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00:00जो लोग जाते हैं रेगस्ताने परेटन अगरा करने उनके लिए ये बड़ा आकर्शन रहता है
00:03मस्त दिखाई पड़ते हैं सेंड यून्स
00:05उनको देखते रोगर कुछ घंटे अपने आपको आप देखे गए हैं
00:08तो आप पाऊगे कि वो क्या कर रहा है
00:09वो अपनी जगह बदल रहा है
00:11आपके देखते देखते वो यहां था यहां से आप पाऊगे उतनी मीटर दूर उधर निकल गया
00:14उसका आकार भी बदल गया
00:15लेकिन अगर वो मनुष्य होता तो क्या बोलता
00:18मैंने फैसला करा साब
00:19I changed my mind
00:20There is no mind
00:22सिर्फ क्या है
00:23अंकार कौन है
00:24जो जूट मूटी यह दावा करता है
00:26मैंने बनाया मैंने बिगाड़ा
00:27ना तूने बनाया ना तूने बिगाड़ा
00:29तू तो कटपुतली है
00:30कटपुतली थोड़ी हो मैं
00:31क्या बोल रहा है
00:32मेरे जीवन की सब बड़ी-बड़ी बातें सिर्फ रासायनिक थी, जी, और क्या, तुम पूरी तरह प्रकृत ही तो हो, बालू का पुतला बोलने लग गया है, मैं तो खास हूँ, और ये जो गलत फेहमी है, कि मैं हूँ, मैं निरणय करता हूँ, मैं सोचता हूँ, मैं प्रेम
01:02अगर समझेंगे नहीं, तो ऐसा लगएगा बस की, रहस्यमाई वक्तवे हैं, जो कुछ रहस्यमाई होता है, वो मन को थोड़ी देर के लिए रोक तो देता है, क्योंकि मन उसका कुछ अता-पता नहीं कर पाता, कुछ तुक-तर्क नहीं लगा पाता, तो मन ठिठक जाता है,
01:32तो हम भौचक के, अवाक से रह जाते हैं, तो यह तो लग होता है, कोई चीज ऐसी सामने आ जाए, जो समझ में नहीं आ रही हो, हमसे न सुझ रही हो, बूते की नहीं, लेकिन इसके आगे का लाग नहीं होता,
01:48रहस्य भर कह देने से, उप्योगिता नहीं बन जाती, और यहीं वज़ा रही है, कि रहस्य वादिता, मिस्टिसिज्म के नाम पर अध्यात्म के पूरे क्षेत्र को सम्मान तो मिल गया है,
02:15लेकिन वो उप्योगी होने से जरा वंचित रह गया है, तो जब हम पढ़ते हैं, कि ताओ, और ताओ क्या है, एक अर्थ में रित और एक अर्थ में ब्रह्म, एक अर्थ में यह लिखते चलिए,
02:40और यह पहले की बाते हैं, आपने लिखी रखे होंगी, दोराओ सा है, एक अर्थ में रित है और एक अर्थ में ब्रह्म है,
02:50रित क्या होगा विदान्त की भाशा में, आत्म मुखी अहंकार, ब्रह्म आत्मा ही,
03:08जब रित कहा जाता है, तो उसमें गत्य आ जाती है, और जब ब्रह्म कहा जाता है, तो ताओ हो जाता है, स्थिर अकरता,
03:26ठीक है, लाउद्जू ताओ का उपयोग दोनों अर्थों में करते हैं, टेंडिंग टू जीरो भी, और जीरो भी, टेंडिंग टू जीरो क्या हुआ, प्रित, आत्म मुखी अहंकार, अहंकार जो बस आत्मा की ओर, चल पड़ा है, और लीन हो जाना चाहता है, और जीरो, श
03:56पढ़ेंगे अगर, जैसे हमारे सामने आ रहा है, तो, शब्द तो, ठेहरी जाएंगे, मन भी ठेहर जाएगा, पर उससे मन सुलज नहीं जाएगा, मन निवरत नहीं हो जाएगा, लीन नहीं हो जाएगा,
04:20ताओ गहरा है, सभी चीजों का आदिम स्रोत है, नकीले को कुंद कर देता है, उल्जे को सुल्जा देता है, चमकदार को साधारन समरस कर देता है, और सब कुछ धूल समान कर देता है,
04:43ऐसा तो लगे या, कि जरूर कोई बहुत गहरी बात करी जा रही है, कैसे आरभ में ही है न, कि ताओ क्या है, गहरा है, बात भी बड़ी गहरी है, लाभ नहीं होगा लेकिन पूरा,
04:58हम पूरे लाभ के लिए रहस्य को जरा भेदेंगे, जितना हो सकेगा अग्यात भेदन करेंगे, अग्ये के लाभा बाकी सब तो जाना जा सकता है, जाना जाना चाहिए,
05:16दो तरह की गलती हैं हम कर देते हैं, अच्छे से इसको याद रखिएगा, पहली गलती होती है कि सत्य के बारे में हम सो तरह की बाते करना शुरू कर दें, यह हमने क्या कर दिया, कि जिसके बारे में बात हो नहीं सकती, उसके बारे में बात कर डाली, तो अग्ये के बारे मे
05:46बात करी नहीं ये बोल करके कि यही तो अग्ये है
05:49तो हमारे विचार, हमारे भाव
05:53हमारी कामनाएं
05:55प्रक्रति का पुरा
05:57विस्तार उसको ही हमने
05:59कह दिया अरे इसको कौन जान सकता है
06:01अरे ये
06:03सब तो अति
06:04गुहय है
06:06अनन्त
06:09तो इसमें कुछ गोपनियताraj नहीं जाना जा सकता तो जो जाना जा सकता था, उसको भी क्या घूशित कर दिया?
06:17अग्ये, क्यों कर दिया? क्योंकि उसको जानने में हंकार को खत्रा है
06:21जानना ही तो अहम के लिए सबसे घातक बात होती है न?
