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  • 9/16/2024
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**"मह मय"** is a captivating Hindi cartoon story that will delight and inspire young viewers. Join us on a magical adventure as we explore the power of fate and the importance of perseverance. Through vibrant animation and a heartwarming narrative, this moral story teaches valuable lessons about overcoming challenges and believing in oneself. Don't miss this enchanting tale that will leave you with a smile and a sense of wonder.

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मह मय (exact title)
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Transcript
00:00बहुत समय पेले की बात थे, एक बार देवदत नाम का एक सन्यासी दरसंपुर राज्य के राजा हीरा सिंग के राजमहल के बाहर पोज़कर पेरेदार से कहने लगा,
00:12एक बर देवदत नाम का एक सन्यासी
00:15दर्शन्पुर्राज्य के राजा हीरा सिंगे רाज महल के बाहर पोहोज कर
00:19फहरेदार से केहने लगा
00:22स्णो
00:24अपने राजा से जाकर कहो
00:26की उसे देवदत नाम का एक सन्यासी ց quierenår जाता है
00:29राजा हीरा सिंग उस समय अपने रंग मेहल में राज नर्ठकी चंद्रमुखी का निर्ठ्य देख रहे थे, पहरेदार ने आकर कहा,
00:42महरास की जय हो, महरास, देवदत नमका एक सन्यासी अब से मिलने के लिए राज मेहल के बाहर ख़ड़ा है।
00:52राजा हीरा सिंग उस समय मदीरे के नशे में थे, उन्होंने नशे की तरंग में पहरेदार से कहा,
01:00पहरेदार, उस सन्यासी को तुरंत रंग मेहल में मेरे पास लेकर आओ।
01:06पहरेदार कुछ हिरान हुआ, और फिर उस सन्यासी के पास जाकर कहने लगा,
01:13चलिए सन्यासी जी, मारास इस समय रंग मेहल में है, वे आपको वही पर बुला रहे है।
01:22पहरेदार की पास सुनकर, सन्यासी देपदध को चोक गया और सोचने लगा,
01:28राजा हीरा सिंग ने मुझे अपने रंग मेहल में बुलवाया है, क्या मेरे जैसे सन्यासी को राग रंग की महफल में रंग मेहल में जाना चाहिए।
01:38फिर मन ही मन, कुछ निर्णए करने के बाद, वो पहरेदार से कहेने लगा,
01:44ठीक है, चलो, मुझे रंग मेहल ले चलो।
02:00और फिर हीरा सिंग ने बड़े ही आदर से उस सन्यासी को अपने पास बिठा लिया,
02:06राजा ने अपने गले से एक मानी को कमाला निकाल कर सन्यासी देपदध को देते हुए कहा,
02:11लीज़े सन्यासी जी, हमारी ओर से ये तुक्ष मेंट श्विकार कीजे।
02:20चंद्रमुखी, निर्त्य करते करते तुम क्यों रुख गई?
02:24देखती नहीं, सन्यासी देवदत रंग मेहल में पढारे हैं,
02:28इनके सामने अपने निर्त्य कला का गुण प्रकट करो, चलो, शुरू करो।
02:34आज्या पाकर, चंद्रमुखी ने एक बार फिर से निर्त्य करना प्रारहम कर दिया,
02:40काफी देर तक नर्तकी नाशती रही, और जब उसने अपना निर्त्य समाप्त कर दिया,
02:45तो सन्यासी देबदत ने राजा के द्वारा दी गई माला को राज नर्तकी को देते हुए कहा,
02:52लो सुन्दरी, हमारी ओर से ये माला समीकार करो।
02:57चंद्रमुखी ने उसकी ओर आश्चरिय से देखा, और चुक-चप वो माला ले ली।
03:02तुम ने ये कैमोर्खता की सन्यासी ?
