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  • 5/31/2025

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00:00क्लाइमेट चेंज की बात तो मैं दस साल से कर रहा हूं लगा थार
00:07ऐसा नहीं है कि अचानक अभी ये मुद्दा हमारे सामने आ गया है
00:30आम तोर पर मीडिया इत्यादी में तुम जो पढ़ते हो
00:38ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक तापन के बारे में
00:47उसमें वैज्ञानिक तत्थे होते हैं
00:58कि संख्याएं होती हैं कि ग्राफ होते हैं कोई
01:13बताता है कि कि समुद्र का जल स्तर कितने मिलिमीटर या सेंटिमीटर
01:23बढ़ चुका है बढ़ जाएगा कोई बताता है कि तापमान कितना बढ़ चुका है और आगे बढ़ जाएगा
01:31तो इस तरह की खबरे पढ़ते हो गए या फिर क्लाइमेट चेंज के एर्दगेर्द जो राजनीत होती है उसकी खबरे पढ़ते हो गए
01:45दोहजार नौ में कोपेनहेगन में उबामा ने क्या किया दोहजार पंद्रह में फ्रांस में क्या हुआ
02:00क्लाइमेट पर जो संध्य हुई है उसको कितने देशों की सरकारों ने अभी तक भी रेटिफिकेशन माननेता नहीं दी इस तरह की खबरे पढ़ लेते हैं
02:18लेकिन यह जो देख रहे हो ने आसपास होते हुए
02:29वो कोई हमसे बाहर की घटना नहीं है
02:38बात भले ही है की जा रही हो कि आर्केटिक की बर्फ पिघल रही है
02:48समुद्रों का स्तर बढ़ रहा है इत्यादी इत्यादी पर जो हो रहा है वो सबसे पहले
02:59आदमी के अंदर की घटना है जो बाहर प्रत्थवी पर जमीन पर दिखाई दे रही है
03:07परिलक्षित हो रही है एक्सप्रेस हो रही है समझ रहे हैं
03:14ग्लोबल वर्मिंग को
03:21आदमी के मन की इस्थिति के आईने में देखना बहुत जरूरी है
03:35मैं कहा करता हूँ कि बाहर जो ये तापमान बढ़ रहा है ये भीतर के बुखार से संबंधित है
03:48आदमी जूर में है बुखार में है आन्तरिक तरीके से आदमी के भीतर का बुखार ही टत्वी का बुखार बन गया है
04:03क्या है कैसे समझो थोड़ा आकणों से आगे जाके राजनीत से आगे जाकर के
04:16वेज्ञानिक तत्थियों से भी थोड़ा आगे जा करके समझो कि ग्लोबल वार्मिंग चीज क्या है और इसका इंसान से क्या नाता है
04:27ग्रीन हाउस एफेक्ट तो समझते ही हूँ
04:32कारबन डायोकसाइड, मीथेन, नाइट्रस ऑकसाइड
04:40पानी की भाप
04:44और जो क्लोरो फ्लोरो कार्बन होते हैं उसके अलावा ओजोन यह सब ग्रीन हाउस कैसे कहलाती है
04:55यह क्या करती है
04:56यह
05:00जो
05:04प्रत्वी से रेडियेशन
05:09बाहर जाने को होता है उसको पकड़ लेती है
05:14उसको यह पकड़ लेती है
05:21तो वो प्रत्वी के वातावरन से बाहर नहीं जा पाता है जब बाहर नहीं जा पाता है
05:26तो प्रत्वी का वातावरन गर्म हो जाएगा प्रत्वी की उर्जा का स्रोत क्या है सूर्य
05:35थोड़ी भहुत उर्जा प्रत्वी के भीतर की गर्मी से आती है जब कोई
05:42जोड़ा मुखी एतियादी फटता है नहीं तो अधिकांश्ट प्रत्वी की जितनी उर्जा है वो कहां से आती है सूरज
05:51सूरज से जो प्रकाश आता है वो प्रत्वी की सत्ह से टककरा के वापस लौतता है
06:00कि जो किरण सूरज सरूर। से आ रही होती है
06:06वो ज्यादा गर्म होती है, ज्यादा उंचे तापमान की होती है, बजाए उसके जो वापस जा रही होती है, तो ग्रीन हाउस एफेक्ट ये होता है कि जो वापस लोटता रेडियेशन है, इसको कुछ गैसों के मॉलिक्यूल पकड़ लेते हैं, वापस नहीं जाने देते हैं,
06:36एटमोसफियर है, उसको गर्म कर डालते हैं, इस गर्मी से होता क्या है, अब भई, जब तापमान बढ़ेगा प्रत्वी का, तो उससे कई तरह की बीमारियां प्रत्वी पर फैलती है, तापमान बढ़ेगा, तो प्रत्वी के वायो मंडल में जो उर्जा है, वो बढ़ ग�
07:06के तभी वेक्त होगी, ज्यादा बारिश होगी, ज्यादा तूफान आएंगे, गर्मी पड़ेगी, बर्फ खूब पिखलेगी, नदियों में बाढ़ ज्यादा आएगी, कुछ नदियां सूख जाएंगी, रेगिस्तान फैल जाएंगे, जानवर जिन जगहों पर रहते थे
07:36नष्ट हो जाएंगी, जितने भी 30 एक्षेत्र हैं, उन पर सबसे आदा प्रभाव पढ़ेगा, जितने भी कम उचाई के ख्षेत्र हैं, जैसे दुईप, इत्यादी, उन पर भहुत प्रभाव पढ़ेगा, जो दुईपी ये देश ही हैं, उन में से कई तो विलुपत ही हो
08:06और ये सब जो होगा इसके feedback effect होते हैं अब feedback effect क्या है