06:30विशेशकर सोयम को जानना
06:39सुनते हैं
06:40वैसे ही प्रेम
06:43अब प्रेम की
06:45ज्यानियों ने बड़ी
06:47सुश्पष्ट परिभाशा दे दिये
06:49लेकिन आप
06:50लोक मत सुनेंगे लोक संस्कृति
06:53में जाएंगे तो सब क्या बोलेंगे
06:55साब
06:56प्रेम
06:58तो एक अथा समंदर है कौन जान
07:01सकता है कि प्रेम क्या है
07:02और आप ज्यानियों से पूछते हैं
07:07तो कहते हैं कि ये लो साब
07:08जा मारग साहब मिलें प्रेम का हावे
07:11सोय समात
07:12क्यों उसको अग्ये
07:15बना रहे हो जिसको जाना जा सकता है
07:17इसलिए बना रहे हो क्योंकि अगर
07:19हमने मान लिया
07:20कि प्रेम जाना जा सकता है
07:22तो फिर हम
07:24कामना को प्रेम के
07:26नाम पर कैसे चला पाएंगे
07:29ज़्यादा तर लोग प्रेम के नाम पर क्या रखते हैं
07:33साधारन कामना है
07:34अब उनसे कहा जाए
07:36खोजो अपने अंदर जाओ
07:38क्या है तुम्हारे भीतर
07:39तो कहते हैं अरे प्रेम की कोई परक होती है क्या कोई कसोटी होती है जिस पे प्रेम को जाचा जा सके
07:48साहब प्रेम को नहीं जाचा जा सकता
07:51लेकिन कामना को तो जाचा जा सकता है न
07:54तो अगर कह दिया गया कि
07:55साहब के मार्ग
07:57का नाम प्रेम है
07:59तो इतना तो तुम जान सकते हो ना
08:01कि तुम्हारा मार्ग साहब की और जा रहा है
08:03किसी और दिशा में जा रहा है
08:04और अगर किसी और दिशा में जा रहा है तो इतना तो जान सकते हो नगी प्रेम नहीं है भई
08:09कुछ और होगा लेकिन हम अपने सब जूठों को भी अग्ये अचिन्त आदि कह करके उनको सुरक्षित कर लेते हैं
08:21जूठ को बचाने का बहुत अच्छा तरीका है कि जूठ के उपर सत्य के गुण आरोपित कर दो सत्य के कोई गुण नहीं होते पर समधाने के लिए कह रहा हूं
08:31सत्य कैसा होता है अग्ये तो जूट को भी बोल तो मुझे कुछ पता नहीं है जूटे आदमी की पहचान आप उससे बात करोगे और बात करते करते बात जैसे ही सच की दहलीज पर पहुँचेगी वो कह देगा नहीं इसके आगे मुझे कुछ पता नहीं है या मैं बात करना न
09:01क्या दो ना नहीं जानना चाहता है आरी बात समुझे है तो जो जाना जा सकता है उसको जानेंगे हर चीज को रहस्य मई या मिस्टिकल घोशित करके उसे पल्ला नहीं जाड़ लेंगे
09:31कि साहब सत्य को कौन जान सकता है इश्वर को कौन जान सकता है आरे इश्वर को कौन जान सकता है जानने वाले इश्वर की पूरी कुंडली लिग गए है तुम कह रहे हो इश्वर कौन जान सकता है
09:42कि प्राणी के
09:51मन पर जब माया बहुत छा जाती है
09:53तो वो
09:54सत्य को इश्वर बोलना शुरू कर देता है
09:59जाहिए शंकराचारियों के पास तुरंत आपको बता देंगे
10:05ये बिल्कु लिखित परिभाशा है
10:07जब माया नहीं छाही होती
10:10तो क्या दिखाई देता है
10:14ब्रह्म
10:15और जब माया बहुत छा जाती है
10:17तो सबसे बड़ी शक्ति
10:19क्या प्रतीत होती है इश्वर
10:21तो क्यों कह रहे हो कि इश्वर को नहीं जाना जा सकता है
10:24इश्वर को जाना जा सकता है
10:25और इश्वर
10:26कि तो पूरी कुंडली
10:29अचारे उन्हें पता रखी है पहले से
10:31पर जहां कहीं भी हमें अपने जूट छुपाने होते हैं
10:36वहा हम क्या बोल देते हैं
10:37दिखिए जाना नहीं जा सकता
10:39या मैं जानता नहीं हो, मुझे कुछ पता नहीं है
10:41तो मैं सब पता है
10:42किन बातों पर हम आमतर पर बोलते हैं कि हमें कुछ पता नहीं कोई पुछे फलाना काम कर रहे हो क्यों कर रहे हो पर मैं नहीं जानता अच्छा फलाना काम क्यों नहीं कर रहे हो मैं वह भी नहीं जानता
10:58फुलानी दिशा में क्यों बहे जा रहे हो
11:00मैं नहीं जानता बस मुझे अच्छा लग रहा है
11:03ये सब जाना जा सकता है
11:09बताईए
11:11कौन सी दो तरह गलतियों की बात करे है हमने
11:12पहली गलती क्या है
11:13कि हम सत्य के बारे में
11:17कहानिया बना लेते हैं
11:18वो कर रहा है ना हमने खूब
11:19खूब कर रहा है कि नहीं
11:22कथा कहानिया किस से गपबाजी कितनी चल रही है
11:24शत्ते को लेके वो पहली किस्म
11:26की गलती है और दूसरी किस्म की गलती है
11:29कि जिसको
11:31जाना जा सकता है जो है ही कहानी
11:33सरीखा
11:33उसको हम कह देते हैं, तो ये तो साहब
11:36अग्ये है, इसको कुछ नहीं पता चल सकता
11:38ये दोनों गलती हैं, आति घातक होती है
11:40ठीक है?
