Skip to playerSkip to main contentSkip to footer
  • today

Category

📚
Learning
Transcript
00:00:01हमें सबसे उम्मीद होती है
00:00:02प्रमाण ये है कि सब हमारा दिल तोड़ देते हैं
00:00:05कोई है जो तुम्हारा दिल न तोड़ने की ताकत रखता हो
00:00:08विन बुलाई बरसाता आगई, धूब ज्यादा है, मूड ओफ हो गया
00:00:12दूरश तुमसे पूच के चले, बादल पूच के बरसेगा
00:00:16पर हमारी उम्मीद उनसे भी रहती है
00:00:18हम जानवरों तक से बुरा मान जाते हैं
00:00:22कबूतर आके विंड स्क्रीन पे कर गया
00:00:24ये ऑफिस को निकल रहे थे भागे भागे
00:00:28मेरी कार चुनता है कबूतर
00:00:33कुछ बात होती है रेस्ट्राओं में
00:00:35हर दूसरा आदमी वेटर के व्योहार से नाखोश हो रहा होता है
00:00:39मैनेजर ऐसे कान में रूई रखके आता है
00:00:41आप बताते हो, वो ये नो दैट फेलो
00:00:44अब चाहते हो कि पूरी दुनिया मिलके वहाँ आपकी कामना है पूरी करे
00:00:48वेटर आपकी कामना पूरी करने को नहीं है
00:00:50वो तो वहाँ अपनी नौकरी बजा रहा है
00:00:52टैम खराब चल रही है
00:00:54राइट मैन अट दे रॉंग प्लेस
00:00:59क्यों इतना अपने आपको कुछ समझते हो
00:01:03कि तुम्हारे लिए कुछ हो रहा है
00:01:05तुम कोई नहीं हो
00:01:06अंसार दुख नहीं देता
00:01:18अंसार से आसकती मूलक जिनता दुख देती है
00:01:48जिसने ऐसा निश्चे कर लिया
00:01:50तुखी हो जाता है, शान्त हो जाता है
00:02:05चिनता मुक्त हो जाता है
00:02:10और उसको कहीं भी कामना नहीं रहते
00:02:18ना अच्छा ना बुरा है संसार
00:02:39समझ गए तो दौार है, ना समझे तो दीवार
00:02:51किंद्रिय सूत्र है विदान्त का
00:03:09तुम ही तुम हो
00:03:10तो अगर दुख में हो तो कारण भी तुम ही तुम हो
00:03:19संसार को श्रे देना भी छोड़ दो
00:03:31संसार को दोश देना भी छोड़ दो
00:03:36संसार की सत्यता ही छोड़ दो
00:03:42जोर देकर कह रहे हैं आज मुन्यष्टा वक्र
00:03:52संसार नहीं देता है दुख
00:03:57संसार के प्रते आपका रुख देता है दुख
00:04:12मत कहो कि दुखा लए है
00:04:18मत कहो कि दुख लोक है
00:04:26यह कह करके अपनी विनम्रता का नहीं हेठी का
00:04:35अकड का ही परिचय दे रहे हो
00:04:42अलाय माने घर दुखालाय माने
00:04:47दुखका अड़ा
00:04:50शंसार को दुखालय बोल रहे हो
00:04:53देख रहे हो क्या बूला
00:04:57मैं दुख में हूं
00:04:59मैं तो अच्छा आद्मी हूं
00:05:02यह संसार ही ऐसा है दुखालय
00:05:08यहां जो आए वो दुख पाएगा ही पाएगा मैं तो अच्छा आदमी हूँ मैंने थोड़ी कुछ किया
00:05:12आदमी बढ़िया हूँ मैं जगे गड़ गड़ है
00:05:17राइट मैन इड़ रॉंग प्लेस
00:05:20किस-किस को ऐसा लगता है
00:05:25मैं तो बढ़िया हूँ पर याँ
00:05:29फज गया हूँ चकर घिन्नी चल रही है पता नहीं कहा
00:05:33मैं थोड़ी बुरा हूँ स्थितियां बुरी है
00:05:36मैं थोड़ी बुरा हूँ सैयोग बुरे है
00:05:39टैम खराब चल रही है
00:05:45समय बुरा है संसार बुरा है सैयोग बुरे है
00:05:51स्थिति बुरी है
00:05:53और बुरे ये सब हैं, और दुख पा रहा हूँ, अरे पड़ी ना इंसाफी हो गई, गलत वात हो गई न ये, बुरे ये सब हैं, दुख मैं पा रहा हूँ,
00:06:07कुबारे में क्या किया, अर्ष्टा वक्रमुनी ने, पुक, तुम बैठे हुए थे, भले आदमी बन करके, अपनी सज्जनता बांध करके,
00:06:27मैं तो अच्छा आदमी हूँ, दुख तो मुझे दुनिया से मिल रहा है, दुनिया दुख का कारण नहीं है, तुम ये जो दुनिया से चिप के हुए हो, अपनी भाशा में क्या, चेप, और उससे सोत रहेगी उम्मीदें रखते हो, लालसाइं रखते हो, ये तुमारे द�
00:06:57सत्यता ही छोड़ दो, अरे वो आश्रित है तुम पर, तुमसे अलग होकर के संसार है क्या, और अगर तुमसे अलग होकर के भी संसार है, उसकी कोई स्वतंत्र सत्ता है, तो फिर संसार ही सत्ते है, वो जो स्वतंत्र हो क्या कहलाता है, जिसकी सत्ता, जिसकी अस्मिता, किसी
00:07:27तो यह रहा खंबा
00:07:29और यह खंबा
00:07:32अगर आशरित ही नहीं है मुझ पर
00:07:34किसी नहीं किसी तरीके से
00:07:35तो यह खंबा ही फिर क्या है
00:07:37इसी को पूजो फिर
00:07:42धर पटक दो इस पर
00:07:45इसको नहीं मानेगा यह नहीं आशरित तो ही
00:07:50वो प्रत्वी पर आशरित है
00:07:51अच्छा ठीक है
00:07:52इतना मान लिया प्रत्वी पर है
00:07:55प्रत्वी अंतता किस पर आश्रित है
00:07:57कहेंगे वो भौत्यकी के नियमों पर आश्रित है
00:08:00ऐसे अपनी धुरी पर भी घूम रही है
00:08:05अपनी कक्षा में भी घूम रही है
00:08:07तो उसको
00:08:12एक
00:08:14कक्षा में और्बिट में
00:08:17बना के रखने का काम कर रहे हैं
00:08:19भोतगी के नियम
00:08:20ये जो सारे नियम है
00:08:23ये बस
00:08:28त्री आयामी
00:08:29की पदार्थों पर
00:08:31क्यों लागू होते हैं
00:08:33पूरे यूनिवर्स को लेकर
00:08:42करके अभी तक जो बड़ी से बड़ी बात
00:08:44बोली जा सकी है
00:08:45वो ये है कि वो एक
00:08:49स्पेस टाइम कॉंटिनूम है
00:08:51उसी को अधार बना करके
00:08:58रिलेटिविटी सारी आगे बढ़ती है
00:08:59स्पेस टाइम के साथ कुछ ऐसा
00:09:04क्यों नहीं जोड़ा गया जिसका तुम्हें अनुभाव नहीं हो सकता
00:09:06क्यों ये पूरा यूनिवर्स
00:09:09उन्ही वेरियेबल्स से बनता है
00:09:12जो तुम्हारे भौतिक अनुभाव की चीज है
00:09:15एक्स वाई जेटी
00:09:17एक्स क्या है
00:09:19एक्स क्या है
00:09:22मेरी नाक
00:09:25वाई क्या है
00:09:30मेरी उंगली
00:09:33जेड क्या है मेरा कंधा
00:09:38और टी क्या है
00:09:43मेरा खोपड़ा
00:09:44हमें तो घुमता हुदर
00:09:48जितने भी फिजिक्स के लॉज हैं
00:09:52वो तुम्हारी देह से हटकर क्यों नहीं बन पाते
00:09:54क्यों नहीं कोई फूर्थ डैमेंशन होती
00:10:01क्योंकि तुम्हारी देह में कोई फूर्थ डैमेंशन नहीं है
00:10:03क्योंकि तुम्हारे मन में कोई
00:10:06फोर्थ डायमेंशन नहीं हो सकती
00:10:07स्पेस की फोर्थ डायमेंशन टाइम की नहीं बात कर रहा हूँ
00:10:11तो एक खंबा प्रत्वी पराश्रित है
00:10:16प्रत्वी ब्रहमांड के नियमों पराश्रित है
00:10:19और वो सारे नियम किस पराश्रित है
00:10:21स्थूल आखें थी तो इतना ही उस वक्त देख पाए कि सेब चला प्रत्वी की ओर
00:10:40थोड़ा सा और अगर माइक्रोसकोपिक तरीके से देख पाते तो ये भी देखते कि प्रत्वी भगी सेब की ओर
00:10:46क्योंकि जब भी दो पिंड आपस में गृत्वा करिशन से संबंदित होते हैं तो भगते दोनों हैं एक दूसरे की ओर
00:10:56बस जो छुटका है उस पे जोर ज्यादा लग जाता है तो भगता ज्यादा जोर से दिखाई देता है
00:11:02जब जानते हो एक सेब प्रत्वी की ओर गिरता है तो प्रत्वी भी सेब की ओर गिरती है
00:11:08थोड़ा सा ही गिरती है लेकिन उसी अनुपात में जिस अनुपात में दोनों का वजन है
00:11:15सब एक दूसरे पर आश्रित है यहां कुछ सोतंतर नहीं है तो जगत है भी क्या जिसको तुम जगत बोलते हो
00:11:31वो तुम्हारे ही अनुपाव की चीज है वो तुम्हारे ही अनुपावों का विस्तार है
00:11:36ऐसा नहीं है कि जगत बस बाहर से भीतर को आता है
00:11:47जगत भीतर से बाहर को भी जाता है
00:11:49रक्रिया दोनों तरफ की है
00:11:55या तायात दो तरफा है
00:12:02कुछ वो उधर से इधर को आता है तो इधर कुछ रचना कर देता है
00:12:07बाकी मामला इधर से उधर को जाता है
00:12:10दोनों एक दूसरे पर आश्रित है
00:12:12जीव जगत पर आश्रित है
00:12:13जगत जीव पर आश्रित है
00:12:15तो बताओ क्या हम किसी को इसमें दोश दें
00:12:20जीव और जगत दोनों ही क्या है प्रक्रति है जैसे प्रक्रति में हर चीज किसी दूसरी चीज़ पर आश्रित होती है वैसे ही ये जीव और जगत है
00:12:38द्रिश्टा द्रिश्य पर आश्रित है द्रिश्य द्रिश्टा पर आश्रित है
