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00:00हलो दोस्तों मैं हूँ डाक्टर सिवराज सिंग, स्वागत है आपका अपने चनेल History with Singh में, दोस्तों आसा है आप लोग अच्छे से होंगे बढ़िया अपना पढ़ाई कर रहे होंगे
00:10तो दोस्तों आप पढ़ रहे हो अधूनी भारत इतिहास में जो सांस्कृतिक, जागरन, धार्मिक और सामाजिक सुधार हुए हैं
00:19खास्तौर से जो उनीविश्मी और बीश्मी सताबदी के सुधार हुए हैं, है न, तो उसको आप लोग पढ़ रहे हो
00:27तो अभी आपने पिछले वीडियो में पढ़ा की कैसे जो राजाराम मोहन राय थे, किस तरह से सती प्रथा पे उन्होंने और जो और भी समाजिक कुरूतियां थी, उन्होंने कैसे प्रहार किया है, किस तरह जो है सती प्रथा को खतम कराया है, कितना प्रयास किया है, ये आ
00:57ब्रह्मसमाज में और भी कौन लोग जउडते हैं, उससे क्या क्या उनका कारी होता है, वो आपने पिछले वीडियो में देखा, ठीक
01:06अब आजाये, आज हम लोग देखेंगे प्रात्ना समाच को, ठीक है?
01:12ब्रह्म समाच आपने पिछले वीडियो में पढ़ लिया है, अब आजाये प्रात्ना समाच, प्रात्ना समाच को आप समझें क्या है?
01:20दिखें, आचार केशव चंद्र की महाराष्ट यात्रा से प्रभावित होकर, महादेव गोबिंद राना डे और डाक्टर आत्माराम पांडुरंग ने 1867 इसवी में, बंबई में प्रात्ना समाच की स्थापना की.
01:39दिखें, आचार केशव चंद्र की महाराष्ट यात्रा से प्रभावित होकर, महादेव गोबिंद राना डे और डाक्टर आत्माराम पांडुरंग ने 1867 इसवी में, बंबई में प्रात्ना समाच की स्थापना की.
02:06तो ये प्रात्ना समाच की स्थापना कब हुई है, 1867 इसवी में, जी और भंडारकर भी इस समाच की अगरणी निताओं में से थें.
02:24आगे दिखें, महादेव गोबिंद राना डे को पस्चिमी भारत में सांस्कृतिक पुनर जागरण का अगरदूत कहा जाता है, 1871 इसवी में, राना डे ने सारुजनिक समाच की स्थापना की, इन्हें अपनी प्रचंड मेधा सक्ती के कारण महाराष्ट का सुकराद भी कह
02:54राना डे ने इस्तिरियों की पर्तंत्रता, बाल विवाह, विद्वा विवाह का निशेद, जातीगत संकेरता की अधार पर सजाती विवाह, इस्तिरियों की असिच्छा और पेच्छा, विदेश यात्रा, निशेधया अधिका विरोध किया
03:14महादेव गोविन्द राना डे ने सुध्धी अंधोलन को प्रारम किया, जिसे अखिल भारतिय स्वरू प्राप्त हुआ
03:24राना डे ने एक आस्तिक की धर्म में आस्था नामक उन्तालिस अनुच्छेदो वाली पुस्तक लिखी थी
03:34राना डे के समाजिक सुधार कारियों में विश्मु सास्त्री तथा धोंदी के सव करवे ने सहयोग पुरदान किया
03:43करवे के सहयोग से राना डे ने 1867 इस्वी में विध्वा आश्रम संग की स्थापना की
03:51इस्त्री सिच्छा के लिए स्री करवे ने 1916 इस्वी में बंबाई में प्रथम भारतिय महिला विश्म विध्याले की स्थापना की थी
04:02भारतियों में सिच्छा के प्रसार और अज्ञानता के विनास के उदेश से राना डे ने 1884 इस्वी में डक्कन एजुकेशन सोचाईटी की स्थापना की
04:14इसी सोचाईटी को कलांतर में पुना फर्ग्यूशन कालेज का नाम दिया गया
04:20डक्कन एजुकेशन सोचाईटी के सदस्यों में तिलग, गोखले और आगरकर सामिल थी
04:28तो ये आपने साट में प्रातना समाज को समझा की क्या-क्या इसमें चीज़ी होई है
04:38अगला आजाईए वेद समाज
04:40वेद समाज क्या है?
