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00:00:00अहंकार तो बोलता है मैं कौन हूँ, मैं होशियार में जानकार मैं सब जानता हूँ
00:00:04एक महान आदमी कोई क्या तीम छाता लेकर उसके उपर चल रहे हैं
00:00:08एक ऐसे आगे उसके जाडू मारते हुए चल रहा है कि
00:00:10इनका धूल पर पाऊ नहीं पढ़ना चाहिए
00:00:13जै बाबाजी जै बाबाजी ये तो हंकार का और बिगड़ा हुआ रोप है
00:00:19तुमारे हंकार का दावा ये रहता है मैं प्रक्रति से अलग हूँ
00:00:23और उसके प्रमाण हमें अपने दैनिक जीवन में खूब मिलते हैं
00:00:26वो मानते हैं कि हाँ आत्मा कहीं बैठी होती है वो शरीर में प्रवेश करती है
00:00:31और शरीर से अलग है तो जब शरीर मरता है तो आत्मा ऐसे उड़नशू भी हो जाती है
00:00:36जानोर के पास बस दर्द होता है मनुष्य के पास दुख भी होता है
00:00:41दरध अटा सकते हो, दुख कैसे अटा होगे
00:00:44उठ Gabriella, बैट रहू है, खा रहा है, छोड़ रहा है, सूंग रहा है, देख रहा है
00:00:49और ये जान रहा है कि ये सब कुछ मैं नहीं कर रहा है, ये सारा काम तो प्रकृतिक
00:00:55जिन तत्तों से तुम बने हो वो तत्तों दुबारा खड़े हो जाएंगे
00:00:59तुम क्यों परिशान हो
00:01:00शैकड़ों में एक वो है जिसे शैकड़ों में एक होना नहीं
00:01:03महान वो है जिसे महान
00:01:05भीतर
00:01:12की दिशा से
00:01:15देखें
00:01:17तो जो कुछ भी
00:01:21अमारे लिए है
00:01:24वो मन ही मन है
00:01:27दमूल सुत्र है इसको अगर पकड़ लिया तो उसके बाद
00:01:32जीवन संबंधी, धर्म संबंधी कोई भी बात आपको भ्रमित नहीं करने वाली
00:01:38All that there is, is the mind
00:01:44एक
00:01:50और उसी बात को बाहर की दिशा से देखें
00:01:56एक ही बात है, देखने का अंतर है
00:02:02जो कुछ है, सब प्रक्रती ही प्रक्रती है
00:02:07प्रक्रती के अतरिक्त कुछ भी नहीं है
00:02:16बहुत दूर तक
00:02:18इन बातों का अर्थ और असर जाता है
00:02:24Meaning, Implication and Significance
00:02:29बहुत दूर तक जाता है
00:02:31पहली बात तो यह के
00:02:37प्रक्रते नियमों पर चलती है, वो उसके अपने ही नियम है
00:02:47हम उन नियमों के द्रिश्टा हैं
00:02:53तो उस सारे नियम हमारे देखे हैं
00:02:58पर एक बात पक्की है कि मैं देखूँ कि कोई और देखे नियम नहीं बदलते
00:03:03तो इतना तो साफ साफ कहा जा सकता है कि नियम तथ्थे हैं
00:03:10कोई भी देखे जो पार्थेव जगत है, material universe उसके नियम नहीं बदलते
00:03:20observer dependent नहीं होते, subjectivity नहीं होती
00:03:27ठीक
00:03:29तथात्मक होते हैं
00:03:35वस्तुगत होते हैं, व्यक्तिगत नहीं होते
00:03:40जो व्यक्तिगत हो फिर उसे तथि नहीं कलपना बूलते हैं
00:03:43जो व्यक्तिगत हो जाए, उसे फिर तथि नहीं कलपना बूलते हैं
00:03:49प्रक्रति अपने नियम उपर चलती है, वहां सब कुछ नियम पर ही चल रहा है
00:03:58और जो चल रहा है वह बहुत पहले से चल रहा है
00:04:02और चुकि सब कुछ प्रक्रती ही है इसलिए प्रक्रती के बाहर का कोई causing agent नहीं हो सकता
00:04:10अगर है भी तो वो भी प्रक्रती के भीतर का ही है
00:04:14अब इन दो बातों को मिला कर देखिए कि क्या निकलता है
00:04:17प्रक्रती ही प्रक्रती है जो सदा से चल रही है
00:04:22और जो कुछ है वो प्रक्रति है तो अगर कोई प्रक्रति का करता धरता भी है
00:04:29causing
00:04:32causal agent करता
00:04:35संचालक रचेता तो वो भी प्रक्रति के भीतर ही है
00:04:41तो भी प्रक्रति है तो माने वो भी प्रक्रति के नियमों के आधीन ही है
00:04:46वाने कुल में लागे सब प्रक्रति ही प्रक्रति है जिसको आप प्रक्रति से बहार समझते हो वो भी क्या है वो प्रक्रति ही प्रक्रति है उसके नियम ही नियम है तो वहाँ पर फिर कर्ट्रत्व डूर्शिप जैसी कोई बात हो नहीं सकती
