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  • 6/4/2025
"नवरात्रि व्रत की अद्भुत कथा - माँ दुर्गा का चमत्कारिक वरदान!"

यह कहानी एक साध्वी ब्राह्मणी की है, जो नवरात्रि व्रत के कठिन नियमों का पालन करती है, और माँ दुर्गा के अद्भुत वरदान को प्राप्त करती है। जानिए कैसे व्रत, श्रद्धा और भक्ति से माँ दुर्गा स्वयं प्रकट होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। यह कथा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि नवरात्रि के वास्तविक महात्म्य को भी दर्शाती है।
पूरी कथा सुनें और जानें नवरात्रि व्रत करने की विधि, उसका महत्व और उसके चमत्कारी फल।

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00:00नवरात्री का पावन पारू मा दुर्का की नो सब्रुकों की उपासना और और किर्पा पाने का समय है
00:14इन नो दिनों में मा दुर्का की अरात्ना घरने से हर बक्त की इमनों कामना पूरन होती है
00:20मा दुर्का की पूजा और स्री दुर्का नवरात्री वर्त कताखा पाट आपके जीवन को सुक, स्यांती और सम्रित्ती से बर देता है
00:30नमस्कार दोस्तों मेरा नाम तिपक है और आप देख रहे हैं मन्नु का सनातन ज्यान
00:36यहां आपको मिलेगी सनातन ध्रम और प्रिनातायक कताएं और अत्बुत क्यान
00:41हमारे साथ जुड़े और मात रुका की किर्पा से अपने जीवन को सुक में बनाए
00:47आए शुरू करते हैं यह कहानी
00:50एक बार प्रस्पती जी बोले यह ब्रमा जी आप अत्यंत बुद्धिमान सर्व सास्तर और चारो वेदों को जाने वालों में सर्व सरेष्ट है
01:00हे ब्रभू किर्पा कर मेरा वचन सुनो जेत्र आस्विन माग और आसाड माज के सुकल बक्स में नावरातर का वरत और उत्सव क्यों गया जाता है
01:13हे बगवान इस वरत का फल क्या है किस परकार करना उच्चित है और पहले इस वरत को किस ने किया
01:22सो विस्तार से कहें ब्रस्पती जी का ऐसा परसंद सुनकर परमाजी कहने लगे ये ब्रस्पती प्रानियों का हित करने की इच्चा से तुमने बहुत ही अच्चा परसंद किया है
01:36जो मनुस्य मनुरत पूरन करने वाली तुर्का मान देवी सूरिय और नार्यन को ध्यान करते हैं ये मनुस्य धन्य हैं ये नवरात्र वरत संपुर्ण कामनाहों को पूर्ण करने वाला है
01:51इसके करने से पूत्र चाने वालों को पूत्र, धन चाने वालों को धन, वित्या जाने वालों को वित्या और सुक चाने वालों को सुक मिलता है
02:02इस वर्थ को करने से रोगी मनुस्य का रोग दूर हो जाता है
02:08और कारगार में पड़ा हुआ मनुस्य बंदन से चुट जाता है
02:12मनुस्य की तमाम विपत्तिया दूर हो जाती है
02:16और उसके घर में समपूरन समपत्ति आकार उपस्तित हो जाता है
02:21बंद्या और काक बंद्या के इस वर्थ के करने से पूत्र हो जाता है
02:26समस्त पापो को दूर करने वाले इस वर्थ को करने से ऐसा कौन सा मनुरत है जो सित नहीं हो सकता
02:34यदि वर्थ करने वाला मनुस्या सारे दिन का व्वास नहीं कर सकते तो एक समय बोशन करे
