- 10/1/2024
"अजीब सवाल" is a captivating Hindi animated movie that will delight and inspire young viewers. Join us on a journey through the world of karma, where actions have consequences and good deeds are rewarded. This moral story teaches valuable lessons about responsibility, kindness, and the importance of making positive choices. With vibrant animation and a heartwarming narrative, "अजीब सवाल" is a must-watch for families and children of all ages.
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00:00राजनगर के एक छोटे से गाउं में लाजबन्ती नाम की एक बोरी इस्तरी रहा करती थी। उनका कोई संतान नहीं था।
00:16लाजबन्ती का पूरा पती काफी समय से बिमार चल रहा था।
00:22एक दिन लाजबन्ती चंगल में लकडिया काटने के लिए जा रही थी, कि तब ये लाजबन्ती का पती फूट फूट कर रोने लगा, अपने पती को रोता दे, लाजबन्ती बोली,
00:34क्या हुआ जी आप रो क्यों रहे हैं?
00:39जब तुम्हें जंगल में लकड़्या काट्डे जाते हुए देखता हूँ तो मेरा मन भर आता है।
00:47ऐसा क्यों बोल रहे हैं आप?
00:50मैं तुम्हारा पती हूँ, बकर मेरा होना ना होना के बराबर हैं।
00:56जिस आयू में तुम्हें बेढ़ा कर आराम से भोचन मिलना चाहिए, उस आयू में तुम कितनी महनत कर रही हो।
01:05और मैं चहा कर भी तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।
01:10ऐसा मात कहिए आप, इसमें आपका क्या दोस्त?
01:15अगर हमारी कोई संतान होती, तो हम दोनों पति-पत्नी आराम से जीवन व्यतीद कर रहे होते।
01:22मगर सायद किसमत में कुछ और मनजूर था, हम सुन्तान से वंचित रहे और आप उड़ा होकर बिमार पड़ गए।
01:33पता नहीं हमारे दिन कब बदलेंगे, और कितने दिन हमें ऐसा जीवन व्यतीद करना होगा।
01:42आप मिरान समात हुए हैं, मुझे पूरा बिस्वास है कि हमारे दिन एक ना एक दिन जरूर बदलेंगा।
01:50इतनों बोल कर लाजवन्ती चंकन में चनी गई, कि तब ही उसके कानों में किसी पक्षी की तेज़ पंख फरफराने की आवाश तक्राए।
02:07लाजवन्ती अपने आप से बोली, इतनी तेज़ पंखों की फरफराने तो मैंने कभी नहीं सुनी, ये तो कोई पक्षी नहीं, बलकि कुछ और ही लगता है।
02:21इतनों बोल कर लाजवन्ती इधार उधर देखने लगी, तबही उसने देखा कि एक ब्रिश के नीचे एक इस्तरी जिसके बड़े-बड़े पंख थे, घायल अवस्ता में जमीन पर बड़ी हुई थी।
02:36लाजवन्ती तुरंट उसके पास चाकर बोली,
02:41क्या हुआ, तुम्हारे सरीर में इतनी चोट कैसे लगी, और कौन हो तुम।
02:50पंखों वाली इस्तरी दर्श से कराती हुए बोली,
02:54मैं एक परी हूँ, मैं यहाँ पर खूम रही थी, कि आचानट मेरे पंख इस नुकीने पेल से टकरा गए, और मैं खायल होकर नीचे गिर पड़ी।
03:06आँ, तुम्हारे पंख में तो काफ़ी चोट पोची है, तुम्हें तो पहुँझ ज़्यादा दर्थ हो रहा होगा।
03:25तुम जनविक ठीक हो जाओगी, उसके ज़रुब नहीं है, तुम एक काम करो, इस धार्टी के मिट्टी को मेरे जखम पर लगा दो, मैं सही हो जाओंगे।
03:37लाज़वंती ले जी से ही मिट्टी परी के जखमों पर लगाए, अचनट परी रंग बिरंगी खिर्णों के साथ सही हो गई, और खुस हो कर बोली, तुम ने मेरे मदद की है अम्मा, मैं तुमें भी मदद करना चाहती हूँ, बताओ तुम उससे क्या चाहती हो।