08:18अभी हमने कहा कि greenhouse gas वातावरण में जितनी होगी उतना जादा वातावरण का तापमान बढ़ेगा
08:29और greenhouse gas में से एक होती है water vapor पानी की भाप
08:35और गर्म हवा ज्यादा water vapor को अपने आप में समा सकती है
08:52हवा का तापमान जितना ज्यादा होगा water vapor को carry करने की उसकी क्षमता उतनी बढ़ जाती है
09:00तो water vapor गर्म हवा में ज्यादा होगी तो greenhouse effect भी ज्यादा होगा
09:09greenhouse effect ज्यादा होगा तो हवा और गर्म होगी हवा और गर्म होगी तो उसमें भाप और ज्यादा होगी भाप और ज्यादा होगी
09:16तो अब यह फीडबैक साइकल कहलाते हैं जिसको आप फिर रोक नहीं सकते एक बार उशुरू हो गया
09:22तो वो कोई नहीं जान तक कहां जाके रुकेगा इसी तरीके से
09:28हम जानते हैं कि सफेद रंग पर रोशनी पढ़ती है
09:33तो रिफ्लेक्ट हो आती है और किसी रंग पर पढ़ती है तो सोख ली आती है जब सोख ली आएगी रोशनी तो वो सत्ह गर्म हो जाएगी
09:41प्रत्वी की सत्तह का बहुत बड़ा हिस्सा बर्फ से ढखा हुआ है जब तापमान बढ़ेगा तो बर्फ पिखलेगी जब बर्फ पिखलेगी तो उसके नीचे की जो मिट्टी है
09:57वो अनावरत हो जाएगी न दिखाई देने लगेगी
10:02पहले मिट्टी के ऊपर बर्फ की सफेद चादर पड़ी हुई थी तो बर्फ पर जब सूरज की रोशनी पड़ती थी तो बर्फ उसको सोखती नहीं थी
10:15अब अगर तापमान बढ़ा तो बर्फ पिखल गई नीचे से क्या प्रदर्शित होने लग गई मिट्टी अब मिट्टी क्या करेगी सोखेगी तो मिट्टी गर्म होगी जब मिट्टी गर्म होगी तो तापमान और बढ़ेगा तापमान और बढ़ेगा तो बर्फ और पि�
10:45रही है कि लग रहा है कि feedback cycle भी सक्रिय हो चुके हैं, कई और भी feedback cycle,
10:58feedback cycle अगर सक्रिय हो चुके हैं, तो अब आप कुछी भी कर लें,
11:02इस तापन को रोका नहीं आ सकता और इसका नतीजा ये भी हो सकता है कि आदमी की प्रजात्ती विलुप्त हो जाए वो भी अगले कुछ दशकों में ही
11:11हम सदियों की बात नहीं कर रहें कि 200-400 साल हो सकता है कि
11:16कि दो-चार दशक या 5-7 दशक में ही आदमी सफा चठ हो जाए प्रत्वी से इतना निकट है अंत संभावित अंत
11:27पार्ट्स पर मिलियन में नापते हैं कार्बन डायोकसाइड को और द्योगिक रांते से पहले
11:38दो-स तर-दो-स सी पी-पीम कार्बन डायोकसाइड होती थी अभी बताई का कितनी होगी नहीं होगी उतनी हो गई तो फिर तो खता है अभी साड़े-चार सब उनीस सव नब्बे मैं क्योटो प्रोटोकॉल के आसपास के वर्षों की बात कर रहा हूं से लेकर अभी तक ही क
12:08और यह तब है जब उनीस सो नब्बे में सब देश मिले ही इसलिए थे क्योटो में क्योंकि स्पष्ट हो चुका था कि कारबन डायोकसाइड और बाकी ग्रीन हाउस गैसें बहुत बड़ा खतरा हैं उसके बाद भी उनीस सो नब्बे से लेके अभी तक करीब करीब पचास �
12:38हम कितनी बड़ी समस्या के सामने खड़े हैं उसको जानने के लिए इतना समझ लीजिए
12:51कि अगर हम को इस्थितिककों नियंतरण में लाना है तो हर आदमी अधिक से अधिक साल में 2 टन कर्बाइड ऑक्साइड एक्विवेलिंट का उतसरयण कर सकता है
13:08काड़बन डायॉक्सायड कि आद मी से ही तो पैदा हो रही है ना दुनिया में कर बन डायोक्सायड जहां से भी उधसर्जेत हो रही है अंतता आद्मी के लिए и है वह जगह में फैक्ट्री के उत्पाद का उपभूगता कौण है आद्मि tir
13:27प्रविए चर्टी में वार्वाण को गंदा कर दिया उस फैक्टरी के माल का जो लोग उपभोग करेंगे उन्होंने गंदा किया नश्च्टी में चैतना या जान तो है नहीं फैक्टरी के अपनी तो कोई मन्षा है नहीं
13:39तो दुनिया से जितनी भी carbon dioxide उतसर्जित होती है वो सब किन के लिए हो रही है इंसानों के लिए हो रही है
13:50तो आकड़ा यह सामने आया है कि अगर इसको रोकना है तो अधिक से अधिक दो टन प्रतिवर्ष carbon dioxide equivalent का उतसर्जन एक आदमी कर सकता है
14:06यह लक्ष 2050 के लिए रखा गया है और इस लक्ष को रखके महना गया है कि अगर 2050 तक इतना कम कर लिया
14:20तो भी वातावरण में दो डिगरी की तो आउसत वृध्धी होई जाएगी करीब करीब एक डिगरी के अभी हो चुकी है