04:43केशव चोन सेन की मद्रास यात्रा की समय एक तरुण युवक के स्री धरलू नैडू ने मद्रास में वेद समाज की स्थापना 1864 हिस्वी में की
04:58वी राजगुपाल चार्लू, पी सुब्रेल चेट्टी और विश्वनात मुदलियार आधीस की प्रमुख सदश्य थे
05:101871 स्वी में वेद समाज दच्छिड के ब्रह्म समाज के रूप में आस्तित्तु में आया
05:18अब आजाईए आरे समाज, आरे समाज को आप जानिये
05:281875 हिस्वी को स्वामी द्यानन्सर सुती ने बंबई में आरे समाज की स्थापना की
05:37कुछ वर्ष के बाद आरे समाज का मुख्याले लहोर में स्थापित हो गया
05:43समय क्या था? 1877 हिस्वी में लहोर में स्थापित हो गया
05:49वेदों तथा भारतिय दर्शन के अध्यान के बाद स्वामी द्यानन्सर ने कहा कि आरे स्रेष्ट जन थे
05:58वेद ईश्वरिय ज्ञान तथा भारत भूमी विशिष्ट भूमी है
06:04आरे के बारे में मैंने डिटेल से वैदिक समयता पूरा आपको पढ़ाया है
06:09तो अगर आपने पढ़ाया है तो आप समझ रहे होंगे कि आरे कौन थे किसकी चर्चा स्वामी द्यानन्सर सुति कर रहे हैं
06:16ठीक है अगर आपने नहीं देखा है तो आप चाकर के प्रेलीष्ट में प्राचीनी तहस देख सकते हैं
06:23आगे देखिए
06:44स्वामी द्यानन्सर सुति के बच्पन का नाम मूल संकर था
06:491824 इस misf मूल संकर का जन्व गुझराद के मऱवी नमक ली स्थान पर हुआ
06:5516 वर्ष की वस्था में बहन की मित्यू के बाद मूल संकर में अचानक वैराग ने जन्म लिया
07:0531 वर्ष की वस्था में मूल संकर ने अपना घर दवाड छोड़ सने
07:11और पूरा एक जगा से दूसरे जगा घूमने ले गए।
07:16है न?
07:18और
07:2024 वर्ष की अवस्था में मोलसंकर दन्डी स्वामी पूराननद से मिले,
07:25इनहीं से सन्यास की दिच्चा लेकर मोलसंकर ने दन्ड धारण किया।
07:32दन्डी स्वामी पूराननद ने मोलसंकर का नाम स्वामी दयानन सरसुती रखा,
07:391861 हिस्वी में दयानन मतुरा में विर्जयानन स्वामी से मिले,
07:44इनहीं से दयाननद को वेदों की दार्शनीक व्याक्या का परचे मिला।
07:50दयानन सरसुती ने वेदों की ओर लोटो का नारा देते हुए वेदों को भारत का अधारिस्तंब बताया।
07:59उनका विश्वास था कि हिंदो धर्म और वेद जिन पर भारत का पुरातन समास्टिका था,
08:06सास्वत अपरिवर्टनी और देवी है।
08:13दयानन सरसुती को हिंदो लूथर कहा जाता है।
08:18स्वामी दयानन ने पुराणों जैसे हिंदो धर्म ग्रंथों की प्रमारिक्ता को अस्विकार किया
08:26तथा कहा कि पुराण ही हिंदो धर्मे मूर्टी पूजा जैसी कुरूतियां तथा अन्धविश्वासों के लिए उत्तरदाई हैं।
08:35तो दिखे पुराण की जो है आलोचना कर रहे हैं।
08:41स्वामी द्यानन्द ऐसे पहले सुधारक थे जिन्होंने बचाओ के स्थान पर प्रहार की रणिती अपनाई हिंदो विश्वास की रच्चा करते हुए इसाईयों, मुसल्मानों को उनके दोसों के अधार पर चुनावती देई।
08:58समा सुधार की दशा में स्वामी द्यानन्द ने चातुर बढ़वयस्था को जन्म के बदले कर्म के अधार पर समर्थन किया, समाजिक तथा सहचीक मामलों में इस्तिरी पुरुष के समान अधिकारों के स्वामी जी ने वकालत की।
09:17आरे समाजियों ने चुबा चूद जाति भेद, बाल विवाह का विरूत किया, विद्धवा पुननविवा तथा अंतजातिय विवाह का समर्थन किया।
09:26द्यानन सरसुती ने 1874 में सत्यार्थ प्रकास संस्कित भासा में लिखा, इनकी अन्ह प्रमुक क्रितियां थी वेद भास्य भूंक्या, अद्वायत मत का खंडन, पंच महायग वी थी।
09:43स्वामी जी पहले व्यक्ती थे जिन्होंने स्वराज्य सब्द का प्रयोग किया तथा स्वधीसी पर बल दिया और हिंदी को राष्ट भासा का दर्जा बताया।
