- 9/16/2024
## Suggested Description for Your Video:
**"बरहमण क बदधमन"** is a captivating Hindi cartoon story that will delight and inspire young viewers. Join us on a magical adventure as we explore the power of fate and the importance of perseverance. Through vibrant animation and a heartwarming narrative, this moral story teaches valuable lessons about overcoming challenges and believing in oneself. Don't miss this enchanting tale that will leave you with a smile and a sense of wonder.
**Watch now and discover the magic of "बरहमण क बदधमन"!**
Suggested Tags:
Primary Tags:
Hindi cartoon story
Hindi moral story
Hindi kahaniya
Hindi kids story
Moral stories for kids
Animated stories
Hindi animation
Secondary Tags:
बरहमण क बदधमन (exact title)
Hindi fairy tale
Hindi bedtime story
Hindi folktale
Indian cartoon
Hindi children's stories
**"बरहमण क बदधमन"** is a captivating Hindi cartoon story that will delight and inspire young viewers. Join us on a magical adventure as we explore the power of fate and the importance of perseverance. Through vibrant animation and a heartwarming narrative, this moral story teaches valuable lessons about overcoming challenges and believing in oneself. Don't miss this enchanting tale that will leave you with a smile and a sense of wonder.
**Watch now and discover the magic of "बरहमण क बदधमन"!**
Suggested Tags:
Primary Tags:
Hindi cartoon story
Hindi moral story
Hindi kahaniya
Hindi kids story
Moral stories for kids
Animated stories
Hindi animation
Secondary Tags:
बरहमण क बदधमन (exact title)
Hindi fairy tale
Hindi bedtime story
Hindi folktale
Indian cartoon
Hindi children's stories
Category
😹
FunTranscript
00:00चंद्रपूर राज्य में पितंबर नाम का एक गरीब प्रामहन रहता था।
00:04कथा सुनाकर धार्मिक कारिया कराकर उससे जो भी धन मिलता उससे जैसे दैसे अपने परिवार का पालन पोशन करता था।
00:12उसके परिवार में उसकी पत्णी कल्याणी दो बेटे और एक बेटी थी।
00:32कल्याणी, बेटी सुकन्या का विवास सर पर आ गया है।
00:36अरे घर में एक पैसा भी नहीं है, समझ नहीं है।
00:39अरे घर में एक पैसा भी नहीं है, समझ नहीं आता कि ऐसी हालत में बेटी का बियाँ कैसे करो।
00:46बेटी अमीर की हो या गरीब की, सब की विवा हो जाती है जी, तो फिकर ना करो।
00:53हमारे महराज निर्मन सिन बड़े ही तयालू है, विदुआनों का वो बड़ा ही आदन करते है, आप उनके बस जाकर साहिया तक क्यों नहीं मांगते हैं।
01:03अरे नहीं कल्यानी, ये मुझसे नहीं होगा, मैं इस तरह भीग मांगने नहीं जाओंगा।
01:10इसे आप भीग मांगन क्यों कहते हो जी, राजा का काम है देना, पर ब्रामण का काम है नेना, आप एक अच्छे काम के लिए मांगेंगे, इसमें संकोच के क्या बात है।
01:23हाँ, ठीक है कल्यानी, तुम कहती हो तो मैं महराज के पास जाओंगा, परन्तु महराज के विचितर आदत के बारे में तो तुम जानती ही हो, वो उसी की सहायता करते हैं, जो उनके द्वारा ली गई बुद्धिमानी की परिक्षा में उत्तीन हो जाता है।
01:40हाँ, क्यों नहीं, ये तो सारा राच्चे जानता है जी.
01:45हाँ, और यही तो दिक्कत है, महराज मेरी भी परिक्षा लेंगे, यदी मैं असफल रहा, तो मेरी बड़ी बेज़ती हो जाएगी, सब के सामने वो भी.