00:05:02वस्तुएं हैं और वस्तुओं का संचालन करने वाले नियम है
00:05:08वस्तुएं हैं और वस्तुओं का संचालन करने वाले नियम है
00:05:13अभी यह मैं बाहर की तरफ देखते हुए बात कर रहे हैं सारी
00:05:17तो यह अधूरी बात है पूरा करेंगे आगे इसको
00:05:21वस्तुएं हैं और वस्तुओं का संचालन करने वाले नियम है
00:05:26कोई वस्तु भी अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित तो नहीं रखती है
00:05:33वस्तु भी जो पूरा कारणता का जाल है
00:05:40cause-effect network है
00:05:42उसकी एक छोटी सी नोड भर है
00:05:45जैसे जब एक बड़ा सा जाल बनाया जाता है तो उसमें गांट-गांट-गांट-गांट-गांट-गांट होती है न
00:05:51लेकिन सब गांटें दूसरी गांटों से जुड़ी होती है
00:05:56तो ऐसे ही जितनी भी वस्तुएं हैं
00:05:58वस्तुएं हमारे देखे हैं पर अभी हम ऐसे बात कर रहे हैं
00:06:00जैसे हैं
00:06:02तत्थिके तल पर बात कर रहे हैं
00:06:04पारमार्थिक तल पर नहीं
00:06:05तो जितनी वस्तुएं हैं
00:06:08इनमें से कोई भी स्वतंत्र नहीं है
00:06:10तो कोई भी जो वस्तु है वो ये नहीं कह सकती कि मैं करता हूँ, मैं डूर हूँ
00:06:17और कोई भी वस्तु सिर्फ ये भी नहीं कह सकती कि मैं करता नहीं हूँ
00:06:26क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है उसमें सब बराबरी से सम्मिलेते हैं
00:06:33एक घटना का जो effect है वो अगली घटना का cause है
00:06:40तो बोलो हम क्या बोलें cause है कि effect है
00:06:43जो एक जगह कारे रूप में प्रतीत होता है
00:06:50वो दूसरी घटना का कारण बन जाता है
00:06:53तो कहो हम क्या है हम कुछ नहीं है हम भाव के हिस्से भर है
00:06:56हम भाव के हिस्से भर है
00:06:59आरी बात समझो
00:07:01अब ये जो बहाव है
00:07:06इसमें वस्तुएं है
00:07:07प्रक्रतिकाही
00:07:10एक तत्व होता है
00:07:13अहम तत्व
00:07:14अहंकार
00:07:14प्रक्रति से बाहरगा नहीं है
00:07:16पर थोड़ा विशेश है
00:07:17किस अर्थ में विशेश है
00:07:17अब ये हम समझेंगे आगे
00:07:18प्रक्रतिक आई एक तत्व होता है अहम तत्व
00:07:22यह जितनी हमने वस्तुओं की बात करी है
00:07:25यह सारी बातें उसके देखें हैं
00:07:27उसके लिए हैं
00:07:29पौर्द एगो हैं
00:07:31कोई भी वस्तु
00:07:33अस्तित तो अपना सुतंतर नहीं रखती है
00:07:36एक तो इस अर्थ में कि वाकी सब वस्तुओं से
00:07:39जुड़ी होई है और दूसरा यह
00:07:41कि जितनी वस्तुओं हैं और किसी के
00:07:43लिए हैं
00:07:45किसके लिए हैं
00:07:47अहम के लिए हैं
00:07:48तो अहम जिन वस्तुओं से
00:07:51कुछ सरोकार रखता है
00:07:52उनका नाम हो जाता है विशय
00:07:54हैं हम सब वस्तूओं से सरोकार नहीं रखता लगबग वैसा ही जैसे
00:07:59प्रक्रते में जितनी भी वस्तूओं होती हैं वो सब वस्तूओं से
00:08:02अपना सरोकार तो नहीं रखती हैं और रखती भी यहां तो
00:08:05बहुत दूर का distant and oblique
00:08:10उसी तरीके से हम भी शायद सब वस्तों सरुकार रखते होंगे
00:08:17क्योंकि आप जैसे सरुकार रखर हो दूसरी से जुड़ी होई है
00:08:19तो इस तरीके से हम परोक्ष तरीके से
00:08:23इंडिरेक्टली शायद हम भी सब वस्तों सरुकार रखते हैं
00:08:27पर वो बहुत दूर की बात होती है, हमें नहीं पता होता, ठीक है ना, उदारण के लिए आप mobile phone चलाते हो, अब mobile phone में कोई rare earth element लगा हुआ है, ठीक है ना, mobile phone, rare earths होते हैं, कुछ elements होते हैं, उसके बिना उसकी जो पूरी circuitry है, वो पूरी नहीं हो सकती, उनकी कुछ खास electronic properties हो