11:42तो हम दोनों में से कोई गलती नहीं करेंगे
11:44जो सामने बात है
11:45इसको हम यता शक्ति
11:48पहले समझने शुल्झाने की
11:50कोशिश करेंगे जहां इमानदारी
11:52से हमारी शक्ति बोध विवेक
11:54जवाब दे जाए वहाँ तो फिर हम कुछ करें
11:56नहीं सकते बेबस हैं
11:57पर जितने हमारे पास
12:00संसाधन है अंतरिक मेधा है
12:02प्रज्या है तरक शक्ति है
12:04स्मृति है ज्ञान है जो कुछ हमारे
12:06पास है उसका पूरा उपयोग करके
12:08पहले
12:09इस रहस्य को भेदने का प्रयास करें
12:12की नहीं करें करना चाहिए
12:13फिर कहीं पर अगर रुक ही गए
12:15तो फिर रुक ही गए
12:18गाड़ी का इंधन ही कहीं समाप्त हो गया
12:20फिर हो इगया फिर तो बात
12:22अपने हाथ में है नहीं विवश्चित
12:23पर जब तक गाड़ी में इंधन है हम गते क्यों न करें
12:26समस्रें बात को ठीक
12:30तो ताओ गहरा है
12:33सभी चीजों का आदिम स्रोत प्रतीत होता है
12:35नुकीले को कुंद करता है
12:39उल्जन सुलजाता है
12:40चमकदार को समरस करता है
12:43सब कुछ एकदम साधारण
12:46धूल जैसा बना देता है
12:48ठीक है
12:49इसको पहले सधानतिक तौर पर समझेंगे
12:52फिर इसके छोटे छोटे जो अन्श हैं
12:55उसब सबस्पश्ट हो जाएंगे
12:56अहम का सारा खेल है
13:03अपने को बचाने का
13:05है वो क्या
13:09सिर्फ प्रक्रति
13:12माने जड़
13:13एकदम जड़ है न
13:15पर वो अपने आपको
13:18प्रक्रति से भिन दिखाना चाहता
13:20इस शब्द को लिखिए
13:21और रिखांकित कर दीजे
13:27वो अपने आपको क्या दिखाना चाहता है
13:30भिन हूँ
13:31ताब मैं प्राकृतिक थोड़ी हूँ मैं तो
13:34खुल के बोला करो
13:37भिन्न हूँ हाँ
13:38तो अगर प्राकृतिक होता तो जड़ होता
13:40अगर जड़ से भिन्न हूँ तो मैं क्या हूँ फिर
13:43चितन हूँ
13:44मानना ही नहीं चाहता कि
13:47जो भी कुछ वो कह रहा है
13:49या अनुभव कर रहा है
13:50वो सब कुछ सिर्फ और सिर्फ
13:52प्रक्रति के अणवों पर्माणवों का खेल है
13:56वो मानना ही नहीं चाहता है
13:57वो कहना चाहता है नहीं
13:58ये सब कुछ जड़ता से नहीं आ रहा है
14:00ये तो मेरे चैतन्ने से आ रहा है
14:03सामने जलेवी रखी है अब वो जलेवी की और बढ़ना चाहता है
14:10बात सिर्फ क्या है
14:12एक रसायन दूसरे रसायन की और आकर्शित हो रहा है
14:17ठीक है
14:18इस मामले में न्याय और वैशेशिक दर्शन बहुत बढ़िया है
14:22बात बस इतनी है कि वर्तमान अरसायन शास्त्र ने उनको बहुत पीछे छोड़ दिया
14:27इसलिए आप उनको पढ़ते नहीं हो
14:29नहीं तो उस समय में उन्होंने बड़ी करांतेकारी बात करी थी
14:34उन्होंने का था बाकी सब बाते हटाओ
14:37अगर आप सत्य की खोज कर रहे हो
14:39तो जगत में सत्य की दो मुलभूत इकाईया है
14:45वो है अणू
14:46बोले हटाओ उधर उधर की बाते की कोई पारलोकिक है
14:52ये जगत में उस समय पर उन्होंने अणू की बात कर दी थी
14:58अणू परमाणू एटम्स मॉलेक्यूल सब खड़े कर दिये थे
15:01अब आज वो बाते जो है वो अपसुलीट हो गई है
15:05तिथिभाय हो गई है तो हमें उनका कोई बहुत महत्तो नहीं देखता
15:08तो खेल सारा क्या है जलेबी की और जाने का आणविक
15:14भीतर अणू घूम रहे हैं और उन अणूओं को आपने चुना नहीं
15:18सैयोग की बात है सैयोग की बात है कि आपके भीतर वो जो अणू है
15:23वो सक्रे हैं वो जलेबी दिख रहे हैं जलेबी की और भाग रहे हैं
15:26जानते हैं रेथ के टीले बालू के देखें हैं एक बन गया सैंड ड्यून बताओ कैसे बन गया किसने बनाया
15:37सिर्फ सैयोगों ने बनाया ना पर उसके पास एक निश्चित आकार है और उसका आकार बदलता भी रहता है दिन में जैसा है रात में बदल जाता है उसकी जगह भी बदलती रहती है हम वो हैं हम बालू का टीला है सैयोगों की हवाएं हमें एक आकार दे रहती है वो आकार भी
16:07या जैसे
16:11कितने लोग कभी छट पर सोये हैं आसमान की और देखते हुए
16:17बादलों में आकरतियां देखी हैं
16:20किसने बनाई बादलों में आकरतियां
16:23माल मसाला प्रकरतिका है कामसायोग का है
16:27माल मसाला प्रकरतिका है
16:30क्या है वहाँ पर
16:31वहाँ पानी के सूक्ष्म बिंदु है उनसे भाप है उसे बादल बना तो माल मसाला किसका है प्रक्रतिका और जो आकरति बनी है उसका जिम्मेदार कौन है सिर्फ सैयोग इसलिए आकरति भी आप देखते हैं भालू किस-किस ने बादल है भालू देखा है मैंने तो देखा र
17:01पर वो जो बादल वाली गोभी है वो इनसान की तरह मूर्ख नहीं होती कि बोले मैं उसको पता है कि मैं सैयोगों का उत्पाद हूँ और सैयोगों से ही मुझे मिट भी जाना है ठीक है पर मनुष्य कहता है कि मैं तो सैयोगों का उत्पाद नहीं हूँ साहब सैयोग तो प्
17:31जो हो रहा है सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि मेरा शरीर एक तरह का है मेरे मावाप एक तरह के मेरा समाज एक तरह का है
17:37हवाय चली बादल उड़ गए