03:55मैंने जीवन भर गरीबी का सामना ही किया है, और इस सवय भी मैं गरीबी हूँ, मेरे बती पिमार है, इसलिए वो कोई काम दन्दा नहीं कर सकते, मैं जंगन से लपडिया काट कर लाती हूँ, और उन्हें बजार में बेचती हूँ, लेकिन उससे इतना कमाई भी नहीं होती
04:25अगर संतान होती, तो सायद मुझे ये समय नहीं देखना परता
04:33लाचवंती की बात सुनकर परी मुस्कुराते हुए बोली,
04:38चिंता मत करो, अग तुमे भी गरीबी का सामना नहीं करना पड़ेगा
04:44इतना बोल कर परी अपने हाथ खुमाने नगी, तबी उसके हाथ में छोटो से पोधा आ गया
04:51परी वो पोधा लाचवंती को पकड़ाती हुए बोली,
04:55ये नो, यस पोधे का उपने घर के आंगन में नका देना,
04:59अगले सुबा ये पोधा एक ब्रीच में परिवर्तित हो जाएगा,
05:03और उसके बाद उस ब्रीच से रोज रात में स्वर्मुद्राओ के पारि सुआ फरेगे
05:12इतना बोल कर परी वहाँ से गायब हो गई,
05:16लाचवंती वो पोधा लेकर अपने घर पर आ गए
05:20लाचवंती के हाथ में पोधा को देखकर उसका पती उससे बोला,
05:25लाचवंती तुम ये सुन्दर पोधा कहां से ने कराई?
05:31लाचवंती सारी घर्टना अपने पती को बताती हुई बोली,
05:39ये पोधा मुझे उस परी ने दिया है,
05:43तो फिर देर किस बात की लाचवंती, इस पोधा को अपने घर के आंगन में लगा दो।
06:02अगली सुबा जब वो सोकर उठे,
06:05तो उन्हें अपने घर के आंगन में एक बहुती बड़ा सुन्दर पोधा है,
06:10लाचवंती अपने पती से बोली,
06:13इसका मतलम उस परी ने बिलकुल सही कहा था,
06:18ये पोधा तो एक ही रात में ब्रेक्ष में परिवर्तित हो गया।
06:24हाँ और देखो कितने सुन्दर विक्ष में परिवर्तित हुआ है।
06:28अब हमें रात के इन्तिज़ार और करना चाहिये।
06:38वो दोनों बेचब्पडी से रात होने के इंतिजार करने लगे,
06:46रात होते ये उस ब्रेक्ष से सुन्दर मुद्राओं के बारी सोने लगे,
06:51देखते ही तो यह परिवर्तित है,
06:53लाजवन्ति खुसी से चुनते हुए अपने पती से मोली,
06:58याजी अब तो हम बहुत ही धन्वान हो गए।
07:04हाँ, बिल्कुल सही कहा लाजवन्ति,
07:07अब हमें और गरीबार के लिए परिवर्तित होने लगे।
07:10कुछ ही दिनों में,
07:12लाजवन्ति ले अपने घर की सामने,
07:15राजणगर के राजऽसंग्राम सिंग से परिवर्तित होने लगे,
07:19अपने पती से बोली,
07:21याजी अब तो हम बहुत ही धन्वान हो गए।
07:26हाँ, बिल्कुल सही कहा लाजवन्ति,
07:28कुछ ही दिनों में,
07:30लाजवन्ति ले अपने घर की सामने,
07:33राजणगर के राजऽसंग्राम सिंग से भी बड़ा महल बनवा लिया,
07:37और तो लोग खुसी-खुसी अपना जीवन परिवर्तित करने लगे।
07:49मगर एक दिन,
07:50राजऽसंग्राम सिंग अपने मंट्री चरंसिंग के साथ,
07:54है वहाँ की गुजर रहा था,
07:57तबी उसकी नज़र एक बहुत बड़ी आनिसान महल पर पढ़ी।
08:01संग्राम सिंग अपने मन्तूरी चरंसिंग की और देख कर बोला,
08:06मन्तुरी जी,
08:07बोला
08:09मंतरी जी
08:11ये महल तो
08:13हमारे
08:15महल से भी जादा बड़ा और सुंदर है
08:17आकर ये महल
08:19है किसका
08:21महराज ये महल
08:23लाजवनती नामकी एक
08:25बुडी उरद का है
08:27वो और उसका बुड़ा पती यहाँपर रहते है
08:29कहते हैं कि वो दोनो
08:31बोड़े पती पतनी राजनगर के गरीव वासियों की बहुत सहयता करते हैं।
08:36आखिर कार उनकी संतान ऐसा क्या काम करती है
08:40कि उनके पास इतना दन है कि वो हमारे महल से भी बड़ा और आलिशान महल बनवा सके।
08:48महराज उन दोनों की कोई संतान नहीं है।
