भगवान जगन्नाथ की बड़ी आंखों का रहस्य?😱 || Jai jagannath Rath Yatra 2025
Hindi: क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान जगन्नाथ की आंखें इतनी बड़ी क्यों होती हैं? इस वीडियो में जानिए वह पौराणिक कथा जब भगवान ने खुद अपनी आंखों का यह रूप चुना... राजा इंद्रद्युम्न, नीलमाधव और भक्तों की भक्ति से जुड़ी एक रहस्यमयी कहानी। पूरा वीडियो देखिए और जानिए भगवान जगन्नाथ जी की आंखों का असली रहस्य। 🙏 जय जगन्नाथ 🙏
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🔔 डिस्क्लेमर: इस वीडियो में दी गई सभी जानकारी पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। Bhakti Podcast यूट्यूब चैनल इसकी ऐतिहासिक या वैज्ञानिक पुष्टि नहीं करता है।
English: Have you ever wondered why Lord Jagannath has such large eyes? In this video, explore the mysterious story behind the divine form of Lord Jagannath. From King Indradyumna’s devotion to the miracle of Neelamadhav – this ancient tale reveals it all. Watch till the end to uncover the true meaning behind Lord Jagannath’s eyes.
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🔔 Disclaimer: All information presented in this video is based on mythological stories and religious beliefs. The Bhakti Podcast YouTube channel does not claim any historical or scientific validation of the content.
00:00नमस्कार, आज हम एक बहुत दिल्चस्प विशे पर बात करने वाले हैं, भगवान जगन्नात की वो अनोखी बड़ी-बड़ी आँखें
00:08हाँ, नमस्कार, ये आँखें वाकई बहुत विशिष्ट हैं और इनके पीछे एक गहरी पौरानिक कथा छिपी है
00:15बिल्कुल, तो हमारे पाँज जो कथा है, वो बताती है कि इन आखों का ऐसा खास रूप क्यों है
00:21कहानी शुरू होती है राजा इंद्रद्युम्न से, कहते हैं कि राजा बड़ी कठिन तपस्या कर रहे थे
00:28मतलब गहरी साधना में लीन थे
00:31हाँ, और तभी भगवान विश्णु ने उन्हें सपने में दर्शन दिये
00:35सही कहा, और निर्देश दिया कि धर्ती पर भगवान को नील माधव की रूप में ढूंडो
00:40और उनके लिए एक भव्य मंदिर बनवाओ, एक मूर्ती स्थापित करो
00:44तो राजा निकल पड़े उस खोच पर
00:46हाँ, और काफी खोच बीन के बाद उन्हें नील माधव के बारे में पता चला
00:50फिर उन्होंने मूर्ती स्थापना की तैयारी शुरू की
00:53लेकिन असली मोड तो तब आता है ना, जब मूर्ती बनाने का काम एक रहस्य मई बड़ाई को सौपा जाता है
00:59हाँ, एक बुड़ा बड़ाई और उसकी एक बड़ी अजीब सी शर्त थी
01:03यहीं से कहानी और भी मतलब रोचक हो जाती है
01:06हाँ, बिलकुल, वो बड़ाई जिनके बारे में कहा जाता है कि शायद स्वयम विश्व कर्मा थे या भगवान विश्णु ही थे
01:13अच्छा
01:14हाँ, तो उन्होंने शर्त रखी कि वो एक बंद कमरे में अकेले काम करेंगे
01:18और जब तक वो खुद दर्वाजा खोलने को ना कहें, कोई भी अंदर नहीं आएगा, जहांकेगा भी नहीं
01:24और राजा मान गए
01:25राजा मान गए, पर कई दिन बीद गए, अंदर से ठोकने पिटने की आवाजें आती रही, फिर एकदम से बंद हो गए
01:32ओ, तो फिर चिंता हुई होगी सबको
01:35बहुत, राणी गुंडीचा या कुछ कथाओं में आता है कि राजा खुद ही, वो बहुत अधीर होट है
01:41उन्हें लगा कहीं उस बुढ़े बढ़ई को कुछ होतो नहीं गया अंदर
01:44हाँ, ये तो सुभाविक है सोचना
01:46तो बहुत सोचने के बाद और शाहद राणी के जोर देने पर, राजा ने दर्वाजा खोलने का अदेश दे दिया
01:51और अंदर जो देखा होगा, सब चौक गए होंगे
01:54बिलकुल, अंदर कोई बढ़ा ही नहीं था
01:56बस वहां मौझूद थी भगवान जगनात, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की तीन अधूरी मूर्तियां
02:03अधूरी? मतलब?