17:41हम मानते ही नहीं है कि
17:42अगर हम कहीं से एक से उड़के जगह दूसरी जगह पहुँच गए
17:45तो कारण बस यह था कि हवाय चली
17:47हम कहते हैं नहीं उसके पीछे मेरी एक विचार प्रक्रिया थी
17:50सहाब मैंने सोचा समझा और निरने करा
17:52इसलिए मैं एक जगह से उड़ा दूसरी जगह पहुँच नहीं सोच समझ रहे हो
17:56हवाय चली है बादल उड़ गए हवाय चली है
17:59और जो रेट का टीला है वो एक जगह से उड़के दूसरी जगह चला गया
18:04जो लोग जाते हैं रेगस्ताने परेटन अगरा करने हैं उनके लिए ये बड़ा आकर्शन रहता है
18:08मस्त दिखाई पड़ते हैं सेंड दूस
18:11उनको देखते रोगर कुछ घंटे अपने आपको आप देखे गए हैं तो आप पाऊगे कि वो क्या कर रहा है
18:17वो अपनी जगह बदल रहा है
18:21आपके देखते देखते वो यहाँ था यहाँ से आप पाऊगे उतनी मीटर दूर उधर निकल गया
18:26उसका आकार भी बदल गया
18:29लेकिन अगर वो मनुष्य होता तो क्या बोलता
18:32मैंने फैसला करा साब
18:34I changed my mind
18:38या I made my mind
18:40There is no mind
18:46सिर्फ क्या है
18:47हवाएं है
18:49सिर्फ हवाएं है
18:52There is no mind
18:53तो चो न वो बादल क्या बोल रहा है
18:58अभी मैं आपके बोचस्थल के उपर था आप मैं उड़ रहा हूँ
19:01I just you know
19:03नहीं साब तुमने कुछ नहीं करा है
19:05किसने करा है
19:08यह वो नहीं करा है
19:10और आप
19:12कितनी और उदारण अपने आपको दे सकते हो
19:14समुदर तट पर चले जाओ
19:17तो वहाँ देखा है
19:20रेत में कैसे आकार
19:22बदलते रहते हैं
19:24बच्चे जाते हैं
19:28और बिल्कुल जो तट की रेत है
19:30उस पर पाउंगे निशान बना देंगे इस सब कर देंगे
19:32तबी लहर आएगी क्या करेगी
19:33वो सब बराबर कर देती है
19:35बना
19:37बिगड़ा
19:39बनाने वाला कौन कोई भी नहीं
19:42बिगाड़ने वाला कौन कोई भी नहीं
19:44हंकार कौन है
19:47जो जूट मूटी ये दावा करता है
19:50मैंने बनाया मैंने बिगाड़ा
19:52न तूने बनाया न तूने बिगाड़ा, तू तो कठपुतली है, तू तो कठपुतली है, पर हंकार अपने आपको विशेश मानना चाहता है, विशेश माने प्रक्रति से भिन, लिखिए, विशेश माने प्रक्रति से भिन, सीधे सीधे ये मानने मुसको बड़ी समस्या होती ह
20:22को अपमान लगता है कि कट पुतली थोड़ी हूं मैं क्या बोल रहे हूं मेरे जीवन की सब बड़ी-बड़ी बातें सिर्फ रासाइनिक थी जी और क्या नहीं-नहीं
20:41आरी बैस समुझें तो विशेश होना है अहंकार को क्या होना है विशेश और इसी के विपरीत फिर कहा जाता है कि आत्मा निर्विशेश है आत्मा निर्विशेश है इससे क्या आशे होता है
21:03कि अहंकार के जो भाव था भिन्नता का वो भाव ज्ञान में तिरोहित हो गया
21:10अहंकार समझ गया कि मैं प्रक्रति से भिन्न नहीं हूँ
21:13हमने स्वयम को प्रक्रति की कठपुतली जान लिया
21:17मैं समझ गया मैं पूरे तरीके से प्रक्रति की कठपुतली मात्र हूँ
21:22तो मेरी विशेशता का भाव चला गया
21:26जिसकी विशेशता का भाव चला गया
21:28वो अत्य साधारण हो गया
21:30इसी को कहते हैं आत्मस्त हो जाना
21:33अब उसमें अहंकार नहीं बचा
21:35अहंकार साधारण लोक भाशा की तरह मत ले लिजेगा
21:41कि हंकार नहीं बचा माने अब वो दर्प में नहीं घूमता छाती चौड़ी करके नहीं दिखता वो सब नहीं हंकार नहीं बचा माने उसके भाव नहीं बचा कि वो करता है उसको भाव नहीं बचा कि उसके विचारों कोई महत्तो है वो अब अपने विचारों कमभीरता से ले
22:11जिसको भाव उठे, वो कहे ये लोग आ गए, भाई कौन कौन से आएं इस बार होर्मोन्स, जो ये न कहे कि ये तो मेरी चेतना का प्रवाहा है, वो सीधे कहे ये तो मेरे होर्मोन्स का प्रवाहा है, जो ये न कह दे कि मुझे क्रोध आ रहा है, कि मुझे तनाव हो रहा है, कि
22:41विशेश कौन है जो अपने आपको प्रक्रति से भिन्न जानता है जड़ होते हुए भी स्वयम को चेतन समझता है रासायनिक होते हुए भी आत्मिक समझता है इसे कहते हैं विशेश होना
22:59प्रक्रति से भिन्न तो क्या समझा रहे हैं लाउद्जू कह रहे हैं ताओ का काम है तुम्में जो कुछ भी विशेश था माने जूटा था उसको हटा देना आपकी विशेशता एक जूट है प्रक्रति से आपकी भिन्नता एक जूट है लाउद्जू कह रहे हैं जिन जिन माम
23:29होंगे कि धारदार बने बैठे हो अब तुम अलग दिखाई दे रहे हो ना अलग दिखाई दे तो तुम आई क्या गजब धार है प्रक्रति में आम तोर पर ऐसी कोई धार तो पाई नहीं जाती तो ले धारदार को कुंद कर देता है
23:42कि यह जो बहूं चमकरा होता है उसकी चमक फीकी कर देता हो जो बहूत खास दिखरा होता है उसको आम बना देता हो क्योंकि तुम्हारी खासियत है ही क्या तुम्हारे जहूट माने है भिन्नता मैं अलग हूँ कि मैं विशेष हूँ
24:09ताओ का काम है तुम्हारी विशेशता को मिटा देना तुम्हारे जूट को मिटा देना इस अर्थ में कहा है नुकीले को कुंद कर देता है उल्जे को सुल्जा देता है चमकदार को समरस कर देता है सबको धूल सा बना देता है धूल सा बना देता है माने प्रक्रति बना देत