02:40और उस दिन बांधो वो साइद नवरातरी वर्थ की कता सर्वन करें
02:45ए प्रिस्पते जिसने पहले इस मावर्थ को किया है
02:49उसका पवित्री तियास मैं तुम्हे सुनाता हूँ
02:53तुम सावधान ओकर सुनो
02:54इस प्रकार बर्माजी के वजन में सुनकर
02:58प्रिस्पते जी बोले ए ब्रमा मनुष्यों का कल्यान करने वाले इस वर्थ के दियास को
03:04मेरे लिए कहे मैं सावधान ओकर सुन रहा हूँ
03:08आपकी सर में आये हुए मुझ पर किपा करो
03:11ब्रमाजी बोले पीडत नाम के मनोवर नगर में
03:16एक अनात नाम का ब्राह्मन रहता था
03:18वह बगवदी दुर्गा का प्रमभग्त था
03:21उसकी एक सुन्दर और गुनुवान बेटी थी
03:24जिसका नाम सूमती था
03:27सूमती बच्पन में अपने सहेलियों के साथ
03:31केलते हुए बड़ी हो रही थी
03:33जैसे सुकल पक्स में जन्दर मा तीरे दीरे बढ़ता है
03:37उसका पिता रोज दुर्गा मा की पूजा और रवन करता था
03:42और सूमती भी नियम से वा मोजूद रहती थी
03:46एक दिन सूमती अपनी सहेलियों के साथ
03:49खेलने में लग गई और भगवती की बूजा में सामिल नहीं हुई
03:54यह देखकर उसके पिता को भवती कुस्सा आया
03:58उन्होंने कहा यह दुष्ट पुत्री आज सुवे से तुमने भगवती का बूज नहीं किया
04:05इसलिए मैं तुमारा भववा किसी कुस्ट रोगी या गरीब व्यक्ति सिख करूँगा
04:11पिता की ये कटोर बाते सुनकर सुमती को पुती दुख हुआ
04:16उसने सांट स्वर में कहा पिता जी मैं आपकी बेटी हूँ
04:21और आपके हर मिलने को मानने के लिए तयार हूँ
04:25आप जैसा चाहें मेरा विवा कर सकते हैं
04:30मुझे विश्वास है कि मेरे बाग्य में जो लिखा है वही होगा
04:35मनुस्य ने जाने कितने मनुरतों का चिंतन करता है
04:39पर होता वही है जो बाग्य में विधादा ने लिखा है
04:42जो चैसा करता है उसे फल भी उसी करम के अनुसार भीलता है
04:48क्योंकि करम करना मनुस्य के अदिन है
04:52फ्रंतु फल देना देव के अधिन है
04:55जैसे अगनी में पड़ेतिन के उसे और अधिक पर्चवलित करते हैं
05:02उसी बरकार अपनी कञ्या के निरपता से कहे गए
05:05वचनों को सुनकर उस ब्राह्मन का क्रोध और अधिक बढ़ गया
05:10तब उसने अपनी कन्या का विवा एक कोष्ट रोगी के साथ कर दिया
05:16और अत्यंत क्रोधी तोकर उत्री से कहने लगा
05:19जाओ जाओ जल्दी जाओ और अपने कर्मों का फ़ल भोगो
05:24देपता हूँ केवल भागय के बरोसे रहकर क्या करती हूँ
05:29इस प्रकार से कहे हुए पिता के कटू वचनों को सुनकर
05:33सुमती अपने मन में विचार करने लगी
05:36कि अहु भागय मेरे मेरा बड़ा दुरपागय है
05:40जिससे मुझे ऐसा पती मिला
05:42इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई
05:45सुमती अपने पती के साथ वन में चली गई
05:49और बयानक वन में गुसा युक्त उस इस्तान पर
05:54उन्होंने वैरात पड़े कश्ट से वैतित के
05:57उस गरीब बालिका की ऐसी दसातिक कर
06:00भगवदी पूर पुन्य के प्रभाव से परकटो कर
06:04सुमती से कहने लगी
06:06हे ब्रामनी मैं तुम पर परसन हूँ
06:10तुम जो चाहो वैवर्दान मांग सकती हूँ
