00:28:50अनन्थ
00:28:51ताओ खाली है पर अनन्थ है
00:28:56यह आज का सूत्र लोग सूक
00:28:57ये सूत्र देना के उपड़ा पहले ये समझे लो अच्छे से
00:29:06किसी भी विचारक के सामने समस्या बस एक होती है क्या
00:29:09आदमी बेचैन है
00:29:11इसके अलावा कोई समस्या नहीं है
00:29:13पूरा जो अस्तित्व शास्त्र है
00:29:18जिसको हम दर्शन शास्त्र बोल देते हैं
00:29:23और बहुत अगर हम शुद्ध तरीके से बोलना चाहें तो बोल देते हैं फिर
00:29:26अध्यात्म वो है बस क्या
00:29:29अस्तित्व शास्त्र हमारे होने को जानना
00:29:35हमारे होने को जानना
00:29:38अध्यात्म उसे बोलते हो तो गड़बड और हो जाती है
00:29:40क्योंकि अध्यात्म बोलते ही ऐसा लगता है
00:29:42कि वो जो परंपरागत धर्म है
00:29:44उसके किसी हिस्से की बात हो रही है
00:29:46इसका उससे कोई तालुक नहीं है
00:29:50एक समस्या पूरी मानवता के सामने
00:29:54खड़ी रहती है कि जिसको देखो वही कैसा है
00:29:56कोई धर उचल रहा है
00:29:58कोई उधर गिर रहा है
00:29:59कोई धर गर्मा रहा है
00:30:01कोई उधर ठंडा रहा है
00:30:02ले दे करके सहज कोई भी नहीं है
00:30:05और बड़ी भारी समस्या
00:30:08यह समस्याओं के मूल की समस्या है
00:30:10क्योंकि आदमी अगर अपने एकांत में
00:30:13त्रिप्त और संतुष्ट रहे
00:30:14तो समाज में और विश्व में उतना उपद्रव करेगा ही नहीं जो देखने को मिलता है
00:30:19हम निकल पड़ते हैं वैश्विक समस्याओं को सुलजाने
00:30:25बिना मूल व्यक्तिगत समस्या को सुलजाए
00:30:29कभी सफलता नहीं मिलेगी
00:30:32क्योंकि विश्व में जो उपद्रव है वो व्यक्ति के भीतर का उपद्रव है सबसे पहले
00:30:36जब तक व्यक्ति के भीतर की समस्या नहीं सुल जाओगे
00:30:40विश्व की समस्या कोई नहीं हलोने वाली
00:30:42आपको क्या लगता है
00:30:45कि ये जितने बड़े-बड़े भयंकर उपवद्रवी लोग हुए हैं इतिहास में
00:30:51ये सचमुच दुनिया पर कहड़ा रहे थे या दुनिया से इन्हें कोई समस्या थी
00:30:59ये समाज से लड़ रहे थे दूसरे देशों से लड़ रहे थे दूसरी जातियों से लड़ रहे थे
00:31:05ये बाहर को जीत लेना चाहते थे ना ना ना ये स्वैम से लड़ रहे थे
00:31:13ये स्वैम को नहीं जीत पा रहे थे इन्हें स्वैम से समस्या थी
00:31:18और चुकि ये भीतर के युद्ध में बिल्कुल हारे हुए लोग थे इसलिए दुनिया जीतने निकल पड़े
00:31:25अब दुनिया जीतने के उस अभियान में लाखो लाशे गिरती हो तो गिरे
00:31:34करोडों लोगों की जिंदगी बरबाद होती हो तो हो
00:31:37यग क्योंकि हमारी आँखें भी बासा ऐसा जी बाहर कोई देखती हैं दुनिया को
00:31:43तो एक आदमी जब करोडों लोगों को जीतने निकल पड़ा होता है या करोडों लोगों पर राज कर रहा होता है
00:31:47तो हमें लगता है कि उसका उदेश्य ही यही है
00:31:50कि वो संसार को
00:31:52जीते और करणों पर राज करे
00:31:53आप बिल्कुल गलत समझ रहे हो
00:31:55हर आदमी दुनिया के साथ नहीं सरप्रथम अपने साथ जीता है
00:31:58देह
00:32:00संसार के साथ जीती है
00:32:01चेतना अपने साथ
00:32:04जीती है
00:32:04आप चेतना
00:32:08देह संसार के साथ जीती है
00:32:15चेतना अपने साथ जीती है
00:32:16दोनों के सुभाव में बड़ा अंतर है
00:32:21देह के सुभाव को प्रक्रत कहते हैं
00:32:24चेतना के सुभाव को आत्मा कहते है
00:32:26देह संसार के साथ जीती है
00:32:33तो संसार की ओर से एक पत्थर आये तो देह को अनिवारेत दर्द जहलना होगा