14:28जो आम उसत आपमान है उससे हम करीब 0.85 डिगरी सेंटिग्रेट आगे आ चुकी है
14:38एक डिगरी ही मान लीजिए और दो डिगरी का लक्ष रखा गया है कि दो डिगरी पर रोक दो भाई
14:44दो डिगरी पर रोकने पर भी वैज्ञाने कह रहे हैं कि अगर आपने दो डिगरी पर भी रोक दिया तो भी प्रलय है
14:50और दो डिगरी से आगे चला गया तो पूछो इमत वो तो अकल्पनी है कि क्या होगा दो डिगरी पर भी रोकने पर सुरक्षित है आप ऐसा नहीं है और दो डिगरी पर रोकने के लिए भी आपको हर आदमी द्वारा उत्सर्जित की जा रही कारवन डायोकसाइड कितने पर �
15:20बाहरत की नहीं है विश्चका विष्टओसत नहीं है 10 अमेरिका की है 16 टन अमेरिका की ऑस्टेलिया की 16 तन प्रतिव्रशी है और कि चाहिए 2 टन और यह 16 टन नहीं है expect यह हर साल बढ़ रही है सोल चय साधे स्ट्रा लाना की दो पर और हर साल बढ़ती जा रही है कि है भार
15:50आने पर उतारू है, विश्यू की 3-4 टन के उसत पर है, विश्यू की 3-4 टन प्रतिवक्ति के उसत पर है, भारत की अभी 2 टन से कम है, तो इस स्थिति पर हम खड़े हुए हैं, ये आंकड़े थे, अब इसका जो आध्यात्मिक पक्ष है, इसका जो पक्ष आदमी के मन से संब
16:20इसका जो गया है कि स्थिति कितनी भायावव है, अगर हम 2 टन प्रतिवक्ति प्रतिवर्श कार्बंड आयोकसाइड पर भी आ जाते हैं, तो भी कितना तापमान बढ़ जाएगा, 2 डिगरी, और 2 डिगरी भी बढ़ गया तो कयामत है, अगर हम 2 टन पर आगए, तो भी 2 डि
16:50उस पर हम किसी भी तरीके से
16:52दो डिगरी पर रुकने नहीं वाले है
16:54मैं कह रहा हूँ
16:58कि व्यज्ञानिक हलकों में
17:00आशंका आप व्यक्त की जा रही है कि
17:01फीडबैक इफेक्ट सक्रिय हो चुके है
17:03हो सकता है
17:052050 तक ही तापमान
17:08चार साढ़े चार या पांच डिगरी भी बढ़ चुका हो
17:10सतन उतना अगर बढ़ गया
17:12तो आग लगेगी
17:13और हम बहुत दूर की बात नहीं कर रहे है
17:17हम अपने जीवन काल की बात कर रहे हम
17:20देखेंगे यह सब अपनी आँखों से होता हुआ
17:22तो अभी तक हमने तत्थे के तल पर एक-दो बाते समझी पहली बात करवन डायोकसाइड मीधेन इत्यादि गैसें जितनी हैं वातावरण में ये वातावरण के तापमान को बढ़ाती है वातावरण के तापमान के बढ़ने के कारण धरती पर तरह-तरह के अनिष्ठ होते है
17:52कि जितना
17:55ग्रीन हाउस गैसों का कंसेंट्रेशन
17:59बढ़ गया है अब वायू मंडल में
18:02उसको वापस लाने
18:05कि आदमी के प्रयास सफल होते दिखाई नहीं दे रहे हैं
18:11क्योंकि आदमी ने तो 1990 से
18:15सभाएं और कॉन्फरेंसे और कन्वेंशन शुरू कर दी थी
18:18और अभी तक भी करता जा रहा है नतीजा क्या है
18:22कार्बन का अस्तर तो लगातार बढ़ ही रहा है
18:27तो एक बात तो इसपश्ट हो गई है कि यह काम सरकारों के बसका शायद है नहीं
18:33कि सरकारों के बसका क्यों नहीं वह भी हम समझेंगे
18:35समझेंगे यह काम सरकारों के बसका नहीं है यह काम वैज्ञानिकों के बसका भी नहीं है क्योंकि जो तत्थ है और आंकड़े मैं आपको बता रहा हूं यह सारुजनिक है सबको पता है लेकिन फिर भी आदमी वायू मंडल में कारबन डाय ऑक्साइड का उत्सरजन एमिशन कर
19:05पेरिस एकॉर्ड की बात करती रहती है क्या फर्क पड़ रहा है
19:11सामाजिक कारे करता रैलिया निकालते रहते हैं
19:21ग्रेट अथनबर्ग की बात करी और भी बहुत नाम है
19:25एक और ही होती है जिसने कैमपेंग चला दिया है नो फ्यूचर नो चिल्रन
19:32टीनेजर उसमें शपत लेते हैं कहते हैं कि अगर दुनिया का यही हाल रहा तो हम बच्चे नहीं पैदा करें क्योंकि इस दुनिया में बच्चे लाने से लाब क्या
19:42कई अभियान चल रहे हैं पर उनमें से कोई भी अभियान सफल होता दिखाई नहीं दे रहा है
19:49क्यों नहीं सफल होता दिखाई दे रहा है अब यहां से मेरी बात शुरू होती है
19:59क्योंकि यह बात
20:03आदमी के मन की है आदमी के मूल पहचान की है यह समस्या वास्तों में अध्यात्मिक है
20:10और जब तक आध्यात्मिक तल पर इस समस्या को संभोधित नहीं किया जाएगा मानव जाति के बचने की कोई संभावना नहीं है
20:19वातावरण में कारबन डायोकसाइड पहुच कहां से रही है और क्यों रही है
20:2726 प्रतिशत जो कारबन डायोकसाइड वातारों ने पहुच रही है उसका संभन्ध आदमी के खानपान से है
