00:00हेलो दोस्तों मैं हूँ डक्टर सिवरा सिंग आप सती प्रथा के बारे में पूछ रहे थे तो इतिहास की किताबों में सती प्रथा के बारे में क्या लिखा है अई बता देता हूं मैं आपको तो देखे सती का साथिक अर्थ है पवित्र साध्वी इस्त्री से ठीक है और यह �
00:30पत्नी है ना तो वही चीज़ है और उसके प्रमाड के रूप में उसकी चिता में अपने आपको जला लीती थी यानि जब पती मर गया तो पत्नी क्या करती थी जो चिता होती है पती की उसे बैठ जाती थी और जिंदा ही चल जाती थी ठीक है भारत में अकबर और पेश्वा�
01:00धर्म प्रथाओं के प्रती तटस्थता की रीती अपनाती थी। अपनी भी बिलकुल संतुलन में नीती अपनाती थी जो भारत की प्रथाएं थी।
01:11परंतु फिर भी कार्नवालिस, मिन्टो और लाड हेस्टिंग्स जैसे गवर्ना जर्नलों ने सती प्रथा को सीमित करने के प्रहत्न किये।
01:22और सती बनने के लिए बिवस करने, विद्वाओं को मातक पदार्थ देने, गर्वती स्त्रियों को और 16 वर्ष की आयू से कम में सती बनने से रोकने आदी के प्रहत्न किये।
01:38इसमें सबसे महत्पूर यह था कि इस क्रूर बली के समय पूलिस अधिकारियों का उपस्थित होना आवस्यक बना दिया गया, ताकि लोग स्त्री को सती होने पर विवस न कर सके, यानि जोर्जवज़त्ती न कर सके, परंत ये सभी प्रयत्न अपरयाप्त और आसफल रहे।
02:08पर संसर में होने वाले वाद विवाद पर दिष्टी रखते हुए कंपणी के डिरेक्टरों ने, विलियम बेंटी को यह सुझाओ दिया, क्रूर प्रथा थी उसको बंद किया जाए, 1837 के सत्रवे नियम के अनुसार विद्वाओं को जिवित जलाना बंद किया गया, और न
02:38अलिये था, उसके बाद 1837 में यह बंबई और मतरास में भी लागू कर दिया गया, इस प्रकार यह प्रथा समाप्त हो गई, यह भी इक्का दुक्का मामले होते रहे,