00:32:40देह का अधिकार नहीं है ये कहने का कि उसे पत्थर लगा और दर्द नहो
00:32:45अधिकार नहीं है देह के पास
00:32:47देह अगर ये कहे कि पत्थर लगे और दर्द ना हो तो देह अनधिकार चेष्टा कर रही है
00:32:54देह का नियम प्रक्रति से है और प्रक्रति का नियम निर्भरता का है
00:33:01भाई तुम बाहर वाले के अभी
00:33:04मूड पर मिजाज पर निर्भर हो
00:33:07और अचालक उसका मन आ गया कि हो तुम्हें पत्थर मार दे
00:33:10तो तुम्हें दर्द जहिलना पड़ेगा
00:33:13ये देह का नियम है, चेतना का ये नियम नहीं है
00:33:15किसी को दर्द हो रहा हो तो हो
00:33:17तुम्हें दुख होगा या नहीं होगा ये तुम तै करोगे
00:33:20बाहर वाला तुम्हारी देह को पत्थर मार के तुम्हें दर्द दे सकता है
00:33:26पर बाहर वाला तुम्हें दुख नहीं दे सकता
00:33:28लेकिन जब हम स्वयम को देह ही समझ लेते हैं
00:33:36तो देह का दर्द चेतना का दुख बन जाता है, कोई बीच में विभाजन शेश नहीं रह जाता, कोई बीच में द्वार नहीं रह जाता, जो चीज देह तक आती है, वो सीधने चेतना तक पहुँच जाती है,
00:33:54और यह बहुत बड़ी फिर गुलामी हो गई, देह तो गुलाम थी ही, और देह की गुलामी के साथ तो पैदा हुए ही थे,
00:34:13स्वयम को देह के साथ जोड़ करके, स्वयम को भी गुलाम बना लिया, यह क्या करा?
00:34:24आधा अभाग लेके पैदा हुए थे, पूरा अभाग चुन लिया,
00:34:31यह मूल समस्या है, लाउटसू नो जो समधान दिया है, वो तो आप तत्रक्षन समझ जाओगे, वो क्या बूलना चाह रहे हैं?
00:34:46लेकिन कोई समधान किस काम का, आगर समस्या ही नहीं पता तो, हम सारी बात इसलिए समस्या की कर रहे हैं, समस्या क्या है?
00:34:55अहम का जगत पर आश्रित हो जाना, और अहम जगत पर क्या कहकर आश्रित होता है, तरक्या बताता है, प्रमाण क्या देता है, कहता है, देखो साहब मैं क्याओन हूँ?
00:35:13मैं देखुँँआ हूँ, नाक सास नहीं ले सकती संसार के बिना, आख देख नहीं सकती संसार के बिना, कान सुन नहीं सकते संसार के बिना, गदम कहां रखोगे, यदि जगत न हो,
00:35:34मैं दे हूँ और दे हैं पूरे तरीके से क्या है जगत पर आश्रित
00:35:41तो मैं भी क्या हूँ जगत पर आश्रित
00:35:44और मैं जगत पर आश्रित हूँ तो जगत आ करके मुझे पूरे तरीके से भर देगा
00:35:52और जब जगत आपको भर देता है तो आप रो पढ़ते हो
00:35:56रो पढ़ते हो बिना यह जाने कि आप क्यों रो रहे हो
00:36:01किसके साथ यह होता है
00:36:05मूड बहुत खराब है कोई पूछता है क्यों बता नहीं पाते हो
00:36:09और इस तरह से ऐसे ही पता नहीं
00:36:15नहीं थुड़ी देर की बात है होता रहता है
00:36:18अब इट अंडर द वेदर
00:36:21इस तरह के जुमले
00:36:24कोई पूछे क्या हो गया
00:36:25कुछ नहीं बता है थोड़ा लगता सर दी दुखाम है
00:36:28अभी टेंडर दो वेदर
00:36:29कुछ भी नहीं
00:36:33सो के उठे और पा रहे हैं कि ऐसी
00:36:34मन उदास है
00:36:35होता है
00:36:39ऐसा नहीं होता कि वो यूँ ही उदास है
00:36:43उसके पीछे कारण होता है सदा
00:36:44और कारण होता है बैट फिलोसफी
00:36:47सब दार्शनिक है और सबका
00:36:51जीवन दर्शन
00:36:51एकदम गलत है
00:36:54प्रक्रते के पीछे पीछे चल रहे है
00:36:56एकदम
00:36:59द्वैत को पकड़ रखा है
00:37:02द्वैत का मतलब होता है
00:37:03बाहर कोई है
00:37:04जो महान है शेष्ट है
00:37:07और मैं उस पर
00:37:08निर्भर हूँ