08:51मैने सुना है कि कुछ समाय पहले इन बूडे पती पतनी के पास
08:56खाने के लिए भी दन नहीं था।
09:00यह सुणकर, राजनगराम सहिंग बुरी तरह आशितोप पड़ा।
09:06तो मंतरी जी जाकर पता करो.. उनके पास इतना दन आया काँसे है।
09:12इतना बोलकर राजा संग्राम सिंग वहाँ से चला दाया।
09:26अगले दिन मंत्री चरण सिंग राजा संग्राम सिंग से बोला।
09:32महराज मैंने बुड़े पति पत्नी से बोहोत बता किया,
09:36मगर उन दोनों ले बताने से साफ इंकार कर दिया।
09:41ये सुनकर राजा संग्राम सिंग गुसे से आग पभूला होकर बोला।
09:47तो जाओ उन दोनों पति पत्नी को यहां इसी समय लेकर आओ। जाओ।
09:56कुछ ही देव की पार लाजवन्ती अपने बुड़े पति के साथ राजा के महल के दरबार में खड़ी हुए थे।
10:04राजा संग्राम सिंग लाजवन्ती की और दिख कर बोला।
10:09मैंने अपने सैनिकों को भेश कर पता लगाने के लिए बोला कि तुमारे पास इतना धन कहां से आया।
10:17लेकिन तुम हो कि मेरी सैनिकों को इंकार कर के तुमने भगा दिया। तुमारी इतनी हिम्मत।
10:23और तो और मैंने सुना है कि तुमारी कोई संतान भी नहीं है। चलो बताओ इतना धन तुमारे पास आया कहां से।
10:36शमा कीजिये महाराज मैं सिर्फ कैवन इतना कह सकती हूँ कि मेरे पास धन बैमानी का नहीं है।
10:45अगर तुमारे पास धन बैमानी का नहीं है तो फिर तुमारे पास इतना धन आया कहां से। सीधी तरह से मुझे बता दो बुढिया।
10:56शमा कीजिये महाराज मैं आपको ये बात नहीं बता सकती क्योंकि मुझे ये ना बताने के आदेस मिले हुए है।
11:06लाजबन्ती मैं तुम्हें अभी और इसी वक्त इस राज से निकलने का आदेश देता हूँ। अगर तुम बुढ़े पती पत्णी मेरे राज के आसपास भी दिखाई दिये तो मैं उसी समय तुम्हें मौत के घाट उतरवा दूंगा। और हाँ तुम यहां से अपने महल �
11:36का आदेश सुनकर लाजबन्ती अपने पती के साथ राजचे छोड कर निकल गई। वो पेछारी अपने खर से कुछ धन भी नहीं ने जा सकी। वो एक जंगल में बेटकर अपने पती से बोली।
11:50किसमत ने हमें वही लाकर खड़ा कर दिया। जहां से हम उठ खड़े हुए थे। सायद हमारे भाग्या में सुप लिखा ही नहीं है। तुम ने सही कहा लाजबन्ती। हम तो जहां से चले थे वही आकर खड़े हो गए। बदा नहीं हमारी किसमत में आके क्या लिखा है। �
12:20सुना है कि किषनगर राजी के राजा बहुत ही दयालू हैं
12:24हम किषनगर राजी में ही चलते हैं।
12:29सब बोनने की बात हैं
12:31सब राजा एक चैसी ही होते हैं
12:34हमें आप किशनगर राजी कै च powerless में ही छोपरह
12:37चोप्रे बनाकर फिर से रहना पड़ेगा।
12:44लाजवन्ति अपने पती के साथ
12:46किसंकर राज्जी के सीमा से कुछ दूर
12:49चंगल में चोप्रे बनाकर रहने लगी।
12:54इदार किसंकर का राजा राजा बिक्रमी कक्ष के बाहर
12:59चींतित अवस्ता में देहर रहा था।
13:02तो तबी वहाँ मेहन के राजगुर आते हैं
13:05मैं राजग बिक्रम से बोले।
13:10चिंता मत कीजे महराज
13:13इतने साल इंतिसार करने के बाद
13:16आज आपके घर संतान होने वाली है।
13:19मुझे पूरा विश्वास है
13:21कि महराणी एक पुत्र को ही जन्म देंगी।
13:26हाँ आप तो जानते हैं राजगुर।
13:29मेरे विवाह को दस वर्ष हो चुके
13:32बड़ी प्रार्टनाओं के बाद
13:34ये समय देखने को मिला है।
13:38तभी कद से एक दासी राज़ा बिक्रम के सामने
13:42सर चुगा कर खड़ी हो कर बोली
13:45महराज, महरानी ने चुवा पुत्र को जन्म दिया है।
13:51क्या?
