00:00एक बंगाली उपन्यास है, इसमें एक भद्र लोग होते हैं, सर्जन, वेशा ले जाते हैं, तो जैसे आमत्र पर भद्र लोग होते हैं, मुटे थुल-थुल, बिस्तर से उतरते हैं, तो हाफ रहे होते हैं, पसीने आ रहे हैं बिलकुल, तो जो वेशा है वो उनको पानी देत
00:30और दूसरी चीज उचाती को मिटा देती है वे चेतना, अध्यात्म कहता है, सब को इतना उठा दो, कि सब एक बराबर हो जाएं, अनन्त बराबर अनन्त, अब वहां भी कोई उचा नहीं, कोई नीचा नहीं, जब तक अनन्त से आपको प्रेम नहीं जगेगा, तब तक जाती क