"जादुई फल और नीले हिरण" is a captivating Hindi animated movie that will delight and inspire young viewers. Join us on a journey through the world of karma, where actions have consequences and good deeds are rewarded. This moral story teaches valuable lessons about responsibility, kindness, and the importance of making positive choices. With vibrant animation and a heartwarming narrative, "जादुई फल और नीले हिरण" is a must-watch for families and children of all ages.
Watch now and discover the power of karma!
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00:00प्रीज किलास किलास dos kilaas kilaas
00:04प्रीज निराजा
00:15राजा अदीद्या सिंग अपने महल के राजतरबार में एकेले उदास बिठा हुआ था
00:20कि तबी महापर लाजपक्षी आ कर राजा अदीद्या सिंग से बोली
00:25ये मैं क्या सुन रही हूँ महराज? महराणी बिमार है?
00:31तुमने बिल्कुल सही सुना राजपक्षी.
00:35पिछले कुछ दिनों से महराणी की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई है.
00:40उनकी हालत दिन बदिन बेगरती जा रही है.
00:44अगर इसी पात थी महराज, तो आपने मुझे पहले इस पात से अफकत क्यों नहीं कराया?
00:51राजपक्षी, मैंने सोचा था कि राणी सुक्मनी को कोई मामुली सी बिमारी होगी, इसलिए मैंने उन्हें बताना उच्छित नहीं समझा.
01:01परंतु मैं राजजी के बड़े-बड़े वैत से उनका इलाज करा चुका हूं, मगर राणी सुक्मनी की बिमारी सही होने का नाम ही नहीं ले रही.
01:11जब बिमारी में जड़े-पोटिया काम करना बंद कर देती है, तो फिर प्रातना ही काम आती है.
01:20मैं कुछ समझा नहीं राजबक्षी.
01:23महराज, मैं एक हिरन को चानती हूं, जो दिखने में नीरे रंका है.
01:29केते जो भी बिमार वेक्ती ये औरत उस सादु के पास जाते हैं, तो सुष्थ होकर ही आते हैं. उसके पर बिमारी को समझने की अत्बुत सकती है.
01:41तो फिर क्यों ना उस हिरन को तुरंट यहां पर लाया जाए?
01:46महराज, वो हिरन संसाय की मोमाया से दूर रहना पसंद करता है, इसलिए वो चंगन के एक गुफा में रहता है. अगर आपकी आग्या हो, तो मैं आपको उस गुफा तक पोचा सकती हूँ.
02:01राजा अधीत्या सिंग बेसबरी से उस हिरन से मिनने के लिए इन्तिजार करने लगा.
02:15अगले सुबा राजा रासपक्षी के साथ घोरे पर बेट कर गुफा की तरफ जाने लगा.
02:21महराज यही है वो नीले हिरन.
02:27राजा अधीत्या ने नीले हिरन को सारी बाते बता दी. राजा की बात सुनका हिरन ने कहा,
02:33महराज आपकी पतनी को विचित्र बिमारी है, जो जड़ी बुटी से ठीक नहीं होगी, बलकी एक उपाय है जिससे महराणी सही होगी.
02:44तो फिर जल्दी से मुझे उपाय बताईए हिरन महराज.
02:48महराज आपकी पतनी को कोई बिमारी नहीं है, बलकी इनके ग्रह गड़बडाए हुए हैं, और इनके ग्रहों को सही करने के लिए आपको दूसरा विवाह करना होगा.
03:01दूसरे विवाह के पस्चाद जो आपको संतान होगी, महराणी को उपाय बताईए होगी.
03:08ये सुनकर राज आदित की अबूरी तरहा से चोखते हुए बोला, तो पताए जाएगा तो जाएगा तो जाएगा भगभरसने करगी.
