डिस्क्लेमर यह कहानी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है मन्नू टीवी ऑफिशल इसकी पुष्टि नहीं करता
डिस्क्रिप्शन: यह कहानी महाभारत के सबसे अद्वितीय पात्र कर्ण की है, जिसे दानवीरता के लिए जाना जाता है। एक दिन, इंद्रदेव ब्राह्मण के वेश में आए और कर्ण से उसके दिव्य कवच-कुंडल मांग लिए। कर्ण ने बिना किसी संकोच के अपने कवच-कुंडल दान कर दिए, जिससे उसका जीवन बदल गया। यह कथा कर्ण की महानता और बलिदान की अद्भुत मिसाल है।
00:00युद्ध चलता रहा। नारायन ने राक्षस का दूसरा कवच तोड़ा लेकिन उनकी भी मृत्यू हो गई। तब नर ने अपनी तपस्या के फल से नारायन को जीवित कर दी। इस तरहे दोनों एक एक करके युद्ध करते रहे, कवच तोड़ते रहे और एक दूसरे को पु
00:30के तेज से द्वापर में जन्म लेगा। इसके पास वही कवच कुंडल होंगे, लेकिन मृत्यू के समय ये काम नहीं आएंगे। द्वापर युग में वही राक्षस कर्ण के रूप में जन्मा। वह कवच कुंडल के साथ पैदा हुआ, लेकिन युद्ध से पहले इंदर