24:39लग गया है कि मैं अलग हूँ बालू का पुतला बोलने लग गया है मैं तो खास हूँ
24:51जैसे बच्चों ने तट पर बीच पर घरोंदा बना दिया वो सब तुरंद बनाने लग जाते हैं पहुंचते नहीं कि खड़ से वहां कुछ खड़ा कर देते हैं
25:02ओ जिसको खड़ा कर रहा औहुत क्या बोल रहा है इक मैं तो अपनि इच्छा से अउतरित हुआ हूं
25:09मैं यूहीं किनी बच्चों का खेल नहीं हूं मैं तो अपनी इच्छा से कि सोतंतर चेतना से बच्छूब colate
25:22और ये जो गलत फहमी है
25:28कि मैं हूँ, मैं निर्णे करता हूँ
25:32मैं सोचता हूँ, मैं प्रेम करता हूँ
25:36मैं भला मानता हूँ, मैं बुरा मानता हूँ
25:40ये जो जबरदस्त गलत फहमी है
25:41यही जीवन का दुख है
25:44इसी को अहंकार बोलते हैं
25:47तुम कुछ नहीं मानते, तुम अपनी परस्थितियों का उत्पाद हो, तुम हो ही नहीं, तुम हो ही नहीं, होने के लिए तो बहुत बिरला चाहिए, तुम पूरे तरीके से अनुमे हो,
26:17तुम पूर्वनियोजित हो, तुम्हारा सब कुछ अग्रिम में ही ग्यात है, तुम्हारे भीतर जो रसायन काम कर रहे हैं और तुम्हारे अनुभवों का जो कुल समूह रहा है, अगर उप बता दिया जाए, तो तुम आगे क्या करने वाले हो,
26:44इसको बहुत आसानी से, और बड़ी सटीकता से, प्रत्याशित किया जा सकता है, तुम मौसम हो, तुम्हारा फॉर्कास्ट हो सकता है,
27:06एक दम बताया जा सकता है, और जैसे जैसे तकनीक आगे बढ़े, वैसे वैसे वो फॉर्कास्टिंग, आगे के हफ्तों की नहीं महीनों की भी हो जाएगी,
27:24आप एक्की वेदर अगेरा पर जाइए, तो आप उनसे पूछ सकते हो कि दुनिया का कोई भी शहर, अप्रेल माह में कैसा होने वाला है, बारिश कितनी होगी, किस दिन,
27:34सुर्यास, सुर्योदे कभ होंगे, तापमान कैसा रहेगा, हवाई कैसी चलेंगी, सब बता देगा, हमेशा पताया जा सकता था, बस टेक्नोलोजी नहीं थी, जाना जा सकता था पहले, पर चुकि हम जानने में असमर्थ थे, तो हमने क्या बोल दिया था, मामला क्या है, अ�
28:04आगे का, दुनिया की किसी भी शहर का, आप मौसम का हाल जान लीजिए, हम बिल्कुल मौसम हो जैसे हैं, हमारा हाल जाना जा सकता है, हमें कुछ भी हमारा निजी, आंतरिक, आत्मिक नहीं है,
28:17इसमें कोई बुराई भी नहीं है, कि हम मौसम हो जैसे हैं, बुराई इसमें नहीं है, कि हम पूरे तरीके से प्रकृति दौरा संचालित हैं, बुराई इसमें है कि हम प्रकृति दौरा संचालित हो करके भी एक जूठा दावा रखते हैं, कि हम चैतन्य हैं, यह बुराई ह
28:47प्राकृतिक होना तो आपकी विवश्टा है एक तरह की नियत है बुराई है यह न जानने में कि आप प्राकृतिक हो
28:58अभी अंग्रेजी में दो-चार दिन पहले मित्रों से बात्चीत हो रही थी वहां किसी ने प्रश्ण पूचा था
29:15भीजा था पिन उन्हें फिर लेकिन एन मौके पर लिया नहीं नीचे से जुड़ा एक एक एक फ्रेज है क्या एम और फाती
29:33वो कामू में भी पाया जाता है
29:39एम और माने प्रेम फाती से संबंदे फेट से
29:46नीचे कहते हैं कि मैं बात करता हूँ अनवरत संघर्ष की नीच से ज़्यादा संघर्ष की बात किसी ने नहीं करी है
29:56बोलते हैं लड़ जाओ भिड़ जाओ वो ऐसा भिड़े कि उन्होंने गौड तक को धराशाई कर दिया
30:04आस्मान से उतार के धरा पे खत्म कर दिया
30:07बोलते हैं लेकिन उच्चतम स्थिति वो होती है जिसमें तुमें देख जाए कि तुम बिलकुल प्राकृतिक हो
30:13और तुम इसी बात का विरोध छोड़ दो माने उसके प्रेम में पड़ जाओ
30:18यह आत्मग्यान की स्थिति आत्मग्यान में यही तो दिखाई देता है ना मैं पूरी तरह प्राकृतिक हूँ
30:25मैं पूरी तरह प्राकत थेखुँ और जो आत्मग्यानी नहीं होता वह गहता है नहीं नहीं ये तो मेरा फैसला है ये कर्म तो मैंने सोच समझ के करा है तुमने कुछ सोच समझ के नहीं करा हवाई आई तुमसे करवा गई आज भी जो तुम कर रहे हो बस हवाई आ रही है त�
30:55ये मानने में कि मैं बालू का टीला नहीं हूँ, मेरे पास तो सतंत्र चैतन ने चुनाओ है, बुराई क्यों है ये मानने में, क्योंकि ये मानने ताही जीवन का दुख है नर्ग है, और कुछ नहीं बुरा होता अध्यात में, एक ही चीज बुरी होती है दुख, बाकी कोई न
31:25आपको दुखी करने कारण दुनिया में भी
31:27दुख का ही प्रसार करे
31:29वो चीज बुरी है, एक ही पाप होता है
31:31क्या? दुख, सफरिंग
31:33उसके अलावा नहीं कोई पाप
31:36समझवे आरी बात
31:41फिर से दोराईए
31:43हम बालू के
31:45टीले हैं, हम सैंड डून्स हैं
31:47हम
31:49बादलों में उभरती आकृतियां है
31:51ये बात
31:53बुरी है क्या? ये बात
31:55न अच्छी है न बुरी है, ये तो बस एक
31:57तत्थे है सहाब, तत्थेओं को अच्छा
31:59ये बुरा थोड़ी बोला जाता है
32:00ये तो है
32:03ये है
32:05बुराई किसमे है
32:09ये सोचने में
32:13कि वो जो बादल में आकृति थी
32:15वो तो मैंने
32:17अपनी फ्रीविल से
32:19हाँ?