00:08:57Jupiter से है, और आपका जो संबंध है, वो आपके दोस्त से है, दोस्त कहा है, phone में, तो आपका अगर आपके दोस्त से संबंध है, तो आपका Jupiter से भी संबंध हो गया, दोस्त से रिष्टा है, दोस्त phone में है, phone में rare earth है, और rare earth कभी इस प्रत्वी पर आये थे, जब किसी asteroid का bombardment ह�
00:09:27कि यहां स्क्रीन पर दोस्त दिखाई दे रहा है और हमको ब्रहस्पति याद आ रहा है तो दिक्कत हो जाएगी और दोस्त है तो कोई बात नहीं
00:09:33मिया बीवी का मामला हुआ और आपने कहा दिया शनीचरी क्योंकि जरूरी थोड़ी है कि जूपिटर याद आए सेटरन भी याद आ सकता है
00:09:46हमारा जिन वस्तुवों से प्रत्यक्ष संबंध होता है उनको हम कहते हैं विशय क्या कहते हैं विशय ठीक है
00:10:04जो कुछ भी आपकी अनुभव में आ रहा है उसके लिए यह पहला सूत्र है जो हमने आज कहा
00:10:11जो कुछ मेरे लिए है वो बस मन ही मन है मन के अतरिक्त कुछ नहीं है
00:10:17मेरी दुनिया में मन के अतरिक्त कुछ नहीं है और दुनिया में प्रक्रत के अतरिक्त कुछ नहीं है
00:10:23मेरी दुनिया में मन के अतरिक्त कुछ नहीं है
00:10:29और दुनिया में प्रक्रत के अतरिक्त कुछ नहीं है
00:10:34अब आगे की बात यह कि जो मैं है ये भी प्रक्रति है
00:10:38तो दो अलग-अलग नियम नहीं हो गए
00:10:40जो प्रक्रति वाला नियम था वो पर्याप्त था
00:10:42पर हम अंकारी लोग हैं तो मैं को जर अलग से बताना पड़ता है, कि मेरी दुनिया में मन के अतरिक्त कुछ नहीं है, मैं भी क्या है, प्रकृति का अपना एक सहज प्रवाहा है, वहां सब अपना अपना काम जानते हैं,
00:11:00इनसान जब नहीं भी था, तो चितना का कोई और रूप था और प्रत्वी पर और चीज़ें थी और वो सब चीज़ें अपना धीरे धीरे इवाल्व हो रही थी, वो हमारे करेस्थ हो नहीं रही थी, ना तो हमने कोई योजना प्लान ब्लूप्रिंट बनाया था कि साब ऐसे �
00:11:30जाने हो रहा था, हमारी इंटेलिजेंस से पहले कोई और इंटेलिजेंस काम कर रही है जिससे हमारी इंटेलिजेंस निकल के आई है, हम अपने आपको बड़ा बुद्धिमान प्रग्यावान बोलते हैं, पर हम जो बने हैं वो अपनी बुद्धी से तो बने नहीं है, लो�
00:12:00ना कि कोई है जिसने रचना करी है उपर कोई बैठा है जिसने रचना करी है वो ये सवाल पूछते हैं कि बताओ रचना पहले मुर्गी की हुई कि पहले अंडे की हुई इसलिए फिर सवाल में हम फस जाते हैं रचना नहीं हुई है विकास हुआ एवल्यूशन हुआ है धीरे
00:12:30कि ब्रह्मा विष्णु महेश सब जाकर के देवी के सामने नमित हो गए कि देवी बचाओ, अब ऐसे तो इतने बड़े बड़े हैं, मतलब समझो, ब्रह्मा विष्णु महेश इन तीनों का संबंध किस्से है, प्रभव, संचालन, प्रले, वाने पूरा अस्तित तो, वाने प
00:13:00प्रक्रति है, वो अपने नियम जानती है, और उसके नियम हमसे पहले के हैं, हमारे बाद भी रहेंगे,
00:13:11मनुष्य कोई इतनी बड़ी
00:13:16चीज नहीं हो गया
00:13:18कोई प्रजाति कोई इतनी बड़ी चीज नहीं हो गया
00:13:20कोई सुपरकॉंप्यूटर इतनी बड़ी चीज नहीं हो गया
00:13:23कोई एलियन इंटेलजेंस इतनी बड़ी चीज नहीं हो गया
00:13:25एलियन हो नॉन एलियन हो
00:13:26सब किसके अंदर आते हैं
00:13:28सब प्रकृति के अंदर आते हैं
00:13:30तो कोई बहुत बड़ी चीज नहीं हो गई
00:13:32बड़ी माँ
00:13:34सबकी माँ
00:13:35किसी को ये नहीं मानना है कि इससे
00:13:38बाहर का है
00:13:40ठीक है
00:13:41ठीक है तो प्रकृति को
00:13:43सदा ऐसे बताया गया है
00:13:45भगवत गीता में भी और बॉद्धमत में बड़े सुन्दर तरीके से कहते हैं कि नदी है
00:13:53प्रवाह नदी है ठीक है जहां पे सब अपने अपने हिसाब से बहना जानते है
00:14:01ठीक वैसे जैसे छोटा बच्चा जनम लेता है तो सांस लेना जानता है तुम्हें सिखाना नहीं पड़ता