03:05तुम ने हमारा दिया हा उपहार इस नर्तकी को दे दिया।
03:10राजन, बल्कार मूर्ख हम नहीं बल्के तुम हो, क्या भक्ते हो सन्यासी।
03:15मूर्ख हम नहीं बल्कि तुम हो
03:19क्या आप बक्ते हो सन्यासी
03:22मैं ठीक कहता हूँ राजन
03:23तुम्हारे सामने राज नर्ठकी अपने नृत्य कला का प्रदर्शन कर रही थी
03:28परन्तों तुमने क्या किया
03:30तुमने उसके इस गुण की प्रशंसा नहीं की
03:33राजन
03:35चंद्रमुखी ने जिस प्रकार का नृत्य किया
03:37ऐसा बेजोर नृत्य देखकर मैं उससे बहुत ही प्रभावित हुआ हूँ
03:41और इसलिए मैंने वो माला
03:43चंद्रमुखी को उपहार के रूप में दे दी है
03:47ये सुटकर हीरा सिंग सनाटा में आ गया
03:50और मन ही मन में सोचने लगा
03:52ये सन्यासी तो बड़ा ही दुश्ठ है
03:55इसने हमारा दिया हुआ उपहार हमारे सामने ही चंद्रमुखी को दे दिया
03:59ये तो हमारा अपमान है
04:03सन्यासी
04:04तुम इसी समय मेरे राज से दूर चले जाओ
04:07इसी में तुमारी बलाई है
04:09यदि तुम फिर कभी मुझे इस राज में दोबारा दिखाई दिये
04:12तुम मैं तुमारी कर्तन उड़वा दूँगा
04:15निकल जाओ
04:18शांत राजन
04:19पर राजन
04:20मुझसे ऐसा क्या अपराद हो गया
04:23सन्यासी
04:24तुमने मेरे दोबारा दी गई वस्तु को
04:27मेरे ही सामने
04:28दूसरे को दान में दे दी
04:30भला इस से बड़ा और क्या अपराद हो सकता है तुमारा
04:33तुम कोई सन्यासी बन्यासी नहीं हो
04:35चले जाओ यहां से
04:36फिर कभी दोबारा मेरी नस्रों के सामने आना बत
04:41हीरा सिंग की पाते सुनकर
04:43सन्यासी चुप चाप रंग मेहल से बाहर निकल गया
04:48देबदध के जाने के बाद
04:50बाई से कापती हुई चंद्रमुखी ने वो माला
04:53हीरा सिंग के चर्णों में रख दी
04:57चंद्रमुखी
04:58सन्यासी इस माला को तुम्हें पुरस्कार रूप में दे चुका है
05:02अब इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं है
05:05तुम इसे रख लो और यहां से चली जाओ
05:09जो आख्या महराज
05:12रंग मेहल से बाहर आकर वो नर्ठकी सोचने लगी
05:17मेरे कारण आज एक सन्यासी को बड़ा ही अपमान हुआ है
05:22अभी सायद वो सन्यासी जाधा धूर नहीं गया होगा
05:26मुझे उसकी सनाश करके उससे शमा माँगनी चाहिए
05:32ये सोचकर वो जथबत रत में बेटकर देपदत की खोज में चल पड़ी
05:40कुछ ही दूर जाने पर उसे देपदत जाता हुआ दिखाई दिया
05:44वो तुरंद रत से उठर कर देपदत के सामने जा पोची और कहने लगी
05:51सन्यासी मैं पहुती सर्मींदा हूँ
05:54आज मेरी कारण तुम्हारा पहुती अपमाण हुआ है
05:58मैं उसी के लिए तुमसी शमा माँगने आई हूँ
06:01उसके बारे में शमा माँगने की कोई आविशक्ता नहीं है राजनर्तकी
06:06जब हीरा सिंग्ने मुझे रंग महल में बुलवाया था
06:09मैं उसी समय ही समझ गया था कि आज कुछ घटित होने वाला है
06:13इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं है राजनर्तकी
06:16तुम हराम से रहो खुश रहो
06:20तभी चंद्रमुखी ने आगे बढ़कर उस सन्यासी का हाथ पकर लिया और कहने लगी
06:27कुछ भी हो सन्यासी अपने यहां से तभी वापस जाओंगी जब तुम मुझे शमा कर दोगे
06:35चंद्रमुखी के हाथ के इसपर्स पाते ही देवदत मानो मंत्रमुख सा हो गया और वो कहने लगा
06:45चंद्रमुखी मैं तुम्हे एक शर्त पर शमा कर सकता हूँ
06:50बोलो सन्यासी तुम कौन से शर्त पर मुझे शमा करोगे
06:56यदी तुम मेरे विवाहा का प्रसथाओ सविकार गर लो और मेरी झीवन संगनी बन जाओ
07:04यह तुम क्या कह रहे हो, सन्यासी?