06:13मैं परसन होने पर मनोवांशित बल देने वाली हूँ
06:17इस प्रकार भगवदी दुरका का वचन सुनकर
06:20प्रामनी कहने लगी
06:21कि आप कौन है जो मुझ पर परसन हुई है
06:25या ऐसा मेरे लिए कहा
06:27और अपनी किर्पा तेस्टी से
06:30मुझ तासी को कृतार्थ करो
06:32ऐसा प्रामनी का वचन सुनकर
06:35देवी कहने लगी
06:36कि मैं आदि सकती हूँ
06:38मैं ही ब्रह्मा, विद्या और सरस्वती हूँ
06:42मैं परसन होने पर प्रानियों का दुख तूर कर सकती हूँ
06:47अत्वा उनको सुख प्रतान कर सकती हूँ
06:50ए ब्रामनी मैं तुम पर तेरे पूर्व जनम के पुन्य के पर भाव से परसन हूँ
06:56तुम्हारे पिछले जनम की कहानी सुनाती हूँ
06:59त्यान से सुनो
07:00तुम पिछले जनम में एक भील की पतनी थी
07:04और बहुती पती वर्ता थी
07:06एक दिन तुम्हारे पती ने चोरी की
07:09चोरी करने के वज़े से
07:11सिपाईयों ने तुम दोनों को पकड़ लिया
07:13और जेल में डाल दिया
07:15वहां तुम दोनों को खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया
07:19इस तरह नवरातर के दिनों में तुमने कुछ भी नहीं खाया
07:22और नहीं पानी पिया
07:24इसलिए नो दिनों तक नवरातर का वर्थ अपने आप हो गया
07:28ये प्रामनी उस वर्थ के फल से मैं दुर्गा परसन हुई हूँ और तुम्हें मन चाहिए वस्तु देने के लिए तयार हूँ
07:36जो तुम चाहते हो वैं मांग लो
07:39दुर्गा के इस आशिरवात को सुनकर प्रामनी बोली
07:43ये दुर्गा मा अगर आप मुझ पर परसन हैं तो किर्प्रा करके मेरे पती का कोड ठीक कर दीजिए
07:51दुर्गा माता ने कहा उस समय जो तुमने वर्थ किया था
07:55उसके एक दिन का पुन्ने अपने पती के कोड को ठीक करने के लिए अर्वित कर दू
08:01मेरे आशिरवात से तुमारा पती कोड से मुक्त हो जाएगा और उसका सरीर सोने जैसा चमकने लगेगा
08:10बर्मा जी कहते हैं कि दुर्गा माता के इन वचनों को सुनकर ब्रामनी बहुत खुस हुई
08:16और अपने पती को सुष्ट करने के इच्चा से कहा ठीक है मैं अपना वरत का पुन्य अर्पित करती हूँ
08:25तब तक बगवदी दुर्गा की किरपा से उसके पती का सरीर कोड से मुक्त होकर बहुत चमकदार और सुन्दर हो गया
08:35जिसके सरीर की चमक इतनी दत्पुत थी कि चांद की रोसनी भी उसके सामने फीकी पड़ गई
08:42अपने पती की ऐसे सुन्दर और सुष्ट सरीर को दीख कर वै ब्रामनी भूत खुस हुई
08:49और दुर्गा मा को भूत सक्ति साली मान कर उनकी सतूति करने लगी
08:55वै बोली हे मादुर्का आप ही दुखों को तूर करने वाली हैं तीनों लोकों के कश्ट हरने वाली हैं और सभी रोगों को मिटाने वाली हैं
09:07आप परसन हो कर्मन चाय इच्छाएं पूरी करती हैं और बुरे लोगों का नास करती हैं।
09:14आप ही इस सरस्टी की माता और पिता हैं।
09:18हे अंबे, मेरे पिता ने मेरा विवा एक कुछ रोकी से कर दिया और मुझे कर से निकाल दिया।
09:25मैं पित्वी पर दर दर बटकती रही, आपने मुझे इस संकट रूपी समुंदर से बचा लिया।
09:34हे देवी, मैं आपको परनाम करती हूँ, मुझे जैसी तुगी की रक्षा कीजिए।