32:23अपने वोलिशन से, अपनी
32:25मुक्तेच्छा से, अपनी चेतना
32:27से निर्धारित करी थी
32:28अपनी बात
32:32जहां तुम हो ही नहीं
32:41वहां स्वयम को स्थापित करना
32:44अरूपित करना, कल्पित करना
32:46यही पाप है
32:47अभी हम
32:53इसे दूसरे चरण में आएंगे
32:55आपको और मज़ा आएगा
32:56ताओ का क्या काम होता है
33:02तुमारी ये ठसक तोड़ दे
33:06कि तुम चैतन्य हो
33:10और बड़ा बुरा लगता है
33:12बड़ा बुरा लगता है
33:14देश का बटवारा हो रहा हो
33:24मुसल्मान एक तरफ जा रहे है
33:27हिंदू एक तरफ जा रहे है
33:28दोनों बताएंगे सिध्धान्तों की बाते करेंगे
33:31बड़ी बड़ी बड़ी
33:31कहेंगे देखो हमारा ये सिध्धान्त है
33:33हमारा वो सिध्धान्त है
33:34हमारी टूनेशन थियोरी है
33:36या ये अपना कुछ और बताएंगे
33:37और जाके बतादो
33:40बात कुछ भी नहीं है
33:42तुम्हारे भीतर के रसायनों का खेल है
33:46तुम्हारे कानों में
33:52बच्पन से ही जो परंपरा और संस्कार
33:54पढ़ते रहें उनका खेल है
33:56और कोई सिध्धान्त नहीं है इसमें
33:58तो उनको बड़ा बुरा लगेगा कि नहीं लगेगा? लगेगा कि नहीं लगेगा? एक आदमी जा रहा हो अपने देवाले की ओर, हिंदू मंदिर की ओर जा रहा है, मुसल्मान मस्जित की ओर जा रहा है, कोई कहीं को जा रहा है, सब के अपने अपने पूजाग रहे हैं, और
34:28कि हवाएं हवाएं और जो बालू का टेक्श्यर है रेज जहां जार अलगतर है कि होगी वहां बालू का तीला अलगतर है को और इस बात से भी निर्धारित हो जाता है सेंड्यून की आज हवा में थोड़ी बहुत नमी तो नहीं आ गई होती नहीं रेगिस्तान में पर अगर �
34:58संसकार है कि जैसे बालू का टीला संसकारित होता रहता है हर समय थी तुम भी संसकारित तो उसको बहुत बुरा लगे हो कहँगा जो मेरे जीव में पवित्रतम है उसको तुमने क्या बता दिया हवाओं का खेल मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगा कभी इसलिए ग्यानियों क
35:28तुछो नए एक आदमी है वो बिलकुल इस वक्त भाव विभोर होकर के प्रेम में अपनी प्रेम का की और कुदा चला जा रहा है और उसको लग रहा है इस वक्त वो दुनिया का उच्चतम काम कर रहा है
35:42वो क्या रहे मेरे प्राणों की देवी क्या उच्ची उच्ची बाते प्राणों की देवी और ग्यानी सामने मिल गया ग्यानी क्या बोलेगा कुछ भी नहीं है
35:55न वो देवी है न तुम्हारे पास प्राण है
36:00दुचार तुम्हारे अंदर के तार अभी काट दिये जाएं तो देवा देवी सब भूल जाओगे
36:08काओगे इससे अच्छा तो कहीं जले भी बर्फी हो तो बता दो
36:13हाल तुमें उधर जा रहा हूं महंगा सौधा
36:16उसको बड़ा बुरा लगेगा
36:22वो उपने काड़ों में उंगली डाले है यह �there जाए कि यह सिर्फ रहसाइंिक वासनह
36:29खाए नइ यह तो मेरी चेतना का चुना हुए बात कुछ और आगे की बात है आप कहोंगे नहीं आगे की तो बता हूँके नहीं बता सकता यह
36:36आप बार-बार कहोगे, अगर आगे की बात है, कोई और बात है, तो बता दो, नो कहेंगे कुछ और है तो पर मैं बता नहीं सकता, आप कुछ होगी तो न बताओगे, कुछ नहीं है, सिर्फ क्या है, रसायन है, और रसायन है, ये बात अपने आप में बुरी, तुम्हारा पा
37:06तुम रासायनिक सूत्रों को प्रेम सूत्र बना रहे थे ये है तुम्हारा पाखंड
37:13रासायनिक सूत्र chemical equations उसको तुमने क्या बता दिया कि ये तो मेरे भक्ति सूत्र है
37:23है वो रासायन के सूत्र
37:26स्मझ में आ रही है
37:31अहंकार इसी जूठे दावे पर जीता है
37:38कि मैं चैतन्य हूँ
37:39और इसी लिए अहंकारी सबसे ज्यादा सम्मान
37:43अपने विचारों को देता है
37:44और अगर और थोड़ा वो
37:48पाखंडी होगा तो विचारों से भी ज्यादा सम्मान
37:54अपनी भावनाओं को देगा
37:55वो यह मानी नहीं पाता कि यह जो विचार की चक्की चल रही है
38:01यह सिर्फ क्या है
38:01रसायन शाला में
38:05अणवों परमाणवों का बेहोश, केयोटिक, एनार्किक एक नाच चल रहा है
38:13और जी
38:13कि जैसे लैब अटेंडन जब शाम को ताला लगा कर निकल जाए
38:21उसके बाद यह सब अपने अपने जार्स और बीकर्स से कूद कूद के बाहर आजाए
38:31कोई test tube में खुस गया है, वो कहरा है मेरी है
38:34दूसरा बोल रहा है
38:37तेरी है ऐसी कि तैसी
38:39वो भी खुसा है test tube में और अंदर क्या हो गया
38:42भभ
38:43ये सब हमारे खोपड़े में चलता है
38:47इसको हम कहते हैं विचार
38:48एक निजा के बर्नेराउन कर दिया
38:54इसको हम कहते हैं गुट्से में लाल हो गया हूँ मैं
38:57तुम गुट्से में लाल नहीं हो गयी हो
38:58भीतर कुछ लीकेज हो गई है
39:00कोई chemical निकल पड़ा है
39:05मूर्खादमी की सबसे बड़ी निशानी है
39:08उसे तुम पाओगे
39:10विचारों को बहुत महत्तो देता हुआ
39:12बड़ा सम्मान देगा वो विचारों को
39:15बिना ये जाने कि
39:16उसके सारे विचार आ कहां से रहें
39:18ये जानना
39:20उसके लिए घातक है ऐसा नहीं कि वो जान
39:22नहीं सकता पर विचारों के
39:24श्रोत को वो अग्ये बना देता है
39:26पाखन भी है
39:28डरा हुआ है बहुत डरा हुआ है
39:31उसको इदिख गया कि