03:31ये सुनकर राजा आदित्या बुरी तरहा से चोखते हुए बोला
03:37महराज ये आप कैसी बात कर रहे हैं
03:40मेरा पुत्र राजकुमार कर्ण जवान हो चुका है
03:43कुछ ही समय में वो इस राज का राजा बन जाएगा
03:47और इस आयू में आप मुझे दूसरा विवाह करने की कैह रहे हैं
03:54महराज, राजा तो दो-डो-तीन-तीन ० विवाह करते हैं
03:58और आप तो अपनी पतşallah के ग्रह सही करने के लिए
04:02विवाह कर रहे हैं
04:04समय की यही मांख है महराज
04:06इस कार्य को आपको जल्दी करना होगा।
04:09और हाँ ध्यान रखना विवाह आपको किसी गरीब कण्या से ही करना होगा।
04:19नीले हिरन के मूँसे ये बात सुनकर
04:22राजा अधित्यत् चींतित अवस्ता में अपने मेहन में आ गया।
04:25हिरन दे आपको बहुत सरा लुपय बता है महराज, इसमें इतने चिंता करने की क्या बात है।
04:31पर तुम तो जानते हूँ राजपक्षी की मेरा पुतर राजकुमार करन कितना घुसे वाला है।
04:37कहीं वो मेरे दूसरे विवाह को गलत न समझ बैठे।
04:41इससे बिलकोल नहीं होगा महराज, राजकुमार करन को मैं समझा दूंगा।
04:47वो सब तो ठीक है राजपक्षी, लेकिन तो अच्छण को दोना जाना है।
04:53तो तुम अच्छण करने के लिए पुतर राजकुमार करन की बात देखा है।
04:57अपने दूसरे पुत्र को देनी की सोच रहा हूँ।
05:02इससे बिल्कुल नहीं होगा महराज।
05:04राजकुमार कन्ट को मैं समझा दूंगा।
05:09वो सब तो ठीक है राजपक्षी,
05:11लेकिन आखिर मैं दूसरा विवाह करूँ तो किस से करूँ।
05:16आपको उसके चिन्ता करने के कोई आवशिकता नहीं।
05:20नीले हीरन ने बताया है कि आपको किसी गरीब कन्या से विवाह करना होगा।
05:26और मैं एक ऐसे गरीब कन्या को चानती हूँ,
05:29जो राजचे से दूर एक छोपरी में रहती है।
05:32उसका नाम इंदोमती है।
05:35उस बेचारी के बास बरसार से बचने के लिए भी कोई छप भी नहीं है।
05:41तो ठीक है, हम स्वयम वहाँ पर जाएंगे और उससे बात करेंगे।
05:56अगली ये दिन, राजा अदित्या राजपक्सी के साथ
06:00जंगल में वनी हुई उस छोपरी के अंदर चले गए,
06:03जहाँ पर एक सुन्दर इस्तरी बेठी हुई थी, राजा अदित्या को देख कर वो छोपते हुए बोलनी थी।
06:12इस गरीबनाद के घर पर महराज स्वयम बधारे है, क्या मुझसे कोई गलती हो गए महराज।
06:19तुमसे कोई गलती नहीं हुई है अंदुमति, दरसल, मैं तुमसे विवा की बात करने किलिये आया हुं.
06:27मैं कुछ समझी नहीं महराज, महराज तुमसे विवा करने चाता है अंदुमदी.