00:14:06पानी उपर से नीचे को गिरना जानता है
00:14:10आप कहोगे जानता नहीं तो नियम की बात है
00:14:13वैसे आप भी जो कुछ कहते हो न कि जानते हो वो भी सिर्फ
00:14:15नियम की ही बात है आप जूठ मूट अंकार पाले होगे आप जानते हो
00:14:19जानते हो आनते कुछ नहीं हो
00:14:20खरगोष बात-बात में कांख़डा करना जानता है
00:14:24वो भी वैसी बात है कि से उपर से नीचे को गिरता है
00:14:27खरगोष आ कांथ नीचे को खड़डा हो जाता है
00:14:30वो प्रक्रति है दोनों को ऐसी भिन्यता नहीं है
00:14:32अब हम उस तत्त की और आते हैं
00:14:36जो ये सारी बातें कर रहा है
00:14:38हमने का प्रक्रते में एक विशेश तत्त होता है
00:14:41अपने लिए विशेश है अपर विशेश है
00:14:42वो जो ये सब बातें करता है
00:14:44वो जो प्रक्रते को देखता है
00:14:45वो जो प्रक्रते को देखता है
00:14:49जैसे प्रक्रति नहीं अपने दो हिस्से कर रखे है
00:14:51एक हिस्से में वो है
00:14:54जो देखता है संग्यान लेता है
00:14:56स्वयम को करता है दृष्टा
00:14:58ग्याता आदि बोलता है
00:14:59और दूसरे हिस्से में उसके
00:15:02दृष्ट विश्य आदि आते हैं
00:15:04यह सब पदार्थ आते हैं
00:15:06अब यह अपने आपको बोल थुरा है
00:15:11मैं ग्याता हum, द्रिश्टा हum, करता हूँ
00:15:13लिकिन यह है क्या प्रकृति
00:15:15और प्रकृति में कोई ऐसा होता नहीं
00:15:19जो ग्याता व्याता होता हो
00:15:21क्योंकि आप अगर किसी के ग्याता हो रहे हो
00:15:24तो आप उससे भिन्न हो गए
00:15:26ये नियम अच्छे से लिख लो, किसी से भिन हुए बेना उसको जाना नहीं जा सकता है, आप जिससे जुड़े हुए हो उसको कभी जान नहीं पाओगे, आपका जिससे रिष्टा है आप उसको कभी जान नहीं सकते हो, यही कारण है कि जब समंदों में आ सकते होती है तो बो�
00:15:56लेकिन अपने घरवालों के बारे में नहीं होते
00:15:57क्योंकि आप उनसे
00:15:59जुड़े हुए हो जिससे एक बार
00:16:01नाता जुड़ गया उसको जाना नहीं जा सकता
00:16:03तमबध्धता
00:16:07निर्भरता आश्रयता
00:16:10आसकते
00:16:10ये सब बोध के
00:16:13शत्रु होते हैं
00:16:15बुरी बात स्पष्ट
00:16:17तो लेकिन हंकार तो बोलता है
00:16:22मैं कौन हूँ
00:16:22मैं होशियार मैं जानकार मैं सब ज्यानता हूँ
00:16:26जैसे ही तुमने ये बोला
00:16:27और इस बात को इससे जोड़ो कि अगर तुम
00:16:29जिसको देख रहे हो तुम उससे
00:16:31जुड़े हो तो तुम जान नहीं सकते
00:16:33हंकार बोलता है मैं जानता हूँ
00:16:35तो कुल मिला के हंकार का दावा क्या है
00:16:37मैं अलग हूँ
00:16:38तुमने हंकार का दावा ये रहता है
00:16:41मैं प्रक्रते से अलग हूँ
00:16:43और उसके प्रमाण हमें अपने दैनिक जीवन में
00:16:45खूब मिलते हैं क्या प्रमाण मिलते हैं मेरा शरीर शरीर अलग है मैं मेरी आत्मा शरीर अलग है मुझे में एक आत्मा है और एक से एक सूर्मा निकले उन्होंने सही में आत्मा को शरीर से अलग बना लिया
00:16:58वो मानते हैं कि हाँ आत्मा कहीं बैठी होती है शरीर में प्रवेश करती है और शरीर से अलग है तो जब शरीर मरता है तो आत्मा ऐसे उडशू भी हो जाती है
00:17:10यह सब अहंकार की ही अभी व्यक्तिया है
00:17:13मैं तो प्रकृति से अलग हूँ
00:17:16तो मैं शरीर से अलग हूँ
00:17:17मैं इस से अलग हूँ
00:17:18मैं उस से अलग हूँ
00:17:19पचास तरीके से मैं तो अलग हूँ
00:17:20मैं हूँ
00:17:22हस्ती है मेरी
00:17:24पर मैं अलग हूँ
00:17:25हस्ती है पर मैं अलग हूँ
00:17:28अच्छा
00:17:28अब
00:17:33ये जो कहता है कि मैं अलग हूँ
00:17:37ये सच मुझ क्या हुआ फिर
00:17:38अगर वो कह रहा है कि मेरी पहचान ही है
00:17:41ये कि मैं तो प्रकृति से अलग हूँ
00:17:43मैं प्रकृति को भोगूँगा
