जगन्नाथ जी कि पत्नी कौन थी? Jai jagannath Rath Yatra 2025 | jagannath & Laxmi | Bhakti Podcast
जगन्नाथ जी कि पत्नी कौन थी? Jai jagannath Rath Yatra 2025 | Rath Yatra 2025 | Bhakti Podcast
👉 Hindi Description:
क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान जगन्नाथ की पत्नी कौन थीं? इस वीडियो में जानिए एक रहस्यमयी प्रेम कथा, जहां लक्ष्मी जी और भगवान जगन्नाथ के बीच का संबंध सिर्फ एक शादी नहीं, बल्कि एक भावनात्मक संवाद है।
इस कथा में छुपा है विरह, क्रोध और पुनर्मिलन का सुंदर संगम। जानिए क्यों रथ यात्रा के समय लक्ष्मी जी नाराज़ हो जाती हैं और क्या होता है जब भगवान वापस लौटते हैं।
🎧 यह भक्ति पॉडकास्ट आपको ले चलेगा भगवान जगन्नाथ और लक्ष्मी जी के रिश्ते की गहराई में। अगर आपको यह वीडियो अच्छा लगे तो लाइक करें, शेयर करें और चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें।
भक्ति पॉडकास्ट द्वारा प्रस्तुत 🙏
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👉 English Description:
Have you ever wondered who was the wife of Lord Jagannath?
In this video, discover a mysterious love story between Goddess Lakshmi and Lord Jagannath — a divine tale of love, anger, separation, and reunion. Find out why Lakshmi becomes upset during the Rath Yatra and what happens when Jagannath returns.
🎙️ Dive into the emotional essence of devotion through this Bhakti Podcast. Like, Share & Subscribe if you found the story insightful.
Presented by Bhakti Podcast 🙏
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00:00नमस्कार, आज हम भगवान जगनात से जुड़ी एक थोड़ी कम सुनी हुई कहानी पर बात करेंगे
00:06एक ऐसी कहानी जो अकसर उनकी जो भव्यरत यात्रा है उसकी चकाचौंद में कहीं दपसी जाती है
00:13हाँ, बिलकुल
00:15हमारे पास जो सामगरी है, कुछ शास्त्रिय संदर्व हैं और ओडिशा की जो लोक कताय हैं
00:20वो भगवान जगनात के वैवाहिक जीवन पर और खास तोर पर देवी लक्षमी के नजरिये से एक अलग ही रोशनी डालती है
00:27हाँ, और ये दिल्चस्प इसले भी है क्योंकि भगवान जगनात की बात होती है
00:32तो अक्सर भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा उनके साथ के संबंदों पे ही जादा फोकस रहता है न
00:39सही का
00:39लेकिन ये स्रोत ये हमें उनके और देवी लक्षमी के भी जो समीकरण है उसकी बिल्कुल अलग परत दिखाते हैं
00:46तो मूल सवाल यही है कि इन स्रोतों के हिसाब से भगवान जगनात की पत्नी कौन है और उनके रिष्टे का स्वरूब क्या है
00:54सामगरी तो साफ तोर पर देवी लक्षमी का ही जिकर करती है पर ये जानना जरूरी है कि ये कहानी सिर्फ एक परिचय से कहीं ज्यादा गहरी है
01:03बिलकुल श्रोत बताते हैं कि जब भगवान जग्रनात अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा के लिए गुंडिचा मंदिर जाते हैं तो देवी लक्षमी को बताया नहीं जाता मतलब उन्हें साथ नहीं ले जाया जाता और इस से वो जाहरे बे
01:33हैं कि उनकी नाराजगी इतनी ज्यादा होती है कि यात्रा के कुछ दिन बाद हेरा पंचमी कहते हैं उसे हेरा पंचमी उस दिन वो खुद गुंडिचा मंदिर जाती है लेकिन भगवान से मिलती नहीं है गुस्से में लौट आती है और लौटते हुए रत का एक हिस्सा भी