01:56आप हार के विसय में क्यों सोचते हो जी, मास वरसती से अपने जीत की कामना करें, और वहाँ पर जाएगे, मुझे पूरा बिस्वास है, कि आप सफल होकर ही लोटेंगे, और मेरी मानिये तो अपने दोनों पुत्रों को भी साथ मिलने जाएगे, वे आपकी साहियता करेंग
02:26पड़ी दिखा राजमहल की तरफ चला गया,
02:29वो मन में सोच रहा था
02:31अरे आज तक मैंने किसी से भी एक पैसे की साहियता नहीं मांगी,
02:36आज मुझे किसी से मांगते हुए बढ़ा ही विचित्र लग रहा है,
02:39और नजाने राजा मुझे से क्या पूछ ले
02:42अगर मैं जवाब नहीं दे पाया तो
02:51जल्दी ही वो राजमहल में पहुँच गया
02:54प्राहारी ने जाकर राजा को संदेश दिया
02:58महराज की जए हो
02:59राजमहल के द्वार पर
03:01एक निर्दार ब्रामण अपने दो पुतरों के साथ ख़ड़ा है
03:05वो आपसे मिलना चाहता है महराज
03:07अच्छा ऐसी बात है
03:09तो जाओ
03:10उस ब्रामण को वेज दो
03:16ब्रामण अपने दोनों पेटों के साथ
03:18राजा के सामने उपस्तित हुआ
03:20और बोला
03:22प्रणाम महराज
03:24जी ब्रामण देवता
03:26कहिए
03:27और आज्यां कीजे कि मैं आपके किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ
03:32महराज
03:34मेरी पुत्री के विवाह के तिथी नस्दीक आ गई है
03:37घर में दरिद्रता का वास है
03:40इसलिए आपके पास सहायता माँगने आया हूँ महराज
03:45हुँ ठीक है
03:47सहायता करने के लिए हम तयार हैं
03:49आप ब्रामण देवता हैं आपकी सहायता नहीं करेंगे तो भला किसकी करेंगे
03:53पर इसके लिए आपको
03:55बुद्धी की परिक्षाओ तीर्ण करनी होगी
03:59जी बिल्कुल महराज इसके लिए मैं और मेरे पुत्र दोनों तयार हैं
04:04कहिए महराज
04:06ठीक है आप बड़े हैं इसलिए सबसे पहले आपकी परिक्षा लेता हूँ ब्रामण देवता
04:12मैं तुम्हे अधूरी कहानी सुनाऊंगा
04:15जिसे तुमको सही ढंग से पूरा करना होगा
04:19जी आप कहानी सुनाये महराज
04:23तो सुनिये ब्रामण देवता
04:25एक राजा था
04:27एक दिन वो रात को अपने शैन कक्ष में लेटा हुआ था
04:31तब ही उसने अपने सेवकों को बुलाया और कहा
04:35कुछ समय पहले
04:36दक्षं दिशा की ओर से एक पक्षी की आवास सुनाई दी थी
04:41जाओ और जा कर पता लगाओ कि आकरकर वो पक्षी है कौन
04:45कौन था वो? जाओ
04:48जो आग्या महराज
04:51सेवक, मेहल से बहार आया
04:53और दक्षिन दिशा की ओर चला गया
04:55पक्षी की दिशा की ओर चला गया।
04:58वो मन ही मन में सोच रहा था।
05:01महराज भी बड़े ही अजीव है।
05:04इतनी रात को मैं कैसे पता लगाऊँगा
05:07कि आकरकार उन्होंने कौन से पक्षी की आवास सुनी थी।
05:10क्या ही बोलूं।
05:14वो ये आवास सुनकर आश्चर में पड़ गया।
05:17वो छाड़ियों के समीप पोचा जहां से वो आवास आ रही थी।
05:20तबी उसने देखा कि एक निहत्य व्यक्ति को तीन चार आदमी मार रहे थे।
05:23और वो इस्तरी खड़ी हुए रो रही थी।
05:26अरे ये लोग इस आदमी को मार क्यों रहे हैं।
05:29सेबक ने उस आदमी को बचाने के लिए
05:32बाकी तीनों लोगों को ललकार कर कहा।
05:35ठहरो दुश्टों, मैं तुम्हें अभी बताता हूँ।
05:38सेबक उन बाकी तीन लोगों से फिड गया
05:41और उनके एक साथी को मार डाला।
05:44अपने साथी की ये हालत देखकर बाकी लोग भाग खड़े हुए।
05:50हाँ, हाँ, भाईया, हम परदेशी हैं।
05:53कही ठहरने के लिए जगए ठूर रहे थे।
05:56तभी इन लुटेरों ने हम पर हमला कर दिया।
05:59हम परदेशी हैं।
06:03हाँ, हाँ, भाईया, हम परदेशी हैं।
06:06कही ठहरने के लिए जगए ठूर रहे थे।
06:09तभी इन लुटेरों ने हम पर हमला कर दिया।
06:12अगर तुम ना आते, तो ये लोग तो हमें मार ही डालते।
06:15धन्यवाद, भाईया, धन्यवाद।
06:18हमारी साइगात करो भाईया।
06:21हाँ, ठीक है, ठीक है, चिंता मत करो बहन।
06:24इश्वर जो भी करता है, ठीक ही करता है।
06:27मैं किसी और काम से निगला था, लेकिन
06:30खैर, चलो आओ, मैं तुम्हें किसी सुरक्षित इस्थान पर पहुचा देता हूँ, चलो।
06:36फिर सेवक उन दोनों को एक धर्मसाला में दे गया, और वहाँ उनके रहने का उचीत प्रबंद कर दिया।
06:45जब वो सेवक वापस महल में पोचा, तो राजा ने पूछा,
06:50कुछ पता लगा, कौन सा पक्षी था वो?