20:35सीधे सीधे मासाहार से 26 प्रतिशत कारबन डायोकसाइड के लिए मासाहार जिम्मेदार है
20:46और बाकी चीजों के लिए
20:57फ्रेट एंड ट्रांपोटेशन आप जिन भी चीजों क�ли और अप्योक करते है उरा आपके पास ठ्रक से लाय जाती
21:07हैं पानी के जहाँद से लाय जाती है हौई जहाँद से लाय जाती हैं उस सब में क्या होता है
21:14फॉसिल फ्यूल जलाया जाता है न फॉसिल फ्यूल जलाया जाता है न फॉसिल फ्यूल समझते हो न क्या होता है गैस पेट्रोल डीजल यह सब फॉसिल फ्यूल कहलाते है इसमें हाइट्रोकारबंस होते हैं जलते हैं तो कारबन डायोकसाइड निकलती है
21:32तो खान-पान
21:39यात्रा
21:42construction
21:4515% का जिम्मा है
21:49construction activities
21:50बिल्डिंग construction
21:51वो बिल्डिंग जरूरी नहीं आपका घर हो
21:54वो आपका दफतर भी हो सकती है
21:56वो कोई hotel भी हो सकता है
22:01जहां कहीं भी construction हो रहा है
22:02उसके अलावा
22:09भाति-भाति के जो उत्पाद हम पहनते हैं, उड़ते हैं, उपियोग में लाते हैं, उससे कार्बन उत्सर्जित होता है,
22:22मैं ये नहीं कह रहा है, ये सब हमारे घरों में हो रहा है, हवाई जहाज चल रहा है,
22:29हवाई जहाज जो धुआ छोड़ रहा है, वो तो वायू मंडल की उपरी तहों में छोड़ रहा है,
22:41आपके घर से वो carbon dioxide नहीं निकल रही है
22:45पर वो जो धुआ हवाई जाहस छोड़ रहा हो
22:47किसकी खातिर छोड़ रहा हो
22:48आपकी खातिर छोड़ रहा है न
22:49आपको यात्रा करनी
22:51तो उसका जिम्मा भी फिर किसका है
22:54हमारा ही है न
22:55इसलिए
22:59वायू मंडल से carbon dioxide
23:03को हटाना इतना मुश्किल हो रहा है
23:07क्योंकि उसका सीधा संबंध
23:09आदमी के भोग से है
23:11सीधा संबंध आदमी के भोग से है
23:16तो जानने वालों ने दो बातें कहीं है
23:27वो कह रहे हैं
23:32या तो भोग कम कर दो
23:34या भोगने वालों की संख्या कम कर दो
23:36और कोई तरीका नहीं है
23:38या तो प्रतिव्यक्ति जितना consumption हो रहा है
23:42उपभोग हो रहा है या तो वो कम करो
23:43और इतना कम करो कि अमेरिका में 16 ton
23:47उत्सरजन है उसको 2 ton के इस तर पे ले आदो
23:50या तो भोग कम कर दो
23:55या फिर भोगने वालों की संख्या कम कर दो
23:58और कोई तरीका नहीं है
24:02और हमसे दोनों ही काम नहीं हो रहे
24:05क्योंकि हमारे लिए तो सुखी जीवन का मतलब यहीं होता है
24:10कि हम भोग रहे हैं
24:13और हमारा एक कुनबा है एक परिवार है वो भी भोग रहा है
24:19भोगने से काम नहीं चलता हम सिर्फ वस्तूओं को पदार्थों को नहीं भोगते
24:24इस्त्री पुरुष एक दूसरे के शरीर को भी तो भोगते हैं
24:28और उससे पैदा होते हैं बच्चे
24:31और वो जो बच्चा है वो आगे चलके और भोगेगा अब आपको एक हैरत अंगेज आंकड़ा बताता हूं
24:38अगर एक बच्चा पैदा होता है तो वह उसतन अपने जीवन का आल में प्रतिवर्श
24:55अंठावन टन कारबन डाई ऑक्साइड काउट सरजन करेगा
25:07आज की जो इस्तिति आज की जो ट्रेंड है उसके हिसाब से
25:20उसकी तुलना में अगर आप कारबन डाई ऑक्साइड कम करने के दूसरे तरीके लगाते हैं
25:31तो उन तरीकों से एक टन कम हो सकती है कारबन डाई ऑक्साइड दो टन कम हो सकती है आधा टन कम हो सकती है
25:43तो जिन्होंने इस पूरे गणित को समझा है वो कह रहे हैं
25:50कि अगर तुम्हें global warming रोकनी है, तो जो एक सबसे कारगर तरीका है वो यह है कि एक बच्चा कम पैदा करो,
25:59एक बच्चा अगर तुमने कम पैदा किया तो 58 पॉइंट तुम्हारे है, उसकी जगह अगर तुम दूसरे तरीके आजमा रहे हो, दूसरे तरीके क्या होते हैं, पेड़ लगा देंगे, अब पेड़ लगाने से यह समझो, कि एक पेड़ 40 साल में एक टन कारबन डायोकसाइ�
26:29कर दिया तो एक साल में 58, अब पेड़ लगाने से क्या छति पूर्ती हो गई, पेड़ लगाने से कोई प्राइश्चित हो गया, इसी तरीके से बात की जाती है कि बिजली के जो बल्ब है, यह कम पावर वाले लगाओ, उससे कुछ नहीं होगा, उससे आप जरा सा बचा पा
26:59कौन सी आबादी, ऐसी आबादी जो उपभोग करने पर उतार हुए, समझ में आ रही है, वैज्ञानिक तथ्यों के नीचे इस पूरी समस्या का मानवी ये पक्ष है, ये समस्या मानवकृत है, एंथ्रोपोजैनिक है न, हमने बनाई ये,