00:17:45तहाब
00:17:48I landed on this planet one day and one day I'll depart
00:17:53तो मैं इस planet से
00:17:56अलग हूँ
00:17:57हमारी बात बात में यह मानता बैठी है कि नही बैठी है
00:18:01तहाब ये दुनिया तो � एक सराय है
00:18:04तुम आज आए हो
00:18:05ये ज़ल चले जाओहोगे
00:18:07इसमें क्या मानता बैठी है
00:18:08मैं दुनिया से अलग हूँ
00:18:11हम तो मुसाफिर है
00:18:13कुछ देर को आते हैं
00:18:15और फिर रुखसत हो जाते हैं
00:18:17क्या है वही सब है न
00:18:18तो
00:18:21ये जो कहे कि मैं अलग हूँ
00:18:25ये फिर क्या हुआ
00:18:26पहले नियमो बे आपस जाईए
00:18:31जो है वो सब
00:18:32अब है तो कोई प्रक्रते है पर कहे
00:18:35मैं नहीं हूँ प्रक्रते तो वो क्या हुआ
00:18:36वो मिथ्या हुआ फिर वो बुली हाविल कुसे
00:18:39वो फिर है ही नहीं
00:18:41वो फिर है ही नहीं
00:18:43तो अहम वो है जो है ही नहीं
00:18:45अहम वो है जो है ही नहीं
00:18:48क्योंकि उखेरा मैं प्रक्रति नहीं हूँ
00:18:50अगर तुम प्रक्रति नहीं हो तो फिर तुम हो ही नहीं
00:18:52तो सारा अध्यातम इसलिए है
00:19:04तो सारा अध्यातम इसलिए है
00:19:14ताकि प्रक्रति के जितने तक तो है
00:19:18वो अपनी अपनी सहजish स्थिते में
00:19:20आजाएं यह परिभाषा है
00:19:21ठीक है अब नदी का उधारण ले लिजिए जैसे दुर्गाश अप्चती में था
00:19:29कि अरे जितने असूर्थे सब जब मारे गए
00:19:31तो नदीयां अपना पुराना प्रवाह पुनह पा गई
00:19:36सूर्य की प्रवाह पुनह खिल गई
00:19:39वाईव अपने सहज वेक से पुनह पहने लगी यही था न
00:19:43माने जितने तत्तों हैं सबको प्रकृतिस्थ होना है
00:19:48यही उनकी सहज इस्थित्य है
00:19:50जैसे नदी बह रही है उसको तुम रोग दो बांध बना दो तो गलत कर दिया
00:19:54गलत के से अर्थ में नहीं दुख के अर्थ में
00:19:59अध्यात में एक ही चीज गलत होती है
00:20:01जो दुख धर्मा हो जो दुख देने वाली अर्था तो दुख द हो
00:20:08जो दुख द हो दुख देने वाली
00:20:12और बहुत मज़ेदार बात है जो दुखद होता है न वो दुखज भी होता है
00:20:19वो दुख को उत्पन्य भी करता है
00:20:22दुखद ही दुखज है
00:20:25उसपे विचार करिएगा आगे
00:20:39सबको अपने अगर सहज जगहे पर जाना है
00:20:42अंकार की परिभाशा क्या थी वो जो
00:20:46आपनी तो बोला था
00:20:50अंकार की क्या परिभाशा थी
00:20:52सबको अपनी सहज जगह पर जाना है
00:20:56तो अध्यात्म में फिर अंकार के लिए क्या होना चाहिए
00:21:00सबको सही जगह पर पहुँचाना ही अध्यात्म है
00:21:05नदी को उसके सहज प्रवाह में पहुचा दिया
00:21:07वायू को उसके सहज वेग में पहुचा दिया
00:21:11अहंकार की सहज इस्थिति क्या है
00:21:13ना हो ना तो अध्यात्मी यही है
00:21:16अहंकार को उसकी सही जगह पर बैठा देना
00:21:19अहंकार को प्रकृतिस्थ कर देना
00:21:25और प्रक्रति में अहंकार क्या है सतरज तम जैसे सब हैं वैसे तुम हो अलग कुछ नहीं हो तुम
00:21:31अलग कुछ नहीं हो तुम
00:21:35अहंकार प्रक्रतिस्त हो गया तो मर गया क्योंकि वो जिन्दा तभी तक है जब तक वो अपने आपको क्या मान रहा है
00:21:44अलग मान रहा है
00:21:46मैं कौन हूँ
00:21:46मैं तो इसका consumer हूँ
00:21:48मैं तब ही तक तो हूँ
00:21:51मैं अगर सीधे-सीधे मान लूँ कि
00:21:53ये तो प्रक्रति में एक क्रिया हो रही है
00:21:55तो हंकार नहीं बचता
00:21:56हंकार एक माननेता है न
00:22:01और क्या है वो
00:22:02कोई अपने आप में उसका कोई अलग
00:22:04अस्तित तो है नहीं वस्तित तो
00:22:06वो तो एक belief है
00:22:07superstition है इगो
00:22:09आरे बात समझ में
00:22:12तो ये मैं इसको पी रहा हूँ
00:22:14बहुत बढ़िया है