00:37:09तो फिर बाहर कुछ होता है
00:37:14वो आकर के आपके मन को पूरे तरीके से
00:37:16जोड़ जाता है
00:37:17क्योंकि ये फैसला आप ही ने कर रखा है
00:37:18ना कि बाहर कोई है
00:37:20जिसका आप पर बड़ा अधिकार है
00:37:22बाहर कोई है
00:37:23मैं उस पर निर्भर हूँ
00:37:24उसका मुझे बड़ा अधिकार है
00:37:26तो फिर बाहर वाला अपने अधिकार का
00:37:29इस्तिमाल भी कर जाता है
00:37:30आप ही ने दिया है उसे अधिकार
00:37:31आप से बिना पूछे है
00:37:33वो अपने अधिकार का इस्तिमाल कर लेगा
00:37:35वो कहेगा चलो उदास हो जाप उदास हो ऐसे कई बार होता है बिना बात के खुश भी हो जाते हो
00:37:39बिना बात के ये कम होता है
00:37:43जब भी कुछ बिना बात के होगा तो दस में से नौद अफे तो यही होगा कि मूझ लटका है घूम रहे हैं कोई पूछे का क्यों मूझ लटका रखा है तो थपड मार दिया
00:37:50बोला इसलिए
00:37:51लादसू कह रहे हैं
00:38:03जब भी किसी पर आश्रित रहोगे तो जिस पर आश्रित हो चुकि वो स्वयम समाप्त होगा ही होगा तुम भी समाप्त हो जाओगे
00:38:16पर जो आश्रेयों से खाली हो गया वो अमर हो गया कभी समाप्त नहीं हो सकता तो अनन्त हो गया
00:38:33गाउद्जू कहा रहे हैं
00:38:36जो खाली है वो कभी समाप्त नहीं हो सकता
00:38:38समाप्त वही सब कुछ होता है
00:38:42जिससे तुमने अपने आपको भर रखा है
00:38:45इस आशा में कि उसको भर करके
00:38:47अब तुम समाप्त नहीं होगे
00:38:49काम चल उल्टा रहा है
00:38:52तुम समाप्त अब जरूर होगे
00:38:54और इसी लिए होगे क्योंकि तुमने
00:38:56अपने आपको उससे भर लिया
00:38:58अन्यता समाप्त नहीं होते
00:39:03जो खाली है
00:39:04जिसने अपना
00:39:07बंधन किसी से जोड़ा ही नहीं
00:39:09उसकी समाप्ती भी नहीं हो सकती
00:39:10क्योंकि समाप्ते
00:39:11तो सदा संसार की होती है
00:39:13संसार में कुछ नहीं है जो समाप्त नहीं होता
00:39:16डर लगे कभी
00:39:25चिंता हो, बेचैनी हो
00:39:27मन खिन्न हो
00:39:30यूही बहाने मत बनाईए कि यूही
00:39:34नथिंग, ये सब नहीं
00:39:38देखिए किस पर आश्रित हो
00:39:40बसे इतना पकड़ लीजिए आश्रित किस पर हो
00:39:45जिस पर आश्रित हो
00:39:48वो आपकी देह जैसा ही होगा
00:39:52चाहे वो व्यक्ति हो कोई, चाहे वस्तु हो कोई
00:39:55आपको अपनी देह का तो दिनराथ पता है न कि
00:39:58समाप्त हो रही है
00:39:59तो आप स्वयम से कितना भी जूट बोलें भीतर भीतर आपको ये भी पता है कि आप जिस पर आश्रित हो वो भी समापत हो रहा है
00:40:08काप होगे कैसे नहीं, डरोगे कैसे नहीं
00:40:13आरही ये बात समझे
00:40:29जिसके पास कोई सांसारिक लक्ष है वो पाएगा
00:40:36लक्ष के मिलने की आशा नहीं रही
00:40:40तो भी ये व्यक्ति चुक गया
00:40:43लक्ष मिल गया तो भी ये व्यक्ति चुक गया
00:40:48समापत तो बस वो नहीं होगा जिसका कर्म निशकाम है
00:40:54तो उच्चितम अवस्था उस विक्ति की है जिसका मन खाली है
00:41:13आप कितने पानी में हो ये नापना है तो बस ये देख लो कि आपका मन भरा कितना रहता है
00:41:24आपके जीवन में परनिर्भरता कितनी है
00:41:33और होश्यारी तो बहुत बताईएगा नहीं कि नहीं मेरा मन भरा तो रहता है पर मेरा मन जिन से भरा रहता है मैं उन पर आश्रित नहीं हूँ वो मुझ पर आश्रित है इसलिए मेरा मन उन से भरा रहता है
00:41:47ये खेल इमानदारी का है
00:41:56बेमानी से खेलना है तो खेल शुरू ही नहीं होगा
