भगवद गीता - अध्याय २ - पद ३४ और ३५ I अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
इस वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन को अपकीर्ति के परिणामों के बारे में क्या समझाते है।

१ चौंतीसवें श्लोक में भगवान कृष्ण ने अर्जुन का ध्यान एक आदर्श योद्धा के रूप में उसकी प्रतिष्ठा कैसे संकट में आयी है इस बात की ओर लाया। इस श्लोक के शब्द है

अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम ।

सम्भावितस्य चाकीर्ति र्मरणादतिरिच्यते ।।३४।।

२ इस श्लोक का अर्थ है

लोग सदा तुम्हारी निराशाजनक अपकीर्ति की बातें करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बढ़कर है

३ पैंतीसवां श्लोक इस प्रकार है

भयाद रणाद उपरतं मंस्यन्ते त्वं महारथाः ।

येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम ।।३५।।

४ इसके बाद, भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाने का प्रयत्न किया की युद्ध भूमि से निकल जाना उसके लिए कितना शर्मनाक हो सकता है

५ पैंतीसवें श्लोक का अर्थ है

जिन-जिन महारथियों की दृष्टि में तू पहले सम्मानित हुआ है, वे योद्धा डर के कारण युद्ध-भूमि से हटा हुआ समझ कर तुम्हे तुच्छ मानेंगे। और उनके सामने तुम अपना सम्मान गंवा दोगे

६ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिये की भगवान कृष्ण अर्जुन को स्वयं से युद्ध करने के लिए क्यों कहते है

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