13:56हरे ये तो बड़ी प्रसनता की बात है
14:00मैंने दस वर्ष इंतजार किया एक पुत्र के लिए
14:04और आज मुझे एक नहीं, दो पुत्र मिले है
14:08हरे ये तो मेरे लिए सबाग्य की बात है
14:12लेकिन, लेकिन इतनी प्रसनता की बात तुम इतने उदास सवर में क्यों बता रही हो?
14:20महराज, बात ही कुछ एसी है
14:25क्या बात है?
14:28आप स्वेम जाकर कक्ष में देख लीजे महराज
14:35दासी की बात सुनकर राजा विक्रम कक्ष के अंदर चिना गया
14:39कक्ष में अपने इतने अपचाक सिशो को देख कर राजा बुरी तरहा से क्रोधित हो गया
14:45क्योंकि राजा के एक पुत्र का छेहरा बंदर का था और बाकी सरी इनसान का
14:51राजा पिक्रम गुस्से से राजगुरों की ओर देख कर बोला
14:56आ ये क्या है इतने वर्षों के बाद हमारी संतान हुई और वो भी एक बंदर
15:05अगर आसपास के राजाओं को पता चल गया तो वो सब हमारा मजाक उडाएगे
15:11और प्रजा में भी हमारा मजाक उड़ जाएगा
15:15उससे पहले की ये बात पूरे राज में फैल जाए इस बंदर को यहां से दूर चंगल में फेक आओ
15:22बस बहुत हुआ मैं नहीं देखना चाता इसे और सब को ये सूचना दे दो की हमारे घर में कोई जुड़वा नहीं
15:30पलकी केवल एक पुत्र ने जन्म लिया है ले जाओ इसे
15:37और सीर्ट राज कुरु ने उसी समय राजा बिक्रम के बंदर पुत्रों को सेनी को उसे चंगल में फेकने को कहा
15:46सेनी तुरन्त राजा बिक्रम के पुत्रों को चंगल की और ने गए और उन्होंने उस नबजात सिसू बो छाड़ीयों में फेक कर चिले गए
15:57मगर वो नहीं चानती थे कि इस दृश्यों को दूर से लाजवन्ति देख रही थी
16:02लाजवन्ति तुरन्त राजा बिक्रम के पुत्रों के पास आ गई और उससे देख कर चूपती हुई बोली
16:10अरे ये बच्चा यहां क्यों छोड़ गए गई ये बच्चा राजा का तो नहीं है
16:18अच्छा अब समझ में आया ये जरूर राजा बिक्रम का ही पुत्र है
16:25सुना है कि कई बरसों से उसकी कोई संतान नहीं हो रही थी
16:30और अब संतान हुई भी तो ऐसी
16:33ये मणिश्ये कितने स्वार्थी होते हैं
16:36अगर ये ही सुन्दर पुत्र होता तो महल में दावते होती और जसन मिनाया जाता
16:44लेकिन क्योंकि ये बंदर की रूप में है इसलिए इसे यहां छोड़ दिया गया
16:51लाजवनती नन भी राजकुमार को आपने कोड़ पे उठा लिया
16:57तुम्हें तमारे पिताने अलसुइकार कर के जंगल में फिकवा दिया
17:02परन्तव में सुवार्थी हो और मतलब भी नहीं हो
17:05मैं तुम्हारी परवरिस करूँगी
17:08तुम्हारी परवरिस करूँगी और मैं तुम्हारा नाम आज से आधित्य रखती हूँ।
17:19उस पिंग के बाद से आधित्य की परवरिस लाजवन्पी करने लगे।
17:26समय ऐसी ही बिटता रहा।
17:28इसी बीच लाजवन्पी का पती भी संसार छोड़कर चिला गया
17:32और बिटते समय के साथ साथ आधित्य जवान हो गया।
17:37एक दिन वो लाजवन्पी से बोला।
17:41माँ, आप मुझे जंगल से बाहर क्यों नहीं जाने देती।
17:46बेटा, केवल तेरे चीरे के वज़े से अगर तु राज्य के सीमा में प्रभेश करेगा, तो लोग तुससे नहीं चाहेंगे।
17:58तो क्या मैं इकना पुरा हूँ माँ?
