मीरा का प्रेम तो साकार था — क्या वो अधूरा था? || आचार्य प्रशांत (2025) 🧔🏻♂️ आचार्य प्रशांत से समझे गीता और वेदांत का गहरा अर्थ, लाइव ऑनलाइन सत्रों से जुड़ें: https://acharyaprashant.org/hi/enquiry-gita-course?cmId=m00021
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00:00मीरा बाई जब कहती थी कि मेरे तो गिरधर वो पाल दूसरों न कोई जाके सिर्फ मोर मुकुट मेरो पती सोई
00:06तो वहाँ तो लगता है कि वो एक साकार रूप को श्री कृष्ण के रूप में दरजा दे रही है
00:10मीरा अगर पुरुष होती तो भी क्या श्री कृष्ण को पती ही मानती
00:14वही लाथी इसलिए श्री कृष्ण की पती और पुरुष रूप में उन्होंने कलपना करी
00:18लेकिन फिर भी हम मुल ले देंगे सम्मान देंगे कि इतना तो करा कि किसी जीवित पुरुष के जाकर के आलेंगन में नहीं बन गई
00:25उन्होंने कहा मुझे उचे से उचा चाहिए भले ही अभी वो जीवित ना हो
00:35कि एक बात उन्हें समझ में आई उसके लिए उसके लिए जहर पीने को तयार है उस पूर एक शेत्र में जाते बाद एकदम चरम पर और वो जा रही है और संत्रविदास हैं जो कि जाते से चरमकार हैं और उनके पास बैठ रही है न डर से डर रही है न धमकी से न लज्जा से