06:54नहीं महराज, शमा कीजिए, महल से निकलते ही मुझे एक स्ट्री की रोने की आवास सुनाई दी।
07:02इसके बात सेनिक ने सारी बात राजा को बता दी, सारी बात सुनकर राजा को ग्रोध आ गया, और उसने कहा,
07:11तुम्हें जस काम के लिए भेजा था, वो पूरा करके नहीं आए, और दूसरे काम में लग गये, इसलिए हम तुम्हें कारागार में डालते हैं, ले जाओ इसे।
07:22राजा के आदीस पर सेनिक को कारागार में डाल दिया गया.
07:27उससे आगली राज को राजा को फिर से उसी पक्षी की आवास सुनाई दी, आज राजा स्वेम उस पक्षी के खोज में निकल पड़ा, वो उस दिसा में अभी कुछ ही दूर गया था, कि तबी उसे जाडियों में कुछ लोग दिखाई दिये.
07:50उस जाडि के पीछे कुछ लोगों का ग्रिह प्रतीत हो रहा है.
07:56वो कुछ नश्टीक और गया और उन लोगों के बाते सुनने लगा, वहाँ पर दो आदमी मोजूद थे, उन में से एक ने कहा,
08:05जैसे भी हो भाई, हमें महल के गुप्त ठिकानों का पता लगाना है, ता कि विजैनगर के राजा को बता कर उनसे उचित इनाम प्राप्त कर सकें.
08:16हाँ भाई, तुम बिलकुल ठीक कहते हो, हम दोनों मिलकर इस काम को अंजाम देंगे, ठीक है.
08:25उन दोनों की बाते सुनकर, राजा को ये समझते हुए डेड ना लगी, कि वे दोनों सत्रु देश विजैनगर के जासूस थे. राजा ने सोचा,
08:36ये तो सत्रु देश विजैनगर के जासूस हैं और हमारे महल में गुसने की योजना बना रहे हैं, इन्हें सबक सिखाना बहुत जरूरी है.
08:46ये सोचकर, राजा अपने तलवार लेकर उन दोनों पर तूट पड़ा और उन दोनों का वत कर दिया.
08:54इसके बात राजा अपने महल में गया और उसने उसी वक्त अपने सेवक को कारागार से बाहर निकाला और कहा,
09:02हम तुबे मुक्त करते हैं सेवक.
09:04ब्राम्मण देवता, तु कहानी के अनुसार, जब राजा सेवक को एक बार दंड दे चुका था, फिर उसने उसे मुक्त क्यों किया? बता सकते हो?
09:16अभी बताता हूँ महाराज, तो आप मेरी बात सुनिये, राजा ने सेवक को मुक्त करते हुए उससे ये कहा था?
09:26सैनिक, तुम निर्दोश हो, उस पक्षी का पता लगाने हम स्वयम भी गए थे, शत्रो देश के गुप्त चरों का भांडा फोर तो कर सके, मगर हम परिंदे की जानकारी नहीं प्राप्त कर सके, हमें समय और परिस्ठतियों को देख कर ही चलना पड़ता है, वही तुमने भी क
09:56परिक्षा में सफल हुए। बेटा विजय, अब मैं तुम्हारी भी परिक्षा लेना चाहता हूँ, क्या तुम तैयार हो। हाँ महराज, मैं तैयार हूँ, आप मेरी परिक्षा ले लीजी। तो सुनो, खेड़ा गाओं का मुखिया हरसुक बहुती बुद्धिमान था, वो
10:26उसके हर प्रशन का बड़ी ही सूजबूच से उत्तर देता था। एक दिन मुखिया ने बिर्जू से पूछा, अरे ओ बिर्जू, क्या तुम कोई ऐसे दो व्यक्तियों को ला सकते हो, जिन मेंसे एक ने कभी सच ना बोला हो और दूसरे ने जूंठ। हाँ, बिल्कुल मु
10:57ठेक है बिर्जू, जाओ, मैं तुम्हें कल तक का समय देता हूँ, जाओ
11:09अगले दिन बिर्जू मुखिया के सामने उपस्तित हुआ
11:15ए बिर्जू, क्या तुम उन लोगों को ले आए?