07:06अब तुम मुझे सन्यासी ना कहो चंद्रमुखी, तुम्हारे सपर्ष करते ही मेरा सन्यास तूट चुका है, और मुझपर तुम्हारे रूप का जादु चल चुका है।
07:18ओ, ये तो बड़ा ही अनर्थ हो गया।
07:24देप्दग, यह असंभव है क्योंकि बात यह है कि पाँच वर्स के लिए मैं दर्सनपूर के राजा के राजनर्थकी चुनी जा चुकी हूँ।
07:35पाँच वर्ष के पस्चात मेरे इस्तान पर कोई नई राजनर्तकी चुन ले जाएगी, तब ही मैं तरसनपूर छोड़कर जा सकोंगी।
07:45ओ तो ये बात है। चंद्रमुखी आओ मेरे साथ, यहां से इस राजसे दूर चलकर कहीं हम विवाह कर लेंगे।
07:55अगर तुम मेरे साथ नहीं चल सकती, तो कोई बात नहीं, मैं अगले पाँच वर्ष तक तुम्हारी प्रतीक्षा करने को तयार हूं।
08:03क्या पाँच वर्ष तक तुम मेरे प्रतीक्षा करोगे?
08:08हाँ चंद्रमुखी, तुम्हारे रूप सुन्दराय ने मेरे हिरदे में जौला मुखी धका दिया है।
08:15देपत, मैं तुम्हारे प्रेम को सुईकार करती हूं, अगर तुम पाँच वर्ष तक मेरे ने प्रतीक्षा कर सकते हो, तो मैं भी पाँच वर्ष के बाद तुम्हें मिल जाओंगी।
08:28तो ठीक है चंद्रमुखी, मैं यहां से सीधा पलाशवन की ओर जा रहा हूं।
08:34आज से ठीक पाँच वर्ष के बाद तुम राजनर्तिकी के पत से मुक्त होकर पलाशवन में चली आना। हम दोनों वहाँ पर विवाह कर लेंगे।
08:45ठीक है देपत, मैं ऐसा ही करूँगी।
08:49और फिर इसके बाद सन्यासी देवदत पलाशवन की ओर चला गया और राजनर्तिकी वपस महल की ओर लोट गई।
08:58देवदत चलता चलता पलाशवन में बरुन रिसी के आश्रम में जा पोचा।
09:04प्रणाम रिशीवर, क्या मैं आपके आश्रम में रहकर पांच वर्ष का समय वितीद कर सकता हूं?
09:12हाँ देवदत, तुम यहाँ पर खुशी खुशी रह सकते हो।
09:23और फिर देवदत रिशी के आश्रम में रहने लगा.
09:28वैसे तो देवदत हर समय किसी न किसी कार्या में लगा रहता था, लेकिन फिर भी वो चंद्रमुकी के ख्यालों में ही खोयासा रहता था.
09:37उसकी यह दशा देखकर, रिशी ने एक दिन उससे पूछा,
09:42देवदत, मुझे ऐसा लगता है कि तुम हर समय किसी चिंता में खोय रहते हो, क्या बात है, बताओ?