18:03नहीं बेटा, तु पुरा नहीं है, बलकि लोगों की सोच पुरी है।
18:09तो क्या मुझे जंगल से बाहर निकरने का कभी सोभाग नहीं मिलेगा माँ?
18:17ऐसा नहीं है अधित्य बेटा, सवाइन आने पर तुम्हें यह मौका आवश्य मिलेगा, और मैं तुम्हें स्वाइम इस जंगल से बाहर जाने के लिए कहूंगी।
18:30इधाल राज़ा संग्राम सिंग् अपने मंतुरी चरन सिंग से बोला,
18:36मंतुरे जी, हमारी पुतरी राजकुमारी सुलेखा विवाह योग्य हो गई है, हम चाहते हैं कि जिस राजकुमार के साथ उसका विवाह हो, वो बलवान के साथ साथ चतुर भी हो।
18:49जिस राजकुमार के साथ उसका विवाह हो, वो बल्वान के साथ साथ शतुर भी हो।
18:56मैं समझ गया महाराज, महाराज अगर मेरी मानो तो आप तीन प्रशन तेयार कीजिए और सारे राज्यों में एलान करवा दीजिए
19:05कि जो भी राजकुमार अपने तीन प्रशनों का सही सही उत्तर दे देगा, वही राजकुमार सुलेखा के गले में वर्माला पहनाएगा।
19:15मत्री जी तुमने बिल्कुल सही कहा, तुमारे कहे अनुसार मैं तीन प्रशन तेयार करता हूँ, तुम जाओ और सारे राजके राजकुमारों को इस बात का एलान करवा दो, कि जो भी मेरे तीन प्रशन का उत्तर दे पाएगा, उसी से ही मेरी पुत्री सुलेखा का विवा
19:46अकले दिन मत्री चरन सिंग् ने आसपास के सारे राजचों के राजकुमारों के एलान करवा दिया, कि संगर लाज्या में ये एलान सुनते ही लाचमती आंधक्तियस से बोल रही
20:01तुम हमेसा कहते थे ना कि तुम इस जंगल से पाहर कफ निकलोगे, समय आ गया है बेटा तुम्हारे जंगल से पाहर निकलने का
20:14क्या, सच मा, इसका मतलब अब मैं सारी दुनिया गूंग सकता हूँ ना, है ना
20:25बेटा, अब तुम्हें राजनगर की ओर रवाना होना होगा, राजनगर में राजसंगराम सिंग की एकलोती पुत्री सुलेखा का विवा होने वाला है
20:37और राजसंगराम सिंग ने सद रखिये, कि जो भी राजकुमार उसके तीन प्रशनों का उत्तर दे देगा, वही राजकुमार, राजकुमारी सुलेखा का पति वनेगा, वहाँ पर तीन राजकुमार पोहत चुके है, तुम भी वहाँ पर चने जाओ
20:56मा, पर मैं कोई राजकुमार हूँ ही नहीं
21:02नहीं बेटा, तुम एक राजकुमार ही हो, आज तक मैं तुम से एक बात शिपाते हुए आयी हूँ, दर असल
21:12लाजवती आतिक्ते को सारी घटना बताते हुए बोली, कुछ सेनिक तुम्हें यहाँ पर फेक कर चले गये थे, मैं चाहती हूँ कि तुम राजकुमारी सुलेखा से मिवा करके यह साबित कर दो, कि तुम अपने चुड़वा भाईग और बाखी और राजकुमारों से भी �
21:43इधर राजनगर के राजमहल में आतिक्ते का चुड़वा भाईग और साथ में दो और राजकुमार कहरे हुए थे,
21:51राजकुमारी सुलेखा राजा संग्राम सिंग के बगाळ में खरी हुई थी, राजा संग्राम तीन राजकुमारों की और देखकर बोला,
22:00मेरा पहला प्रश्न यह है कि बताओ ऐसा कौन सा मनुष्य है जिसके पास सब कुछ होता है लेकिन फिर भी वो उदास होता है।
22:12मेरा दूसरा प्रश्न यह है कि वो क्या है जिसे मनुष्य जितना भी पाले परन्त उसे और जादा पाने की चाहत कभी खत्म नहीं होती।
22:25राजा संग्राम सिंग की बात सुनकर तीनों राजकुमार सर चुका कर खड़े हो गए, महल में सन्नाता चा गया, तभी वहाँ पर चोथा राजकुमार आ पोचा, वस राजकुमार ने चीर कपड़ी से धक रखा था, वो निदर होकर राजा संग्राम सिंग से बोला,
22:45आपका पहला प्रश्न था कि वो कौन सा मनुश्य है, जिसके पास सब कुछ होता है, मगर फिर भी वो उदास होता है?