06:34ये सुनकर इन्दुमती आविश्वस भरी नजरों से राजा अधित्या की और देखने लगे
06:41तुम एक अनाथ हो अगर तुमारा महराज के साथ विफा हो जाएगा तो तुमे एक पती मिल जाएगा और तुम अपना जीवन राणियों के तरफ यतीद करोगी
06:54तबी राजा अधित्या राजपक्षी की और देखकर बोले नहीं राजपक्षी मैं पहले इन्दुमती को सारी बात बताओंगा उसके बाद अगर इन्दुमती मुझसे विवह करने के लिए तेयार होती है तबी मैं विवह करूँगा
07:14इतना बोलकर राजा अधित्या इंदुमती को राणि सुत्मनी की विमारे की और सादु के उपाई की सारी घटना बताते हुए बोले
07:24और मैं तुमसे इसलिए विवह करना चाहता हूँ इंदुमती
07:29तबी मैं कहूँ महाराज की आचानक से मेरे किसमत के सितारे कैसे पनटके
07:36अगर सवाल महाराणी की विमारी का है तो अगर मेरा प्रांद लेकर भी उनकी विमारे सही हो जाए तो मैं देने के लिए तेयार हूँ
07:46इसका मतलब तुम मुझसे विवह करने के लिए तेयार हो
07:52इंदुमती सरमाते हुए बोले
07:56हाँ महाराज मैं तेयार हूँ
08:02राजा आदीत्या ने उसी दिन इंदुमती से विवा कर लिया
08:08समय ऐसे ही बीत तरहा
08:11एक बर्स की पस्चाद राणी इंदुमती ने एक सुन्दर पुत्रों को जनन दिया
08:16सुनदर पुत्रों का हाथ में देती ही राजा आदीत्या के मन की अंदर एक पिता का प्रेम उमर पड़ा
08:22और वो खुसी से चहिकते हुए अपनी पत्नी राणी इंदुमती से बोला
08:27इंदुमती आज तुम ने मुझे बोहत ज्यादा प्रसन कर दिया
08:32आज इसे हमारी संथान का नाम जय रखते हैं
08:39महराज जय ये
08:42मेरे संथान को राणी सुक्मनी को दे आये
08:45आज मैं अपने पुट्रों को 2 वर्स बाद ही देखुंगी
08:50मुझे तुम से यही उमिद थी राणी इंदुमती
08:59राज आधिक्ट्या अपने पुट्रों को सुक्मनी को दे आया
09:03अपने पुत्रोको सुख्मनि को
09:03दே आया।
09:06और उस दिन से
09:08जी की प्रवरिस राणी सुख्मनी
09:10अपने पुट्रोकी तरहां करनल�गी
09:15और एसे ही दो वोर्स बीद गैँ.
09:17दो वर्ष बीदने के पस्चात राणी सुक्मनी अपने पती राजा आदित्यस से बोली
09:25आप मैं अपने आपको बिल्कुल सही महसूस कर रही हूँ. मुझे ऐसा लगता है जैसे की मैं स्वस्त हो गई हूँ. मैं अपने सरीम में ताकत भी महसूस कर रही हूँ.
09:37इसका मतलब नीले हिरन के उपाय से तुम स्वास्त हो गई होगे महराणी.
09:51आप इससे आपने दोस्ती पत्नी को दे आईए. वैसे भी मैं तो केबल स्वस्त होने के लिए एक विकारण के बेटे की परवरिष कर रही थी.
10:00ये सुनकर राजा अदित्या चोपती हुए बोला, ये आप क्या कह रही हैं महराणी.
10:08मैं बिल्कुल सही कह रही हूँ. आप क्या जाने कि एक सोतन के बेटी की परवरिष करने का एक इस्त्री पर क्या महसूस होता है.
10:17इससे पहले कि मैं इसे अपने हाथों से मान दू, इसे तुरंट मेरी आखों की सामने से दुर ने जाईए.
10:27राणी सुक्मनी के मोँ से ये सब सुनकर राजा अदित्या को तेज जटका पोचा.
10:33राजा अदित्या अपने दूसर पुतर जे को नेकर सीधे इन्दूवती को दे आया.
10:40राजा अदित्या कख शे बाहर निकला ही था, कि तभी उसका पुत्र राजकुमर करन अपने पिता से बोला,
10:47पिताजी, आपने मुझसे कहा था कि जब मा बिल्कुल स्वस्त हो जायेगी, तव आप मुझे इस राज्य का राजा गोशत कर देंगे।
10:57अब मा स्वस्त हो चुकी है, उस समय आ गया है कि आप मुझे राजा गोशत कर दीचे।
11:04हाँ पुत्र मुझे याद है आज तुम्हारी मा पूरी तरीके से स्वस्त हो उटी हैं।
11:10मेरे द्वारा किये गए वादे के मुताबिद मैं आज के आज ही तुम्हें राजा घोशित करूँगा।
11:16राजा अधित्या ने उसी समय अपने पुत्र को राज्य का महराज घोशित कर दिया।
11:25मगर ऐसे करते ही अगने दिन राजा अधित्या पूरी तरहा से बिमार पड़ गया।
11:30काफी इलाज के बाद भी राजा अधित्या के बिमारी सही नहीं हुए।
11:36एक दिन राजा कर्न अपने दरबार में बेठा अपना नया मिट्र असोक से हसी मजा कर रहा था।
11:42कि तवी राजपाक्सी वहाँ आकर राजा अधित्या से बोली,
11:47महराज आपके पिता के तबियत सही नहीं है। उन्होंने अपको याद किया है।
11:55राजा कर्न तुरंत अपने पिता के कक्ष में पहुँच गया। राजा अधित्या अपने पुतरे से बोला,
12:01मुझे नहीं लगता कि मैं आप कभी स्वस्थ हो पाऊंगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरे जीते जी तुम्हारा विवाह संपन हो जाए।
12:07मेरे पड़ोसी राज के राजा संगम सिंग की पुत्री राजकुमारी देवकी से तुम्हारा विवाह तै कर दिया है।
12:25जैसी आपकी इच्छा पिता जी, आप मुझे जहां कहेंगे मैं वहां विवाह करने के लिए तैयार हूँ।
12:34कुछ ही समय में राजा करण का विवाह राजकुमारी देवकी से संपन हो गया.
