भगवद गीता - अध्याय १ - पद २०, २१ और २२ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
इस वीडियो में, हम कुरुक्षेत्र उन दृशो का चित्रण बता रहे है कि युद्ध शुरू होने के स्थिति में है और जैसे जैसे यह पल नजदीक आ रहा है वैसे वैसे परिस्थिति बदल रही है

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१ बीसवे श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को बताते है :
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्‌ कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।। २० ।।

2 इस श्लोक का अर्थ है:
धृतराष्ट्र के पुत्रों को देखकर भगवान हनुमान से अंकित पताका लगे रथ पर आसीन पाण्डु पुत्र अर्जुन ने अपना शक्तिशाली धनुष उठाया और घोषित किया कि वह युद्ध के लिए तैयार है। हे राजन, उस समय अर्जुन ने ये शब्द ऋषिकेश (भगवान कृष्ण) से कहे थे

३ अगले श्लोक में, अर्जुन ने भगवान कृष्ण को अच्युत! के रूप में संबोधित किया है जिसका अर्थ है "अचल", "अपरिवर्तनीय" या "अपराजेय"।

४ अर्जुन का यह कहना दर्शाता है कि, भगवान कृष्ण ने अर्जुन के सारथी होने पर सहमति व्यक्त की थी फिर भी ईश्वर का अस्तित्व होने की उनकी सर्वोच्च स्थिति अपरिवर्तित है जिसे कोई बदल नहीं सकता

५ इक्कीसवे और बाइसवे श्लोक में अर्जुन कहते हैं :
अर्जुन उवाच :
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।। २१ ।।

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌ ।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ।। २२ ।।

६ इन पदों में अर्जुन भगवान कृष्ण कहते हैं कि:
हे अच्युत ! कृपा करके मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खडा़ करें। जिससे मैं युद्धभूमि में उपस्थित युद्ध की इच्छा रखने वालों को देख सकूँ कि इस युद्ध में मुझे किन-किन से एक साथ युद्ध करना है।

७ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिये कि दोनों सेनाओं के बीच अर्जुन का रथ आ जाने के बाद क्या हुआ

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