00:22:18और मैंने इसको पी डाला है
00:22:21और पीने से
00:22:23मुझे कुछ लाब हो गया
00:22:25मेरी अपूर्णता हट गए
00:22:26जो भी मेरी हिसाब किताब
00:22:28समझ में आ रही बात ये
00:22:33अहम माने
00:22:36प्रक्रति को सही जगह पर पहुँचा देना
00:22:40और अहम भी चूकी प्रक्रति है
00:22:42तो उसकी सही जगह ये है
00:22:44कि वो अपनी भिन्नता को
00:22:46ट्याग दे
00:22:48अस्विकार करते
00:22:49जूठा जो वो करता होने का
00:22:53रॉब लेके बैठा है
00:22:55श्रेय लेके बैठा है
00:22:57दर्प लेकर बैठा है
00:22:59उसको वो क्या जान ले
00:23:01विध्या है कुछ दम नहीं है
00:23:04प्रिकार
00:23:04यही अध्यात्म है
00:23:06तो अध्यात्म भी प्रक्रति के अंतरगति
00:23:10आता है क्योंगी सब कुछ तो ओ यह क्या हो गया सब कुछ प्रक्रतिक अंतरगत ही आता है अध्यात्म भी प्रक्रतिक अंतरगत आता है किसके लिए सारा अध्यात्म अहम के लिए है क्योंगी वही है जो स्वयम भी असहज है और कूद कूद करके
00:23:31बाकी सब तत्वों को भी असहज करता है
00:23:35इससे एक बड़ा पिलकुल रोचक निश्करश निकलता है
00:23:43अंकार जहां जितना होगा प्रक्रति की क्षति वहां उतनी ज्यादा होगी
00:23:47जो जितना स्वयम असहज होगा वो दुनिया को भी उतना असहज बना के मानेगा
00:23:55तो दुनिया अगर असहज हुई पड़ी हो तो उसको ठीक करने का तरीका यह है
00:24:03इनसान को सहज कर दो दुनिया अपने आप सहज हो जाएगी
00:24:08तो कि इतने यहाँ पर गुण भूत तत्त हैं प्रक्रति में
00:24:14पर नश्ट करने वाला यह कही है वो है मनुष्य होमो सेपियन्स
00:24:19बाकी सब प्रक्रति के साथ ही अपना बना के चलते हैं
00:24:25उनमें हंकार होता है पर इतना नहीं होता है कि मा को ही नश्ट करने पर उतर आएं
00:24:30अहंता की भावना तो एक कुत्ते में भी होती है और जो पिछली शताबदी में प्रयोग हुए हैं बो सिद्या दिये द्वारा और अभी और लगातार होती ही रहे हो बताता है कि एकदम न्यून तल का अहंकार तो पेड़ पौधों में भी होता है
00:24:49कोई पेड़ पौधा कभी प्रत्वी बर्बाद करता नहीं पाया गया जानुवर भी थोड़ा भहुत अपने आसपास के क्षेतर को अपने हिसाब से विवस्थित करते हैं बदलते हैं लेकिन वो कभी भी प्रक्रति को बर्बाद नहीं कर पाते
00:25:09क्योंकि प्रक्रति का ही एक तत्तो है जो उनके पास कम है दो तत्तो है जो उनके पास कम है एक हंकार एक बुद्धि मनुश्य के पास ये दोनों एकदम घातक प्रचुरता में है अहम भी और बुद्धि भी और श्री कृष्ण ने हम दे पहले क्या वता हुआ है बुद्धि क
00:25:39अहंकार के लिए है, मनुष्य अकेली प्रजाती है, जो स्वण निर्मित दुख में जीती है,
00:25:49कंपल्सिव एंड कल्टिवेटेड सफरिंग, प्रक्रतिनी नहीं दिये,
00:26:01एक खरगोश की मृत्ति हो रही होगी, एक मनुष्य मर रहा होगा,
00:26:05शारिरिक दर्द होता है, दोनों को एक समान हो रहा हो,
00:26:13खरगोश उसका गला काटा जा रहा है, मनुष्य उसका गला काटा जा रहा है,
00:26:16हो सकता है शरीर में दोनों के एक समान दर्द हो रहा हो,
00:26:18लेकिन दुख मनुष्य को कहीं कहीं ज्यादा हो रहा होगा
00:26:21बहुत ज्यादा हो रहा होगा
00:26:22खरगोश को शरीर में ही दर्द हो रहा होगा
00:26:26बें तहां दर्द हो रहा होगा
00:26:27पर शरीर में होता है
00:26:28मनुष्य के अर्मान भी कट रहे हैं
00:26:32अरे अभी इतने सपने पूरे नहीं हुए थे
00:26:35और एक सबसे बड़ी बात
00:26:38खरगोश को यह पता भी नहीं होता
00:26:40कि उसकी उम्र अधिक्तम 10-12 साल हो सकती है
00:26:43तो अगर वो 5 की उम्र में मर रहा है
00:26:45तो उसको यह नहीं आएगा कि अभी तो मेरी इतनी जिंदगी बाकी थी
00:26:48क्योंकि उसको यह पता ही नहीं है कि ओ 10-12 साल जीता है
00:26:51मनुष्य अगर 40 उम्र मर रहा है