00:12:50सब एक दूसरे का निर्धारन कर रहे हैं
00:12:56पूरे प्रहवांड में कुछ भी ऐसा नहीं है
00:12:58जो बाकी तत्वों से स्वतंत्र हो
00:13:01कुछ भी नहीं है
00:13:04तो हम भी यही हैं जो यह है
00:13:08अगर हम उससे अलग नहीं
00:13:10वो हमसे अलग नहीं
00:13:11तो हम दोश किसको दे रहे हैं
00:13:12सब प्रक्रियाओं से बंदे हुए है, शायद फिर दोश इसी बात का है कि हम देख नहीं पा रहे हैं, कि दोश देने से कोई लाभ नहीं,
00:13:25दोश द्रिष्टी अज्यान द्रिष्टी है, दोश तब हो ना, जब कोई इंडिपेंडेंट डूर हो, तो हम उसको दोश दे दें, जब कोई स्वतंत्र करता है ही नहीं, तो उसको दोश कैसे दें, बताओ,
00:13:49ठागर में बड़ी जोर की लहर उठी, तो मौझ मार रहे थे, कहां पर, तट पर खड़े होकर के बीच पर खड़े हुए थे, मस्त मज़ा आ रहा था, और बहुत जोर की लहर उठी, तो मौझ क्यों मार रहे थे,
00:14:15क्योंकि नीचे बढ़ियां मुलायम मुलायम रेत थी, और उपर बढ़ियां खिला हुआ, पूरा पूर्णे मा जैसा चांद था, बड़ा मज़ा आ रहा था, लहर उठी और चपल बह गई, लहर को दोश दें, लहर किसने उठाई, चांद ने, और चांद को हां किसने टां�
00:14:45चांद को दोश दें, तो चांद नहों तो वह लहर भी नहों तुम जिसका मौज ले रहे थे, और चांद को अगर दोश देना है, तो चांद को हां किसने टांग रखा है, प्रत्वी ने, प्रत्वी का ही टुकडा भी है, और प्रत्वी नहीं उसको बांध भी रखा है, कि �
00:15:15जो मेरी चपल बहा ले गई
00:15:16लहर कहा सो तंत्र है
00:15:18लहर बंधी हुई है
00:15:19चांद से
00:15:21चांद बंधा हुआ है
00:15:22और प्रत्वी वही है जिससे तुम उठे हो
00:15:25अब बताओ किसको दोश दे
00:15:26लहर का दोश है तो
00:15:29चांद का दोश है तो
00:15:32और प्रत्वी तो तुम ही हो
00:15:34अब किसको दोश दें
00:15:37तो फस गया मामला
00:15:40चपल कोई दे देते
00:15:45किसी को तो दोश देना है न
00:15:51क्योंकि मैं तो
00:15:51अच्छा आदमी हूँ
00:15:53तो गलती किसी की तो होगी
00:15:55यहाँ कोई है यह नहीं
00:15:57गलती करने के लिए
00:15:58कोई भी स्वतंत्र करता
00:16:01नहीं है, तुम किसी एक को पकड़ोगे
00:16:03वो दूसरे से जुड़ा हुआ है, सब आश्रित है
00:16:05एक की गलती
00:16:07निकालोगे तो पूरे ब्रहमांड की गलती
00:16:09निकालाएगी
00:16:10क्योंकि कुछ नहीं हो
00:16:13सकता, जब तक उसको
00:16:15पूरे ब्रहमांड का समर्थन न मिला
00:16:17हुआ हो
00:16:18समर्थन से सब समझ रहे हो
00:16:20समर्थन से ये नहीं है कि वहाँ पर
00:16:22कोई doing agency है वो समर्थन दे रही है
00:16:25समर्थन इस तरीके से
00:16:30कि गाड़ी का पहिया आगे नहीं बढ़ सकता
00:16:32जब तक उसको गाड़ी के बाकी सब
00:16:34पुर्जों का भी समर्थन
00:16:35ना मिला हुआ हो
00:16:36ये एक विशाल तंत्र है जिसमें
00:16:39सब चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई है
00:16:42जिसे कोई बहुत बड़ा जहाज हो
00:16:46उसमें सब पुर्जें एक दूसरे से जुड़े हुए है
00:16:49कोई भी पुर्जा सुतनतर रूप से काम नहीं कर रहा
00:16:51तुम किसी एक को नहीं दोश दोगे
00:16:53और ले दे के फिर वो जो पूरा जहाज ही है
00:16:59वो किस से जुड़ा हुआ है
00:17:00तुम से
00:17:01दोश देने के लिए कोई होना तो चाहिए ना
00:17:07जिसको दोश दे
00:17:07जब सब एक दूसरे से
00:17:11नेटवर्क्ट है तो किसी की कोई
00:17:13इंडिपेंडेंट आइडेंटिटी
00:17:16है नहीं
00:17:18तो दोश नहीं दिया जा सकता
00:17:19और ये सब जो एक दूसरे से
00:17:28जुड़े हुए हैं इनके लिए
00:17:29एक साजहा संयुक्त
00:17:31नाम क्या है
00:17:32प्रक्रति
00:17:34और ये जो प्रक्रति
00:17:38है इसमें बस वही आते हैं
00:17:39जो दिखाई दे रहे हैं या वो भी आता है
00:17:42जो देख रहा है
00:17:43जो देख रहा है
00:17:45द्रिश्य भी द्रिश्टा भी
00:17:47सिर्फ इसलिए कि आपको लगता है
00:17:49कि आप कॉंशियस हैं आप प्रक्रति
00:17:52से अलग नहीं हो गए
00:17:53तो कुछ कुछ यहां
00:17:57चलता रहता है
00:17:58क्या होता रहता है
00:18:00चलता रहता है
00:18:02दुख चलने में नहीं है
00:18:05दुख ये उमीद करने में है
00:18:08कि जो चल रहा है वो मेरे हिसाब से चले
00:18:10कुछ तो चलेगा
00:18:14और जो चलेगा
00:18:16वो किसी के न भले के लिए चलता
00:18:17न किसी के बुरे के लिए चलता
00:18:19ना किसी को बचाने के लिए चलता ना किसी को गिराने को चलता
00:18:23वो बस चलता है
00:18:26हवा चली
00:18:34दो छटों पे कपड़े सूख रहे थे
00:18:39एक करूमाल उड़ गया
00:18:43और एक की कमी सूख गई
00:18:48हवा ने एक से दुश्मन ही पा ली होगी
00:18:52दूसरे से दोस्ती करी होगी
00:18:53एक अब वो छट पर आया वो गरिया आ रहा है
00:18:58वो रुमाल कहा है
00:18:59वो देख रहा है वो रुमाल वहाँ जाके भैस के तवेले में गिरा है
00:19:02भैस गोबर साफ कर रही है उससे
00:19:05पूछ उठा के थैंक्यू बोल रही है
00:19:11वो कहा रहा है ये जो है वायुदेव
00:19:19जरूर मुझसे कुछ खुंदक रखते है
00:19:24हवा चलाई ही इसलिए है ताकि मेरा
00:19:27और दूसरा कहा रहा है देखा मुझको
00:19:31मैं पवन पुत्र हनुमान का उपासक हूँ
00:19:36इसलिए ऐसी बही पवन
00:19:39कि मेरी कमी सूख गई
00:19:43ऐसा ही थोड़ी हम धार्मिक है
00:19:46दैवी ये सैयोग सब हमारे हिसाब से होते है
00:19:50वो ना रूमाल के लिए बही थी
00:19:56ना कमीज के लिए बही थी
00:19:59तुम्हारी इतनी आउकात नहीं हैं कि तुम्हारे लिए कुछ भी हो
00:20:08जैसे किसी छोटे से गाउं के उपर से सुपरसॉनिक प्लेन गुजर जाए
00:20:15और वहाँ पड़ा हुआ है मरियल जुन्नू
00:20:18और कहे ये मुझे परेशान करने की अंतराश्टिय साजेश है
00:20:23वो जो वहाँ उपर से गुजरा है न
00:20:29उसके फ्लाइट पाथ में तुम्हारे गाउं का निशान तक नहीं है
00:20:34उसको पता भी नहीं है कि तुम हो
00:20:39वो गुजर गया उपर से पर अब पीछे से कुछ सोनिक बूम जैसा आ गया
00:20:44युन्नू सो रहा था दिन का ठारवा घंटा
00:20:50ने का ये सब विक्षित मुल्क मिलकर साजिश कर रहे है कि कहीं मैं अपनी प्रतिभा
00:20:59अपनी संभावना का पदर्शन न कर दूँ तो मुझे डिस्टर्ब करने के लिए भेजा है
00:21:05तुम कोई नहीं हो जो हो रहा है वो हो रहा है
00:21:11न तुम्हें बढ़ाने के लिए कुछ हो रहा है न तुम्हें गिराने के लिए कुछ हो रहा है
00:21:16क्यों इतना अपने आपको कुछ समझते हो कि तुम्हारे लिए कुछ हो रहा है
00:21:20प्रक्रति कुछ हो करना है वो कर रही है और उसके करने में कोई प्रयोजन नहीं है प्रक्रति स्वयम के लिए बिल्कुल बे मकसद है निश्प्रयोजन है कोई प्रयोजन नहीं प्रक्रति का क्या प्रयोजन है कुछ नहीं
00:21:36तुम बने बैठे हो करता
00:21:43तो प्रक्रति को ले करके तुम्हारे पास एक प्रयोजन रहता है
00:21:47क्या कामना
00:21:49और यह दिधोड़ी समझदारी की राज चल पड़ो
00:21:53तो वो प्रयोजन बदलता है फिर वो प्रयोजन होता है प्रक्रति से मुक्ति
00:21:57और जैसे जैसे मुक्त होते जाते हो वैसे वैसे ये प्रयोजन भी समाप्त होता जाता है
00:22:10अब क्या है कुछ नहीं जिंदगी क्या है निश्प्रयोजन परपसलिस
00:22:15तो करा क्या जिंदगी भर
00:22:21यही जानने का प्रयास
00:22:25कि जीवन निश्प्रयोजन है
00:22:28निश्प्रयोजन से पहले
00:22:33दो चरण आते हैं
00:22:36पहला तो प्राकृतिक है
00:22:37पहले चरण में पैदा होगे
00:22:40तो प्रयोजन रहता है
00:22:41प्रयोजन क्या है? कामना
00:22:43यह प्रकृति है
00:22:44मैं उससे अलग हूँ ये सब विशा है
00:22:46मैं इनको पालूँ भोग लूँ
00:22:48तो उससे कुछ संतुष्टी मिलेगी
00:22:50ये शुरुवात होती है पहला चरण है
