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00:00इद्रिस शाह की कहानी है ये कि एक आदमी था उसके एक बेटा था वो मर गया सुबह सुबह उसकी जो बेटे की मा थी आदमी की पत्नी वो लगी विलाप करने चाती पीट पीट करके तो उसने चगाया अपने पते को कि मर गया तो वो व्यक्ति जगा वो व्यक्ति शायद स्�
00:30मुझे अब समझ में नहीं आ रहा है कि मैं उन बेटों के होने की खोशी मनाओं या इसके मरने का गम
00:35अब सुनने में बात बड़ी मूर्खतागी लगेगी
00:37कि भाई वो जो सपने में थे वो सपने वाले थे नकली कालपनिक
00:40अभी तो जग गया है यह जो तेरा बेटा मरा यह असली है
00:43यह मर गया है तो जो दुखी होना चाहिए
00:44सुनने में बात बड़ी मूर्खतागी लगेगी
00:46पर इसमें जो मर्म संदेश नहित है वो समझने जैसा है न
00:50वो व्यक्त कहना चाहरा है मैं कैसे जानू कि अभी जो मेरी चेतना है
00:54इसमें जो अनुभव है वो सच है क्योंकि थोड़ी देर पहले तो मुझे यह भी सच लग रहा था
00:58कि मेरे छे बेटे हैं अब मुझे यह सच लग रहा है कि मेरा एक बेटा नहीं है
01:02मैं किसको सच मानू किसको सच नहीं मानू
01:04तो ये जो कथा है इसलिए रची गई है
01:06ताकि हमें जो हमारी जागरत अवस्था के अनुभव होते हैं
01:10इन पर थोड़ा संदेह होना शुरू हो
01:12ताकि हम इन्हें सम्मान देना कम करें
01:14ताकि हम इने सच मानना बंद करें और जो अपने अनुभवों को सच मानना कम कर देता है उसका दुख भी उतना ही कम होने लग जाता है