00:42:01क्योंकि खेल शुरू ही इस इमानदार वक्तवे से होता है
00:42:05कि हाँ मैं दुखी हूँ
00:42:06आपको बेमानी ही करनी है तो शुरू में ये बेमानी कर जाईए
00:42:10क्या दीजे मैं तो दुखी हूँ ही नहीं
00:42:13तो खेल शुरूँ ही नहीं होगा छोड़िये फिर
00:42:14और बेमानी आप इस खेल के
00:42:19किसी भी चरण में कर सकते है
00:42:21क्योंकि सुईकार तो आप ही को करना
00:42:25आपकी हालत के आप अपनी हालत को ले करके
00:42:27ब्रामक बयानवाजी कर लीजिए
00:42:33खेल समाथ
00:42:34बंधन काटने की यात्रा चल रही है
00:42:40कहतीजिए बीच में मैं हो गया मैं मुक्त हो गया
00:42:43मेरा ठीक हो गया यात्रा समाथ
00:42:46सब कुछ आपके ही समर्थन से चलना है
00:42:56और कुछ भी आगे तभी बढ़ना है जब आप उसी कीमत चुका है
00:43:00जिस क्षण पे आप कह दें कि मुझे अब और कीमत नहीं चुकानी
00:43:05खेल समाथ
00:43:07बिजली के तार की तरह है जिस दिन आप कह देंगे
00:43:13कि सहाब बिल और नहीं भरना
00:43:15प्रकाश अंधकार में बदल जाएगा
00:43:20घर रोशन उसी दिन तक है जिस दिन तक आप बिल चुकाने को तयार हो
00:43:25मन भी रोशन उसी दिन तक है जिस दिन तक बिल चुकाने को देंगे
00:43:30जिस दिन कह दो गए आप और नहीं चुकाना बिल
00:43:33मन का भी तार
00:43:35बिलकुल आप कह सकते हो कि लाउद्जू को वहम हो गया है
00:43:47मैं पूरी तरह भरा हुआ हूँ लेकिन फिर भी मैं कभी चुकता नहीं
00:43:53मैं भी हूँ Mr. Inexhaustible
00:43:55आप बिलकुल कह सकते हो
00:43:57और कोई प्रमाण तो दिया नहीं जा सकता
00:44:00ये तो आपकी इमानदारी की बात है
00:44:02कि आपको दिखाई दे कि नहीं साब मैं तो चुक जाता हूँ
00:44:04कुछ भी जो अच्छा है उच्छा है
00:44:07वो समाप्त सिर्फ तभी नहीं होता
00:44:10जब वो किसी भी विशे पर आश्रित नहो
00:44:14प्रेडिकेटेड नहो तो समाप्त नहीं होगा
00:44:18सत्य की लड़ाई में उधारण के लिए
00:44:22अनंत धैर्य चाहिए
00:44:24धैर्य का अगर आपने
00:44:29कोई अन्तिम बिंदु निर्धारित कर रखाए
00:44:34तो धैर्य समाप्त हो जाएगा
00:44:35धैर्य के उपर आपने कोई शर्त बांध रखी है
00:44:38तो एक दिन वो शर्त तूटेगी
00:44:40और धैर्य समाप्त हो जाएगा
00:44:42अगर आपने कह रखा है कि
00:44:47देखो अगर पात साल में कम सकम
00:44:49इतनी सफलता मिल गई तो ठीक है
00:44:50काम आगे बढ़ाएंगे
00:44:52नहीं तो काम रोक देंगे
00:44:53तो काम रुकेगा
00:44:55जी उनमें जो कुछ भी उंचा है
00:45:00अच्छा है
00:45:01वो फिर अनन्थ होना चाहिए न
00:45:05अगर कुछ अच्छा है और समाप्ती हो रहा है
00:45:07तो ये तो बुरी बात हो गई न
00:45:08है न
00:45:09प्रेम अच्छी बात है
00:45:12प्रेम भी समाप्त हो जाएगा अगर प्रेम पे शर्तें बांध दी
00:45:15हमारा प्रेम पूरी तरह शर्तों का गुलाम होता है
00:45:20वो एक्जॉस्टिबल होता है
00:45:25छरणी ये होता है
00:45:29मिट जाएगा
00:45:31जो साधारणी प्रेम होता है उसी को ले लो
00:45:35इस्तरी पुरुष का
00:45:36इस्त्री को एक बस सूचना मिलनी चाहिए
00:45:40कहीं से थोटे छोटे मोटे प्रमाणों के साथ
00:45:42कि उसका पुरुष किसी और इस्त्री से भी मिलता जुलता है
00:45:45प्रेम समाप्त
00:45:45एकदम समाप्त
00:45:48exhausted, finished
00:45:49पुरुष को भी ऐसे कुछ सूचना मिल जाए
00:45:53कि इस्त्री की देखो तस्वीरे देख लो या कुछ और