27:27हमने कैसे बनाई ये, हो समझना जरूरी है, हमने बनाई है, कंजम्शन करकर के और बच्चे पैदा करकर के, उपभोग के माध्यम से, और संतान उत्पत्ति के माध्यम से,
27:47और चू कि उपभोग करने वाली संतान ही होगी, तो इसलिए इस समस्या को रोकने का, जो सबसे कारगर तरीका है, वो है, संतानों पर नियंतरन लगाना,
28:03जब संतान ही नहीं होगी तो भोगे रखो, और हर पीड़ी पिछली पीड़ी से, ज्यादा ही उपभोग कर रही है, तो यहां तो हम बात करने कम करने की अगली जो आएगी वो और ज्यादा करेगी,
28:18क्यों, क्योंकि आर्थिक संपनता बढ़ रही है, लोगों के पास पैसे आ रहे हैं, जब पैसे आ रहे हैं, तो जो आदमी सबजी खाता था, वो मास खा रहा है, जहां मास खानी शुरू की, तहां समझ लो कि आप करबन डायोकसाइड बढ़ाने वालों की कतार में शामिल हो
28:48माध्यमों में क्यों की जाने वाली चीजों में जो चीज हमारे लिए प्रत्वी के लिए वातावरण के लिए ग्लोबर वार्मिंग के लिए सब से ज्यादा घातक है, वो मास का सेवन शुरू की होता है
29:15वो कटते ही नहीं है, वो जीते किस पर हैं, घास पर, और घास का मैदान कहां से आएगा, जंगल काटके, इस समय दुनिया में सब पशु कम से कम आबादी पर पहुँच चुके हैं,
29:42जानते हो कौन से पशु हैं, जिनकी आबादी जबरदस्त बढ़ा दिया इनसान ने, वो पशु जिनको इनसान खाता है, मुर्गा, बकरा, भेड, गाय, सूर, और ये जितने हैं, ये सब क्या करते हैं, चरते हैं, इन्हें दाना चाहिए, और इनके शरीर से बहुत ज्यादा म
30:12तो मास खाने की जो पूरी प्रक्रिया है, वो जबरदस्त रूप से कार्बन इंटेंसिफ प्रक्रिया है, और पश्चमी जगत, जितना प्रतिव्यक्ति, मीट, मास, डॉक्टरों द्वारा कहा गया है, कि उच्चतम सीमा है, उससे पांच गुना खा रहा है,
30:37डॉक्टरों ने कहा है, कि खाना हो तो खाओ, इससे ज्यादा खाओगे तो मरोगे, पश्चम का उससात आदमी उससे पांच गुना ज्यादा मास खा रहा है,
30:47और खा खा के हमने प्रत्वी को बुखार चड़ा दिया है, मास खा खा के,
31:01मास खाने वाले समझी नहीं रहे हैं, कि वो पूरी मानाउता के प्रति कितना जवर्दस्त अपराद कर रहे हैं, मास खाना कोई आपका व्यक्तिगत मसला नहीं है,
31:09भाई, सिगरेट पीना क्या आपका व्यक्तिगत मसला है, आप एक कमरे में होते हो, आप सिगरेट का धुआ छोड़ना शुरू कर देते हो,
31:20तो आपको ततकाल क्या कहा जाता है, सहब यहां और लोग भी हैं, आप जो कर रहे हैं, उसका असर दूसरों पर पढ़ रहा है, इसी तरह मास खाना भी अप किसी का व्यक्तिगत मामला नहीं कोई कहें कि भाई, मेरी थाली पर कुछ भी रखा है, आपको क्या आपती है, आप
31:50कारबन डाय ऑक्साइड बढ़ाने के लिए, वो है भैंस और गाय का मास, क्योंकि यह जानवर बड़े होते हैं, कोई धार में कित्यादे कारण नहीं, सीधा-सीधा वैग्यानिक कारण,
32:02फिर आती है वो चीज जिसको हम बहुत मूल ले देते हैं, जिसको हम कहते हैं गुड लाइफ,
32:21हर चीज उपभोग के लिए उपलब्ध होनी चाहिए,
32:43फरनीचर, टेलिविजिन, पचास तरह के कपड़े,
32:48पचास तरह के उपकरण, और इसी को हम मानते हैं तरक्की,
33:00एक-एक चीज जिसको हम तरक्की से संबंधित मानते हैं,
33:08एक-एक चीज जिसको हम तरक्की से संबंधित मानते हैं,
33:14वो वास्तव में कार्बन का उत्सर्जन करके ही बनती है यही वज़य है कि जिन मुलकों में सबसे ज़्यादा तथाकतित तरक्की है उन्हीं मुलकों में सबसे ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है
33:31और आगे की मदेदार बात ही है कि उन्हीं मुलकों में सबसे ज्यादा
33:36climate denial है आज भी अगर कोई मुलक है कोई देश है जहाँ
33:43climate change को नकारने की कोशिश की जाती है कहा जाता है नहीं
33:46नहीं यहाँ सा तो होई नहीं रहा अमेरिका के राष्टपति तक अभी
33:50मानने को तयार नहीं है कि climate change जैसी कोई चीज है और वहाँ बड़ी-बड़ी
33:57कंपनिया है शेल एक्सन मोबिल अमेरिकी कंपनिया भी है यूरोपियन कंपनिया भी है जो उतारू है
34:09के सिद्ध करने पर अभी भी कि climate change उतनी बड़ी समस्या है नहीं जितनी बड़ी लग रही है अभी कुछ दशको पहले तक तो वह कह रही थी कि नहीं साहब