00:22:52दूसरा चरण होता है साधक का
00:22:56वो अपना प्रयोजन बदल देता है
00:22:59वो कहता है मेरा प्रयोजन भोक्ती नहीं
00:23:01मुक्ती है पर प्रयोजन अभी उसके पास है
00:23:05और फिर तीसरा प्रयोजन होता है
00:23:07मुक्ती से भी मुक्ती का
00:23:09अब ये भी अपने उपर बाध्यता नहीं बची
00:23:13बाध्यता वाने बंधन सब बाध्यता हैं
00:23:15obligation बंधन ही है उन्हें अब ये बाध्धता भी नहीं बच्ची की मुक्ति का प्रयास करना है
00:23:19मुक्ति की बाध्धता से भी मुक्त हो गए और अब लीला शुरू होती है
00:23:27अब खेल शुरू होता है जिसको मुक्ति की भी अनिवारता नहीं रही
00:23:32वो अब स्वेच्छा से अपने खेल में अपने प्रेम में बंधन स्विकार कर सकता है
00:23:44क्योंकि मुक्ति आवश्यक है ये कर्तव भी अभी उसी के लिए है जो मुक्ति को वैकल्पिक जान रहा है
00:23:54जिसको लग रहा है कि मुक्ति एक विकल्प है बंधन एक विकल्प है
00:23:58उसको बोला जाता है नहीं नहीं नहीं
00:24:02मैं तेरे उपर ये बंधन लगाता हूं कि तू मुक्ति को अनिवार रिमान
00:24:06जो जान गया कि मुक्ति तो है ही उसका कोई विकल्प है ही नहीं
00:24:15उसके उपर फिर मुक्तिक की भी बाध्यता नहीं लगाई जाती।
00:24:20वो पूनता सुतंत्र हो जाता है।
00:24:24Freedom from freedom।
00:24:27बहुत आगे की बात है। ऐसे यह भी सुन लो।
00:24:30विचरने मत लग जाना।
00:24:38आरी बात समझे।
00:24:41हम।
00:24:45वो आप लोग गाते हो न।
00:24:47क्यों मुझे मुक्त करने को
00:24:49फुद्प्रेम में बंध जाते हो।
00:24:51वो तीसरा चरण होता है।
00:24:53व्यक्ति कहता है
00:24:55मेरी मुक्ति अब मेरे लिए
00:24:57इतनी किंद्रिय हो चुकी है कि
00:24:59वो छिनेगी नहीं कभी।
00:25:03जैसे छाती के भीतर कुछ
00:25:15है तुम्हारे पास हीरा
00:25:17हां
00:25:19और वो ऐसे लटक रहा है
00:25:21या हाथ से
00:25:23वो क्या गया है खेलो खुलके
00:25:25कितना खुलके खेल पाओगे
00:25:27ठिकत होगी
00:25:29क्या लग रहा है
00:25:31खो सकता है
00:25:33अब जेब में डाल लिया आपका खेलो खुलके
00:25:35कितना खुलके खेल पाओगे
00:25:37और फिर यह हुगा कि अच्छा अंदर कोई डर नहीं कि खो सकता है आप कितना खुल के खेलोगे जो पूरी तरह मुक्त हो जाता है वो देखा गया है भहुदा कि अपने उपर फिर सौत रहके बंधन डाल लेता है
00:25:55उसकी मुक्ति अब इतनी गहरी हो गई है इतनी निर्वैकल्पिक हो गई है इतनी अनिवार्य हो गई है कि उससे छिन नहीं सकती तो कहता आने दो आने दो
00:26:13उसकी निर्मलता अब इतनी केंद्रिय हो गई है कि वो मलिन होना भी सुईकार कर लेता है
00:26:21लाउजू बड़ी मज़ेदार बात बोलते हैं
00:26:26बोलते हैं किसी को अगर तुम पाओ कि वो गंदगी से बहुत डर रहा है
00:26:30तो अभी वो बहुत गंदा है
00:26:31किसी को पाओ कि वो सफाई के अभी बहुत बात कर रहा है
00:26:38तो उसकी सफाई गहरी नहीं है
00:26:40साफ आदमी की निशानी ये होगी कि उसे गंदा होने से डर नहीं लगेगा
00:26:48क्योंकि अब वो गंदा हो ये नहीं सकता
00:26:50मुक्त पुरुष की निशानी ये होगी कि वो बंधनों में देखा जाएगा अक्सर
00:26:58क्योंकि वो अब बंध ही नहीं सकता
00:27:01और जिसको बोलो बंधन और वो उचक के खड़ा हो जाए भागने लगे
00:27:13चिंता में पड़ जाए पैनिक आ जाए उसको है है बंधन आ गया
00:27:19यह जान लो कि यह पहले से ही बंधन में भीतर से ही मुक्त ही नहीं
00:27:31कथाएं हैं पुरानी मीठी हैं जहां पर बहुत अवसरों पर
00:27:37हम जिनको महापुरुश या अवतार बोलते हैं उन्होंने स्वयम बंधन स्विकार कर लिए हस्ते हस्ते
00:27:45और ऐसों से बंधन स्विकार कर लिए जो किसी हालत में उन्हें बंधन में डाल नहीं पाते
00:27:55ऐसों के आगे जुक गए जो किसी हालत में उनको जुका नहीं पाते
00:28:00यह संसार से पूर्ण मुक्ति के प्रतीक है
00:28:16अब हम संसार में खेल सकते हैं
00:28:20न हमें बंधन की चिंता है न हमें मुक्ति की चिंता है
00:28:27क्योंकि मुक्त तो हम हैं ही
00:28:30संसार को सत्य मानना
00:28:48आवश्यक कर देगा आपके लिए कि संसार की चिंता भी करो
00:28:54और संसार को सत्य मानना आवश्यक हो जाता है
00:29:09जब आप स्वयम को सत्य मानते हो
00:29:12जिसको अपना यथार्थ नहीं पता उसे संसार का क्या पता चलेगा
00:29:19तो आम आदमी इसी लिए दो सत्यों में जीता है
00:29:26किसी से भी पूछलो ये दो सत्य मिलेंगे
00:29:33एक द्रिश्य एक द्रिश्टा
00:29:36एक तो मैं सत्य हूँ
00:29:39और दूसरे ये खंबा सत्य है
00:29:42और इन दोनों सत्यों में से किसी एक को भी आप जुठला नहीं सकते
00:29:49क्योंकि एक गया तो दूसरा भी चला जाएगा
00:29:51खंबे पर सर मारते हो तो गूमड निकलता है
00:29:57और गूमड निकलने के लिए दोनों चाहिए
00:30:00खंबा भी और सर भी
00:30:01तो कैसे बोल दें कि खंबा जूट है
00:30:05खंबा जूट है तो गूमड कहा से आया
00:30:07और कैसे बोल जाए कि सरज हूट है
00:30:09सरज हूट है तो गूमण किस पर आया
00:30:11वो ये दो सत्य
00:30:14सब की जिंदगी में होते हैं
00:30:16एक मैं और एक खंभा
00:30:17खंभा माने क्या
00:30:19कुछ भरोसा नहीं आप क्या सोच रहे होगे
00:30:22ये बात समझ में हम जीते हैं
00:30:30दो सत्यों में
00:30:31और ये दो सत्य मजे की बात है
00:30:33कि एक दूसरे से सदा प्रतिसपरधा में है
00:30:36जीव और जगत को कभी सौजन्य में देखा है
00:30:40कि उनमें कुछ हर्मनी हो
00:30:43समरस्ता हो
00:30:44पिखा है
00:30:47जीव और जगत में लगातार क्या रहते हैं
00:30:49द्वन्द
00:30:50कॉन्फिलिक्ट
00:30:52ये कौन से दो सत्य हैं
00:30:54जो आपस में एक दूसरे को
00:30:55छीलते रहते हैं
00:30:57ऐसा हो सकता है
00:30:58पहले तो दो सत्य है
00:30:59पता नहीं कहां से दो हो गए
00:31:01और दो भी ऐसे हैं कि आपस में दूसरे लड़ भिड़ रहे हैं
00:31:05जीव जगत से डरता है
00:31:07और जगत
00:31:10कशोशन जीव कर रहा है
00:31:12तो जगत को
00:31:14बरबाद कर रखा है
00:31:15जीव ने और जीव को लग रहा है
00:31:18कि ये जगत मेरा दुश्मन है
00:31:20ये कैसा रिष्टा है दोनों सत्यों का
00:31:22आपस में
00:31:23जब दो सत्य होंगे न तो यही होगा
00:31:26आपस में
00:31:28लड़ मरेंगे
00:31:29और जब भी दो सत्य दिखाई दें
00:31:32तो ये मत पूछने निकल जाना कि
00:31:33दोनों मेंसे कौन सा
00:31:35कहना दो है तो
00:31:37दोनों जुटे
00:31:39दो है तो
00:31:41दोनों जुटे
00:31:43किसकी चिंता करें
00:31:46किसके विरुद
00:31:48इससे ही
00:31:52मैं निर्मित हुआ
00:31:54और मैंने इससे कहा नहीं था
00:31:58मुझे निर्मित करो
00:32:00मैं इसकी लहर हूँ
00:32:01मैं इसकी लहर हूँ
00:32:04इसकी मरजी मैं खड़ा हो गया
00:32:06और अब मैं इससे
00:32:08पतिदुन दिता करूँ
00:32:09मैं कहूं मुझे इसके विरुद रक्षा चाहिए
00:32:12किसकी बात कर रहा हूँ
00:32:16प्रक्रतिकी
00:32:18ये सब कुछ जो है
00:32:22इसी से मैं खड़ा हुआ
00:32:24और
00:32:25इसने मुझे खड़ा करा
00:32:28उससे पहले मेरी कोई
00:32:29भाग से तसप्ता भी नहीं थी
00:32:32या ऐसा था
00:32:33कि मैं किसी रूप में
00:32:36सूक्ष्य रूप में फिर रहा था
00:32:37और मैंने जाके प्रक्रतिके महासागर से कहा
00:32:40थोड़ा
00:32:41हमारा भी नंबर लगाओ
00:32:44पैदा कर दो
00:32:47ऐसा तो नहीं हुआ
00:32:48पहले पैदा हुए फिर मैं बोले
00:32:51या पहले मैं मैं बोल रहे थे
00:32:55और बहुत ज्यादा
00:32:57शोर मचाया तो पैदा हो गए
00:32:58ऐसा तो नहीं हुआ
00:33:00उसकी मरजी थी
00:33:03या उसके सायोग थे
00:33:05जिससे
00:33:06पैदा हो गए हो
00:33:07और जिसके सहियोंक से पैदा हुए हो वही दुश्मन हो गया
