भगवद गीता - अध्याय १ - पद ४५ और ४६ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
भगवान कृष्ण को युद्ध के प्रति अपने दुःखद विचार बताने के बाद अर्जुन खड़े नहीं रह पा रहा था। यहां भगवद गीता का पहला अध्याय समाप्त होता है जिसे अर्जुन-विशाद-योग (अर्जुन के दुःख का योग) कहा जाता है। इस वीडियो में हम भगवद गीता के अंतिम दो पदों के बारे में आपको बताने जा रहें हैं

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१ पैंतालीसवा पद इस प्रकार है :

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।

धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत ।। ४५ ।।

२ यहाँ अंत में अर्जुन यह बताते है ;

यदि मुझ शस्त्र-रहित विरोध न करने वाले को, धृतराष्ट्र के पुत्र हाथ में शस्त्र लेकर युद्ध में मार डालें तो भी इस प्रकार मरना मेरे लिए अधिक श्रेयस्कर होगा

३ छियालीसवे श्लोक में संजय ने अपनी दिव्य दृष्टी से जो देखा उसका वर्णन किया है

संजय उवाच

एवमुक्त्वार्जुनः सङ्‍ख्ये रथोपस्थ उपाविशत ।

विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ।। ४६ ।।

४ इसका भावार्थ है :

संजय ने कहा - इस प्रकार शोक से संतप्त हुआ मन वाला अर्जुन युद्ध-भूमि में यह कहकर बाणों सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गया

५ निचे दिए गए श्लोक के साथ भगवद गीता का पहला अध्याय समाप्त होता है :

इति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे कृष्णार्जुनसंवादे धर्मकर्मयुद्धयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः ।।

६ इस श्लोक का अर्थ है :

इस प्रकार उपनिषद, ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र रूप श्रीमद भगवदगीता के श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद में धर्मकर्मयुद्ध-योग नाम का पहला अध्याय संपूर्ण हुआ

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