11:19जी मुखिया जी
11:21लेकिन बिर्जू, तुम्हारे साथ तो एक ही आदमी दिखाई दे रहा है, दूसरा कहां है?
11:29शमा केचे मुखिया जी, आपके प्रश्न के मताबग दोनों वेक्तियों के गुण इस आदमी में ही मौझूद है
11:37हाँ, कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए बिर्जू
11:41इतनी कहानी कहे कर राजा निर्मन सेन ने कहा
11:46युवक, क्या तुम बता सकते हो कि बिर्जू अपनी बात पर क्यों अड़ा हुआ था?
11:52महराज, बिर्जू ने मुखिया से सही कहा था, उसने मुखिया को बताया था
11:59नहीं, मैं बल्कुल ठीक हूँ मुखिया जी, इस आदमे ने आज तक ना तो जोट बोला है और ना ही सच बोला है
12:07क्योंकि ये जन्म से ही गूंगा है
12:10वाह बिर्जू, वाह, तुम्हारे जवाब से मैं बहुत ही प्रशन हुआ, बढ़िया, बढ़िया
12:17युवक, जिस बुद्धिमानी से तुमने कहानी पूरी की है, उससे हम बहुत ही कुश हुए, हम तुमारी भी इच्छा जरूर पूरी करेंगे
12:37आप राजा निर्मल सेन ने दूसरे पुत्रे से पूछा
12:41अब युवक, क्या तुम परिक्षा के लिए तयार हो
12:47जी महराज, मैं बिल्कुल तयार हूँ, आप प्रश्न पूछे
12:52तो सुनो, मैं तुम्हे उस समय की कथा सुनाता हूँ जो मानो सभिता का विकास नहीं हुआ था
12:59मानव, नए नए अविशकारों से अपनी सुक सम्बृत्धी में विरद्धी करता चला आ रहा था
13:04उस काल में एक जुलाहा रहता था जिसका नाम था बीरम
13:09बीरम के दो पुत्र थे सूरज और चंद्र उसकी पत्मी का निधन हो चुका था
13:15इसलिए पुत्रों की देखबाल उसे ही करनी बढ़ती थी
13:18उसके पुत्र पड़े ही नटकट थे धीरे धीरे समय बीचता गया और दोनों पुत्र बड़े हो गए
13:25बीरम अकसर ये बात सोचा करता था
13:29हाँ काश इस घर को समालने के लिए कोई इस्तरी होती तो कितना अच्छा होता
13:37अरे वो पूरा का पूरा घर साथ सवार कर रखती
13:42मैं कितना अभागा हूँ बगवान
13:55बीरम भाई सुना है तुम्हारे पुत्र जो है वो विवायोगे है
14:01आपने ठीक सुना है शंकर भाई
14:03ये मेरे दोनों पुत्र सुरज और चंडर है
14:07बीरम भाई फुलवा और चमेली नाम की मेरी विवायोगे दो पुत्रिया है
14:14मैं चाहता हूँ कि आप उनका रिष्टा सुखार कर ले
14:22नेकी और पूछ पूछ मुझे रिष्टा सुखार है
14:27इस तरह से बीरम के दोनों बेटों की साधी हो गई
14:33दोनों नई बहुवे आई और उन्होंने अस्ट प्यस्ट पढ़े हुए घर को पूरा साथ सवार दिया
14:40हाँ, मैं यही तो चाहता था कि मेरे घर को कोई साथ सवार दे और उसे रहने लाइक बनाए
14:47हाँ, आज मेरे मन की सारी मुराद पूरी हो गई
14:53इस प्रकार खुस्यों से भरा हुआ एक वर्स बीद गया और दोनों पुत्रों बधुओं ने अपने ससूर से कहा
15:03पिता जी हमें अपने माता पिता से मिले हुए पूरा एक वर्स बीद किया है
15:08हम एक महीने के लिए उनके पास चाना चाहते है
15:13नहीं बहुओं, मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगा
15:17अरे तुम्हारे आने से ये घर बस गया, तुम चली जाओगी तो ये फिर से उजाड जाएगा
15:23ये सुनकर दोनों बहुए आबाक रहे गे
15:27कुछ दिन बीते तो दोनों बहुए आपास में फिर से एक बार सना करने लगे
15:33एक ने दूसरी से कहा
15:35भुल्वा बहिन, हमें ससूर जी से पुरा माता पिता के पास जाने के लिए आक्या मांगनी चाहिए
15:42कुछ दिन पहले हमने इजाजत मांगी तो थी, उन्होंने साख मना कर दिया था
15:50उनका ससूर उन दोनों की ये बाते सुन रहा था, उसने मन ही मन में सोचा
15:56मुझे दोनों बहुवों को जाने से रोखना चाहिए, मैं उन्हें कुछ अद्बुत और असंभव उपहार लाने को कहुंगा, वो नहीं ला सकेंगे और फिर वो अपने माता पिता के पास नहीं जाएंगे
16:10उसने दोनों बहुवों को बुलाया और बोला
16:15तुम दोनों अपने माईके जा सकती हो
16:19क्या? सच पिताजी?