09:51नहीं रिशी वर, ऐसी कोई बात नहीं है।
09:55यह सुनकर रिशी मुस्कुराने लगे और मन ही मन में सोचने लगे।
10:00हुँ, लसे देवदत, तुम लाख हमें नहीं बताओ, पर तुम्हारे मन की बात हम अच्छी तरह से जानते हैं।
10:10दिरे दिरे इसी प्रकार पाँच वर्स व्यतीत हो गए और फिर देवदत बड़े ही व्यकुलता से चंडरमुकी के आने की प्रक्तिक्षा करने लगा।
10:22देवदत प्रती दिन आश्रम के बाहर बेट कर चंडरमुकी की राहा देखता रहता था। एक दिन रिसी उसके पास आये।
10:34क्या बात है देवदत मैं देख रहा हूँ कि पिछले कुछ दिनों से तुम रोज इसी तरह से किसी की प्रक्तिक्षा किया करते हो। बताओ तो तुम किसका इंतिजार कर रहे हो।
10:46तब देवदत ने किसी तरह से हिम्मच चुटा कर रिसी से कहा वो अओ दरसल रिशीवर मैं दरशनपुर राज की राज नर्तकी चंडरमुकी से प्रेम करता हूँ और प्रते दिन उसी के आने की राह देखता हूँ। क्या क्या तुम एक स्तिरी के प्रेम जाल में फसे हु�
11:16बारे में बरुन रिशु को बिस्तार पूर्बग बता दिया।
11:21देवदत, एक सन्यासी होकर तुम्हे एक स्तिरी के मोह में नहीं पढ़ना चाहिए।
11:27एक नारी के लिए तुम अपनी तपस्या और अपना धर्म त्यागने के लिए उतावले हो रहे हूँ।
11:33ये उचित नहीं है।
11:35रिशीवर, मैं प्यार के रास्ते पर निकल चुका हूँ और जो प्रेम कर दे हैं वो तन, मन, धन सब कुछ उसमें अरपण कर देते हैं।
11:46कुछ देर तक सोचनी के बाद रिशी ने कहा।
11:49ठीक है देवदद, जैसा भी होगा हम चंद्रमुखी से तुम्हारा विवाह करवा देंगे, लेकिन उससे पहने तुम्हें हमारा एक काम करना होगा।
12:02कौन सा काम रिशीवर?
12:03तो सुरो, आज से ठीक 15 दिन के बाद देवनगर के राजा सूरे सिंग की यहाँ पर एक प्रसुद्धिन नर्तकी सोन प्रभा के नृत्य का प्रदर्शन होने वाला है, जिसे राजा सूरे सिंग अपनी प्रजा के साथ बैट कर देखेंगे, तो तुम्हें भी उस आयोजन म
12:34रिशीवर, मैं देवनगर जाने के लिए त्यार हूँ, पर मेरी अनुपस्थिती में यदी चंद्रमुखी यहाँ पर आई तो क्या होगा?
12:42तुम चिंता ना करो देवदत, अगर चंद्रमुखी यहाँ पर आई, तो मैं उसे अपने आश्रम में ही रोक लूँगा, ठीक है?
12:53उसी दिन देवदत देवनगर की और प्रास्थान कर दिया, उसे जाते हुए देख कर रिशी मन ही मन में सोचने लगे.
13:02देवदत, तुम एक नर्तकी के प्रेम जाल में फ़स गए हो, इसलिए इस जाल से तुमें एक नर्तकी के द्वारा ही निकाला जा सकता है.
13:13और इधार दोस्री तराब, राजा हीरा सिंग चंद्रमुखी से कह रहा था.
13:19चंद्रमुखी, हम तुमारी नर्तकला से बहुत ही प्रसंद हैं, इसलिए अगले पांच वर्षों के लिए भी हम तुमे ही राज नर्तकी गोशत करते हैं.
13:32ये सुनकर चंद्रमुखी कुछ उदास सी हो गई, परन्तु राजा की आग्या को वो टाल नहीं सकती थी.
13:40मन ही मन में वो सोचने लगी, अब मैं क्या करूँ, बनासवन में देवदत मेरे आनी की प्रतिक्ष कर रहा होगा, उसे क्या बता, मैं यहां किस टोविदा में फस चुकी हूँ.