12:43विवा के कुछ समय बाद राजा अधित्यसंसार को छोड़ कर चला गया.
12:49ऐसे ही समय बीट ता रहा और ऐसे ही दर्श वर्स बीट के, राजकुमार जै अब 12 वर्स का हो चुका था.
13:03अपने पती से बोली, आपका सोतना भाई अब बारा वर्ष का हो चुका है।
13:11हाँ मुझे पता है।
13:14और हमारा पुत्र भी पांच वर्ष का होने वाला है।
13:19हाँ मुझे ये भी पता है लेकिन ये सारी बातें तुम मुझसे क्यों कह रहे हो।
13:24आकर तुम कहना क्या चाहती हो।
13:27वही जब तुम कभी देखना नहीं चाहते।
13:31ये पहेडिया मत बुज़ाओ देवकी, साफ साफ बोलो, बात क्या है।
13:36लिखो, तुमारा सोतना भाई अब बारा वर्ष का हो चुका है।
13:41कुछी वर्षों में वह जवान हो जाएगा।
13:45जब कि तुम धीरे धीरे बूरे हो रहे हो, जब वह जवान होगा, तो वो भी इस राज्या पर अपना दावा फेस करेगा।
13:53पर उसका ये अदिकार बनता भी है, आकर वो भी तुमारे पिता की संतान है।
13:58बन नहीं उसकी रबों में तुमारे मा का खुण ना हो, लेकिन तुमारे पिता का रख उसमें भी बे रहा है।
14:07देपकी ने ये बात कही ही थी, कि तभी राजा कार्ण की मा सुपमनी वहाँ पर आकर अपने पुत्रे से बोली।
14:16देपकी बिलकों सही कह रही है बेटा।
14:20तो फिर मुझे क्या करना चाहिए मा?
14:24सही चीज़ हमेशा सही जगे पर होनी चाहिए। तुमारे पिता ने मेरे बिमारी को सही करने के लिए इंदोमती से विवा किया था, मैं स्वस्थ हो गई।
14:34अब इंडोमती को इस महल में कोई आवशक्ता नहीं। इससे पहले कि इंडोमती अपने पुत्रे को राज्जिया हत्याने के लिए कहे और उसका पुत्रे बागी बने, तुमें उन मा बेटे को धक्य देकर इस महल से बाहर निकानना होगा।
14:51अगली बाद सुक्मनी की बात सुनकर, राजा कर्न बहुत गेहरी सोच में डोकते हुए बोला, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं मा, मैं आज ही उन दोनों को इस महल से धक्य मार कर बाहर निकाल दूँगा।
15:08राजा कर्न ने ऐसा ही किया, अपनी सोतेले मा इंदुमती और अपने सोतेले भाई जेई को धक्य देकर महल से बाहर फेक दिया। इंदुमती अपने सोतेले पुत्र राजा कर्न से बोले, ऐसा अन्ध्याई मत कीजिये महराज, मैं अपने पुत्रों को नेकर कहां भटकूं
15:38के बाद याद रखना, अगर तुम दोनों इस राज में नजर आए, तो मैं उसी समय तुम दोनों की हत्या करवा दूंगा, और ये मेरा आदेश है।
15:50तबी वहाँ पर राजपक्षी आ गई और राजा कर्न से बोले, ऐसा अन्ध्याई मत कीजिये महराज, ये आप क्या कर रहे हैं?
