भगवद गीता - अध्याय २ - पद ३ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
इस वीडियो में देखिये की कैसे भगवान कृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए खड़े रहने को कहते है

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१ इस पद में भगवान कृष्ण अर्जुन को पार्थ के नाम से पुकारते है और उसे यह बताते है की यह समय कमज़ोरी दिखाने के लिए उचित नहीं है



2 भगवान कृष्ण के इस तीसरे श्लोक के दिव्य शब्द हैं;

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।

क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ।।३।।



३ इस श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को परंतप के नाम से भी बुलाते है जिसका संदर्भ दंडक से है और जो एकाग्रता की शक्ति से शत्रुओं का विनाश कर देता है।

४ अर्जुन शत्रुओं को भयभीत करने और उनको परास्त करने में सक्षम था। परंतु उस क्षण, वह स्वयं भयभीत हो गया था और कुरुक्षेत्र से निकल जाना चाहता था


५ यह उसे शोभा नहीं दे रहा था और इसलिए भगवान कृष्ण ने तीसरे श्लोक में यह कहा:

हे अर्जुन! तू नपुंसकता को प्राप्त मत हो, यह तुझे शोभा नहीं देता है, हे शत्रुओं के दमनकर्ता! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़ा हो

६ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिए की इसके बाद अर्जुन ने भगवान कृष्ण ने से क्या कहा

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