09:39बर्माजी कहते हैं, हे ब्रस्पती इस परकार सुमदी नाम की ब्रामनी ने अपने मन से तुर्गा मा की खूब परसंसा की।
09:48इसकी सतूती सुनकर देवी बहुत परसं हुई और बोली, हे ब्रामनी, तुमारे घर एक पुत्र होगा, जो बहुत बुद्धिमान, धनवान, परसिद्ध और सयमी होगा।
10:02इसके बाद देवी ने कहा, हे ब्रामनी, और जो भी तुमारे इच्छा हो, वया मांग सकती हो।
10:10ये सुनकर सुमदी बोली, हे मादुर का, अगर आप मुझ पर परसं हैं, तो किर्प्या करके मुझे नवरातिवरत की विदी बताएं।
10:20वया विदी जिसके वालन से आप परसं होती हैं, किर्प्या विस्तार से समझाईए।
10:27सुमदी की बाद सुनकर मा ने कहा, ये ब्रामनी, मैं तुम्हें वया विदी बताती हूं, जो सारे पाप्दों को तूर कर सकती हैं, जिसे सुनने और करने से सारे पाक खत्म हो जाते हैं, और मुक्स की प्राप्ती होती हैं।
10:43आश्विन माज के सुक्रपक्स की बर्थी बता से नो दिनों तक नवरात्री का वरत विदी पूर्वक करें। यदि पूरी दिन का पूवा आश्नय कर सकें, तो एक समय का पोछिन करें।
10:55किसी विद्वान ब्रामन से पूच कर खट इस्तापना करे
10:59और एक छोटी वाटिका बना कर उसे परती तिन पाने दे
11:03महाकाली, महालक्स्मी और महासरस्वती की मूर्तिया बना कर
11:08उनकी विदी पूर्वक पूचा करे
11:11फूलो और फुलो से अर्थ दे
11:14विजोरा नीमू के फुल से अर्थ देने से रूप मिलता है
11:19चायफल से कीर्थी, अंगूर से कार्य सिद्धी, आवले से सुक और केले से आबुजन की प्राप्ती होती है
11:28इसके बाद हवन करे
11:30खांड, घी, गेहू, सहद, जो, तिल, नारियल, अंगूर और कंदंब के पत्तों का उप्योग करे
11:41गेहूं से लक्समी प्राप्त होती है
11:44खीर और चंबा के फूलो से धन मिलता है
11:47आवले से कीर्टी, केले से पुत्र और कमल से राच सम्मान तथा सुक समृत्ती मिलती है
11:55वर्त करने वाला गग्ती हमन के बाद आचार्यक को आदर पूर्वक परनाम करे
12:01और यग्या की सपलता के लिए दक्सिना दे
12:04इस वर्त को जो कोई विदी पूर्वक करता है
12:08उसकी सभी मनो कामनाए पूरी होती है
12:12इसमें कोई संद्या नहीं है
12:14नवरात्री के इनो दिनों में किया गया दान कुरोडो कुना फल देता है
12:19इस वर्त का फल असुमेग यग के बराबर होता है
12:24या उत्म वर्त, तीरत, मंदिर या अपने घर में विदी पूर्वक करना चाहिए
12:30बर्मा जी कहते हैं
12:32ये प्रस्पती इस तरह देवी ने प्रामनी को वर्त की विदी और उसका फल बता कर अद्रस्य हो गई
12:40जो कोई भक्ती से ये वर्त करता है
12:43उसे इस जीवन में सुग और अंत में मौक्स की प्राक्ती होती है
12:48बर्मा जी के वचन सुनकर रस्पती जी आनंदित हो गई
12:52और बोले ये बर्मा जी आपने किप्या करके अमरित के समान इस नवरात्री वर्त का महात में सुनाया है
13:02या देवी मा सकती संपुर्ण लोकों का पालन करती है
13:06उनके पर भाव को कोई ने जान सकता
13:10नमस्कार

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