00:45:55रिकॉर्डिंग देख लो, प्रेम समाप्त
00:45:57क्योंकि ये प्रेम
00:45:59आश्रित था
00:46:01ये प्रेम
00:46:04आश्रित था, ये प्रेम कहा रहा था
00:46:05कि मैं तभी तक हूँ जब तक फलानी
00:46:07शर्त का पालन हो रहा है
00:46:09जिस दिन उस शर्द का पालन नहीं होगा प्रेम मिट जाएगा
00:46:12ये मिटेगा
00:46:13इसमें कोई दम नहीं है
00:46:14अनंत बस वो हो सकता है
00:46:17जो अपने ही कारण हो
00:46:19जैसे चेतना का सुभाव है
00:46:21किसी पर आश्रित नहीं है
00:46:22हम हैं
00:46:27सोयम से हैं और सोयम के लिए है
00:46:29जो कुछ भी किसी
00:46:34सीमा से बंधा हुआ है
00:46:36उसको समाप्त होना पड़ेगा
00:46:39जैर्वे चुकेगा, प्रेम चुकेगा
00:46:47साहस चुकेगा
00:46:49और बताओ क्या है जो आप
00:46:53जीवन में कीमती मानते हो
00:46:55सब समाप्त हो जाएगा अगर
00:46:57वो आश्रित है
00:46:58युद्ध्यस स्वाब बोलते हो ना
00:47:07आपका युद्ध भी समाप्त हो जाएगा अगर वो किसी
00:47:09शर्ट से बंधा हुआ है
00:47:10शर्ट क्या है
00:47:13अब कम से कम इतनी जीत तो मिलनी चाहिए
00:47:17या इससे ज्यादा चोट नहीं मिलनी चाहिए
00:47:20यह शर्ट आपने बान दी
00:47:22जहां आपको उससे ज्यादा चोट मिली आपका युद्ध समाप्त
00:47:26जहां आपने पाया कि दस बरस बीद गए कोई जीत नहीं मिली आपका युद्ध समाप्त
00:47:30चलेगा नहीं
00:47:32आश्रित है
00:47:34किस पर आश्रित कर दिया
00:47:36प्रक्रति पर
00:47:38क्योंकि जीत मिलेगी कि नहीं मिलेगी ये बात तो समय संयोग की होती है
00:47:43आपके श्रम की भी होती है निसंदे
00:47:47और उसमें समय और संयोग भी है
00:47:49और समय और संयोग क्या होते है
00:47:51प्रक्रति जो कुछ प्रक्रति पर आश्रित हो गया
00:47:54अब वो बहुत उचा नहीं जा सकता
00:47:56तो आपका साहस
00:47:58आपका धैरे भी बहुत उचा नहीं
00:48:00जाएगा क्योंकि वो प्रक्रत
00:48:02बद्ध हो गया
00:48:03प्रक्रति से संबंधित
00:48:06आपने उस पर शर्ट थोप दिये
00:48:08वो बहुत आगे नहीं जाएगा
00:48:09मन खाली रहे
00:48:14ये एक विचित्र तरह का जीना होता है
00:48:24जिसमें युद्ध जीतने के लिए नहीं लड़ने के लिए लड़ा जाता है
00:48:27और जब युद्ध जीतने के लिए नहीं लड़ने के लिए लड़ा जाता है
00:48:36तब उसमें
00:48:39लड़ाई की शुरुआत में जीत हो जाती है
00:48:41जिसको जीतना है ही नहीं
00:48:44वो युद्ध से पहले ही जीत गया
00:48:46जीत गया तो लड़े कहें को जा रहा है
00:48:52महाँ जा है
00:48:53हमें क्या पता
00:48:55कुछ मिलने ही जाएगा जीतने से
00:49:02कुछ मिलने की आस में अगर लड़ रहे हो
00:49:07तो जिस दिन आस तूटेगी उस दिन लड़ाई भी तूट जाएगी
00:49:11अच्छा जीत गया हो तो काई हो लड़ रहे हो
00:49:24क्योंकि जीत गया है
00:49:25जीतने के बाद पार्टी होती है कि नहीं
00:49:29तो यह लड़ाई क्या है हमारी
00:49:32जीत के बाद का जशन है यह
00:49:42जीत के बाद के जशन को हम संग्राम बोलते है
00:49:47तुम्हारा संग्राम जीतने के लिए है
00:49:50हमारा संग्राम जीतने के बाद है
00:49:53तो तुम्हारा सारा संग्राम एक बेचैनी है प्यास है
00:49:58क्योंकि तुम जीतने के लिए लड़ रहे हो
00:50:01और हमारे संग्राम में उत्सव है उल्लास है
00:50:06क्योंकि हम जीतने के बाद लड़ रहे हैं
00:50:09जीत तो हम उसी दिन गए थे जिस दिन हमने
00:50:13लड़ना चुना था जीत गए