09:55आर्य समाज द्वारा चलाए गया सुधी अन्धोलन परयाप्त विवादास्पद रहा। इसके अंतरगत हिंदु धर्म का परित्याग कर आने धर्म अपनाने वाले लोगों के लिए दुबारा धर्म में वाफ्सी के द्वार खोल दिये गया।
10:15आर्य समाज का दूसरा विवादास्पद कारिकम गायों की रच्चा अंधोलन था। 1822 इस वी आर्य समाज ने गायों की रच्चा के लिए गव रच्चडी सभा की स्थापना की।
10:34स्वामी द्यानन सरसिती ऐसे परथम सुधारक थे जिन्होंने सुद्र तथा इस्तिरी को वेद पढ़ने, उची सिछ्षा प्राप्त करने, यग्यों पवीत धारण करने के पच्च में आंधोलन किया।
10:51स्रीमती एनी बेसिंट ने कहा की स्वामी द्यानन सरसिती ऐसे पहले व्यक्ती थे जिन्होंने कहा था की भारत वासियों के लिए है।
11:03आरे समाज के संदेश का प्रचार प्रशार करने का उनका उत्तेश पंजाब में अधिक सफल रहा। आरे समाज को उत्तरपदेश, गुजरात और राजस्थान में कुछ सीमा तक सफलता मिली।
11:17स्वामी द्यानन्द सरसती दौरा लिखी गई महत्मूर रचनाएं कौन कौन सी हैं वो आप लोग ध्यान से सुनें। सत्यार्थ प्रकास है ये 1874 में प्रकास निकली है और ये संस्कित भासा में है।
11:37पाखंड खंडन ये है 1866 इसका समय है। वेद भास भुमक्या 1876 इसका समय है। रिगवेद भास ये 1877 इसका समय है। अद्वायत मत का खंडन 1873 है। पंच महा यग्य विधी है 1875 इसवी में। बलवाचार मत खंडन है 1875 इसवी में।
11:591863 इसवी में द्यानने ने जुटे धर्मों का खंडन करने के उदेश से पाखंड खंडनी पता का लहराई। वेलेंटाइन चिरोल ने अपनी पुस्तग इंडियन और अनरेष्ट में आरे समाज को भारती असांती का जमदाता कहा।
12:151892-93 इसवी में आरे समाज दो गुटों में बढ़ गया जिसमें एक गुट पास्चात शिच्चा का विरोधी तथा दूसरा पास्चात शिच्चा का समर्थक था।
12:28पास्चात शिच्चा के विरोधियों में स्वामी स्रधानन्द, लेकराम और मुनसीराम प्रमुक थे। इन लोगों ने 1902 इसवी में गुरुकूल की इस्थापना की।
12:42पास्चात शिच्चा के समर्थकों में हंसराज और लालालाच पतराय थे। इन लोगों ने द्याननद एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में इस्थापना की थी।
12:56पास्चात शिच्चा के समर्थकों में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी मे
13:26में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 18
13:56एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में
14:26हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इसवी में हंसराज एंगलो वैदिक कालेज 1889 इ
14:56सरकारी उच्छ सेवाओं में भार्टियों को रोजगार दिलाना
15:01डेरेजियो के मुख्य सिश्यों में कौन कौन थे उनके नाम दिखे सुनिए
15:05राम गुपाल गोस, कृष्ण मोहन बनरजी, महेश चंद्र गोस थे
15:12सुरेनदात बनरजी ने डेरेजियो को बंगाल और आधुनिक सवयत्र का अगरदूत हमारी जाती के पिता कहा
15:20डेरेजियो को आधुनिक भारत का प्रथम राष्टवादी कभी भी कहा जाता है
15:25स्वामि वियकानन्त
15:29अब आजाईए अगला जो है
15:33यंग बंगाल अंधोलन आपने पढ़ लिया
15:36अब अगला पॉंट आप दिखिये
15:38रामकृष्ण अंधोलन को समझिये
15:40और उनसे जो जुड़े स्वामि वियकानन है
15:44इनके बारे में भी आप जानी है
15:47तो देखिए दच्छिडेश्वर के स्वामी कहे जाने वाले
15:51रामकृष्ण परमहन्स के स्वामि वियकानन्द परमसी सिख थे
15:58दिखे रामकृष्ण परमहन्स के जो ये गुरू है
16:07स्वामि वियकानन के इनकी भी एक बड़ी प्यारी सी स्टोरी है
16:11आप लोग सुनियेगा
16:13तो ऐसा मतलब जो बुजर्ग लोग थे
16:17उनके मोँ से मैंने सुना था
16:19वो मैं आपको बता रहा हूँ स्टोरी
16:21तो दिखे जो रामकृष्ण परमहन्स थे
