भगवद गीता - अध्याय २ - पद १ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
आज से हम भगवद गीता के दूसरे अध्याय की शुरुवात कर रहे है और आज इस अध्याय के पहले पद के बारें में आपको बताने जा रहे हैं

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१ पहले अध्याय की तरह, भगवद गीता का दूसरा अध्याय भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच की चर्चा का एक संक्षिप्त सार है।

२ पहले अध्याय की समाप्ति अर्जुन के दुःखी मन के साथ हुई और अर्जुन ने स्थिति से निपटने के लिए अपनी पूरी अक्षमता बताते हुए और आगामी लड़ाई में अपना कर्तव्य करने से इनकार कर दिया

३ इस अध्याय को 'सांख्य योग' कहा जाता है, जिसका अर्थ है ज्ञान का मार्ग।

४ इसे पूरे भगवद गीता का सारांश माना जाता है क्योंकि यह कर्म योग, भक्ति योग, संन्यास योग, ज्ञान योग और बुद्धि योग जैसे विभिन्न विषयों पर बखान करता है

५ दूसरे अध्याय के पहले पद में संजय धृतराष्ट्र को अर्जुन के व्यथित भावनाओं के बारे में बताते है। यह पद इस प्रकार है :

संजय उवाच

तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम।

विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ।।

६ इस श्लोक का अर्थ है:

संजय ने कहा - इस प्रकार करुणा से अभिभूत, आँसुओं से भरे हुए व्याकुल नेत्रों वाले, शोकग्रस्त अर्जुन को देखकर मधुसूदन श्रीकृष्ण ने यह शब्द कहे

७ भगवद गीता के दूसरे अध्याय के अगले वीडियो में देखिये की भगवान कृष्ण ने अर्जुन के अज्ञान के बारे में क्या कहा

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