00:26:55तो एक बात का उसे और भयानक दुख होगा
00:26:58अभी तो मैं सिर्फ 40 काओ मेरी इतनी उम्र बाकी थी
00:27:01जानवरों के पास आयू बोध होता ही नहीं है
00:27:04किसी जानवर को नहीं पता है कि उसकी अभी कितनी उम्र बाकी है
00:27:08मनुष्य को पता होता है
00:27:10उपना बढ़सड़े भी नहीं मनाते हैं
00:27:14उनी गिंते हैं सब
00:27:18तो हम अकेले हैं जनका स्वनिर्मित दुख है
00:27:23प्रक्रति ने नहीं दिया है
00:27:25प्रक्रति में पीड़ा हो सकती है
00:27:27वो पीड़ा भी रासाइनिक होती है
00:27:28इसलिए आप डॉक्टरों के पास जाओ तो आपकी पीड़ा हटा सकते हैं
00:27:31दुख नहीं
00:27:32आपके कहीं पर बहुत दर्द हो रहा है
00:27:36आप डॉक्टर के पास जाईए वहां कुछ लगा देंगे आपका
00:27:39आप आप
00:27:40ट्रेंक्युलाइज हो गए आपसे डेट हो गए
00:27:43आप सुन हो गए सम्वेद नहीन हो गए
00:27:45आपका दर्द चला गया
00:27:47पर हो सकता आप अभी भी बहुत रो रहे हो
00:27:49आप क्यों रो रहे हो दर्द तो चला गया
00:27:51दुख बाकी है
00:27:53जानवर उल्टा है जानवर के दर्द हो रहा था
00:27:57तो दानवर हो सकता है तड़प रहा हो आपने उसको कुछ लगा दिया
00:27:59उसका दर्द चला गया तो खुश हो जाएगा
00:28:01जानवर के पास बस दर्द होता है
00:28:19जंती नहीं है, दर्द हटा सकते हो, दुख कैसे हटाओगे, ज्यादा बड़ी समस्या क्या है, दुख, छोटी समस्या है, दर्द हटा लो, दर्द तो हटा देगी, दुख का क्या गरोगे, अब बताओ कैसा बनना है, दर्द नहीं है पर दुख है, या दर्द है पर दुख न
00:28:49दर्ध है, पर दुख नहीं है
00:28:52और जो संसारी होता है
00:28:56वो बहुत कोशिश करेगा
00:28:57रुपया पैसा कमायागा, कहेगा यह
00:28:59एकनोमिक प्रोग्रेस, टेकनलोजिकल प्रोग्रेस
00:29:01दर्ध अटा सकता है
00:29:03दुख नहीं अटता
00:29:05और इस बात का और दुख बढ़ जाता है
00:29:07कि दर्ध अटा दिया तो भी दुख नहीं अटा यह क्या हो गया
00:29:17कि अध्यात्म यह समझने के लिए है कि मैं पूरे तरीके से प्रक्रति मात्र हूं
00:29:30कि बड़ी नाजुक बात है
00:29:31रसी पे नहीं धागे पे चलने ऐसी बात है
00:29:38बड़ा इमांदार अवलुकन मांगती है और बड़ी निरंतरता
00:29:55सहज हो जाना ही लक्ष है
00:29:57सहजता ही मुक्ते है
00:30:00आपको महान नहीं होना है
00:30:05आपको बड़े बाबाजी नहीं बनना है
00:30:08महान नहीं बनना है
00:30:18आप सहजता कोई महानता मानते हो तो ठीक है
00:30:23पर लोकधर्म में महानता कुछ और होती है
00:30:25सहजता को नहीं महानता हो हमानते
00:30:26लोकधर्म की महानता कैसे होती है
00:30:29कौन करके दिखाएगा आप महान हो आप बताओ लोग धर में आप महान हो तो आप कैसे हो जाओगे
00:30:34एक कैट वोग करें दिखाई दो न एक महान आदमी कोई कैट तीन चाता लेकर उसके उपर चल रहे हैं
00:30:50एक ऐसे आगे उसके जाड़ू मारते हुए चल रहा है कि इनका धूल पर पाऊ नहीं पढ़ना चाहिए आठ दस लगे हो जैवाबाजी जैवाबाजी
00:30:58ये तो अंकार का और बिगड़ा हुआ रोप है ये तो ऐसा है कि जैसे बीमारी आपने असाध्य बना ली
00:31:11इसलिए खा करता हूँ कि लोक धर्म वास्तविक धर्म ये शुरुवाती अवस्था भी नहीं है वो ऐसा है जैसे वास्तविक धर्म को सड़ा दिया मार दिया जैसे लाश सड़ती है अब उसमें प्राण आप ये थुड़ी कहोगे लाश को देख करके कि लाश है ना धीर ध
00:31:41बीमारी फैलाएगी बात आ रही है समझ मैं
00:31:46सहज सहज माने अब फ्रीकृष्ण जो बोल रहे है वो ये है करमें इंद्रियां अपना काम कर रही है
00:32:03ज्याने इंद्रियां अपना काम कर रही है और अंतह करण अपना काम कर रहा है
00:32:13मैं कहीं नहीं हूं
00:32:16बहुत सुक्ष बात है मैं नहीं हूं जो हो रहा है सोता हो रहा है