16:23हा हा हा बिल्कल जा सकती हो
16:26परंतो मेरी एक शरत है, और वो ये है
16:30फुलवा बहुँ, तुम्हें अपने माईके से कागज में आग और चमेली, तुम्हें कागज में हवा लानी होगी
16:38अच्छा पिता जी, माई के जानी के खुसी के कारण दोनों बहुए ने उपवार के विजित्रता और मुस्किल पर ध्यान ही ना दिया।
16:50एक बात और ध्यान रखना, अगर तुम दोनों ये उपहार ना लाई, तो इस घर की और कभी रुख भी नहीं करना फिर, पलट कर देखना भी नहीं।
17:01जी पिता जी
17:06दोनों बहुए उसी दिन माई के चली गई और बीरम एक बार फिर से उदास रहने लगा, वो सोचता था
17:15क्या ये बहुए विचितर उपहार ला सकेंगे और यदि ना लाईं तो, वो घर में नहीं आएंगी और ये घर एक बार पुनें उजार हो जाएगा
17:26दोनों बहुए माई के में पोची, जहाँ पर उनका बहुत स्वागत किया गया
17:32माई के में एक महीना कब पीट गया, पता ही ना चला, तब फुल्वा ने अपने माँ से कहा
17:39माई, हम ससुरचे से एक महीने की अनूमती ने कर आये थे, अब हमारे वापस लोटने का समय हो गया है, परिण्दो एक समस्या है, मुझे तो ससुरान एक कागच में आग ले कर जानी है माई
17:54ये क्या कह रही है तु भला, कोई कागच में आग ले जा सकता है, कागच चल नहीं जाएगा
18:02अरे माई, मुझे तो कागच में हवा ले कर जानी है
18:07ये क्या अन्संत पक रही हो तुम दोनो
18:11हम ठीक कह रहे हैं माई, ये उपवार ले कर ही हम ससुरान में प्रवेश कर सकती है, अन्यत नहीं
18:20ओ, एसी बात है
18:23उस समय तो हमने उपवार के बिचित्र पर ध्यान ही नहीं दिया, पर अब मैसूस हो रहा है कि बिना सोची समझे हमें ससुर ची को हाँ नहीं कहेनी चाहिए थी
18:36तुम दोनों ने तो मुझे धर संकत में ढाल दिया है, इसा कागच में ला कहां मिलेगा
18:43कुछ भी करो मा, पर हमारी समस्या का हल करो
18:54तुम फिकर ना करो, मैं तुम्हें मतय प्रधान के पास लेकर चलती हूँ, वो बड़ा ही बुद्धिमान आद्भी है, अविशे ही हमारी समस्या का हल वो निकान देंगे
19:12वे सबी मतय प्रधान के पास पोँचे
19:17प्रधान जी, तुम बस्ती के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति हो, मेरी बेटियों की समस्या तुम ही हल कर सकते हो
19:28फिर दोनों बहुवे ने अपनी पूरी समस्या मतय प्रधान को बता दी, प्रधान ने ये सुनकर कहा
19:36चिन्ता मत करो बेटिया, ऐसा कौन सा काम है, जो इनसान चाहे और कर ना सके
19:45तो जल्दी से समस्या को हल कर दीजिए प्रधान जी, हम पर आपका ये बहुत ही उकार होगा
19:53तब महाराज निर्मल सेन ने कहानी को आगे कहते हुए पूछा
19:58युवक, तो क्या तुम बता सकते हो कि मताई प्रधान ने समस्या का समधान कैसे किया होगा
20:12अजीत ने आगे कहा
20:27लो चमेली, इस कागज के पंखे को ले लो, इसे डुलाने से हवा आएगी, इस प्रकार से कागज में तुम अपने ससुर के लिए हवा ले जा सकती हो
20:41चमेली ने उसे डुला कर देखा, वो सोचने लगी