39:32उसके सारे विचार
39:33सिर्फ हवाओं से आते हैं
39:36तो जीएगा कैसे
39:37आत्मा तो है नहीं
39:40विचार ही हैं जिनके भरों से चलता है
39:42मुक्ति की और
39:52पहला कदम यही होता है
39:55स्वयम को गंभीरता से लेने की
39:58बार्धता से मुक्त होना
40:00जो स्वयम पर हस नहीं सकता है
40:03उसकी रिहाई बड़ी मुश्किल है
40:06जिसका मजाग बनाओ
40:08और बुरा मान जाए
40:11यह आदमी अब बंधनों में धस्ता चला जा रहा है
40:14और इस दोनों बातें एक साथ चलेंगी
40:18जो व्यक्ति मजाग का जितना बुरा मानने शुरू करेगा
40:22वो व्यक्ति अपने भावों को अपने निर्णयों
40:24और विचारों को उतनी ही गंभीरता से लेना शुरू करेगा
40:27जो व्यक्ति मजाग को अपमान मानेगा
40:33वो व्यक्ति अपने विचार का सम्मान कर रहा होगा बहुत
40:37ये किसी भी इंसान के साथ दोनों घटना एक साथ होंगी
40:42आप उसके साथ थोड़ी चुहलवाजी कर दीजी अब वो बुरा मानने लगा है
40:48वो जरूर अपने भावों को और अपने विचारों को बहुत ज्यादा अब सम्मान भी देने लगा है
40:59अहम है जो अब बहुत अपने आपको गंभीरता से लेने लगा है
41:06एक जूट है जो अपने फ़न अब और फैलाने लगा है
41:19आरी बात तो
41:20आत्मग्यानकारती यही होता है
41:29देखना है कि यह सब चल रहा है
41:31स्वयम को चुटकुला बना लेना
41:35असी सी आ जाए
41:38एक चीज होने लेगे आपके साथ
41:44आप खुद को प्रेडिक्ट करने लगेंगे
41:46और जो स्वयम को प्रेडिक्ट करने लग जाता है
41:51वो उस prediction
41:54को तोड़ने लग जाता है
41:56और जो स्वयम को predict नहीं कर सकता
42:00जो स्वयम का सही
42:05अनुमान नहीं लगा सकता
42:07उसके साथ बस वही होता रहता है
42:16जो सदा होता है
42:21एक स्थित बनी होई है और उसमें अगर आपने साफ साफ जान लिया
42:24अब ये स्थित बनी है अब अगले एक घंटे में ये होना है
42:27तो जो होना अब नहीं होगा
42:29चाहरी बात समुझ वह
42:38तो हमको जमूरा जानो
42:51क्या
42:54और खुद पे कटाक्ष करना सीखो
43:00फिर दूसरों के मजाग भी उतने चुभेंगे नहीं
43:05जैसे ही देखो कि भीतर से उठी रासाइनिक लहर
43:08और बहा ले गई तुमको
43:11तुरन बोलो जी उस्ताद
43:12किसको बोला उस्ताद
43:15रासाइनिक लहर को
43:17क्योंकि वही तो
43:19हमें बनाती बिगाडती है
43:21और जब देखो कि बिलकुली अब वो च्छाई गई है उसके आगे बनी गए
43:28बंदर जमूरा तो ऐसे करिया करो कहीं कि आब अंदर से बनी गए हो तो बाहर से क्या इतने सभ्य पुरुष भद्र पुरुष बनकर बैठे हुए हो जैसे अरे बढ़े हम तो सम्मानिय व्यक्ति हैं जमूरे हो जमूरे की तरह करो ना भीतर बाहर एक कर दो कम से कम थोड़
43:58जो कुछ भी हुआ था भीतर से उसको बोला और तो कोई उस्ताद है हमारा हुआ है
44:05मुझपagen रही है
44:09हो सके तो किसी गर्मा गर्म
44:19बहस के बीच में करो
44:20बहस चल रही होर तुमें देख रहा है
44:21कि अब तुम अपना आपा खो चुके हो
44:23निये अंतरन खो चुके हो
44:24रुख जाओ वहीं पर बोलो
44:26और पता है कि अब सामने वाले
44:29के सामने नाक कट गई
44:30पर तुम्हें देख रहा है
44:33और अब बिलकुल
44:36गौरफ की लडाई चल रही है
44:38नहीं तुमने ऐसा का हमने बहुत किसी भारी मुद्दे
44:41पर लडाई चल रही है साहब
44:42जबरदस्त अचानक ठिठक जाओ
44:44बुद्ध जीवी आपस में
44:47शम्शीरें लडा रहें
44:49अचानक ठिठक जाओ और उसको देखो
44:50जी उस्ताद
44:51तुम जमूरा बने तो तुम जीत गए
44:56वो भग जाएगा
44:58क्योंकि जमूरा तो इस वक्त
45:03वो भी है
45:04पर तुम जीत गए
45:07क्योंकि तुम जान गए कि तुम जमूरे हो
45:09गर्म गर्म बहस में
45:11किसके पास चेतना होती है
45:12कोई चेतना नहीं है
45:13हमारे पास तो साधारण अवसरों पर भी
45:16कोई चेतना नहीं होती रसायन भर होते है
45:18और जब भाव का
45:21और क्रोध का
45:23दर्प का
45:25उनमाद चढ़ा हो बहस में
45:26उस वक्त तो चेतना एकदम ही शून्ने हो जाती है
45:29दो जमूरे हैं बस वो आपस में जैसे बंदर खी-खी-खी करते हैं
45:33मून ओचते एक दूसरे का यही कर रहे हैं
45:36जब हो ही बंदर तो बनी जाओ
45:37बंदर ही बन जाओ जी उस्ताद
45:40जिसने यह कर लिया
45:43जिसने 120 की गति पर इमर्जेंसी ब्रेक लगा दिया
45:47उसकी दुरगटना बच जाएगी
45:50मुश्किल होगा
45:55क्योंकि 120 पर जब ब्रेक लगता तो तूट-फूट हो जाती है
45:58तूट-फूट भले हो जाए लेकिन दुरगटना बच जाएगी
46:08कैसे करना है
46:09तब माननी आदमियों बहुत ऐसे कर रहे हो
46:14रिस्पेक्टिबल फ्रेंड
46:23वे बालू के टीले
46:30तू और तेरी रिस्पेक्टिबिलिटी
46:33बंदर कैसे करता है
46:39थोड़ा कुछ बहतर हुआ
46:44कुछ में हारी बात
46:53देखो
46:58समझो सुनो इस बात को
47:01जो कुछ भी हम कर रहे होते हैं
47:05वो सिर्फ इसलिए कर रहे होते हैं
47:06ताकि वो ना करना पड़े जो करना चाहिए
47:08देखो इसी पल को देखो
47:10देखो आजी के दिन को देखो
47:12जो कुछ भी तुमने करा है
47:13सिर्फ इसलिए करा है ताकि वो ना करना पड़े
47:15जो तुम्हें करना चाहिए और तुम यह जानते हो