00:33:11ऐसा तो नहीं हो सकता
00:33:14तो क्यों चिंता करनी
00:33:17चिंता के मूल में कामना बैठी है
00:33:20कामना के साथ डर चलता है
00:33:23इन दोनों के नीचे और जाओगे तो बस मिलेगा अग्यान
00:33:28जो स्वयम को नहीं जानता
00:33:31वो जगत के प्रतिस सदा, डर, कामना, चिंता हिंसा में रहेगा
00:33:36कोई इसमें अपवाद नहीं हो सकता
00:33:40कोई कहें नहीं, नहीं, मैं तो दुनिया से बहुत प्रीत में रहता हूँ
00:33:46मीठे मेरे रिष्टे हैं
00:33:49सब के लिए अच्छा ही करता हूँ, भला ही करता हूँ
00:33:54पर अध्यात्मिक नहीं हूँ
00:33:57भीतर अपने कभी नहीं जाकता देखता
00:34:04लेकिन दुनिया में मैं सब की भला ही करता हूँ
00:34:07तो ये संभव नहीं है
00:34:09और अगर ऐसा कोई धोखा आप खा रहे हों
00:34:12तो सावधान हो जाएए
00:34:13चोट लग जाएगी
00:34:16आत्म अज्यानी की विवश्टा रहेगी
00:34:24संसार के प्रते
00:34:26द्वंद
00:34:28कामना
00:34:30डर
00:34:31इंसा
00:34:33चिंता
00:34:34नियम है
00:34:37यह होगा ही होगा
00:34:40जो स्वयम को नहीं जानता
00:34:41दुनिया को भी नहीं जानता
00:34:44दुनिया और अपने रिष्टे को नहीं जानता
00:34:45उसके लिए ये दोनों प्रतिद्वंदी सत्य है
00:34:48मैं हूँ दुनिया है
00:34:49और हमें आपस में होड लगी हुई है
00:34:51संसार क्या बोल रहा है
00:34:55मार दूँगा मार दूँगा
00:34:57मिट्टी कर दूँगा मैं कहा रहा हूं मिट्टी होने से
00:35:00पहले तुझे भोग लूँगा
00:35:01जैसे वीडियो गेम चल रहा हूँ
00:35:03उपर टाइमर लगा हुआ है
00:35:05नीचे तुमाई पॉइंट्स बन रहे है
00:35:07टाइमर बोल रहा है इतने वज़े
00:35:09खतम कर दूँगा तुम बुर रहे उससे पहले
00:35:11सारे पॉइंट्स भोग के जाऊंगा
00:35:13यही चलता है न
00:35:15तो यह हम इतने
00:35:17एडल्ट लोग हैं कि यह वीडियो गेम
00:35:19हमारी जिन्दगी का मॉडल है
00:35:21जो चौथी क्लास का बच्चा खेले वीडियो गेम
00:35:26वो हमारे
00:35:27सब एडल्ट की भी जिन्दगी का मॉडल है
00:35:29कोई और मॉडल हो तो बता दे न
00:35:31है कोई
00:35:32सब इसी हिसाब से चलते हैं
00:35:35जिन्दगी टाइम बॉम है
00:35:36जिन्दगी क्या है
00:35:38टिक टिक टिक टिक चल रहा है
00:35:41अट्ट होने वाला है
00:35:43उससे पहले क्या करना है
00:35:44मौज काटनी है
00:35:46टाइम बम लगा हुआ है
00:35:48कहाँ पे यहाँ पे भीतर अंदर सेट है
00:35:50महार भी नहीं बन्दा है
00:35:54दिल के अंदर क्या सेट है
00:35:57अवो फटेगा उससे पहले क्या करना है
00:36:00अब आप लोग ऐसे गाने खोज के लाना
00:36:08जो बिलकुल इसी भाव पर आधारित है
00:36:11तोपल का जीना फिर तो है जाना
00:36:16उसके पहले जितना हो सके मौज मनाना
00:36:22आप क्या सोचते हो
00:36:25कोई भी आपका वक्तव्य
00:36:27यूहीं आ जाता है नहीं
00:36:29उसकी एक दारशनिक प्रिष्टभू में होती है
00:36:31एक एक शब्द, एक एक भाव, एक एक विचार, एक एक गीत
00:36:36सब किसी न किसी दर्शन से आ रहे है
00:36:40दिक्कत बस यह है कि हमें पता ही नहीं किस दर्शन से आ रहे है
00:36:44क्योंकि वो दर्शन हमने कभी पढ़ा नहीं
00:36:46वो दर्शन हमें हवाओं से मिला है
00:36:48सब दार्शनिक है
00:36:52मनुष्य होने का आर्थी है
00:36:54कि आपके पास जीवन
00:36:55का कोई खाका होगा
00:36:57नक्षा होगा
00:36:58वही आपकी फिलोसफी है
00:37:01कोई ऐसा नहीं होता मनुष्य जो फिलोसफर ना हो
00:37:04तब होते हैं
00:37:06लोगों कि सोशल मीडिया
00:37:12प्रोफाइल पर चले जाओ
00:37:13अक्सर वो अपनी फोटो के नीचे कुछ लिखते है
00:37:16क्या वो फिलोसफी का एक वक्तव नहीं है
00:37:19बोलो
00:37:20हर व्यक्ति फिलोसफर है
00:37:22हर व्यक्ति कैसा फिलोसफर है
00:37:25बैड फिलोसफर
00:37:28क्योंकि आपको पता भी नहीं है
00:37:30कि आपकी फिलोसफी क्या है
00:37:31आप जीवन
00:37:34कि कुछ माननेताओं पर चल रहे होते हैं
00:37:38आपको पता भी नहीं कि आपके पास माननेताओं है
00:37:41आपको पता भी नहीं
00:37:53आप सोच रहे हो आप
00:37:54किसी चीज़ पर नहीं चल रहे हो
00:37:56आपको जो लग रहा है वो टुथ है
00:37:59पहली बात तो माननेता है
00:38:02और दूसरी बात वो माननेता भी आपके भीतर चोरी छुपे आई है
00:38:05आपको पता भी नहीं चला उसने आप में कब प्रवेश करा
00:38:08आप जानते भी नहीं हो कि आप भीतर भीतर किस बात में यकीन करते हो
00:38:13और अगर एक तार्कित प्रक्रिया से ये खोल के रख दिया जाए
00:38:32आप माननेता रखते हो और वही माननेता आपके कर्मों में विचारों में चिंताओं में वक्तव्यों में और गानों में भी परिलक्षित होती है
00:38:43बस जब आप गुनगुना रहे होते हो तो आपको नहीं पता होता कि इस गाने के पीछे की फिलोसफी क्या है
00:38:54बस गुन गुना दिया
00:38:58और कितर नहीं
00:38:59बट इस टा कैजूल हामलेस सॉंग
00:39:02आप आप इंसान हो
00:39:05हामलेस या हामफुल मुझे पता नहीं
00:39:10पर मीनिंगलेस कुछ नहीं होता आपका
00:39:12मैन इस अ क्रियेचर ओफ मीनिंग
00:39:15मीनिंग मीन्स डिजायर
00:39:16आप पैदे ही हुए थे
00:39:19कलपते हुए कि हाई हाई कुछ मिल जाय
00:39:21आपकी जिंदगी में कुछ भी
00:39:23मीनिंगलेस नहीं हो सकता
00:39:24आप घास का एक तिनका भी
00:39:27उठा होगे तो उसमें भी कुछ अर्थ होगा
00:39:29उसी से स्वार्थ निकलता है
00:39:30वही काम ना है
00:39:31but there is nothing in it
00:39:35there is always something in it
00:39:37there is always something in it
00:39:49जिसने ये जान लिया
00:39:51उन्ही कह रहे हैं वो कामना चिनता से
00:39:54मुक्त हो जाता है
00:39:55न उसको शोक रहता न लालसा
00:40:01एक अनन्त प्रक्रिया है
00:40:10जो चल रही है
00:40:11तुम इस प्रक्रिया के
00:40:14एक छोटे से हिस्से हो
00:40:16वो हिस्सा प्रक्रिया से अलग नहीं है
00:40:20तुम उठे थे
00:40:22ये भी प्रक्रिया का संयोग था
00:40:25तुम गिरोगे ये भी प्रक्रिया का संयोग है
00:40:27तुमसे पहले भी थी
00:40:29तुम्हारे बाद भी रहेगी तुम्हारा होना कोई माइने नहीं रखता
00:40:33तुम्हारी समस्या ये नहीं है
00:40:37कि प्रक्रिया तुम्हें दुख दे रही है
00:40:41तुम्हारी समस्या ये है कि तुम सोचते हो
00:40:44कि दुख पाने के लिए तुम हो
00:40:46तुम अपने आपको प्रक्रिया से अलग एक अस्तित्तो जाने बैठे हो
00:40:54तुमने ये दो सत्य खड़े कर दियें
00:40:58एक रही वो प्रक्रिया और एक हूँ मै
00:41:00I came into this world
00:41:05No, you are always here
00:41:07I am a visitor here
00:41:10No, you are always here
00:41:13One day I will depart
00:41:15No, you are too stubborn to do that
00:41:21I know you will stick around
00:41:23Nobody departs
00:41:26Wish one could
00:41:29Nobody departs
00:41:32कोई कहीं नहीं जाता
00:41:33जिस अर्थ में तुम मैं कह रहे हो
00:41:38जिसको तुम मैं कह रहे हो
00:41:40वो यहीं था, यहीं है
00:41:42और यहीं रहेगा
00:41:44यह प्रक्रत ही है
00:41:46अब बताओ चिंता किस बात किये
00:41:49चिंता तभी होती है
00:41:50जब तुम जानते नहीं तुम कौन हो
00:41:52तब तुम्हें लगता है मैं हाँ आया हूँ
00:41:54मौज मारने का जो टाइम है वो सीमित है
00:41:57और उतनी में जितना लूटना था मैं लूट नहीं पाया
00:42:01यार ऐसा ही रह गया
00:42:04यह ओफर बस मध्यरात्री तक है
00:42:15जुन्नुस हो गया
00:42:20उठा साड़े बारा बजे बोलता अरे यह तो मध्यरात्री तक ही था
00:42:28अउसर बीतो जाए उसको पता ही नहीं कि संस्था वाले बारा बजे ऑफर बंद करना भूल जाते हैं वो अगले दो दिन तक भी वैसा ही रहता है
00:42:40कोई अउसर नहीं बीत रहा है काई चिंता ले रहे हो