16:25वो माता काली के पुजारी थे
16:27और इनको भी जो स्वामि वियकानन थे
16:32जैसे स्वामि वियकानन का कहना क्या था
16:35कि ये सब से पूछते फेरते थे
16:37कि भाई आपने भगवान देखा है
16:39आपने भगवान देखा है
16:41बहुत लोगों से पूछा इन्हों ने
16:43तो भाई सब ने जितने लोगों से इन्हों ने पूछा
16:49भाई सब ने कहा कि हमने तो भगवान को नहीं देखा है
16:53फिर एक बार स्वामि विवेकानंद
16:55राम क्रिष्न परमहन्स के पास आये
16:58और वही सवाल
17:00परमहनस से इन्हों ने किया
17:03کہ स्वामि कीरन ने पूछा
17:05राम क्रिष्न परमहन्स पुछा
17:07कि भाई आपने भगवान को देखा है तो परमहन्स ने कहा हाँ बिल्कुल देखा है
17:13मैं रोज दर्शन करता हूँ और चाहोगे चाहो तो मैं तुमको भी दर्शन करा दूँ
17:20आपकी बक्की रह गए स्वामभी एकानन की हाँ भाई और उन्होंने साथ चात
17:30कैसे समाधी में जाना है क्या है ऐसे जो रामकृष्ण परमहंस थे उनको बताई वो विद्या
17:40और साथ चात माकाली का दर्शन जो बगवान के दर्शन भी स्वामभी एकानन को कराया स्वामी परमहंस ने
17:52तो ये थे कि मतलब साथ चात जो रामकृष्ण परमहंस हैं
17:58जो रामकृष्ण यहाँ पे दिखे लिखा है न रामकृष्ण अंधोलन तो रामकृष्ण परमहंस परमहंस
18:08तो अब आप समझिए कि कोई साधारन गुरु यह नहीं थे साथ चात माकाली का दर्शन करने वाले थे
18:16जो भगवान के साथ चात और भगवानों को साथ चात इन्होंने दर्शन किया था और ये दर्शन और समाधी में जा करके ये दर्शन किये हैं
18:28वही दर्शन जो है स्वाम्येकानन को भी सिखाते हैं कैसे समाधी में जाये और स्वाम्येकानन को भी वो अस्था में प्राप्त कराकर वो दर्शन भगवान का करा देते हैं
18:40तो ये थे रामकृष्ण परमहंस और एक स्टोरी और भी सुना हूं मैं बताता हूं आपको और मुझर्गुं की मुझवानी से ही उन्होंने ये स्टोरी मुझे बताई थी मैं आपको बता रहा हूं तो दिखे एक बार
19:00रामकृष्ण परमहंस जो है भी उपदेश दे रहे थे है ना अपना पूरा मंच जैसे होता है न सादु महात्मा बैठे रहते हैं स्रोतालोग अपना बैठे हैं और भाजन केरतन चल रहा है प्रवजन चल रहा है और स्रोतालोग क्या है सुन रहे है तो ऐसे ही परमहंस �
19:30स्रोतालोग सुन रहे थे और कथा अभी चली रहे थे कि आधे पे ही रामकृष्ण परमहंस जो स्वामी वियकानन्त के गुरू थे वो उठ गए और उठ के आ जाते हैं जहां इनकी पत्नी कुछ बना रही थी कुछ क्या बना रही थी पकोड़ी और वो आ गए खाने तो अ�
20:00पकोड़ी बनाती रहती हैं और उनकी पत्नी करती है अभी तो आप प्रवचन दे रहे थे और आप बीच में ही आ गए आपने अभी कथा तो खतम हुआ नहीं है और अभी लोग बैठे भी हैं तो कहई अरे भाई पकोड़ी मुझे बहुत प्री है और पकोड
20:30की भाई इतना आपको इतनी अच्छी पकोड़ी लगती है कि आप बीच कथा से ही उठ के चले जाते हैं कते हाँ और एक चीज़ और बोलते हैं
20:38कि जिस दिन तुम पकोड़ी बनाई और मैं आया नहीं तो समझ लेना कि मैं धर्ती पे नहीं हूँ अब ये उन्होंने कहा अच्छा एक बार ऐसा ही होता है अब एक काफी दिनों बार पत्नी उनकी पकोड़ी बनाती रहती हैं और ये आते नहीं है और पकोड़ी और वहाँ
21:08प्रवचन उनवोंने दिया था फिर वह ध्यान में गए थे और फिर वहीं पे उनओंने प्रान चोड़ दिया था
21:15और लोगों को लग रहा था कि अभी जो गुरुजी हैं जो प्रमहंस हैं वो अभी ध्यान में अपने हैं
21:24लेकिन वो उस समय अपना प्राण छोड़ चुके थे।
21:29तो अब भाई उनकी पत्णी पकोड़ी बना भी लिए,
21:34रख भी दी काफी देर हो गया, अब वो आय नहीं।
21:38तो फिर जब जाके देखती हैं, तो उनको जो है प्राण छोड़ चुके थे।