13:54इधार देवदत देवनगर की और चला जा रहा था, और फिर ठीक समय पर वो देवनगर में पहुँच गया. सेकडो लोग एकत्री थे, और एक सन्यासी को देखकर अस्चर चकीत हो गए. देवदत ने किसी की परवान नहीं की, और एक इस्तान पर बेट गया.
14:15निश्चित समय पर देवनगर के राजा और नर्ठकी सोंप्रभा भी वहां पोचे. सोंप्रभा ने निर्ठ्या आराम किया, पर सबे मंत्रब मुप्थ हो गए. काफी देर नाचने के बाद वो ठकने लगी, जिसे सरंगी वादक ने तुरंद भाप लिया.
14:33अरे लगता ही सोंप्रभा ठक गई है, अगर ठकन के कारण इसने बीच में निर्ठ्य रोग दिया तो, तब तो बड़ी ही दिक्कत हो जाएगी. इसने मुझे सोंप्रभा को साज देने के लिए कुछ करना चाहिए।
14:50फिर कुछ सोचकर, वो सरंगी वादक तान लगाते हुए सोंप्रभा की तरब देख कर कहने लगा,
14:59बवत गई थूरी रही, अब ठकने का क्या काम, बिगडी बजी सुदर जाए, जो तुम अकल से लो काम।
15:10सरंगी वादक का ये दोहर सुनकर, सोंप्रभा में जोस का संचार हुआ, और वो फिर से एक बार पूरे जोस के साथ नेट्टे करने लगे, सरंगी वादक सोचने लगा,
15:23ओ, भगवान का शुक्र है, कि सोंप्रभा ने मेरे द्वारा कहे गई दूई का आर्थ समझ लिया।
15:31राजा और जंता ने तालिया बजाकर खुसी प्रकट की, सरंगी वादक ने थाल उठाकर लोगों के सामने रखा, जिसमें उन्होंने धन, अशर्फिया और कीम्ती अंगूठिया डाली, जब थाल भर गया, तो वादक ने वो राजा के सामने रख दिया, ताकि वो भी इनाम
16:02क्या योबराज चंडर सिंग इस सभा में आए हुए हैं?
16:07तबी फीड में बेटा हुआ योबराज चंडर सिंग उठा पर अपने पिता के सामने आकर खड़ा हो गया.
16:16राजगुमार, फाल में पड़ी हुई ये कटार तुमारी है?
16:21हाँ पिता जी, मैंने ये कटार इसलिए दान में दी हैं, कि मैं सारंगी वादक का वो दोहा सुनकर इसके आभार के तले दब गया था.
16:33साथ ही वो दोहा सुनकर मेरी बगद आखेल खुल गयी थी पिता जी.
16:38बेटा तुम रो क्यों रहे हो, चुप हो जाओ और हमें अपने रोने का कारण बताओ.
16:46पिता जी, मैं एक पापी हूँ, ये कटार जो मैंने दान में दी हैं, इसी कटार से मैंने आपकी, आपकी हत्या करने की ओजना बनाई थी.
17:00ये तुम क्या कह रहे हो बेटे?
17:04मैं सच कहता हूँ पिता जी, माराज बहुत दिनों से आपकी मृत्यों की कामणा कर रहा था, ताकि आपकी मृत्यों के पश्चाद, मैं राज सिंघ हासन को हासन कर रहा हूँ.