00:42:48कि वो कल था वो आज है और तुमसे कुछ भी बोला गया हो वो कल भी रहेगा चिंता मत करो
00:42:57कुछ चिंता बच रही है हजार साल पहले भी यहीं थे आज भी यहीं हो हजार साल बाद भी यहीं बैठे रहो गया दुखी काई के लिए हो रहे हो
00:43:19दुखी हो रहे हो इस विशिष्ट रूप रंग से तादात में रखके
00:43:27क्योंकि यह वाला जो चेहरा है यह नहीं था हजार साल पहले चेहरा था यह चेहरा नहीं था
00:43:342000 साल बाद भी कोई चेहरा रहेगा,
00:43:36यह चेहरा नहीं रहेगा,
00:43:37तो इसको सोचते हो,
00:43:38इस खास है,
00:43:38अब यह खास कैसे है,
00:43:40दो आंग तुम्हारे दो आंग किसी और के भी है,
00:43:43जो नाम तुम्हारा है,
00:43:44वोई हजारों और लोगों का भी है,
00:43:45इसमें भी क्या खास है
00:43:48कि है
00:43:50चिंताओं में सबसे बड़ी चिंता होती है
00:43:57न रहने की चिंता
00:43:58चिंताओं वाने डर
00:44:02और जितने भी डर होते हैं
00:44:04वो सब किसी न किसी तरह से मृत्यू के ही डर होते है
00:44:07मैं नहीं रहूंगा
00:44:15और दर्शन तुमको बताता है तुम जाओगे कहाँ जाओगे कहाँ जाके दिखाओ तुम कहीं नहीं जा सकते अगर तुम देह हो तो तुम कहीं नहीं जा सकते
00:44:30और चले जाने का अर्थी यही है कि मैंने जान लिया कि मैं कहीं नहीं जा सकता जिन्होंने ये ठीक ठीक जान लिया कि देह के लिए कोई विदाई संभव ही नहीं है उनकी विदाई हो जाती है
00:44:49देह की नहीं होती उनकी हो जाती है देह की कोई विदाई नहीं संभव है एक अर्थ में देह की मृत्य हो ही नहीं सकती
00:45:00आप अपने शरीर का एक अंश एक कोशे का एक परमानू बता दीजिए जो आज से दहजार साल पहले नहीं था कहा मौत हुई है
00:45:14सब के सब यहां पर रिपैकेज़्ट माल बैठे हुए हो
00:45:21हैं ऐसे है नया नया नया नया नहीं है रिसाइकल्ड है
00:45:29पैदा होगे पैदा नहीं हुआ है अब क्या है रिसाइकल्ड माल घूम रहा है चाल तरह यहां नया कोई होते ही नहीं
00:45:38प्रक्रति की क्या policy है
00:45:43zero wastage, hundred percent recycling
00:45:45आप कोई डर है, कहीं जाओगे
00:45:51recycle होके
00:45:52यहीं बैठे रहो
00:45:54यहीं बैठे रहो
00:45:58और अगर जाना है
00:46:01सच मुझ
00:46:02recycle होते होते
00:46:05बोर हो गए हो, तो बस यह
00:46:06जान लो, यहाँ
00:46:08तो बस recycling ही
00:46:10मिलेगी, पुनर
00:46:12चक्रण ही पुनर जन्म है
00:46:15recycling
00:46:17is rebirth
00:46:18और जो फिर उब गया
00:46:23उब गया माने वसी कामना नहीं
00:46:24बची, जब तक कामना है तो उब होती है
00:46:26कहीं पर आज तक आप
00:46:28उबे हो, तो यही हुआ होगा
00:46:30कि वहाँ कामना समाप्त होगी, कामना समाप्त हो जाती है
00:46:33no desire, then boredom
00:46:35यही होता है न
00:46:36जो उब जाता है, माने जो
00:46:38कामना मुक्त हो जाता है
00:46:40वो फिर कहता है कि
00:46:42मैं क्यों बार बार इस चक्करें पड़ूं
00:46:44यहाँ कुछ है ही नहीं
00:46:46कोई जूला है
00:46:48चक्कर वाला ही
00:46:50उसमें तभी तक तो चड़ोगे न
00:46:53जब उसमें कुछ
00:46:54नया मिलने की आस रहेगी
00:46:56यहाँ रुमांच है, ज़रा और experience ले ले
00:46:58फिर थोड़ी देर में क्या होता है
00:47:00पांस, आठ, दस, बीस चक्कर मारके क्या होगा
00:47:02उब जाओगे
00:47:04जब उब जाओगे तो हट जाते हो
00:47:05यही मुक्ति है
00:47:07कब तक इसमें लगा रहा हूँ
00:47:09देख लिया कि यहाँ पर कुछ अब
00:47:13अलग होई नहीं सकता
00:47:16क्योंकि सब
00:47:17गोल गोल घूम रहा है
00:47:19जब सब गोल गोल घूम रहा है
00:47:20तो मैं वहाँ काई के लिए फसा रहा हूँ
00:47:22बुद्धू हूँ हूँ मैं कोई
00:47:23भाड़ी बात हूँ
00:47:29यह मुक्ति है
00:47:34यह देख लेना
00:47:37कि शरीर के लिए
00:47:39कोई मुक्ति नहीं हो सकती
00:47:41यही मुक्ति है
00:47:42और यह देख लेना
00:47:45कि जिसको मन बोलते हो
00:47:46वो तन ही है
00:47:47तो तन मन इनके लिए कोई मुक्ति संभव नहीं है तुम मुक्त हो गए
00:47:56जब तक लगता रहेगा तन और मन के लिए मुक्ति है तो फिर कामना है अब कामना है तो फसे रो
00:48:05ये क्या हैं? ये इसी प्रथवी का माल है है
00:48:17जैसी पानी वैसी वानी और जैसा अन वैसा मन तो मन भी क्या है इसी प्रत्वी का माल है
00:48:27और यह जो माल है तो ऐसे ऐसे घूमेगा माल लगतार क्या हो रहा है
00:48:33रीसाइकल तुसे मुक्ती मिल सकती है तुम पूरे ब्रहमांड में से एक परमाणु को मुक्त करके दिखाओ
00:48:41दिखाओ कहां भेजोगे उसको
00:48:44जो पूरा मास एनर्जी एक्विवेलेंस का नियम है वो क्या बोलता है
00:48:52मुक्ति नहीं मिल सकती भाई
00:48:55मास है तो अधिक चदिक क्या करेगा वो
00:48:58एनर्जी बन जाएगा एनर्जी बन के क्या करेगा अलग लगतर है कि एनर्जी बन जाएगा
00:49:03और वो जो एनर्जी है वो भी किसी नक्सी समय पर फिर से
00:49:08मास बन जाएगी
00:49:10मुक्ति का मिल रही है बस क्या हो रहा है
00:49:13तो ना तन के लिए मुक्ति संभव है न यह तो यहीं पड़ा रहेगा
00:49:18प्रक्रति की प्रक्रिया में यह गुल-गुल-गुल करता रहेगा
00:49:25मैं चला
00:49:26मा का खेल है
00:49:32मा जाने
00:49:34हम बहुत खेल लिए मा
00:49:37मुक्त करो
00:49:38मुक्ति और कुछ नहीं है
00:49:43तन मन की मुक्ति की कामना से मुक्त हो जाना मुक्ति है
00:49:49संसार के प्रति आप जितने भी आग्रह रखते हो
00:49:54आग्रह ही चिंता बनते हैं
00:49:56संसार के प्रति जितने आग्रह रखते हो
00:49:58वो इसी दार्शनिक आधार पर होते हैं
00:50:01कि कुछ तो मिलेगा जो तन और मन को त्रिप्त कर देगा
00:50:04माने मुक्त कर देगा
00:50:07पूरे ब्रहमांड में कुछ ऐसा नहीं मिलना है
00:50:12जिससे तन मन की मुक्ति हो जाए
00:50:15क्योंकि ये शरीर और ये ब्रहमांड एक है
00:50:18वहां से इसमें कुछ जोड़ना संभव नहीं है
00:50:22और अगर वहां से इसमें कुछ जोड़ोगे भी
00:50:23तो इसमें तुमने वही जोड़ा जो ये
00:50:26पहले से है तो इसमें कुछ अतरिक्त जोड़ा नहीं जा सकता
00:50:29ना इसमें ना इसमें
00:50:31तो इनको तुम बढ़ा नहीं सकते
00:50:33इनको तुम बहतर नहीं कर सकते
00:50:34इनको तुम किसी और तल पर नहीं ले जा सकते
00:50:37पदार्थ, मैटर, मैटर ही रहेगा उसको कित्ता भी चमका लो
00:50:41या कुछ और हो जाता है
00:50:43इनके साथ बहुत कोशिश करना
00:50:46कोई फाइदे की बात नहीं है
00:50:48जिसने जान लिया कि ये कोशिश फाइदे की नहीं है
00:50:51वो मुक्त हो गया
00:50:52हाँ मुक्त होने के बाद उसको कोई खेल खेलना हो तो
00:50:56खेले
00:50:57वो उसकी मौज है
00:50:59हम उसमें बोलने वाले कोई नहीं होते
00:51:03मौज है
00:51:12अध्यात्म की पूरी प्रक्रिया है इसलिए
00:51:14कि आप एक ऐसी जगह पहुँच जाओ
00:51:16जहां आपकी मौज में हस्तक्षेप करने का हक किसी को न बचे
00:51:20और वो हक आप ही देते हो
00:51:26जब तक आप किसी पराश्रित हो तब तक आपने
00:51:29उसको हक दे रखा है दखल देने का
00:51:30आपकी मौज
00:51:33पूरे तरीके से
00:51:35सारवभाम
00:51:36स्वतंत्र तभी हो पाएगी
00:51:39जब आप
00:51:39मुक्त हो तो किसका अधिकार है फिर आके की रोकेटों के
00:51:44जो हो नहीं सकता
00:51:52उसकी कोशिश करनी
00:51:53बंद करो
00:51:55मिट्टी में मिट्टी जोड़ने से सोना
00:52:01शरीर में पूरा ब्रहमांड भी जोड़ दो
00:52:07तो शरीर ही रहेगा
00:52:09मन में पूरा ब्रहमांड भी घुसेड़ दो
00:52:14तो भी मन
00:52:15मन ही रहेगा
00:52:17ये न त्रिप्त होंगे
00:52:22न संतुष्ट न शांत
00:52:23असंभव की कोशिश बंद कर दो
00:52:29जब तक आशा रहेगी अब तक चिन्ता रहेगी