34:19कि तापमान बढ़ी नहीं रहा है फिर जब उखता प्रमाण आ गए कि तापमान तो बढ़ी रहा है तो उन्हें का तापमान बढ़ रहा है लेकिन कारबंड रयोकसाइड कारण नहीं बढ़ रहा है
34:29अब जब ये भी कुछ निर्विवाद रूप से सिध्ध हो चुका है कि तापमान बढ़ रहा है
34:36और कार्बनदाई ऑकसाैड से ही बढ़ रहा है तो हो कहा रही है की बढ़तो राय सिखिड़ने भी घातक परीडाम नहीं जितने गातक परीडाम बताए जा रहे हैं
34:50जिजहा जितना ज्यादा उ पढ़ोग हे वह उतनी कारबंदाइ ऑट्साइड ज्यादा जूट है
34:55उतना ही ज्यादा जूट भी है
35:01प्रतिव्यक्ति मास का जितना उपभोग अमेरिका में है दुनिया के किसी और बड़े मुल्क में नहीं है
35:11इस मामले में तो वास्तों में यूरोप और अमेरिका के भी तुलना नहीं की जा सकती
35:19अमेरिका और यूरोप दोनों में औसत तापमान करीब करीब एक सा रहता है
35:30लेकिन यूरोप की अपेक्छा अमेरिका में चार-पांच गुना ज्यादा एर कंडिशनर बिखते हैं
35:42क्योंकि जो पूरा समाज अही है अमरीका का वो उपभोग की पूजा करता है
35:49यूरोप की अपेक्छा औसत अमरीकी कहीं ज्यादा मास खाता है
35:58कहीं ज्यादा उर्जा का व्याय करता है
36:01एनरजी कंजम्शन एक अमरीकी घर में कहीं ज्यादा होता है यूरोप से
36:06और अगर भारत से या चीन से तुलना करें तो फिर तो कोई बात ही नहीं
36:11दुर्भाग यह है कि
36:14विकासशील विश्व के लिए भी
36:18अमरीकी उपभोगतावाद एक आदर्श बनता जा रहा है
36:23हम भी चाहते हैं कि हम भी उतना ही उपभोग करें
36:28जितना कि अमरीका वाले करते हैं
36:33इसी को हम बोलते हैं गुड लाइफ
36:35इसी को हम बोलते हैं विकास, तरक्की, खुशियां, हमारी खुशियां खा गए प्रत्वी को, जितना हम भोग रहे हैं, उतना हमें खिला पाने के लिए प्रत्वी के पास है नहीं, तो हम प्रत्वी कोई खा गए,
36:56और हम कम पड़ रहे थे, तो हमने अपनी तादाद बढ़ा ली, ताकि हम बहुत सारे हो जाएं प्रत्वी को खाने के लिए, हम आठ अरब हो गए,
37:06और अभी भी हमारी खुशियों का पैमाना वही है, घर में बच्चा हुआ कि नहीं हुआ, हम समझ ही नहीं रहे हैं कि हर बच्चा जो पैदा हो रहा है, वो हजारों पेड़ों और हजारों पश्वों की लाश पर पैदा हो रहा है,
37:26आज के समय में हिंसा यह नहीं है कि मास नहीं खाई, आज के समय में हिंसा यह है कि समझो कि अगर तुम बच्चा पैदा कर रहे हो, तो तुम हजारों जानवरों का कतल करके बच्चा पैदा कर रहे हो, और तुम कहते हो, नहीं साब, हम तो मुर्गा नहीं खाते, हर बच्च
37:56जब पेड नहीं है तो पशु कहा जाएंगे आप ज नहीं हम पेड तो कर�ेंगे नहीं और अच्छ पेड नहीं करेंगे कोई बात क्या खाऊगे लोटी चावाल खा लेगे homemade tomorrow
38:06और रोटी चावल पैदा कहा होगा बेटा, खेत में, खेत कहां से आएगा, चांद पर खेती करोगे, खेती कहा होगी, जंगल काटके ही तो खेती होगी, तुम्हें बात समझ में ही नहीं आ रही है, तो पहली बात तो हमारी खुशियां कहती है, कि भरा पूरा घर रहे, खु�
38:36और उसके बाद जितने लोग हो घर में, वो सब छक करके कंजम्शन करें, छक करके, खुशी का पैमाना यही है, कि कितने किलो वाट हर आदमी चूसरा है, उर्जा, ऐसे ही ना पा जाता है, तरक्की ऐसे ही ना पी जाती है, कि भारत में प्रतिव्यक्ति, इतनी ही बिजली की
39:06जबकि अमेरिका में प्रतिव्यक्ति बिजली की खपत इतनी ज्यादा है, तो देखो भारत कितना पिछडा हुआ है, यही बिजली की खपत खा गई, बिजली कहां से आती है, कोईला जला के आती है, आज भी विश्व में अधिकांश बिजली, कोईला जला के आती है, और को
39:36आदमी की सबसे बड़ी जरूरत इस समय क्या है उर्जा और उर्जा तो आएगी ही ना फॉसिल फ्यूल जला करके और कहां से लाओगे
39:46लोग कहते हैं नहीं साब कार पुरानी हो गई है यह नहीं ले आएंगे
39:54ठीक है लेकिन पुरानी कार तीन थी जो ज्यादा पेट्रोल पीती थी नई कार कम पेट्रोल पीती है लेकिन नई कार तीस हैं अब बताओ पहले की अपेक्षा कारबन कम उत्सरजित होगा या ज्यादा
40:10क्योंकि पहले की कार धुआ पहले ज्यादा छोड़ती थी पर कार थी ही कुल तीन महले में आज महले में कितनी कार है तीस अब बताओ धुआ कम हुआ या बढ़ा
40:20हम समझ यह नहीं पा रहे हैं कि समस्या की भयावहता कितनी गहरी है