02:03अंदर से बंद करवा दिया होता है और यहीं से वो घटना शुरू होती है जिसे स्रोत लक्ष्मी नारायन समवाद कहते हैं लक्ष्मी नारायन समवाद हां ये सिर्फ मान मनावल नहीं है ये एक तरह का समवाद है एक बहस कह सकते हैं जहां देवी लक्ष्मी अपनी उपेक
02:33शिकायते हैं फिर मनाने की कोशिशे हैं और आखिर में सुलहा का रास्ता भी निकलता है
02:37सही कहा
02:38ऐसा लगता है कि स्रोत हमें याब दिला रहे हैं कि दिव्य चरित्रों के जीवन में भी वो मानविय भावनाएं जैसे क्रोद, विरहा और समवाद की जरूरत वो सब मौजूद हैं
02:48हाँ, और इस समवाद की खास बात ये भी है कि ये देवी लक्षमी को एक बहुत सक्रिय भूमिका में दिखाता है
02:55वो अपनी भावनाएं व्यक्त कर रही है, अपने पती से सपश्टी करन मांग रही है
03:00ये उस दौर की कहानियों में जैसा श्रोतों में वर्नन है, एक स्त्री पात्र के लिए काफी सशक्त चित्रन माना जा सकता है
03:08उन्हें सिर्फ एक मूख दर्शक या इंतजार करने वाली देवी नहीं दिखाया गया है
03:13तो ये कहानी जो हमें इन स्रोतों से मिल रही है, ये सिर्फ भक्ती या उत्सव की कहानी नहीं है
03:18ये हमें रिष्टों में समवाद कितना जरूरी है, उपेक्षा से कितनी पीड़ा होती है और फिर माफ करने का जो भाव है, इन विश्यों पर सोचने पर मजबूर करती है
03:28बिलकुल, देवी लक्षमी का वो हर साल का रूठना, उनका क्रोध और फिर सुला की प्रक्रिया, ये सब जगन्नात परंपरा का एक अभिंद हिस्सा है, भले ही इस पर बात कम होती हो
03:40हाँ, उनका वो वार्शक इंतिजार, फिर रूठना और माज जाना, ये चक्र सिर्फ एक पौराने घटना नहीं लगता
03:47नहीं, इसमें एक गहरा भावनात्मक और शायद प्रतिकात्मक अर्थ भी छुपा है, ये दिखाता है कि कैसे बड़े सार्वजनिक उत्सवों के भीतर भी व्यक्तिकत रिष्टों की अपनी कहानिया, अपनी उल्जने चलती रहती है
04:00शुरोत हमें इस बात पर भी सोचने को कहते हैं कि देवी लक्षमी का ये पक्ष अकसर रत यात्रा के मुख्य आख्यान में पीछे क्यों रह जाता है
04:08हाँ, ये एक अहम सवाल है
04:10शायद उत्सव का जो विशाल पैमाना है और भगवान की सारवजनिक लीलाएं हैं वो इस थोड़ी अंतरंग कहानी पर परदा डाल देती हैं
04:18ये बिलकुल संभव है और ये हमें एक बड़े सवाल की तरफ ले जाता है न
04:23किस तरह का सवाल
04:24कि हमारी जो जानी पहचानी पौरानिक कताई है या इतिहास के बड़े आख्यान है उनमें ऐसी कितनी अंकही अंदेखी कहानिया और दृष्टी कौन छिपे हो सकते हैं
04:36शायद जो मुख्य कहानी के किरदार है उनके आसपास के लोगों की भावनाएं उनकी प्रतिक्रियां जिने अकसर नजरंदास कर दिया जाता है
04:45निश्शित रूप से तो अगली बार जब रथ्यात्रा की भविता देखें या सुनें तो शायद इन स्रोतों से मिली देवी लक्ष्मी की इस कहानी को भी याद किया जा सकता है
04:54उनके इंतजार को उनके क्रोध को और उनके समवात को ये हमें उत्सवों और आख्यानों को शायद एक अलग जादा मानविये और भावनात्मक गहराई से देखने का नजरिया दे सकता है
05:06और शोताओं के लिए सोचने वाली बात ये हो सकती है क्या हमारे अपनी जीवन में या आसपास की दुनिया में भी ऐसा होता है जहां किसी बड़े आयोजन या घटना के शोर में कुछ वेक्तियों की खामोश भावनाएं या उनकी जो अनकही कहानिया है वो कहीं दबसी जा