02:04मतलब उनके हाथ-पैर पूरी तरह से बने ही नहीं थे
02:07और सबसे खास बात ही उनकी आँखें बड़ी-बड़ी, गोल आँखें बिना पलगों के
02:12हम, तो सवाल यही उठता है कि ये मूर्तियां अधूरी क्यों रह गई?
02:17क्या राजा की जल्दबाजी के कारण और इन आखों का क्या रहस से है?
02:21हाँ, आम तोर पर तो यही लगता है कि राजा ने शर्ट तोड़ दी, इसलिकाम अधूरा रह गया
02:26पर जो कथा हम देख रहे हैं, वो कुछ और गहरा बताती है, है न?
02:30सही का, वो कहती है कि यह अधूरापन असल में, अधूरापन था ही नहीं, यह भगवान द्वारा स्वैम चुना गया स्वरूप था
02:37अच्छा, चुना हुआ स्वरूप
02:40हाँ, यह जो बड़ी बिनापलक जपकाती आँखे हैं, यह दरसल भक्तों की पहली प्रतिक्रिया को दर्शाती हैं
02:47भक्तों की प्रतिक्रिया? कैसे?
02:49कहानी की अनुसार, जब भगवान पहली बार सबके सामने प्रकट हुए, तो लोगों ने उन्हें एकदम विस्मह से देखा, मतलब हिरानी, अचरज और गहरी श्रद्धा से भरी आँखों से, उनकी आँखे भक्ती और आश्चर से फैल सी गई थी
03:02अरे वह, तो भगवान ने अपने भक्तों के उसी पहले सबसे शुद्ध भाव को अपने आँखों में धारन कर लिया
03:10बिल्कुल, कहानी का सार यही है, भगवान ने मानों कहा हो, मेरे भक्त मुझे जिस अगाध, प्रेम और आश्चर इसे देखते हैं, मैं हमेशा उसी रूप में उनके सामने रहूंगा
03:23ये तो अदबूत बात है
03:24हाँ, तो ये आँखे सिर्फ देखती नहीं है, ये भक्त की श्रद्धा को पहचानती हैं, उसे स्विकार करती हैं, ये एक तरह का मौन समवाध है भक्त और भगवान के बीच
03:34मतलब भगवान का रूप उनके भक्तों की भावना का ही प्रतिबिम्ब बन गया, ये समझना तो वाकई बहुत गहरा है, ये उस रिष्टे को एक नया ही आयाम देता है
03:42हाँ, और ये कथा हमें यही दिखाती है कि ईश्वर अपने भक्तों के उन निर्मल भावों को, उनकी श्रद्धा को कितना जादा महत्व देते हैं, इतना कि उसे अपने स्थाई स्वरूप का ही हिस्सा बना लेते हैं
03:54तो ये आँखें भक्त और भगवान के बीच के उस अटूट प्रेम भरे संबंद का प्रतीक बन गई?
04:00इलकुल, एक गहरा प्रतीक
04:02इस पूरी चर्चा से एक बड़ा सवाल मन में आता है, नहीं?
04:06क्या?
04:06कि कैसे कोई भौतिक स्वरूप जैसे ये मूर्तियां और खास कर ये आँखें इतने गहरे अमूर्त दिव्वे गुणों को या भक्त के साथ भगवान के उस खास रिष्टे की कहानी को बया कर सकती हैं
04:20बहुत अच्छा सवाल है, भौतिक और अभौतिक का ये संगम?
04:24हाँ, और अगर हम इस कथा के आधार पर सोचें तो एक विचार ये उभरता है कि शायद भक्ती की जो अभिव्यक्ती है और ईश्वर की जो स्विकृती है उसके बीच एक ऐसा अद्रिश्य पर बहुत शक्तिशाली संबंद होता है जिसे शब्दों में कहना शायद मुश्क