17:15लेकिन मेरी ये कामणा पूरी नहीं हुई, तब मैंने ये सोचा, कि उचित अवसर पाकर मैं कटार से आपकी हत्या कर दूँगा. परन्तु आज जब, मृत्य करती हुई नर्तकी के सारंगी बादक ने ये दोहाँ गाकर कहा, तो मैंने ये कामणा पूरी नहीं हुई, तब म
17:46मृत्य होगा कि अबतो थोड़ा ही समय बचा है,
17:49इसलिए क्यों ठकती हुम, ये दोहां सुनते ही मुझे लगा
17:53कि ये दोहां मेरे लिए ही कहा गया है।
17:56कि जब मैं इतने समय तक इंदजार कर चुगा हूम,
18:01तो मुझे थोड़ा इंतिजार और करना चाहिए।
18:05अखिरकार राज सिंगहासन मुझे ही तो मिलना है,
18:09फिर क्यों मैं आपकी हत्या का पाप कमाओ।
18:12इसप्रकार सारंगी वादक ने मुझे आपकी हत्या करने के पाप से बचा लिया पिता जी।
18:19ओ युवराज अच्छा हुआ कि तुम्हें उचित समय पर सद बुद्धी आ गई।
18:24हमें इस बात के खुशी है कि तुम्हें बुद्धी आई और तुम ने इतने दिलेरी के साथ ये बात सुईकार की। शाबाश।
18:33इसके बाद राजा ने एक बार फिर से पुना उस थाल की तरफ देखा, तबी राजा फिर से चकित रहे गे, क्योंकि उस थाल में उन्हें एक हार दिखाए दिया।
18:44उस हार को देखते ही महराज पहचान गे कि ये हार उनकी बेटी राजकुमारी चंद्रकला का था। महराज ने अपने बेटी से पूछा। बेटी चंद्रकला, तुमने ये हार दान में क्यों दिया है। पिताजी महाराज, सारंगी बादक के द्वारा जो दोहा गा गया था
19:14और उस से विवा करना चाहती हूँ। लेकिन जैसे कि हमारी कुल में ये प्रता है कि कन्य जब तक 20 वर्स की नहीं हो जाती, उसका विवा नहीं किया जाता। परन्तु मेरी आयो अभी सिप 16 वर्स की हुई है। मेरा विवा होने में 4 वर्स के समय अभी भी बाकी है। परन्त
19:44में इसका पक्कण निर्नए भी कर लिया था, परन्तु जब इस सारंगी बादक के दोहा मेंने सुनी कि थोड़ी रहे गई, अब ठकनी का क्या काम। तब मुझे लगा जैसे ये दोहा मेरे लिए कहा गया है। मेरी आयो 16 वर्स की हो चुकी है। अब सिप 4 वर्स का ही समय ब
20:14डडर कर ले थी और डब मेरा विवा मेरे प्रैमी के साथ हो ही जाये गा मुझे ासे पाक कर विवा करने की
20:22आविस्ण ख़ता नहीं है पर. हिमेरे पिताकी प्रतीस्था भी बच nhi रहे की, बस पिता जी इसी पाद ने मेरे आखे
20:30और मैंने भाग कर विवा करने का फैसला बदन दिया, इसलिए मैंने ये कीम्टी हाथ दान में दे दिया।
20:37बेटी सचमुष तुमने सही फैसला किया है, अगर तुम भाग कर विवा करती तो इससे हमारा सिर शर्म से जुख जाता, भगबान का शुक्र है कि तुमें भी सद बुद्धी आ गई।
20:53इसके बाद राजा सूर्य सिंग बहुत ही खुस हुए और उन्होंने खुस होकर सारंगी वादक से कहा, सारंगी वादक तुमारे कहे हुए दोहे के कारण हमारे पुत्र और पुत्री को सद बुद्धी आ गई, इसलिए हम तुमसे बहुत ही खुश हैं, चलो हम तुम्हे औ
21:23की सदाई जाई हो।
21:27इधर सन्यासी देवदत भी ये सब कुछ देख रहा था
21:31और फिर सबा समाप्थ हो जाने के बाद
21:34वो भी वापस पलास वन की तरफ लोट गया.
21:37कई दिन के सफर तेय करने के बाद
21:39जब वो पलास वन में पोचा,
21:42तो बरुन रिशी ने उसका स्वागत किया.
21:46आओ देवदत, कैसा रहा तुम्हारा सफर?
21:50सब कुछ बहुत ही अच्छा था रिशी वर,
21:53लेकिन मेरी समझ में एक बात नहीं आई,
21:55कि आपने मुझे वहाँ पर भेजा ही क्यों था?
21:59देवदत, तुम अभी तक नहीं समझे?
22:02तो सुनो, अच्छा ये बताओ,
22:05कि वहाँ सारंगी वादक के मुख से
22:07तुम ने कौन सा दोहा सुना था?