21:48तो ये किसी किताब में मैंने नहीं पढ़ा था, एक बुजुल नहीं थी,
21:54एक बुजुल थे, उन्होंने ही ये स्टोरी मुझे सुनाई थी,
21:58अब वो स्टोरी मैंने आपको सुनाया।
22:01तो ये स्टोरी पढ़ने को मिली मोजवानी,
22:07और जो किताबों में लिखा है, वो तो मैं आपको बता ही रहा हूं।
22:13तो आगे दिखिए।
22:17स्वामी रामकृष्ण परमहन्स, 1834-1886 इनका समय रहा है,
22:26दच्चिडेश्वर इस्थित काली मंदिर के पुजारी थे, काली माता के पुजारी थे,
22:33इन्होंने चिंतन, सन्यास और भकती के परमपरागत तरीकों से धार्मिक मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास किया।
22:44भारतिय सब्यता और संस्कृति में पुर निष्ठा रखने वाली,
22:49रामकृष्ण सभी धर्मों को सत्य मानती थे।
22:54वे मुर्टी पूजा में विश्वास करने के साथ उन्हें उसे सास्वत सर्वसक्तिमान ईश्वर को प्राप्त करने का एक साधन मानते थे।
23:06अभी आपने देखा कि ब्रह्मसमाजाद में मुर्टी पूजा का विरोत कर रहे थे।
23:12लेकिन यहां पे आप देखिए ही मुर्टी पूजा यहां पे जो परमहंस हैं वो मुर्टी पूजा पे विश्वास करते हैं।
23:24काली मा की मुर्टी और भी देवताओं की मुर्टियां वहां पे थी, है न, मंदिर में और इसको जो है मुर्टी पूजा में रामकृष्ट परमहंस का विश्वास है।
23:37रामकृष्ण ने तांत्रीक वैश्वडों और अद्वायत साधनां द्वारा निर्विकल्प समाधी की स्थिती प्राप्त की और परमहंस कहलाये।
23:50रामकृष्ण ने अपनी भाव समाधियों में देवी माता काली, कृष्ण, ईशा, मसी और बुद्ध के दर्शन किये थे।
24:00रामकृष्ण ने अपनी भाव समाधियों में देवी माता काली, कृष्ण, ईशा, मसी और बुद्ध के दर्शन किये थे।
24:22अब दिखें, रामकृष्ण ने अपनी भाव समाधियों में देवी माता काली, कृष्ण, ईशा, मसी और बुद्ध के दर्शन किये थे।
24:341886 में रामकृष्णी की मित्यू के बाद नरेंदर नात ने अपनी गुरू के संदेशों को चारो प्रशारित करनी की जिम्मेधारी लेगी।
24:49उन्होंने इस आप दिखे नरेंदर जो है नरेंदर नात आप देख रहे हैं, ये सौम वियेकानन्त का बच्चपन का नाम है नरेंदर नात, अब ये क्या कर रहे हैं, अपने गुरू के संदेशों को चारो और प्रशारित करने की जिम्मेधारी दी।
25:10उन्होंने इस कारे हेतु अपना जीवन समर्पित करते हुए संसारिक जीवन में से सन्यास ले दिया। कौन सौम वियेकानन्त है। सन्यास गरहन करने के बाद नरेंदर नात ने समुचे भारत वर्ष का दौरा किया।
25:30और दौरे के दौरान मेंने उनके जो experience थे को उनके बारे में कहा की मैं जिस प्रभू में विश्वास करता हूँ वह सभी आत्माओं का समुच्य है।
25:46और सर्वपरी भी। मेरा प्रभू पतितों, पिलितों और सभी प्रजातियों में निर्बल, निर्बलों का रच्चक उद्धारक है।
25:581893 में अमेरिका के सीकागो सहर में आयोजीत प्रथम विश्वधर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने भारत का नित्रित्य किया। इस सम्मेलन में जाने से पुरो नरेंद्र नाथ का नाम बदल कर महाराज कुवर अजीत राज सिंखेतरी के सुझाव पर स्वामी विवे का नन्�
26:28का नाम किसने रखा ये आपने देखा कि महाराज कुवर अजीत राज सिंखेतरी के सुझाव पर ऐसा वहा।
26:4011 सितंबर 1893 में सीकागो धर्म सम्मेलन में बोलते हुए स्वामी जी ने कहा
26:48जिस प्रकार सारी धरायें अपने जल को सागर मिला कर मिला देती हैं।
26:56जैसे चितनी नदिया हैं आप दिखें कि अंत में सब समुदर में मिल जाती हैं।
27:05उसी प्रकार मनुस के सारे धर्म इश्वर की ओर ले जाते हैं।
27:11कोई भी धर्म है हिंदो, मुसलिम, सिक्, इशाई सभी जो धर्म हैं वो कहां ले जाते हैं?