16:04राजपक्षी अपनी हद में रहो, राजपक्षी तुम जानते हो कि महराज के फैसलों पर उंगली उठाने वालों को भी गद्धार कहा जाता है, इससे बहले कि मैं तुम्हे गद्धार गोशित करके इन मा बेटों के साथ जंगल में दरदर भटकने के लिए मज़बूर कर
16:3412 वर्सिय पुत्र जै को लेकर जंगलों पे और चल गई, इंदुमती का पुत्र जै वैसे भी विमार था, बहुत दोर चलने के बाद जै का गला प्यास से सोखने लगा, वो अपने मा से बोला
16:50मा मुझे बहुत तेज़ प्यास लगी है
16:53चिंतब मत करो मेरे बेटे, यहां आसपस तलाप सरूर होगा, मैं अभी तुम्हारे लिए पानी लेकर आती हूँ
17:01इंदुमति पागलों के तरह जंगन में तलाप को खोचने लगी, बहुत देर के बाद उसे एक तलाप मिल गया, इंदुमति अपने पुतर जै को लेकर तलाप तक पहुची ही थी, कि तभी उसका पुतर जै बेहोस हो गया
17:22तुझे क्या हुआ बेटा, अपनी आँखे खोल, देख तलाप आ गया, अब तो तलाप से धेव सारा पानी पी सकता है, सबको सही हो जाएगा, अपनी आँखे खोन बेटा
17:36परंतो जै ने अपनी आँखे नहीं खोली, इंदुमती समझ गई कि उसका पुतर अब इस संसार में नहीं रहा, तो फूट फूट कर लोने लगे, तभी वहाँ नीले रंग की हिरन जिसने राजा अधित्य की पतनी का उपाय बताया था, वहाँ पानी पीने के लिए आया थ
18:07इंदुमती ने हिरन को सारे घटना बताती हुई बोली,
18:11आखिर मुझे क्या मिला हिरन महराज, मेरे पती भी मुझे छोड़ कर चले गये,
18:18मेरा पुत्र भी छोड़ कर चला गया, और तो और मुझे मेहल से भी धक्के देकर पाहर निकाल दिया गया।
18:27चिन्ता मत करो तुम, अपने पुत्र के शव को इसी तालाब के किनारे मिट्टी के नीचे दबादो।
18:35जिन्होंने तुम्हरे साथ घोर अन्याय किया है, उन्हें उनकी पापों की सजा अवश्य मिलेगी,
18:42और जिसने उनकी बातों में आकर पाप किया है, वो अपने पाप जीवन भर याद करता रहेगा।
18:52इन्दोमती रोती हुए अपने बेटी को तालाब के किनारे मिट्टी के नीचे दबादिया।
18:59इस तालाब के उस बार ही एक गुफा है, अगर तुम चाहो तो तुम मेरे साथ रह सकती हो।
19:08वैसे भी अब मेरा इस संसायर से मुह भंग हो चुकाया हीरन महराज, मैं अब एकांग में ही अपना सारा जीवन बेटीत करना चाहती हूँ।
19:18इन्दूमती नीड़े हीरन के साथ उस गुफा में रहने लगे, एक दिन इंदूमती की नज़र तालाब के किनारे पड़ी, जहाब एक सुन्दर ब्रिक्स उगा हुआ था, और जिस पर एक ही फल लटक रहा था, ये देख कर इन्दूमती नीचे दबादिया।
19:46हीरन महाराज, ये कैसा चमकार है। तुम जिस फल को देख रही हो, उसे अपना पुत्र जय ही समझो। तुम्हारे पुत्र की मरत्यू के बाद उसकी आत्मा इस फल में समा गई है। अगर तुम चाहो तो तुम इस से बाते भी कर सकती हो।
20:13क्या सच में हीरन महाराज, ये तो मेरे लिए बहुत खुसी की बात होगी।
20:22बेटा जय, क्या तुम मुझे सुन सकती हो।
20:26हाँ मा, मैं तुम्हें सुन सकता हूँ।
20:32बेटा, मुझे माफ कर दू, मैंने बहुत कोशिस की, पर तुम्हें बचा नहीं पई।
20:40नहीं मा, ऐसा मत कहो, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी।