00:52:41जब भी कभी दुनिया से दुख मिल रहा हो
00:53:00अपने आप से पूछिएगा उमीद कहां है
00:53:11दुनिया आपको दुख देने को आतुर नहीं है
00:53:25स्वयम के प्रते अज्ञान के कारण आप दुनिया से कुछ आशा रख लेते हो
00:53:32कुछ क्या एक ही आशा होती है कि दुनिया मुझे त्रिप्त कर देगी
00:53:36वो आशा पूरी हो नहीं सकती वही चिंता बनती है
00:53:42जब चिंता बनती है तो हम यह तो कहते हैं नहीं कि मैं ही पता नहीं क्या उमीद पाल के बैठा था
00:53:48हमें लगता है कि सामने वाला मेरा किसी को दुश्वन ठहराने से पहले अगर जिंदगी दुख दे रही हो तो बस एक सवाल पूछेएगा अपने आप से उमीद कहां पर है
00:53:58गौर से देखो उमीद होगी उमीद नहीं होती तो दुख नहीं पाते
00:54:02और जो लोग जितनी भूख में जितनी उमीद में जीते हैं उनके दिल पर उतनी चोट पड़ती है बार-बार
00:54:19वो सेंसेटिव नहीं है वो क्या है वो सुरसा है सुरसा मने कौन
00:54:30और आक्षे सी उसका क्या लक्षन क्या था उसका है तो सेंसेटिव नहीं है उसका सुरसा समान मुह है काहे के लिए
00:54:43भूख भोग लालसा पुरा ब्रह्मान दे दो अंदर और मुह तब भी खोला रहेगा भी और चाहिए
00:54:51और कुछ भी उसके मुह में डाल दो चैन उसे आना नहीं है इसलिए उसे बार-बार चोट लगती है
00:55:00इतनी भारी उम्मीद इतनी भारी उम्मीद यूनिवर्स साइजड एक्सपेक्टेशन छोटी मोटी भी नहीं ऐसों से बचना बहुत बचना
00:55:15ऐसा कोई तुमाई जिन्दगी में है उसकी मुह में तुम पूरा भी घुच जाओगे तुभी उसे चैन नहीं मिलेगा उसे अभी और चाहिए मर के भी तुम उम्मीदें नहीं पूरी कर सकते
00:55:27उम्मीद ऐसी चीज है अपनी हो किसी और की हो जान दे दो पूरी प्रहमांड दे दो पूरी
00:55:44क्या हमने सुत्र पकड़ा अगली बार जब दुनिया दिल दुखाए तो हमें क्या पता करना है उम्मीद कहां पर थी
00:55:56क्या उम्मीद खूल के बोलो कि इसके माध्यम से स्वयम को रिप्ते मिल जाएगी यही उम्मीद
00:56:11ये मैं क्यों कह रहा हूँ कि देखो
00:56:17क्योंकि हमें नहीं पता होता
00:56:20हम ऐसे धुरंधर हैं कि उम्मीद भी पाले रहते हैं
00:56:24और पता भी नहीं होता कि उम्मीद पाल रखी है
00:56:26तो इसलिए देखना पड़ेगा तब पता चलेगा
00:56:29ऐसे ही नहीं पता चलेगा
00:56:30हमें सबसे उम्मीद होती है
00:56:33प्रमाण यह है कि सब हमारा दिल तोड़ देते है
00:56:37कोई है जो तुम्हारा दिल न तोड़ने की ताकत रखता हो
00:56:43है कोई
00:56:48चौराहे पर गाड़ी खड़ी होई भिखारी आया
00:56:53तुमने ऐसे निकाला दसका नोट डाल दिया
00:57:00तो चला गया अब बीस मिनट से मूड खराब है
00:57:04मैं स्टेरिंग पर था मैंने का क्या हो गया
00:57:11जरा भी आभार नहीं था उसकी आखों है
00:57:17सच चिन ग्रैटिट्शूट
00:57:23वाट इस दे वर्ल्ट कम टू
00:57:26तुम दस रुपए भी नहीं दे सकते बिना कुछ चाहे
00:57:32पहले उससे साइन करा लेते
00:57:37ठै बार थेंक्यू पाँच बार धन्यवाद आठ बार शुक्रिया बोलूँगा
00:57:42गिन गिन के
00:57:44कोई भी नहीं आके दिल तोड़ जाता कोई भी आके नहीं तोड़ जाता
00:57:55किसी को जानते नहीं बात करनी है आया है यह है इन्होंने करा है आवेदन फॉर्म भरा है बात कर लो बात करी उसने कुछ
00:58:05क्या रूड लेना ने एक न देना दो अपना काम करो आगे बढ़ो
00:58:13उससे जो उम्मीद है वो हमें हमारे बारे में क्या बता रही है
00:58:19भयानक खोखलापन
00:58:22यहां बैठा है एक भिखारी जो हर आते जाते से भीख मांग रहा है
00:58:28बिखारी भीख मांगने के लिए पहले नाम पूछता है क्या तो वैसे ही तुम भी उम्मीद रखने के लिए नाम नहीं पूछते
00:58:35हर एरे गएरे आते जाते से उम्मीद बांध लेते हो बिखारी
00:58:38जो मिला उसी से
00:58:43कई तो इतने वो होते अभी ये नया वो कराया है न्यू हियर डू अब बाजार में निकले दो चार ऐसी हिल हिल गिल गिल कर रहे थे
00:58:57उन्हें पता भी नहीं तुम कौन हो ना उन्हें कोई लेना देना है उनकी जिंदगी है उनकी अपनी समस्याएं है वो तुम्हें बाल में तुम्हारे नहीं घुसेंगे तुम्हारे बाल में जुआ भी नहीं घुसना चाहता
00:59:14तुम अपने आपको क्यों इतना मान रहा है
00:59:18कि पूरी दुनिया तुम्हारे बाल पर
00:59:19फोकस कर रही है
00:59:22दिल तूट जाता है
00:59:23कभी इस बात पर हो जाता है
00:59:28कि they were giggling at me
00:59:29और कभी इस बात पर हो जाता है
00:59:30कि अभी कराया nobody gave me any attention
00:59:32सबसे काम ना है
00:59:36सबसे
00:59:44बादल से भी है सूरज से भी है सोच के देखो
00:59:47बारिश हो गई बिन बुलाए बरसाता गई धूब ज्यादा है मूड आफ हो गया
00:59:58सूरज तुमसे पूछ के चले
01:00:04बादल पूछ के बरसेगा पर हमारी उमीद उनसे भी रहती है
01:00:14इससे आत्म अज्यान का पता चलता है
01:00:19इतनी रिक्तता है भीतर सूरज सा के मूँ जैसी
01:00:25कि वो सब कुछ खा लेना चाहती है और तब भी भरती नहीं वो
01:00:31अनन्त अथाख कोई गढ़्धा हो जैसे
01:00:41अतल डालते जाओ डालते जाओ उसके तल ही नहीं है
01:00:46ये आत्म अज्यान में होता है आत्म अज्यान छोटा मोटा नुकसान नहीं करता
01:00:52वो भीतर एक अतल गहाव देता है कितना गहरा है वो अतल है
01:00:57उसकी गहराई नाप नहीं सकते वो अतल गहाव है
01:01:03आत्म अज्ञान इतना गहरा घाओ देता है
01:01:05वो अतल है तभी तो पूरी दुनिया भी उसमें तुम डाल दो कामना से
01:01:09तो भी ओ गढ़्धा नहीं भरता
01:01:11और कितना भी आप
01:01:21अश्टावक्रमुनि से सुन लें
01:01:24ये बात आपको तब तक कौन देगी नहीं
01:01:27जब तक इसको अपनी जिन्दगी में होते हुए नहीं देखोगे
01:01:29कि चौराहे के भिखारी से भी आपकी उम्मीद है
01:01:36जब तक ये आप उसी इक्षण पर नहीं देखोगे चौराहे पर
01:01:40तब तक ये बात आपको समझ में नहीं आई कि जो मैं आपसे कह रहा हूँ
01:01:43ये लगया है ये ग्यान नहीं है ये हमारी कुंडली है जिन्दगी है हमारी याईना है
01:01:52अच्छ चलो आप में से कितने लोग कभी न कभी किसी रेस्टरॉण के वेटर के व्योहार से हर्ट हुए है
01:02:03जूट तो बोलना मत चलो
01:02:05क्या पता चलता है उसका नाम जानते थे उससे कोई रिष्टा उससे दुबारा मिलना है ब्या करना उससे
01:02:14कोई नाता उससे उससे पैसा उधार दिये हो
01:02:17पर कुछ बात होती है रेस्टरॉण में हर दूसरा आदमी वेटर के व्योहार से नाखुश हो रहा होता है
01:02:27और वेटर्स फिर धीरे धीरे इसकी फिकर करना छोड़ देते दिन में दस तो कंप्लेंट आती है
01:02:37मैनेजर ऐसे कान में रूई रखके आता है हाँ जी बताइए आप बताते हो यह नो दैट फेलो
01:02:43जानते हो क्यों क्योंकि आम तोरपे जब रेस्टरों में जाते हो तो बहुत सारी कामनाओं की खाते रही जाते हो
01:02:53अब आप चाहते हो कि पूरी दुनिया मिलके वहाँ आपकी कामना पूरी करें, वेटर आपकी कामना पूरी करने को नहीं है, वो तो वहाँ अपनी नौकरी बजा रहा है, वो लाके यासे रख देता है कुछ, आप कहते हो, युटेंसिल्स रखते हुए आवाज कर रहा है, भा
01:03:23you know he is purposefully ignoring me
01:03:28हो सकता है कि हो purposefully भी आपको ना देख रहा हो पर उसकी वज़ाई यह है कि हो ठका हुआ है
01:03:38और हो सोच रहा है कि मैं नहीं देखूंगा कोई और देख लेगा तो कोई और आ जाएगा मेरा काम बच जाएगा
01:03:45और आपको लग रहा है कि कहीं उसे पता तो नहीं चल गया कि मेरा मुँ बद्बू मारता है कहीं इस वज़े से तो मुझे आवाइड नहीं कर रहा
01:03:55और थोड़ी देन मुझे आपको देखता हूं भी
01:04:15यह है असली परीक्षर कितने लोग जानवरों से भी हर्ट हुए हो हर्ट माने ऐसे नहीं कि काट लिया वो भीतर वाला मानसिक साइकलोजिकल
01:04:26यह देखो
01:04:30यह प्यारी सी किटेन है सब लोग उसे हाथ में ले रहे हैं