00:50:16उसके राद after party भी तो होती है कि नहीं
00:50:20कोई बढ़िया चीज हो जाए
00:50:21कि क्या चल रहा है after party
00:50:24पुरी जिन्दगी क्या है
00:50:27after party
00:50:29काम तो पूरा हो गया
00:50:34थोड़ी की काम अधूरा वगरा वगरा
00:50:39वो सब व्यभारिक बातें है
00:50:43वैसे कभी कभी बोल दिया जाता है
00:50:44काम तो कब का पूरा हो गया
00:50:47इन एक्जास्टिबल
00:50:56इस से ज्यादा गरिमा का शब्द नहीं हो सकता किसी इनसान के लिए
00:51:04इन एक्जास्टिबल
00:51:06कोई अंतही नहीं है
00:51:10कोई आपको बोले कि
00:51:12आत्मा हो तुम तत्व मसे
00:51:14वो बात थोड़े पुराने ढंकी हो जाती है
00:51:16बोली I am Mr. or Miss In-Exhaustible
00:51:21बात वही है
00:51:25In-Exhaustible माने अनन्त
00:51:27आत्मा
00:51:28यह से गाते हो ना आज के लो
00:51:38I am Invincible
00:51:39बड़ा सुन्दर लगता है
00:51:43I am Invincible
00:51:44Invincible नहीं
00:51:46बात अब इसकी है नहीं कि हम हार सकते हैं के नहीं हार सकते हैं
00:51:52I am In-Exhaustible
00:51:55In-Exhaustible, Invincible से बहुत आगे की बात है
00:52:01कभी थकते ही नहीं, कभी चुकते ही नहीं
00:52:15सांस की तरह चलते रहते हैं
00:52:23बाकी सब समाप्त हो जाएगा
00:52:26वो आस की तरह चलते हैं, हम सांस की तरह चलते हैं
00:52:38वो चुक जाएंगे, हम नहीं
00:52:42जब कुछ भी इतना महत्वपूर्ण नहीं होता कि वो ना हो तो आप ही नहीं रहोगे
00:52:55तो फिर आप होते हो
00:52:58जब आपका होना
00:53:05किसी भी विशे के होने
00:53:10से आजाध हो जाता है
00:53:14जब एक डीकपलिंग हो जाती है
00:53:19तब आपका होना
00:53:24सार्थक हो जाता है
00:53:28तब पहली बार आप बस होते हो
00:53:35और जो है अब वो मुक्त है सही जीने के लिए
00:53:40गलत जीवन और क्या होता है
00:53:43अमुक्त जीवन ही गलत जीवन है
00:53:45और अमुक्त माने आशायता
00:53:48जो मुक्त हो गया अब वो मुक्त है सही जीने के लिए
00:53:53अब वो सही जीएगा
00:53:55कौन रोक सकता है उसे क्यों रोक सेगा
00:53:58नहीं रुकेगा
00:53:59जब भी किसी सवाल भी करो
00:54:04कि क्यों गलत जीवन जी रहे हो
00:54:06लोग जवाब में क्या बताते हैं
00:54:08अपने बंधन मजबूरियां ही तो गिनाते हैं
00:54:11और सारी मजबूरियां
00:54:14सारे बंधन
00:54:15आश्रेता हैं
00:54:17मैं इस पे निर्भर हूँ
00:54:18मेरा यह चल रहा है
00:54:19वो है वो है वो है
00:54:20वो सब कुछ नहीं है
00:54:22तो अब सही काम से तुम्हें कौन रुकेगा
00:54:24क्यों रुकोगे
00:54:25जो सही काम है वही तो करोगे
00:54:27आप सही काम करने के लिए ही बने हो
00:54:38गलत कामों में इसलिए उलज जाते हो
00:54:42क्योंकि दर्शन गलत है
00:54:43गलत कामों में भ्रमवश उलज जाते हो
00:54:47सुभाव उवश नहीं
00:54:49आपका सुभाव नहीं है
00:54:51कि उल्टे-पूल्टे करमों में लगे रहो
00:54:53आपका भ्रम है
00:54:55जो आपकी जञजीर बन जाता है
00:54:58ऐसे हथकड़ी
00:55:00और क्याता है नई नई
00:55:02सही काम में मत जाना बड़ा नुक्सान हो जाएगा अभी तो गलत कामों की जो जिम्मेदारियां है वो निप्टा नहीं है
00:55:08जो कुछ भी जीवन में प्यारा हो पूज्य हो उससे शर्ते मत बांधना बांध रखी हो तो आज हटा दो
00:55:22रिशिकेश में पहली बार जब
00:55:32पश्चमी बंधों से मुलाकात होई अब पता चला उनके लिए