27:17इश्वर की ओर ले जाते हैं।
27:22जैसे आप ने दिखा कि नदिया जो हैं वो बहते हुए समुदर में मिल जाती हैं अंत में।
27:28उसी तरह जो जितने भी धर्म हैं वो सारे धर्म, कोई भी धर्म है वो सब आपको इश्वर में ले जा करके मिला देगा।
27:38ठीक है?
27:41आगे देखिए।
27:47उन्होंने कहा कि पिठ्वी पर हिंदु धर्म के समान कोई भी धर्म इतने उद्दात रूप में मानों की गर्मा का प्रतिबातन नहीं करता।
27:56स्वामी जी के भासड के बारे में नियुयार्क हेराल ने लिखा कि उनको सुनने के बाद हम ये अन्भोक करते हैं कि ऐसे ग्यान संपन देश में अपने धर्म प्रचारक भेजना कितना मुर्खता पुर है।
28:12नियुयार्क क्रिटिक ने स्वामी जी के भासड के बारे में लिखा था कि वे इश्वरे सक्ती प्रात्प वक्ता हैं। उनके सत्य वचनों की तुलना में उनका सुन्दर बुद्धिमत्ता पुर चेहरे चेहरा पीले और नारंगी वस्तों से लिप्ता हुआ कम आकर्शन न
28:42में लिख करके आये थे और स्वामी एकानन्त क्या था वो कुछ नहीं लिख के गए थे कि मैंजे क्या बोलना है बस वो अपना बस खड़े हुए और बोलना चलो कियें मेरे अमीर्क्या के जो भाई और बहन है ये ऐसे सम्भोधन जब स्टार्ट करती हैं तो तालिया गूज
29:12और मैं चर्चा करी रहूं आप लोग दिखे
29:16तो भाई
29:21निव्यार्क क्रिटिक
29:23ने स्वामी जी के भाजण के बारेम लिखा कि वे इश्वरी सक्ती प्राप्त वक्ता हैं
29:29उनके सत्य वचनों की तुलना में उनका सुन्दर बुद्धिमत्ता पुर चेहरा
29:34पीले और नरंगी वस्त्रों से लिप्टा हुआ
29:36कम आकट्शग नहीं है
29:38भाजण के बारे में रोमया रोला ने लिखा
29:42संसार का कोई भी धर्म मनुस्य की गरिमा
29:46को इतने उच्छे स्वर में सामने नहीं लाता जितना की हिंदूभ
29:521896 में स्वामी जी ने न्यु यार्ग अमेरिका में
29:57वेदान्त सभाओं की इस्थापना की और केलिफोनिया में
30:01सांती आश्रम की इस्थापना की
30:04ठीक है
30:101897 स्वी
30:13क्या समय आया?
30:151897 स्वी
30:20में स्वामी जी ने न्यु यार्ग अमेरिका में
30:24वेदान्त सभाओं की इस्थापना की और केलिफोनिया में
30:28सांती आश्रम की इस्थापना की
30:331800
30:44माफ़किजिये का 1896 यहांपी है
30:48अब मैं बताऊंगा आपको 1897 में क्या हुए
30:51अभी 1896 बारे में बताया
30:541897 स्वी में अमेरिका प्रवास के
30:57से वापस आने के बाद स्वामी जी ने
31:00रामकृष्ण मीशन की इस्थापना की
31:05जिसे 1909 स्वी में सोसाइटी पंजीकरण
31:09अधिनियम के अंतरगत पंजीकरीत कराया गया
31:15रामकृष्ण मीशन की इस्थापना
31:18स्वामी विवेकानन ने की थी
31:21जबकि रामकृष्ण मथ की इस्थापना
31:24रामकृष्ण परमहंस ने की थी
31:27तो रामकृष्ण मीशन की इस्थापना
31:30रामकृष्ण मीशन की इस्थापना
31:33रामकृष्ण परमहंस ने की थी
31:36जबकि रामकृष्ण मथ की इस्थापना
31:39रामकृष्ण परमहंस ने की थी
31:42जबकि रामकृष्ण मीशन की इस्थापना
31:45रामकृष्ण परमहंस ने की थी
31:48रामकृष्ण मीशन की इस्थापना
31:51रामकृष्ण मीशन की इस्थापना