47:18इसलिए तुम इतनी जान लगा करके
47:23कुछ और करने को उतारू हो
47:25सिर्फ उससे बचने के लिए
47:27जो प्रत्यक्ष है, स्पष्ट है, सरल है
47:30समक्ष है
47:31हर इंसान जो कर रहा है
47:35वो कर नहीं रहा है
47:36वो बच रहा है बस
47:37तुम कुछ नहीं करते
47:40तुम करने से बचने के लिए कुछ करते हो
47:42जो सही है
47:44उससे बचने के लिए हम कुछ भी
47:46कर गुजरते हैं
47:48कौन कहता है हम आलसी है
47:50सारा आलस छूमंतर
47:53हो जाता है
47:53जब उससे बचने की बात आती है जो सही है क्यों क्यूंकि मौत से बचने के लिए इंसान कुछ भी करेगा ना
48:09मौत के सामने आलस कौन दिखाता है दिखाते हो आलसी से आलसी आदमी भी मौत के सामने एकदम चपल धावक बन जाता है कि नहीं सच क्या होता है
48:23मौत
48:25तो जब सच सामने होता है
48:28तो सच से बचने के लिए
48:29मौत से बचने के लिए
48:31हम कितनी भी तेजी से दौड़ लगा सकते है
48:33वो हम रोज रोज करते हैं
48:35क्योंकि सच तो सदय है उस सामने है
48:36उससे कौन सक्षन है जब वो
48:39सामने नहीं है
48:40मतलब ये कि हम हर पल कुछ ऐसा ही कर रहे होते हैं
48:50जिसको हमें नहीं करना चाहिए
48:53केंद्र ही जूट का होता है
49:05आप सब के लिए ये कम्यूनिटी का काम
49:09खोजिएगा कि आज के दिन में
49:12पिछले हफ्ते में
49:14पिछले महीने में
49:16जितना निकट होतना बहतर
49:17आप क्या क्या करते रहे हैं
49:21सिर्फ उससे बचने के लिए
49:22जो कि इस पश्ट निसंदे है
49:26निर्वाद रूप से वो है जो आपको करना चाहिए
49:29और जब लिख लें और सूची पांच तक पहुँच जाए
49:36तो हर पांच के बाद ऐसे करना है
49:38क्या करना है
49:39जब हम
49:44स्टेटिस्टिक्स पढ़ते थे
49:47तो उसमें आकड़ों की गिंती जब करते थे
49:52तो ऐसे कह जाता था
49:53चार स्रेखाई बनाओ
49:54एक, दो, तीन, चार, पांच भी कैसी होती थी
49:56ऐसी
49:57तो आपको भी यही करना है
49:59चार काम लिखो
50:00जो सिर्फ इसलिए करे ताकि सही काम न करना पड़े
50:03और जैसे ही पांच मा ध्यान आए तो यह क्या है
50:05करो
50:10सम्मानियता मारी जाती है
50:15हाँ
50:17how do I give up on my respectability
50:21I'm a grave thinker
50:28yes you are indeed a grave thinker
50:32चोटी सी बात चुप गई थी
50:50अंधे का बेटा अंधा
50:51देखो कितनी दूर चला गया दुर्योदर
50:53कितनी दूर निकल गया
51:01कितना कुछ कर डाला
51:09सिर्फ उस एक काम से बचने के लिए
51:12जो उसी समय कर देना चाहिए था
51:13उस समय क्या कर देना चाहिए था
51:15यह दुर्योधन जाने
51:17पर कुछ था जो दूर्योधन को उसी समय कर देना चाहिए था
51:20उससे बचने के लिए दूर्योधन ने क्या क्या नहीं कर डाला
51:24करता ही गया
51:33अपना कुनवा खा गया
51:35सिर्फ उस एक चीज से बचने के लिए जो सही थी
51:40उसके बाद भी बहुत मौके थे
51:43कृष्ण खुद उसके पास आये थे
51:44कृष्ण अपने पाउं चल के दुर्योधन नहीं गया था
51:48कृष्ण गई दुर्योधन के पास
51:50कि देख तु गलत रहा चल रहा है
51:51अभी भी मौका है रुकजा
51:52पर उस एक सही चीज से बचने के लिए
51:56कि सामने कृष्ण खड़े हैं पाउं पकड़ लो
51:58जो बोल रहे हैं चुपचाप मान लो
52:00फिर कितनी दूर निकल गया
52:02महाविनाश की ओर
52:03सुयोधन था
52:05इतिहास के अंध तक के लिए
52:08दुर्योधन हो गया
52:08कोई बाप अपने बेटे का नाम
52:12दुर्योधन रखेगा क्या
52:14पर कृष्ण सामने खड़े हैं
52:19तब भी उसे कुछ और ही करना है
52:21जब तक इतिहास रहेगा
52:23तब तक वो दुर्योधन ही रहेगा अब
52:25क्यों, क्योंकि वो जो छोटी सी चीज है
52:32जो कर लेनी चाहिए थी
52:34वो छोटी सी चीज क्या थी
52:35नीच्छे कहते हैं
52:38मेरे लिए सबसे बड़ी बात ये है
52:40कि मैं उसको येस बोलता चलू
52:44पढ़ियेगा, या आप कोट करियेगा
52:46जो आमोर फाटी का है
52:53सिध्धान्त पूरा, उसमें नीच्छे का येस आता है
52:57येस बोलता चलू
53:00माइ लाइफ शूड बिकम अ बिग येस तो दाट
53:03और अहंकार का मतलब होता है
53:07अ बिग अब्स्टिनेट नोट तो दाट
53:11जम रही ये बात या ऐसा ही
53:19उड़ रही ये बात
53:22रहत के टीले की तरह
53:25अध्यात्मसारा क्या है
53:31उस टीले को बताना कि तुम सिर्फ एक टीला हो
53:37ये ही मुक्ते है
53:38मुक्ते का अर्थ किसी विशेश चीज को पाना नहीं है
53:42मुक्ते का अर्थ है विशेशता के भाव से मुक्त हो जाना
53:47तीला जान जाए मैं तो सिर्फ तीला हूँ यही मुक्ति
53:51बना बिगड़ा
54:17जनाम है तेहन बारंबार दुर लब मानुष जनाम है तेहन बारंबार
54:38परुवर्चों पत्ता जड़े बहुरी न लागेडार रिसादो पहुरी न लागेडार
54:56मनवातो पंश्टी भया उड़के चलाकास
55:07मनवातो पंश्टी भया उड़के चलाकास
55:18उपर ही ते गिर पड़ा मन माया के पास रिसादो मन माया के पास
55:36मन के बाहु तक रंग है चिन चिन बदले सोई
55:47मन के बहु तक रंग है चिन चिन बदले सोई
55:59एक रंग में जो रहे ऐसा बिर लाखो एरे सादो ऐसा बिर लाखो
56:15एक रंग है
56:26झाल झाल