22:10रिशी वर उसने कहा था कि,
22:12बहुत गई, थोड़ी रही,
22:14अब ठकने का क्या काम,
22:16बिगडी बाजी सुधर जाए,
22:18तो तुम अकल से लो काम?
22:22देवदत, इस दोहे को सुनकर,
22:24जब वहाँ का राजकुमार
22:26और राजकुमारी को सब बुद्धी आ सकती है,
22:29तो फिर तुम्हारी बंद आखें क्यों नहीं खोली?
22:32क्या तुम उस दोहे का गहन अर्थ नहीं समझ पाए हो?
22:36मैं आपकी बात नहीं समझा रिशिवर.
22:40देवदत, एक समय वो था,
22:42जब तुम एक महान तपस्वी थे,
22:45तुम जहां भी जाते थे,
22:47लोग तुम्हारे तपो बल के कारण
22:49तुम्हारा आदर किया करते थे,
22:51परन्तु आज,
22:53तुम एक नर्तकी के मोह पाश में फस चुके हो,
22:55और तुम्हें उस सारंगी वादक की
22:57चेतावनी भी समझ में नहीं आई.
23:03सुनो, उस सारंगी वादक के दोहे में
23:05तुम्हारे लिए एक चेतावनी छुपी हुई थी,
23:09अब थोड़ा समय ही रह गया है,
23:11जब तुमने इतना जीवन सन्यास में
23:13गुजारा है,
23:15तो फिर अब वासना की तरफ क्यों भागते हो,
23:17संसारिक जीवन का मुँ छोड़कर,
23:19तुम प्रभू में ध्यान लगाओ,
23:21इसी में तुम्हारा कल्याण है,
23:23क्यों थोड़े दिनों के लिए
23:25वासना में डूप कर अपना जीवन बिगारते हो,
23:27है,
23:29ये सुनकर,
23:31देपदत की आखे खुल गई,
23:33और वो कहने लगा,
23:35रिशिवर,
23:37मुझे शमा कर दीजे,
23:39मैं बहुत ही अधर्मी हूँ,
23:41जो अपने धर्म को बुलकर,
23:43चंद्रमुखी के मोह पाश में अंधा हो गया था।
23:47देपदत उसी समय रिशी का अशिर्बात लेकर,
23:49परबत पर तपस्या करने के लिए चला गया,
23:51दूसरी और पाँच बर्स,
23:53बीच जाने के बाद,
23:55राजनर्थकी चंद्रमुखी,
23:57जब अपने बत से मुख्त हुई,
23:59तो सोचने लगी,
24:01आप मुझे पलास वन चलना चाहिए,
24:03क्या पता,
24:05इतने समय के बाद भी,
24:08चंद्रमुखी उसी दिन पलास वन की और चल दी,
24:10पलास वन में देबदत को खोशते खोशते,
24:12उसे कई दिन बीट गए,
24:14लिकिन उसे देबदत ना मिला,
24:16तब वो खोजबिन करती हुई,
24:18वरुन रिसी के पास जा पोची,
24:20उसे देखकर वरुन रिसी ने कहा,
24:38आप मुझे जानते हैं रिसी वर?
24:41हाँ चंद्रमुखी,
24:43और मैं तो ये भी जानता हूँ,
24:45कि तुम यहाँ पर देबदत को
24:47खोशने के लिए आई हो,
24:50तो फिल आप बताईए ना,
24:52कि देबदत कहाँ है रिसी वर?
24:56वो अब यहाँ पर नहीं है,
24:58वो तो परवत पर तपस्या में लीन बैठा होगा,
25:03ओ रिसी वर,
25:04जब मेरा प्रेमी यह बेरागी हो गया,
25:07तो आज से मैं भी संसारी जीवन का त्याग करती हूँ,
25:13और फिल चंद्रमुखी ने उसी दिन से
25:16एक सन्यासिनी का जीवन अपना लिया,
25:19अब चंद्रमुखी ने भी अपना जीवन प्रभु की भक्ति में बिलीन कर दिया।

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