40:32तो हम क्लाइमेट चेंज की जब बात आती है तो नन्न्न उपाय सामने ले आते हैं और ये नन्न उपाय सामने लाकर करके हम समस्या का मजबोगा बना देते हैं
40:46कोई कहता है देखिए हमारी न डीजल कार थी उसको बेचके हम हाइब्रिड कार ले आए हैं ये इलेक्ट्रिक कार ले आए हैं ये हमारा योगदान है इस समस्या के समाधान के प्रति ये ब्योकूफी की बात कर रहे हो
41:05इलेक्ट्रिक कार किस से चलेगी और इलेक्ट्रिसिटी कहाँ से आएगी कोईला जला के तुम्हारी इलेक्ट्रिक कार से क्या हो जाएगा भाई फिर इलेक्ट्रिक कार बनी किस चीज से है
41:17स्टील से, स्टील कहां से आया है, कोईले से आया है, किसको भी हुकूफ बना रहे हो, कि हम देखिए, नई इलेक्ट्रिक कार ले आये हैं, इससे काम बन जाएगा,
41:30या फिर स्कूलों में चलता है, पेड लगाओ, पेड लगाओ, इससे ग्लोबल वार्मिंग रुकेगी, अरे भाई, पेड़ों से नहीं रुक जानी है, अब वो सीमा हम कब की पीछे छोड़ाएं, कि ब्रिक्षा रोपन से हम ग्लोबल वार्मिंग रोक लेंगे,
41:50पेड बचारे का तो बड़ा होने में दस साल लग जाएंगे, और हमने कहा कि एक पेड 40 साल अगर जियेगा, तो एक टन कार्बन डायॉकसीड सोख पाएगा बेचारा, अगर 40 साल जियने पाया तो, 40 साल जियेगा भी कैसे, हमें तो खेत बनाने हैं,
42:08कंक्रीट जंगल बनाने हैं, एक बच्चा अंठावन टन कार्बन डायॉकसाइड, एक पेड 40 साल में एक टन, अब बताओ कितने पेड लगाओगे,
42:27कितने पेड लगाओगे, और लोग इस तरह की बात करते हैं, रिसाइकल करो,
42:34थ्री स्टार एसी की जगें, फाइव स्टार एसी खरीद लो, ये सब कार्बन को कम करें ये थोड़ा सा, इसमें कोई संदेह नहीं है,
42:48पर ज्यादा बड़ी दिक्कत ये है, कि ये सब छोटी छोटी चीजे करके,
42:54हमें लगेगा हमने प्राइश्चित कर लिया, हमें लगेगा हमारे करतवे की इतिशरी हो गई,
42:58हम कहेंगे, देखो ना, हम जिम्मेदार नागरिक हैं,
43:02हम प्लास्टिक का कम इस्तेमाल करते हैं, हमने चार पेंड लगा दिये हैं,
43:08हम थ्री स्टार की जगे फाइव स्टार एसी का इस्तेमाल करते हैं,
43:12हमने फिलामेंट बल्ब की जगे,
43:18कौन से कहलते हैं यह एलेडी बल्ब लगा दिये है एलेक्ट्रिक कार यूज कर रहे हैं और घर में हम एक साइकल ने आए हैं तो छोटी-छोटी दूरियों के लिए हम साइकल का इस्तिमाल करते हैं धुआ नहीं उडाते तो अब हम जिम्यदार नागरिक हो गए देखो हमने अ
43:48यह जो आप काम कर रहे है यह उंट के मु में जेरे बरावर है जो असली काम चाहिए वो है कि भोगता वादी मन को भोगता वादी संस्कार को ही रोका जाये और उससे भी ज्यादा जो काम चाहिए वो ये है कि आदमी की यह धारणा तोड़ी जाए
44:06कि घर में संतान का होना
44:10बहुत जरूरी है
44:11जब तक
44:14संतान पैदा करने की
44:16आदमी की धारणा नहीं तोड़ी जाएगी
44:17पहली बात
44:19और दूसरी बात
44:20जब तक आदमी के मन से
44:22ये धारणा नहीं निकाली जाएगी
44:23कि
44:25जीवन की सफलता
44:28वस्तुओं के संग्रह और वस्तुओं के उपभोग में हैं तब तक समझ लीजिए कि इस प्रत्वी के बचने की कोई संभावना नहीं है
44:37तो कुल मिलाज उलाके मैं देख रहा हूं कि पूरी बात आध्यात्मिक है
44:44दो ही तलो पर इसका समाधान मुझे दिखाई दे रहा है
44:51पहला जो सबसे महत्वपूर्ण तल है आदमी के मन से धारणा निकालो
44:57कि बच्चा पैदा करना बहुत बड़ी बहुत कीमती बहुत सम्मानी बहुत जरूरी बहुत किंद्री ये बात है
45:05और दूसरी बात आदमी के मन से धारणा निकालो
45:10कि जो जितना उपभोग कर रहा है जो जितना कंजियूम कर रहा है वो उतना सुखी है
45:17सुख और उपभोग का हमने जो रिष्टा बना लिया है उसको तोड़ो
45:21और ये दोनों ही काम सरकारे नहीं कर पाएंगी
45:26इसलिए सरकारी तल पर विफलता मिल रही है
45:29सरकारे क्या कर लेंगी, जनतंत्रे भाई, सरकार तो वही करेंगी न जो लोग चाहेंगे, सरकार लोगों को बच्चा पैदा करने से थोड़ी रोक सकती है, इसलिए उस तल पर सफलता मिलनी मुश्केल है, इसलिए व्यज्ञानी भी कुछ नहीं कर पा रहे है, इसलिए सामाज
45:59भोगो और कुणबा बढ़ाओ, भोगो और कुणबा बढ़ाओ, आप कोई भी जानवर देख लीजिए, उसे आप दो ही काम करता पाएंगे, या तो खा रहा होगा, या मादा का पीछा कर रहा होगा, खाएगा, मादा का पीछा करेगा, खाएगा, मादा का पीछा करेगा,