20:54समय ऐसे ही बीटता रहा, एक दिन अचानक राजा कर्ण की पतनी, उसकी मा और उसका पुछर बुरी तरह से बिमार पढ़ गया।
21:03राजा कर्ण ने राज जी के सबी बड़े बड़े बेट को बुलाया, मगर सबी ने अपना हाथ ख़ड़ा कर दिया।
21:09राजा कर्ण बुरी तरह से चिंपी थो उठा, अचानक उसे राजपक्षी की याद आ गए, और वो एक सेनिक से बोला,
21:18तुरंत राजपक्षी को यहाँ पर बुला कर ले आओ।
21:25कुछ सोबह बाद सेनिक राजपक्षी को वहाँ पर ले आया, राजपक्षी राजा कर्ण की ओर देख कर बोली,
21:32आपने मुझे यहाँ पर क्यों याद किया है माराज, आपने तो मुझे मेन से निश्कासित कर दिया था।
21:41राजा कर्ण सारी घटनां बताते हुए राजपक्षी से बोला,
21:48जब मा बीमार बड़ी थी, तब तुमने मेरे पिता की मदद की वी, और आज,
21:56मेरी मा, मेरी पतनी और मेरा पुत्र तीनों बुरी तरह से बीमार हैं।
22:04तुमारे पिता तुमारी तरह खमंदी नहीं थे राजण, तुमने निर्दोस मा बेटी को अपने मेर से धक्के देकर जंगल में ढेकेल दिया,
22:13उन मा बेटों की हाई एकने एक दिन तो लगनी ही थी।
22:19मैं अपनी गलती मांता हूँ राजपक्षी, और मैं अपने पापों का प्राश्चत करने के लिए कुछ भी करने को तयार हूँ,
22:28परन्तु आप मुझे बस उन हिरन महराज का पता बता दीजे, जिन्होंने मेरी मा को सही करने का उपाय बताया था।
22:38जी तो चाते है कि तुम्हारी बात से इंकार कर दू, परन्तु मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ।
22:47इतना बोल कर राजपक्षी ने राजकर्ण को पता दिया कि वो नीले रण का हिरन कहा रहता है।
22:54राजकर्ण ने तुरंत राजपक्षी के साथ गोड़े पर बेट कर चिंगल की तरफ चल दिया.
22:59कुछ गिंटे सफर करने के बाद राजकर्ण उस कुफे में पहुँच गया।
23:09हिरन महराज, जो करना है कीजे, पर मेरी परिवार को रातक बिमारी से बचा लीजिए।
23:17राजकुमर कर्ण ने हिरन को सारी बाते बता दी. सारी बाते सुनने के बाद हिरन बोला,
23:25महराज, इस संसार में केवल एक बेड है, जिस पर केवल एक ही फल उगा है, और एक ही फल उगेगा, उस फल को खाने से ही आपकी मा, आपकी पत्नी और आपका पुद्र सही हो सकता है, परन्तु वो फल आपको किसी एक को ही खिलाना होगा।
23:45ये सुनकर राजकुमार कन चोपते गए बोला, आप कहना क्या चाते हैं हिरन महराज, सीधी सी बात है, आप तीनों में से किसी एक को ही स्वस्त कर सकते हैं, बाकि दो लोगों को अपने जान गवानी पड़ेगी, और हाँ महराज, उस फल को केवल आपको ही तोड़ना होगा
24:15माल्गिन से आपको आज्या लेना ही आवशक है, अगर आप बगएर उसकी आज्या की वो फल तोड़ेंगे, तो वो फल आपके किसी भी काम का नहीं होगा
24:29हीरन्त राज कर्ण को उसी तनाग की किनारे पर ले गया, जहाँ पर वो ब्रिच था, उस ब्रिच के नीचे अपनी सोतेली मा राणी इंदुमती को देख कर राज कर्ण बुरी तरह से चोटते हुए बोला
24:45हाँ, ये तो मेरी सोतेली मा राणी इंदुमती है, जिन्हें मैंने अपमानित करके बाहर निकाल दिया था