00:55:37मेडिटेशन बहुत प्रेम का बड़े सम्मान का शब्त है वो करें मेडिटेशन ही सब कुछ है एक बार मैंने उनसे
00:55:46बड़ा एक मासूम सा सवाल करा मैंने का इतना प्यार है अगर ध्यान से तो ध्यान तोड़कर उठकियों जाते हो अगर तुम कह रहे हो तो तुम तो जो मेडिटेशन करते हो तो बैठ करके आसन लाके आँख बंद करने वाला है और उसमें कई बार तुम साथ में कुछ सं�
00:56:16यह तो समाप्त हो जाता है संगीत तो CD में होता है वो तो समाप्त हो जाएगा और यह कहीं मुद्रा में कब तक बैठे रहोगे वो भी समाप्त हो जाना है समय
00:56:31और तुम तया करके बैठते हो कि इतने से इतने वे तक बैठेंगों भी समाप्त हो जाना है
00:56:37अगर ये सचमुच इतनी प्यारी चीज है ध्यान तुम्हारे लिए
00:56:41तो अपने ध्यान को समाप्त क्यों हो जाने देते हो
00:56:43जो प्यारा है उसे कभी समाप्त नहीं होना चाहिए न
00:56:52जो प्यारा है उस पे शर्ते मतलादना
00:56:58मत कह देना कि संगीत मिलेगा तभी ध्यान जमेगा
00:57:03मत कह देना कि जब सुबह 6 बजेंगे तभी ध्यान जमेगा
00:57:08मत कहा देना कि साथ बज गए हैं तो अब ध्यान से उठना पड़ेगा
00:57:11मत कहा देना कि जमीन पर ऐसे करके आसन लगाएंगे
00:57:17और कुछ बिचाएंगे तभी ध्यान लगेगा
00:57:20अगर प्यारा है तो उस पर शर्ते क्यों
00:57:25अगर प्यारा है तो उसकी समाप्ती क्यों
00:57:29इन एक्जास्टिबल होना चाहिए न इवर मैंने सवाल पूछा
00:57:36ऐसा ही आप जैसे ज्यानी लोगों की सभाथी
00:57:41मैंने पूछा आपकी जिंदगी में कुछ भी ऐसा है जो कभी समाप्त नहीं होगा
00:57:46बेशर्त है बिल्कुल अनकंडिशनल समाप्त होई नहीं सकता
00:57:50ज्यादा तर लोग चुप रहे तो एक देवी जी बोली मेरी जिंदगी में है कुछ ऐसा जो कभी समाप्त नहीं हो सकता
00:58:05बेशर्त है बोली मेरे बच्चे के लिए मेरा प्यार बड़ी सुंदर बात है
00:58:14थोड़ा हम इसमें कुछ जाच परक सकते हैं बोली बेशक आपको पता चले आपका बच्चा हत्यारा है तो बोली नहीं प्यार तो समाप्त नहीं होगा
00:58:25मैं उसे सुधारने की कोशिश करूँगी
00:58:28ठीक
00:58:28आपका बच्चा बलातकारी है
00:58:31नहीं मैं सुधारने की कोशिश करूँगी
00:58:33आपका बच्चा
00:58:36आपके ही दूसरे बच्चे पर
00:58:39हमला कर दे उसको चोड पहुचा दे
00:58:41नहीं सुधारने की कोशिश करूँगी
00:58:42तो जितनी भी बाते कही गई यह तक कहा गया आपका बच्चा आपको ही घाओ दे दे
00:58:47बोले नहीं यह शर्त भी नहीं है कोई शर्त नहीं है
00:58:51मैंने का ठीक है तो सारी बात मैंने का आपको यह पता चले आपको यह पता चले
00:58:56आपको ये पता चले, वो हर बात में कहती गई
00:58:57सब स्विकार कोई शर्थ नहीं
00:59:00फिर मैंने अंतमे का और आपको ये पता चले
00:59:02ये आपका बच्चा ही नहीं है तो
00:59:03तो वो दो पल को ठिठक गई
00:59:10मैंने का आप कुछ बोलियेगा नहीं
00:59:12ये जो दो पल की ठिठकन है
00:59:14यही जवाब है
00:59:15लगा दी न बड़ी भारी शर्त
00:59:20यह तो बहुत बड़ी शर्त हो गई
00:59:22कि मैं इससे तभी तक प्यार करूँगी
00:59:24जब तक यह मेरा बच्चा है
00:59:25और कल कोई सबूत सामने आ जाए
00:59:27यह आपका है यह नहीं बच्चा, आप क्या करोगे
00:59:29तो थोड़ा उसने बोली, नहीं सबूत आ भी जाए
00:59:32तो भी अब इतने में तक पाला है तो मेरी
00:59:34मैंने का अच्छा, मैं सबूत को जरा सा पढ़ा देता हूँ
00:59:37मैंने का सबूत ही आ गया