01:04:38सबके साथ जाती है फोटो खिचवाती है मेरे पास आई मेरे मूँ पे पूछ मारी और भाग गई
01:04:46जिचेट मैं उसको ड्रमेटाइज कर रहा हूं पर इन्वेंट नहीं कर रहा जो होता है मैं बस उसका एक नाट की रुपांतरन प्रस्तोत कर रहा हूं पर जो होता है वो तो होता है
01:05:09वो मैं नहीं आविश्कृत कर रहा, वो होता है
01:05:11हम जानवरों तक से बुरा मान जाते है
01:05:13such a prejudiced cat
01:05:17गंदी नसल
01:05:21अभी बहुत comical लग रहा है ना
01:05:30तब भी लगना चाहिए जब सच मुझ चलता है
01:05:33तब तो हम serious हो जाते हैं
01:05:39कबूतर आके windscreen पे कर गया
01:05:43ये office को निकल रहे थे भागे भागे
01:05:47office भूल गए है कबूतर को खोजने पत्थर मारने को
01:05:49मेरी कार चुनता है कबूतर
01:05:58ये सब क्या बता रहा है
01:06:07हम कैसे है
01:06:08हमारे पास क्या है एक
01:06:12black hole
01:06:14black hole जो सारे प्रकाश को भी खा जाता है
01:06:18उसमें अश्टावकर गीता डाल दो
01:06:20भगवत गीता डाल दो
01:06:21वो सब कुछ खा जाएगा
01:06:23वो भरता नहीं है कभी
01:06:26और क्या फाइदे होंगे अध्यातन के
01:06:36समाधी लग जाएगी यही फाइदा होता है
01:06:38कि बिल्लियों से आहत होना छोड़ देते हो
01:06:41पुछे क्या मिला आशार जी के साथ रहकर
01:06:45जवाब देना
01:06:46cats don't hurt me anymore
01:06:47बस यही है और अगर यह होने लग गया
01:06:51तर गए
01:06:53तर गए
01:06:56और कुछ नहीं
01:06:57कोई बड़ी चीज नहीं होती
01:06:59यह बड़ा क्या होगा यहां क्या बड़ा है
01:07:01यहीं कुछ बड़ा नहीं है
01:07:04खोटा सा जुन्नू और छोटी छोटी चीज़ों से
01:07:08चोट खाता फिरता है
01:07:10वो चोट खाना बंद कर दे
01:07:11यहीं बड़ी बात है
01:07:12पहली चीज
01:07:18यह नहीं होगी कि चोट खाना
01:07:23बंद कर दोगे
01:07:25कैसे चलती है यह प्रक्रिया से मनें बात करी थी
01:07:29ना कि शुरू में तो प्रयोजन रहता ही है
01:07:32प्रयोजन ये रहता है कि दुनिया को भोग लू
01:07:34फिर प्रयोजन ये रहता है कि दुनिया से मुक्ति मिल जाए
01:07:37और फिर एकदम निश्प्रयोजन हो जाते हो फिर मुक्ति भी नहीं चाहिए
01:07:40क्योंकि अब मुक्ति है
01:07:42अब क्या माँगे
01:07:44वैसे ये जो पूरी प्रक्रियाई ऐसे चलती है
01:07:47कि
01:07:49चोटिल रहने का अंतराल कम होना शुरू हो जाएगा
01:07:54एक elasticity आ जाएगी
01:08:05अगर थोड़ी ये बाते समझ में आ रही है
01:08:08गीता सत्र सफल हो रहे हैं आपके उपर
01:08:10तो जितने समय जितनी अवद ही तक
01:08:15चोट को सहेज कर रखते थे
01:08:17वो अवद ही कम होनी शुरू हो जाएगी
01:08:19कि चलो लग भी गई चोट
01:08:22तो तीन घंटे तक मूस हो जाके घुमते थे
01:08:25अब एक ही घंटे मूस हो जाते हैं
01:08:28एक घंटे में फिर से
01:08:29और जैसे जैसे ये अवद ही सिकुडनी शुरू होती है
01:08:35इसी के अनुपात में जो गहराई थी हर्ट की
01:08:39चोट की वो भी कम होनी शुरू हो जाती है
01:08:43जितनी गहरी चोट लगी होती है न उसका असर उतनी देर तक रहता है प्रेट रहता है चोट अब कम गहरी लगती है इसका प्रमाण ये मिलने लगेगा कि चोट का असर कम अवधी तक रहेगा सिकुड़ना शुरू हो जाएगा ये अगर होने लगे तो जानना लक्षन अच्�
01:09:13यही है
01:09:15होते होते होते
01:09:19जो काम घंटों तक चलता था
01:09:21वो मिनिटों में निपटने लगेगा
01:09:23घंटों भी नहीं होता
01:09:25अई दिनों में
01:09:30उसने बोल दिया था अंधे
01:09:36का बेटा अंधा
01:09:38वो दशकों तक लेकर घूमता रहा
01:09:43किसकी बात हो रही है
01:09:44कौन कहता है कि चोट लगती है
01:09:48तो दिन या हफते में निपट जाती है
01:09:50वो दशकों तक यही लेकर घूम रहा था
01:09:52कि वो बोली थी मुझे अंधे का बेटा अंधा
01:09:54दशक सिकुड के वर्ष बनेंगे
01:10:01वर्ष सिकुड के माह बनेंगे
01:10:03माह सिकुड के सप्ताह बनेंगे
01:10:05अंततह पाओगे
01:10:07बहुत जल्दी
01:10:09जैसे इलास्टिक होता है
01:10:11कि खिंच तो गया
01:10:12पर फिर छोड़ा तो वापस आ गया
01:10:15ऐसे होने लगोगे
01:10:17बहुत मौज आती है बड़ा अच्छा लगता है
01:10:20अहम की निसारता दिखाई देती है
01:10:22हम कुछ नहीं देखो न थोड़ी देर पहले चोट लगी थी
01:10:25अब चोट नहीं लगी है
01:10:27जैसे पानी में लठ मारो
01:10:31क्या होता है
01:10:31मार दिया
01:10:34तो एक शण के लिए पानी फट जाता है
01:10:37और फिर
01:10:38वापस आ जाता है
01:10:40पानी जैसे होने लग जाओगे
01:10:41चोट लगी
01:10:43और मिनट पीतने से पहले
01:10:46वापस
01:10:48ऐसों से दुनिया
01:10:50अचंभा भी खाती है और बहुत घबराती है
01:10:53जिसको तुम चोटेल करो
01:10:57और उसको चोट लगे ही नहीं
01:11:00उसको दुनिया भूत जैसे देखती
01:11:02अरे बाबर
01:11:03नाटक कर रहा है क्या है
01:11:06बड़ा गड़वड आदमी है यह
01:11:09बड़ी मौज आती है
01:11:12और इस मौज का सभाव होता है
01:11:17कि इसको तुम बाटना चाहते हो
01:11:19तो सब ऐसे ही
01:11:20लगी भी है नहीं भी लगी है
01:11:29कितनी भी लगती है
01:11:33नहीं लगती है
01:11:36लगती तो है पर लग्य भी
01:11:41नहीं लगती है
01:11:43रतीक चलता है
01:11:54जैसे पीपल की पत्ती पर बूद
01:11:58या कमल पत्तर पर बूद
01:12:03क्या है
01:12:06है
01:12:08क्या नहीं है
01:12:10कोई रिष्टा नहीं बनता उसका
01:12:14होती भी है तो भी नहीं होती
01:12:15जैसे पत्ती है नो भीगती नहीं है
01:12:20तो बूद उस पर पड़ी तो रहती है
01:12:22पर पड़ी रहकर के भी पत्ती
01:12:24से कोई
01:12:28रिश्टा नहीं बनता
01:12:29कुछ मिलना नहीं
01:12:45वहां से कोई
01:12:46उमीद नहीं
01:12:49और वहां से मिलना इसलिए
01:12:50नहीं क्योंकि जो कुछ वहांपर है
01:12:52वो सब कुछ पहले ही
01:12:54यहां पर है उधर रूप रंग दूसरा है बस
01:12:56और रूप रंग का परिवर्तन वो चीज है नहीं इसकी हम तलाश कर रहे हैं
01:13:06तो जो मेरे पास पहले से है वही दूसरे रूपों में मिल जाएगा तो उससे मेरी तृष्णा बुझ नहीं जानी है
01:13:18ठीक बहरे एक ने पूछा था
01:13:19रिश्टों की बात
01:13:23लेकि
01:13:25धोखा क्यों हो जाता है
01:13:28जब किसी से हम संबंद बनाते हैं तो वो एक इंसान होता है
01:13:34पर रिश्टा बनाने के बाद शादी भया हो जाने के बाद
01:13:39हमें पता चलता है अरे ये तो वो है ही नहीं ये तो कोई और निकला धोखा हो गया
01:13:43और ये एक निश्चित बात होती है
01:13:47inevitable
01:13:48कि आप जिससे रिष्टा बना रहे हो
01:13:51जब उसके साथ रिष्टे में आगे बढ़ जाते हो
01:13:54तो पता चलता है कि ये वो इंसान है ही नहीं
01:13:56जिससे हमने रिष्टा बनाया था
01:13:59जो कल्पना करी थी ये वो है ही नहीं
01:14:01मैंने कहा दिक्कत ये नहीं है
01:14:06कि वो इंसान कुछ और निकला
01:14:10आपको जो चोट लग रही है जो दर्द हो रहा है
01:14:14जो आपको हर्ट है
01:14:17आहत हो आप आपको लग रहा धोखा हो गया
01:14:20वो इस वज़े से नहीं हो रहा है कि वो इंसान
01:14:24कुछ और निकला
01:14:26आपको चोट इस बात से लग रही है कि वो इनसान बिलकुल आपके जैसा निकला
01:14:34वो इनसान कुछ और नहीं निकला है, वो इनसान हुबहु आपके जैसा निकला है
01:14:43कामना चाहती है जो मुझमे कमी है उसको लेके आऊं
01:14:48कि जो मेरी कमी को पूरा कर दे
01:14:56मेरे पास दाएं पैर का जूता है या मैं दाएं पैर का जूता हूँ
01:15:04मैं चुराने क्या निकला हूँ? बाएं पैर का जूता है
01:15:09खरीदने क्यों निकला हूँ? खरीदूँगा तो ऐसी दो मिल जाएंगे, मुझे तो एक चाहिए
01:15:12तो हम सब चुराने निकलते हैं जगत में
01:15:16मैं क्या हूँ?