31:54रामकृष्ण मीशन की इस्थापना
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33:55हमारा इश्वर खाना बनाने के बरतन में है
33:58और हमारा धर्म है उसे चूगो मत
34:01मैं पवित्र हूँ
34:02यद एक सताब्री तक यह चलता रहा
34:05तो हम सब पागल खाने में होंगे
34:10स्वामि विएकानन्द जी के अनुसार हम
34:13मानौता को वहां ले जाना चाहती हैं
34:16जहां न वीद है न कुरान है और नहीं
34:19फाइबिल
34:21सुबासं बोच ने स्वामि विएकानन्द के बारे में
34:24लिखा है कि जहां तक बंगाल का सम्मंद है
34:27हम स्वामि विएकानन्द को अधूनिक राष्टी अंधोलन का अध्यात्मिक पिता कह सकते हैं
34:37इंडियन अनरेष्ट के लिखक चीरोल ने विएकानन्द के उद्धिश्यों को
34:43राष्टी अंधोलन का एक ब्रमुक कारण माना
34:48आयरीस मूल की महिला
34:51सिष्टर निवेदिता
34:54विएकानन्द की सिष्चिया बनी और रामकृष्ण मिशन के माध्यम से
35:00स्वामि जी के बिचारों का प्रसार-प्रसार किया
35:06तो ये भाई, रामकृष्ण अंधोलन के बारे में आप ने संझा
35:12और जो स्वामी वीरिकानन्द थे, उनके बारे में आपने सारांस में जाना कि क्या इनके कार थे
35:20और भाई स्वामी वीरिकानन्द की तो बहुत सरी चीजें हैं, अगर इनको आप पढ़ना चाहें, तो इनके, इन पे ही
35:28इतना, एक, दो घंटे भी कम पढ़ जाएंगे, और जो इनके कारे हैं, अगर सार्ट में आप करना चाहेंगे, तो भाई ये महान व्यक्ति तो हैं
35:38और इनको आप अगर समय रहें आपके पास, तो जरूर भाई इनके बारे में पूरा ध्यान आप करिए, बहुत मज़ाएगा आप जानलीजे, इनों नहीं कहा है उठो, जागो, आगे बढ़ो, है ना, और सक्ति पे, ये कहते थे कि भाई सक्ति ही जीवन है, है ना, तो बह�
36:08जरूर और मज़बूती के साथ आगे बढ़ेंगे अपने लच की ओर, है ना, मज़ाएगा इनको पढ़ने में आपको, और बिद्यार्थी हैं, चाहे किसी भी छेत्र में हैं, जरूर नहीं कि आप भाई बिद्यार्थी हैं, आप बिजनिस्मैन हैं, या आप किसी भी अवस
36:39पॉइंट आप लोग दिखिए, थियोसोफिकल सोसाइटी, ठीक है, इसकी बारे में आप समझींगे
36:511875 स्वी में मैडम ब्लावो तस्की और कर्नल आलकाट ने नियोयार्क में थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की
37:06सभी प्राच्य धर्मों का तुलिनायत्मक अध्यन करने के उदेश से किया गया, इस सोसाइटी ने हिंदिव धर्म को विश्व का सबसे बड़ा गुड और अध्यात्मिक धर्म माना, रहस्मे, नस्मज में आने वाली चीज और अध्यात्मिक धर्म माना
37:30थियो सौफी, अभी आपने पढ़ा थियो सौफी कल, तो थियो सौफी का अर्थ क्या होता है, तो भाई इसका अर्थ है ब्रह्म विध्या, ब्रह्मा जो हैं उनकी विध्या, ब्रह्म विध्या, ब्रह्मा की विध्या, तो हिंदु धर्म के अध्यात्मिक धर्शन और उनके
38:01थियो सौफी कल. आगे यह सोसाइटी जाती, जो जाती पाती है, संप्रदाय या लिंगभेट की किये भीना मनुस्य के सारुभावमिक बंधुत का प्रचार करती है,
38:18साथी भारतियों में राश्टी गवरों की भावना बिख्षित करने में भी इस आंदोलन की महत्बुर भूम्गा रही है.