22:54महराज, इसका उत्तर है कि वो मनुश्य वो होता है, जिसका मन ईर्शा से भरा होता है, इर्शा जिस मनुश्य के मन में आ जाती है, उसके पास चाहे धन का भंडार ही क्यों ना इकत्रिद हो जाए, वो सदव सामने वाले को देखकर हमेशा उदास रहता है और असंतुष्ट
23:25कि मनुश्य जिसे जितना भी पाले और पाने की चाहत कभी समाप्त नहीं होती, महराज, वो धन होता है, मनुश्य के पास चाहे कितना भी धन का भंडार एकत्रिद क्यों ना हो जाए, मगर फिर भी वो और धन पाने की चाहत रखता है।
23:44आपका तीसरा प्रशन यही था कि ऐसा क्या है जिसे मनुश्य एक बार खो देता है तो फिर कभी वापस नहीं पा सकता, महराज, वो समय है, मनुश्य चाहे जितना भी दीते हुए समय को वापस पाने की कोशिश कर ले, लेकिन ला नहीं सकता, पा नहीं सकता, समय गया तो ग
24:14जबाब सुनकर राजा संग्राम से खुशी से बोला
24:20वाह, क्या बात, तुमने इन तीनों प्रशनों का बिल्कुल सही उतर दिया राजकुमार, शाबास, अब तुम अपने चेहरे का नकाब हटा सकते हो,
24:32मैं उस बुद्धी मान राजकुमार को देखना चाहता हूँ, जिसकी बद्धि का मैं कायल हो गया, हटाईए राजकुमार अपना नकाब, और दिखाये अपना चेहरा
24:44चोथी राजकुमार ने अपने चेरे से नकाब हटा लिया, राज पूरी तरहा से ग्रोधित हो उठा, क्योंकि राजकुमार का चेरा बंदर का था, वो राजकुमार अधित्य ही था।
25:00क्या, ये क्या है, ऐसा नहीं हो सकता, मैं अपनी पुत्री का विवा एक बंदर के साथ नहीं कर सकता, और हो नहों, मैंने तो इस प्रतियोगिता में सिर्फ और सिर्फ राजकुमारों को बुलाये था, लेकिन तुम बंदर यहां कैसे पहुंच गए?