01:15:19दाएं पैर का जूता
01:15:20और जगत में क्या घूंजने निकलाओं?
01:15:26तुम जो कुछ भी चुरा कर लाओगे
01:15:28तो सब दाएं पैर कही निकलेगा
01:15:29अब कितने चुराने हैं?
01:15:34पहले तो एक चुराना था
01:15:35आप कितने चुराने है पहले एक दाएं पैयर का जूता था तो चुराने निकल पड़े और बहुत खुश थे कि ये बाएं वाला है उधर से देखा तो बाएं जैसा लग रहा था
01:15:44ये हाथ आईने में किधर दिखाई देता है क्या लगता है सामने ध्यान से नहीं देखो तो लगता है इधर है बुद्धी तो नश्ठ हो जाती तो लगता है अहां ना ना ना तो दाएं हम थे बाया लाने निकले थे और ले क्या आए दाएं ही अब कितने चुराने है दो और �
01:16:14जितनी उर्जा डाल दी
01:16:15उतनी और जालनी पड़ेगी, मिलेगा कुछ नहीं
01:16:18वज़य है ना कि क्यों इस्तरी पुरुष की तरफ जाती है
01:16:24पुरुष इस्तरी की तरफ जाता है, उसे लगता है
01:16:26जो मेरे पास नहीं हो इसके पास है
01:16:27मैं दाहे पैर का हूँ ये बाहे पैर की है
01:16:29वो कहती है मैं दाहे पैर की हूँ ये बाहे पैर का है
01:16:34और शुरू में लगता भी है ये मेरी आवाद इससे अलग है
01:16:38इसका शरीर मुझे से अलग है
01:16:39बाचीत अलग है और पृतिया अलग है
01:16:42किसा लगता बहुत कुछ अलग है
01:16:46साल भर बाप चलत है कुछ अलग नहीं है
01:16:49भाई बैने हम जड़ Вамा हैक।
01:16:52कुछ भी अलग नहीं निकला।
01:16:53धोखा यह नहीं हुआ कि वो कुछ और था।
01:16:56धोखा यह हुआ है कि वू बिल्कुल वह है जो तुम पहले से थे।
01:16:59वो बिलकुल वाई है
01:17:02अब क्या कर एक दूसरे को
01:17:05मैं तुम को काई को लेकिया है
01:17:06मैं तो तुम हूँ
01:17:07मैं मेरे पास पहले से हूँ
01:17:08I already have a copy of you with me
01:17:13in me
01:17:14what's the point of bringing you then
01:17:17कितना
01:17:18lesson लेखे कि मतलब
01:17:20बेखूफ से बन गए
01:17:21दो जूते रखे हुए है
01:17:22और दोनो दाएं पाऊं के
01:17:24और बड़ी मेहनत से
01:17:28उसको पटा के लाए है
01:17:30दाएं पाऊं वाले जूते को
01:17:33और उसको देख रहें करें क्या इसका
01:17:35तुम जिसकी भी उराकरशित हो रहे हो
01:17:41वो तुम ही हो
01:17:42तुम सोच रहे हो कि वो तुमारा विपरीत है
01:17:45यहां कुछ विपरीत नहीं होता
01:17:47प्रक्रते में जो एक का विपरीत लगता है वो वही होता है
01:17:51इसलिए दोयत इतना बड़ा धोका है
01:17:54कोई तुम्हारा विपरीत नहीं है, कोई तुम्हें पूरा नहीं कर पाएगा
01:17:59कोई तुम्हें कॉंप्लिमेंट नहीं कर सकता
01:18:02कोई तुम्हारा परिपूरक नहीं हो सकता
01:18:05सब जोड़े भाई भेहन होते
01:18:11अपना अपना फे मूँ लेके घूम रहे हैं कहने हैं
01:18:17अपना ही फीमेल वर्जन ले आया हूँ
01:18:20वो कहरी मैं अपना ही मेल वर्जन ले आई हूँ
01:18:23नो एक्साइटमेंट क्या मिलेगा बताओ
01:18:32होगे उसको भाई अगर हम स्वयम से संतुष्ठ होते
01:18:38तो बायाँ वाला मांगते क्यों
01:18:41तो हम अपने प्रति क्या रुख रखते हैं
01:18:43हम पूरे I'm not enough
01:18:45I'm not good enough
01:18:47तो मेरे सामने मेरा ही अगर संस्क्रण आजाएगा
01:18:50तो even that is not
01:18:51तो मैं क्या करूँगा उसको
01:18:53चाटा मारूँगा
01:18:55मैं उसको चाटा मारूँगा इससे क्या बजलता है
01:18:57कि मैं खुद को क्या करता हूँ
01:18:58चाटा मारता हूँ
01:19:00जब मैं स्वयम को ही नहीं पसंद करता
01:19:02तो अपनी मिरर इमेज को कैसे पसंद कर सकता हूँ
01:19:04तुम जिस भी चीज को चाहते हो
01:19:08वो तुम्हारी mirror image है
01:19:11और जब तुम खुद कोई नहीं चाहते है
01:19:12तो अपनी mirror image हो कैसे चाह सकते हो
01:19:14इसलिए अपनी जिंदगी में जो कुछ भी ले करके आते हो
01:19:17वो बहुत जल्दी तुम्हें उबा देता है
01:19:20फिर तुम कहते हैं उसने धोखा दिया
01:19:22उसने थोखा नहीं दिया
01:19:23वो तो तुम हो
01:19:24और चू कि तुम खुद को नहीं पसंद करते हैं
01:19:27इसलिए तुम अपनी जिंदगी में जो कुछ ले करके आते हो
01:19:29उसको भी नहीं पसंद करते
01:19:31जूते का पेर होता है
01:19:40एक पाउँ का जूता आपको नहीं पसंद है
01:19:42दूसरे का बहुत पसंद आता हूँ, उसके चुम्मी लेते हूँ, ऐसा होता है, अगर एक पाउं का अच्छा नहीं लगता तो,
01:19:47यह ऐसा है, जैसे मेरा चेहरा आया था, इधर वाला एकदम ऐसा है कि यह कहीं मिल जाए तो मुह डंडा मारनें एकदम, फोड़ी दे मुह इसका, और इधर वाला मिल जाके तो कहेंगे वाँ वाँ इधर आओ, चूम लें, ऐसा होगा क्या, यह दोनों क्या हैं, एक है न,
01:20:11यह द्वायत की दुनिया है, लगते अलग अलग हैं, एक जो तुम्हें इससे नहीं मिल सकता, वो तुम्हें इससे भी नहीं मिल सकता, लेकिन यह हिस्सा, यह अन्श, यह अपूर्णता हमेशा इसकी तलाश में रहती है, जब यह मिल जाता है तो पता चलता है रही है, तो म
01:20:41तुम तो बिलकुल मेरे जैसे निकले हैं अब क्या करें ये धीरे धीरे पता चलता है
01:20:49जो एक्टिविटी बताई है वो कर लीजिएगा क्या बताया है एक तो गाना खोजो कि उसके पीछे कौन सी माननेता या
01:21:07टाइम बाम बैठा हुआ है और क्या बताया है
01:21:13वो खोज रहे हैं जो है ही नहीं जब बताये यह नहीं तो कैसे मिलेगा
01:21:29ऐसी होती है कामना
01:21:36खोजो कि कहां कहां पता भी नहीं चलता और चोट खाते रहते हो
01:21:46और फिर उस चोट के पीछे की कामना लिख दो
01:21:51झाल

Recommended