46:29और तो कुछ को करता नहीं, बीच बीच में सो जाता आराम कर लेता है, ताकि थोड़ी उर्जा इकठा कर ले, खाना ढूंडने के लिए, जंगल में पशु जब तक ये काम कर रहा था, कि बच्चे पैदा करो, कंजम्शन करो, तब तक कोई बात नहीं थी, क्योंकि पशु की �
46:59का अपने बल का सहारा ले करके, तो विनाश की ये स्थिति हमारे सामने आ गई है, आप समझ रहे हो, ये जो ग्रीन टेक्नोलोजी इत्यादी की बात है, ये बिलकुल बहाना है, इससे कुछ नहीं होगा, जो होगा बहुत थोड़ा होगा, करना हमको इतना है, फुट भर, औ
47:29होगा, वो होगा, मिलिमीटर और सिंटिमीटर भर, जो असली समधान है, वो दूसरा है, और उसकी बहुत कम लोग बात कर रहे हैं, भाई सारी समस्या, इंसान की आबादी और इंसान का उपभोग है, और इन दोनों समस्याओं के केंद्र में आदमे की पाशविक वृत्ति ह
47:59देंगे नहीं, उस वृत्ति को न सरकारे हटा सकती है, न वैज्यानिक हटा सकते हैं, उस वृत्ति को सिर्फ अध्यात्म हटा सकता है, जब तक आदमी को समझाया नहीं जाएगा, कि तुम्हारी जो वृत्तिगत अपूर्णता है, उसका समाधान तुम न तो बच्चे पै�
48:29जब आप अपनी अपूर्ण वृत्ति को शांत करना चाहते हो, तभी तो आप कंजम्शन की और भागते हो, और कंजम्शन से शांती मिलती भी नहीं, अब ये बात सरकारे थोड़ी आपको समझा पाएंगी, ये बात सरकारे नहीं समझा सकती है, और नहीं ये बात सामाजिक
48:59अध्यात्म और अध्यातनी गरंथ ही आपको समझा पाएंगे ना, कि आपको जिंदगी में जो चाहिए, वो ना तो कुनबा बढ़ा के मिलने वाला है, ना आदमी ओरत इकठ्था करके मिलने वाला है, और नहीं और ज्यादा कपड़े, और ज्यादा गाडियां, और ज्या�
49:29उपभोग की दिशा में भागेगा ही क्यों बात समझ रहे है तो कुल मिला जुला के हुआ ये है कि हमें वो नहीं मिल रहा हमें जिसकी तलाश है क्यों क्यों कि हमारा जीवन अध्यात्मिक्ता से रहित है
49:43कि है स्कूलों में नाम भी नहीं लिया जाता अध्यत्मे ग्रन्तों का वह हम घद में रपेक्ष लोग है न की नहीं
49:58की बात की ब dependency भी जाती है तो पास एथेहासिक संदर्भू में कि फलाने रश में पैदा हुए थे फलाने रश में मर गए�� इत्याद
50:04बच्चों का वास्तवी कि अध्यात्म से परिचा ही नहीं कराया जाता और एक बार वो जीवन में आ गया समाज में उतर आया उसके बाद तो तमाम तरीके के समाजिक दबाओ और मीडिया और इधर उधर की बातें और भीतर से वृत्तिका उफान
50:24वो कभी समझ ही नहीं पाता कि वो जी किसलिए रायो कभी समझ ही नहीं पाता कि भीतर की बेचैनी और तड़प वास्तव में है किसलिए
50:32तो वो भीतर की बेचैनी का क्या इलाज ढूंडता है उपभोग कंजम्शन उसी कंजम्शन से क्या पैदा हो जाती है कारबन डायोकसाइड बाद में पैदा होती है पहले बच्चे पैदा होते हैं
50:46से कंजम्शन से यी तो बच्चे पैदा होते हैं इस तरीक का शरीर लिया और भृगडा उसको लोग जैसे आप सौफ ड्रिंक का उभोग करते हो जैसे आप जूते का उभ üzer करते हो जैसे आप कपड़ों का उभर करते हो जैसे कार को ब её
51:09करते हो वैसे ही आप किसी के जिस्म का भी प्भोग कर लेते हो लो आ गई आउलाद हो वह प्भोग आदमी कर भी रहा है इसलिए क्योंकि उसको अध्यात्म से कभी परिचित कराया नहीं गया उसको अगर सही जगह शानती मिल गई होती तो गलत जगह शानती क्यों ढूंडने �
51:39और अपूर्णता तो दूर नहीं होने वाली न जिस दिन तक आदमी भीतर से अधूरा है और बेचैन है उस दिन तक वो अपनी बेचैनी का यही जूठा इलाज निकालेगा क्या पकड़ो और भोगो पकड़ो और भोगो और उसी भोगने के फल्सुरूप
52:03कारबन डाय ओक्साइड मीथेन नाइट्रस ओक्साइड यह सब बढ़ते रहेंगे और बहुत दिनों तक
52:12उनके बढ़ते रहने की नौबत नहीं आने वाली उससे पहले ही मानवताई पूरी साफ हो जाएगी चले थे भोगने चले थे प्रत्वी को खाने प्रत्वी खा गई सबको
52:30तो बात की शुरुआ में मैंने कहा था कि आदमी का बुखार प्रत्वी को लग गया है और मैं कह रहा हूं प्रत्वी को जो बुखार आ गया है तो आदमी बचेगा क्या
52:44प्रत्वी को जो बुखार आ गया आदमी बचेगा क्या ठेल खतम पैसा हजम भोग लो
52:54झाल

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