20:45सच मुझ, इस कागज में तो बड़ी ही थंदी हवा भरी हुई है
20:51अभी तुम लोग यही पर रुखो, मैं तुम्हारी दूसरी समस्या का भी हल बना कर लाता हूँ
20:57मताई प्रादान फिर से अपने घर के अंदर गया और अपने काम में जूट गया, जल्द ही वो फिर से वापस आया और बोला
21:08लो बेटी, कागज के इन कंडील को ले लो, इसमें तुम आग को ले जा सकती हूँ, ले लो
21:16सच मुझ, अप बड़े ही बुद्धिमान हैं, आपने हमारी समस्या छुट्टियों में हल कर दी
21:29दोनों बेने, कागज का बना हुआ पंखा और कागज का बना हुआ कांडील ले कर अपने ससुराल में आ पोजे
21:38और उनके आते ही उनके ससुर ने पूछा
21:41क्या तुम मेरे दोनों उपहार ले कर आई हो?
21:45हाँ पिताजी, पिताजी ये कागज का कंडील है, दिन के समय हम द्वार पर लटका देंगे जिससे घर की सोभा बड़ेगे और रात को इसने दीपक जनाने से ये प्रकास भेलाएगे
22:00तब चमेली ने कागज का पंखा दिया और कहा, पिताजी इसे आप अपने छेरे के पास दुला कर देखे
22:10ओ इससे तो बहुत ही अच्छी हवा आ रही है बहु, बहु ये पंखा केबल हमारे परिवार को ही सुख नहीं देगा, बलकी दुनिया भर में प्रश्रित होकर लोगों को सुख देगा
22:22बेटियों तुम बहुत ही मूलेवान उपहार लाई हो पर तुम दोनों इन उपहारों से भी जादा मूलेवान हो, मैं तुम से बहुत ही खुश हुआ और जब चाहे तुम अपने माई के जा सकती हो
22:38इतनी कहानी कहे कर अजीत चुप हो गया तब महराज ने कहा
22:46युवक तुमने बड़े ही उत्तम ढंग से कहानी पूरी की तुम भी हमारी कसोटी पर धलकुल खरे उत्रे हो
22:57धन्यवाद महराज धन्यवाद
23:01ब्राम्मण देवता तुम और तुम्हारे पुत्र दोनों ही अत्यंत विद्वान हैं बुद्धिमान हैं
23:08तुम्हारी बेटी का विवा खोब धूमधाम से किया जाएगा परन्तु मेरी एक शर्त है
23:14क्या अभी भी कोई शर्त बाकी है महराज
23:19हाँ ब्राम्मण देवता मैं अपनी दोनों बेटियों का विवा तुम्हारे बेटों के साथ करना चाहता हूँ
23:26यानि तुम्हें संधी बनाना चाहता हूँ
23:30ये आप क्या कह रहे हैं महराज
23:32अरे कहां राजा भोज और कहां गंगु तेली
23:37ऐसा कुछ नहीं है ये सब हमने बहुत ही सोच समझ कर निर्णाय लिया है
23:44ब्राम्मण देवता तुम इसकी चिंता ना करो
23:56जब राणी को इस निर्णाय के बारे में पता लगा तब उसने महराज से कहा
24:03यह आप ने क्या किया, महराज, राज्यय के साधरन योबुकु के साथ राचहुमारीों का विवा निष्चित कर दिया
24:12महराणीं- अजीत और विजीत निर्धन परिवार से हैं
24:16परन्त वो साधरन नहीं हैं-वो बहुमूल नगीन है�
24:19बुद्धिमानी के वामले में वो बिलकुल भी कम नहीं है
24:22और वो निश्य ही हमारी बेटियों के पती बनने योगे हैं।
24:28इसके बाद राजा निर्मनसेन ने पितंबर की बेटी सुकन्या का विवा
24:33बड़े ही धूमधाम से राजमेहल में ही करवाया
24:36और फिर अपने बेटियों का विवा ब्रामन के दोनों बेटे अजीत और बिजीत के साथ करवा दिया।
Recommended
35:22
|
Up next
2:14