भगवद गीता - अध्याय १ - पद ९, १० और ११ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
इस वीडियो में देखिए की कैसे दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य को समझाया है कि कौरव सेना पांडव सेना की तुलना में अधिक बलशाली है और अपनी सेना को प्रोत्साहित करने के लिए उसने क्या कहा ......

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१ नौवें श्लोक में दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य को बताता है कि :
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥

२ इस श्लोक का अर्थ यह है :
ऎसे अन्य अनेक शूरवीर भी है जो मेरे लिये अपने जीवन का बलिदान देने के लिये अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित है और यह सभी युद्ध-कला में निपुण है

३ दुर्योधन को उनके साथियों की संयुक्त शक्ति और भीष्म की उपस्थिति के कारण अपनी जीत पर विश्वास था

४ और यही कारण है कि वह दसवें श्लोक में यह कहते है :
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्‌ ।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌ ॥

५ इसका भावार्थ है :
इस प्रकार भीष्म पितामह द्वारा अच्छी प्रकार से संरक्षित हमारी सेना की शक्ति असीमित है, किन्तु भीम द्वारा अच्छी प्रकार से संरक्षित होकर भी पांडवों की सेना की शक्ति सीमित है।

६ ग्यारहवें श्लोक में दुर्योधन ने अपनी सेना को प्रोत्साहित करने हेतु कहा :
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥

७ इस श्लोक का अर्थ यह है :
अत: सभी मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहकर आप सभी निश्चित रूप से पितामह भीष्म की सभी ओर से सहायता करें

८ हमारे भगवद गीता श्रृंखला के अगले वीडियो में देखिये की कैसे महामहिम भीष्म दुर्योधन का आत्मविश्वास बढ़ाते है


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