24:57सही कहा महराज, ये वही इंदुमती है और जिस पेड़ को आप देख रही है, जिस पर केवल एक ही फल लटक रहा है, वही फल है, जिसे खाने से तीनों बिमारों में से एक को स्वस्थ किया जा सकता है
25:13लेकिन आपको ये जानकर आश्चरिय होगा कि वो फल कोई साधरन फल नहीं है, वो फल आपका सोतेला भाई राजकुमार जै ही है
25:25ये आप क्या कह रहे हैं
25:27मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं महराज, आपने अपनी मा और अपनी पत्नी की बातों में आकर एक निर्दोश मा बेटे को महल से बाहर निकाल दिया, इंदुमती का पुत्र पहले से ही बिमार था, वो बेचारा तालाब के पास आकर भी पानी ना पी सका और अपनी जान गव
25:58राजा कर्ण तुरण जाकर अपनी सोते निमा राणी इंदुमती के सामने रोती हुए बोला
26:06मुझे माफ कर दो मा, मुझे से बहुत भारी बूल हो गई, काश मैं अपनी मा और अपनी पत्नी की बातों में नहीं आता, तो शायद आज मुझे ये समय देखने को ही नहीं मिलता, ये क्या हो गया?
26:30इतना बोल कर राजा कंट सारी घटना बताते हुए अपने सोतेले मा इंदुमती से बोला
26:39मुझे, मुझे इस फल को तोड़ने की स्विक्रती दे दो मा, इस फल को खाने से ही मेरे परिवार में किसी एको जीवन दान मिल सकता है
26:56आपने सोतेले पुत्रे राजा करन की बात सुनकर, राणी इंदुमती उस फल की तरफ देखी
27:06मा, आप फल तोड़ने की इजासत दे दो, आज मेरा भाई मुसीबत में है और मैं उसकी मदद किये बिना नहीं रह सकता
27:17पर बेटा तुम
27:19उसके लिए चिंता मत करो मा, जैसे ही ये फल पेड़ से तोड़ जाएगा, मेरी आत्मा एक दूसरे फूल में समा जाएगी, इसमें क्या हो गया, मैं एक नया फल की रूप में पैदा हो जाओंगा
27:33राजा कर्न, कुछ समय पेले तुम्हारे पिटा भी मेरे पास आये थे और मैंने उन्हें खाली हात नहीं लोटाया था क्योंकि मेरे अंदर इंसानियत चिंदा थी, आज तुम आये हो तो विश्वास करो, मैं तुम्हें भी खाली हात नहीं लोटाऊंगी
27:56अगर इस फल को खाने से किसी एक का जीवन दान मिल सकता है तो तुम इसे तोड़ कर नहीं जा सकते हो
28:05राजा कर्न ने तुरंद उस फल को तोड़ लिया और रोते हुए अपने माँ से बोला
28:12आप ही मुझे बताये माँ कि मैं इस फल को किसे खिला हूँ मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा
28:22तुम्हारी माँ और तुम्हारी पत्मी मन से असुत थी इसलिए उनका इस संसाल में रहेना बेकार है
28:29परंत तुम्हारा पुत्रा अभी केबल पांच वरस का है वो बिचारा तो अभी चानता भी नहीं कि अच्छाई और बुराई क्या होता है
28:39तुम्हें अपने पुत्रा को बचाना चाहिए और जब वो बड़ा हो जाए तो उसे इंसानियत का पात बढ़ाना और उसे एक अच्छा इंसान बनाना ठीक अपने पिता की तरहा
28:51राजा कर्ण नम आखो से वहाँ से चला गया और उसने वे फल अपने पुत्रा को खिला दिया फल खाने के पस्चाद राजा का पुत्रा सही हो गया और राजा कर्ण की माँ और उसकी पत्नी देप की संसार छोड़कर चली गयी
29:11राजा कर्ण ने भारी मन से उन दोनों का अंतीम संसकार कर दिया और फिर जीवन बर हमेशा पशिताप की आग में ही जलता रहा