38:281882 से में थियोसोफिकल सोसाइटी का अंतरास्टी कार्याले खुला गया, कहां में, कहां खुला गया भाई, अड्यार, अड्यार कहां है मंद्रास में,
38:42तो अब देखें, 1888 से में स्रिमती एनी बेसेंट इस सोसाइटी की सदस्य बनी, 1893 से में एनी बेसेंट भारत आई,
38:57स्रिमत के बाद, 1907 से में एनी बेसेंट थियोसोफिकल सोसाइटी की अध्याच बनी, भारत में सिच्चा के छेत में विकास के लिए एनी बेसेंट ने बनारस में, 1898 से में सेंट्रल हिंदु कालेज की स्थापना की,
39:17जो 1916 स्वी में मदन मोहन माल्वी जी के प्रयासों से बनारस हिंदु विश्विद्याले बना, आग आजाईए आन्य धार्मिक आंधोलनों के बारे में, आप समझें,
39:35धर्म सभा की स्थापना 1830 में राधा कान देवने की, यह रूडिवादी संस्था थी, इस संस्था के लोग समाजिक अस्तर को यथा इस्तिति बनाए रखने के समर्थक थे, इन्होंने सति प्रथा के अंध का विरूत किया, ठीक है, तो आपने देखा था कि जब राजा रा
40:05कुछ रूडिवादी संस्थाएं भी कार कर रही थी, जिनमें से ये राधा कान देव की धर्म सभा की स्थापना उसी समय किये हैं 1830 इसमें
40:18और ये लोग सति प्रथा खत्म नहीं होनी चाहिए, जो पुरानी प्रथायें चल रही हैं, वो चलनी चाहिए, वो इन लोगों का गाना था, अब दिखिए सति प्रथा आपने देखा था कि कैसे जो जिसकी पती मित्यों हो जाये, तो वो उनकी पत्नी चीता पर अपना बै�
40:48जाया था और कितना तो वहाँ पे सति प्रथा की बुक्स जो होती थी, सो सति होती थी, कितनी अउर्टों को तो जबर जस्ती जला दिया जाता था, ये भी आपने विशले वीडियो में देखा था, मैंने उस पी चर्चा करी थी, नहां और आगे दिखी, लोक हितवादी के �
41:18उन्होंने पास्चात्य सिच्छा और लोगों को आत्मय निर्भर बनाने का जोर दिया, इन्होंने जाती वियोस्था के प्रहार के निमित जाती भेद नामक पुस्तक की रचना की थी,
41:30देव समाज की इस्थापना अठारस्व सथासीश्वी में सिव नरायन अगनिहोत्री ने लाहोर में किया, इस समाज की उपदेश देव सास्त्र नामक पुस्तक में संकलित,
41:41तो कुछ आन्य जो धार्मिक आंदोलन हुए हैं दोस्तों, उनकी जो चोटी-चोटे आंदोलन हैं, उनकी भी चर्चा मैं कर रहा हूं, ध्यान से आप लोग सुनते जायेगा,
41:53अगला आप दिखिए, राधा स्वामी आंदोलन, इसकी स्थापना सिवदयाल साही या स्वामी महराज पुलसीराम द्वारा 1861 स्वी में आगरामी किया गया,
42:11मद्रास इंदु संग्य की स्थापना विरेशल लिंगम पुत्तलू द्वारा विध्वा महिलाओं की स्थिती को सुधाने की उदेशी किया, 1892 स्वी में विरेशल लिंगम तथा आर विंकेटर रत्म द्वारा मद्रास में हिंदु समाज सुधार की स्थापना की गई,
42:32सेवा सदन नामक समाजीक सुधार तथा मानवतावादी संगटन की स्थापना 1885 स्वी में बहराम जी मालाबारी ने की थी, ये कौन थे, परसी थे,
42:45भारतिय सेवक समाज की स्थापना 1905 स्वी में समाज सुधार की उदेश से गोपाल कृष्णे गोखले ने बंबई में की,
42:55भारतिय समाजीक संमेलन की स्थापना 1887 स्वी में M. G. Ranade और रघुनाथ राव ने की,
43:06इस आंदोलन ने बाल विवाह को रोगने के लिए प्रतिग्या अंदोलन की शुरुवार की,
43:15समाज सेवा संग की स्थापना 1911 में N. M. Joshi ने की, इन संग के सदस्यों में हरदयनाथ कुञ्जरू समिल थे, जिनों ने 1914 स्वी में इलहावार में सेवा समिद की स्थापना की,
43:29रहनुमाय मज्जद दे आसन सभा पार्सी सुधार अंदोलन से जुड़ा था, इस संस्था की स्थापना 1891 स्वी में नवरोजी, फरदोन जी दादा भाई नवरोजी तथा S.S. मंगाली ने की,
43:46इस संस्था का प्रमकु देश था धार्मिक छेत में विद्धमान रूढिवादिता को समाप्त करना, नारी सिच्छा को प्रोसहित करना, पर्दा प्रथा बाल विवाह का बिरोध करना आदि थे,
44:03रहनुमाई मज्यद्यासन सभाने राफ्त गुफतार, राफ्त गुफतार मने सत्यवादि नामक पत्रिका का प्रकाशन किया, ठीक, अब आगे जो है मुस्लीम सुधार आंधोलन, अब ये दोस्तों हम लोग अगले वीडियो में पढ़ेंगे,
44:31अगले वीडियो में हम लोग, अगले वीडियो में दोस्तों हम लोग पढ़ते हैं, क्योंकि वीडियो बहुत बड़ा हो गया है, तो आगे की जो पॉइंट है, वो मैं आपको अगले वीडियो में बताता हूं, ठीक है, बस दोस्तों ये वीडियो इसे पर समाप्त करेंगे
45:01ये आपकी काम की है या नहीं है, कमेंट में जरूर बताईएगा और मैं किस तर आपकी मदद कर सकता हूं, जिससे कि आपकी पढ़ाई अच्छी हो सकी, जरूर कमेंट करिएगा.