25:18महराज, मैं आपके पडूसी राज किशनगड के राजा, राजा विक्रम का पुत्र हूँ, जोड पोलते हो तुम ऐसा कैसे हो सकता है, राजा विक्रम का पुत्र, राजकुमार चंदन तो मेरे सामने ख़ड़ा है, और जा तक मैं जानता हूँ कि राजा विक्रम की तो एक ह
25:48तबी वहाँ पर लाच्वन्ती आप ओची, लाच्वन्ती को देखते प्याजर संग्राम सिंग बुस्से से पोला, तुम तो वही हूँ, जिसे मैंने बरसों पहले इस राज से बेदखल कर दिया था, वही हो न तुम, हाँ, मैं वही हूँ, मैं जानती थी कि तुम इसका छे
26:18नाराज कि ये सही कह रहा है, ये सचमुच राज़ा विक्रम का ही पुत्र है
26:26अब मैं समझा, वर्षों पहले मैंने तुमें राज से बेदखल कर दिया, तो तुम इस बंदर की साथ मिलकर मुझसे बदला लेने के लिए आई हो
26:39इतनों बोलकर राजा संग्राम सिंग फेनिको से बोला
26:44देखते क्या हो सैनिको, इन दोनों को तुरंत मौत के घाट उतार दो, ले जाओ
26:51तबी रंग बिरंगी चिर्णों के साथ, वही परी जो कि बर्सों पहले नाजवन्दी को मिली थी, वहाँ पर प्रकट हो गए
27:00और प्रोधित् वरी अवस्था में, राजा संग्राम सिंग की ओर देख कर बोले
27:06तुम ने अत्य चायार की सीमा पार कर दी आ राजा संग्राम सिंग, बर्सों पहले तुम ने इस निर्दोस लाजवन्दी को राज़य से बेदकखल कर दिया
27:14बेचारी ये राज्या छोड़कर किसम का राज्या चनी गई और वहाँ के राजा ने अपने पुत्रों की सकल बंदर की तरह देखकर उसे जिंगल में फिकवा दिया
27:24मगर लाजवन्ती की इंसानियत देखो इसने उसे अपने पुत्रों की तरहा फाला और इससे अच्छी परवरिस की इससे अच्छा संसकान दिये पर क्योंके वो एक राजभुमार था इसने उसने उसे यहाँ पर भीजा पर तुम उसके बुत्ती के कायन होने की बजए उसे मो
27:54होनी थी के तबह लाजवन्ती परी से बोली इने ख्यमा कर दो परी मैं नहीं
28:02चाहती की महाराज की बेटी के ही सामने उसके बाब को जना दिया चाये
28:10सुना तुमने इसे केते है इंसानियत परी के बाद सुनकर लाज़़ा संग्राम सिंग आफ़मे
28:19पशिताप के आँसु दिये हुए पोला
28:24मुझ्से मुझ्से गलती हो गई परी
28:27कृपया मुझे माफ कर दू
28:29मैं आगे से किसी की साथ ऐसा बरताव नहीं करूँगा
28:33आज
28:34आज मेरी आखें खुल गई हैं
28:37कृपया मुझे शबा कर दू परी
28:39तबी परी की आखों से रंग बिरंगी किलने निकनने लगे
28:43और राजकुमर आधिक्तिय का चेहरा एक बहुत ही सुन्दर नभी उपक चेहरे में परिवर्टित हो गया
28:50परी राजा संग्राम सिंग् से बोली
28:53बरसों पहिर लाज़वंती ने अपने धन्वान भुने का रहस्य तुम्हे इसी नहीं बताया
28:58क्योंकि उसे ऐसा करने के लिए मैंने मना किया था
29:02क्योंकि मनिश्यों बहुत ही ज़्यादा लालची होते हैं
29:05मैंने राजकुमर आधिक्तिय को सुन्दर बना दिया है
29:09राजकुमर आधिक्तियंने तुम्हारे प्रस्नों को सथी उत्तर दिये है
29:13इसलीए केबल राजकुमर आधिक्तिय का ही विवा राजकुमर सुलीखा के साथ होना चाहिए
29:19मुझे मन्जूर है परी
29:23लाजा संग्राम सिंग इतना कहते ही परी रंबिरंगी किर्नों के साथ वहां से कायब हो गए
29:30पर राजकुमार अधित्य को विवा धूम थाम से राजकुमारी सुनिखा से हो गया
29:35विवा के बाद राजा संग्राम सिंग लाजवन्ती से बोला
29:41मुझे शमा कर दो लाजवन्ती अब मैंने फैस्टला नहीं लिया है
29:46इस राज्य का अगला महराज आधित्य ही होगा
29:51मैंने तुम्हारे साथ जो बुरा बरताव किया वो शमा के काबिल तो नहीं
29:56परन्तु मैं फिर भी प्राइश्चत करना चाहता हूँ
30:00मैं चाहता हूँ कि आज से तुम मेरे महल में ही रहो
30:04क्योंकि तुम ही राजकुमार आधित्य की असली मा हो
30:12राजा संग्राम सिंग की बात सुनकर लाजवन्ती ने मुस्कुराती हुए हामीगी भरती
30:17और वो अपने बेटी राजकुमार आधित्य के साथ मेहल में खुसी-खुसी जीवन व्यतीत करने लगी