00:59:38कि आपका वाला जो बच्चा है वो पडोस के घर में है
00:59:41और पडोस वाला ये बच्चा है
00:59:44और पडोस वाला जो उससे आप नफरत करते हो
00:59:47पडोसी से अपने, और वही आपके अपने बच्चे को पाल रहा
00:59:50तब क्या करोगे, एकदम ही रुप गई
00:59:53यह जवाब है
00:59:55शर्त तो रहती ही है
00:59:59जहाँ शर्त है
01:00:01वहाँ शुदरता है
01:00:03जहाँ शर्त है, वहाँ नर्क है
01:00:06पर ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी से बिलकुल बेशर्त प्रेम करें
01:00:14इनका नहीं हो सकता
01:00:17जब तक हम वैसे हैं जैसे हम है
01:00:19हमारे जीवन में कोई आएगा ये नहीं
01:00:21जिससे बेशर्थ प्रेम किया जा सके
01:00:23आप प्रश्ण पूछ रही है कि ऐसा कोई कैसे मिलेगा
01:00:28जिससे बेशर्थ प्रेम करें
01:00:29मैंने का ऐसा कोई
01:00:31आपको कैसे मिलेगा जिससे बेशर्थ प्रेम करें
01:00:34चूंकि आपको आप बने रहना है
01:00:37इसलिए आपके जीवन में कभी कोई ऐसा आएगा भी नहीं
01:00:39जिससे बेशर्थ प्रेम किया जा सकता हो
01:00:41आपकी जन में कोई ऐसा ही आएगा जिससे सौधा किया जा सकता हो
01:00:44और सौधे में तो शर्ते होती है
01:00:47तुम इतना मुझे दोगे और इतना मैं तुम्हें दूँगा
01:00:50जब हम व्यापारी हैं
01:00:53तो हम बाजार में प्रेम करने निकले हैं या व्यापार
01:00:58तो हमारे जीवन में सब व्यापारी ही आते हैं दूसरे
01:01:01क्योंकि हम व्यापारी हैं सरप्रथम
01:01:03कैसे बेशर्ट आप फिर संबन्द बनाओगे
01:01:06कैसे बेशर्ट बनाओगे
01:01:13यह मत पूछो कि ऐसा कोई
01:01:15कैसे हो सकता है जिससे बेशर्ट प्रेम किया जाए
01:01:17पूछो मैं ऐसा
01:01:19कब बनूँगा
01:01:21जब कोई ऐसा प्रवेश करे
01:01:23जीवन में मैं अनुमत ही दूँ
01:01:25उसे प्रवेश करने की जीवन में
01:01:26जो
01:01:28भेशर्ट प्रेम का हखदार हो
01:01:30वरना तो हो सकता है वैसा कोई
01:01:32आपके जीवन में हो भी आपके सामने
01:01:34भी हो लेकिन उस पर भी आपने शर्ते
01:01:36ठोप रख्शी हो
01:01:37थू
01:01:41या slippy
01:01:47यार नहीं आ रहा है वो
01:01:48
01:01:50ताप कश्लो कहें कि अहम अगनी हिर्दे जले गुरू से चाहे मान
01:01:58आगे क्या है अधी साखी
01:02:00कुछ यही है कि ऐसों का बड़ा बुरा हाल होता है
01:02:06अहम अगनी हिर्दे जले गुरू से चाहे मान
01:02:12तिनको जम न्योता दिया हो हमारे महमान
01:02:17ऐसों कोई अमराज बोलते हैं आओ आओ तुम कोई नहीं होता दे रहे हमारे महमान बनो
01:02:21जिसने गुरु पर शर्त लगा दी उसके लिए कोई गुरु है ही नहीं
01:02:31गुरु और शिश्य का रिष्टा तभी हो सकता है जब शिश्य की और से कोई शर्त हो यह नहीं
01:02:35अगर अभी यह शर्त है कि हमसे इतनी ही सीमाओं में रहकर व्यवहार करना
01:02:39तो समझ लो तुम्हारे पास कोई गुरु नहीं निगुरे हो तुम
01:02:45चबीर साहब के हाँ जो सबसे बड़ी गाली होती है वो और नहीं होती कोई निगुरा
01:02:48जो इस लायक नहीं हो पाया कि उसका कोई गुरु हो पाया उसको निगुरा कहते हैं
01:02:55यह सबसे बड़ी गाली है निगुरा निगुरा वो जिसने गुरु पर भी शर्त लगा दिये
01:03:04कि अगर इतना इतना तुम अपनी सीमा के भीतर चल रहे होता है तो ठीक है हमारा तुम्हारा वेवहर चलेगा
01:03:11न तुम अपनी सीमाएं छोड़ोगे न हम अपनी सीमाएं छोड़ेंगे यह निगुरा है इसका कुछ नहीं हो सकता

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