00:32:27क्या मैंने बोला नहीं मैंने नहीं बोला अगर इसमें ममत तो था कर्त्रत तो था अहन्ता थी तो जो कुछ भी बोला दो कोड़ी का है
00:32:53बोल वही काम का है जो मैंने नहीं बोला
00:32:58कुछ हुआ
00:33:02क्या मैंने किया अगर मैंने किया तो बुरा हुआ
00:33:06कुछ हुआ अगर वो मैंने किया तो जो हुआ बुरा हुआ
00:33:11हाँ जो हुआ अगर वो किया नहीं सिर्फ हुआ तो बहुत बढ़ियां हुआ
00:33:19पर मैं कहा रहा हूँ बात बहुत सूक्ष में है
00:33:20क्योंकि ये बात उन पर भी लागू हो सकती है
00:33:24जिनका अहंकार पूरी तरह तामसिक हो गया हो
00:33:27उन पर भी लागू होती है जो गुणातीत निकल गए
00:33:32जो अप्रकृते का अपने आपको भोक्ता नहीं मानते
00:33:36पर उन पर भी लागव होती है जो एकदम तामसेख हो गए
00:33:38उधारन के लिए कोई बेहोशी में शराब पीए जा रहा है
00:33:42पीए जा रहा है कोई खाये जा रहा है
00:33:44या कोई किसी हो गाली बके जा रहा है
00:33:46या बहुत कोई क्रोध में है
00:33:48आप उनके भी अगर पास जाओगे उनसे पूछोगे कि क्या तुमने ऐसा किया तो कहेंगे किया नहीं हुआ
00:33:54अदालतों में ये खुब होता है तुमने फलाने को गोली क्यों मार दी
00:33:58तो बोलते हैं इट हैपन डिस्पाइट
00:34:02डिस्पाइट मैं रिस्पाइट अफ मी
00:34:08मुझे तो पता भी नहीं कैसे हो गया
00:34:12तो यहाँ पर भी ऐसा लगता जैसे अंकार की अनुपस्थिती हो
00:34:16जैसे कि जो हुआ बस हुआ नहीं अनुपस्थिती नहीं है वो तामसे का वस्था है
00:34:20सहजता माने सचमुच
00:34:30पैर चल रहे हैं मैं नहीं चल रहा
00:34:31तो पैरों को किसने बताया कि इसी दिशा में जाना है
00:34:35मैंने नहीं बताया, बुद्धी ने बताया
00:34:37प्यासा हूँ
00:34:41अनुभाव किसने करी प्यास मैंने नहीं करी
00:34:45शरीर के पास अपनी विवस्था होती है
00:34:48जब आप प्यासे होने लगते हो
00:34:50शरीर में पानी की कमी होती है, कुछ dehydration हो गया, तो अपने आप, जो आपकी, कुछ cells होती होगी, कुछ network होता होगा, वो brain को संकेत भेजता होगा, कि आप पानी की कमी हो रही है, मैंने नहीं किया, किस ने किया, वो शरीर के भीतरी जो तंत्र है, उसने ये मस्तिश्क को संकेत �
00:35:20की कमी हो रही है पानी पानी तलाश तो बुद्धि ने किस से जाके पूछा कि पानी कहां रहता है इस्मृति से जाके पूछा मैंने नहीं करा इसा अभी बुद्धि ने करा बुद्धि ने जाके इस्मृति से पूछा कि पानी कहां रहता है तो इस्मृति ने बताया पिछले
00:35:50बुद्धी ने मस्तिश्क को फिर बोला इधर की तरफ बिजली का बटन है दबाओ, तो मस्तिश्क ने किसको सक्रिय करा ,
00:36:01अब कर्मिंद्रियों को सक्री किया जाएगा
00:36:03अब कर्मिंद्रिय सक्री हुई तो हाथ बढ़ा ऐसे बटन दबाया
00:36:06रोश्नी हुई तो अब एक ज्ञानिंद्रिय सक्री होगी कौन सी
00:36:09आख
00:36:11उसने एका पानी तो रखा है
00:36:12उसने मस्तिश को बताया है पानी है
00:36:15मस्तिश ने फिर करमेंद्रिय को सक्रिय करा
00:36:17जब कौन सी वाली इस बार
00:36:19पाउ
00:36:20वो उठके गए वहाँ पर
00:36:23और उसके बाद ये लिया गया
00:36:26फिर उसमें जहवा आ गई एक और इंद्रिय
00:36:28गुटक लिया गया
00:36:31गुटक लिया गया
00:36:32कि भीतर की ववस्ता उसने मस्तिश को बता है
00:36:34बहुत हो गया और मत पिलाओ
00:36:35पेट फड़ जाएगा क्या गर रहे हो
00:36:37आप कहां हो
00:36:40आपकी कोई जरूरत
00:36:42आप इस पूरी ववस्ता में कहीं हो
00:36:44जीवन में आपके जो कुछ हो रहा है
00:36:46वो ऐसा ही हो रहा है
00:36:47जिस नहीं देख लिया वो मुक्त हो गया
00:36:49कोई ऐसा हो सकता है
00:36:53जो देख लिया कि ये जो उधारन था
00:36:55ऐसा ही जीवन में
00:36:57हर जगह प्रतिपल हो रहा है
00:36:58वो मुक्त है
00:36:59और कोई मूर्ख ऐसा हो सकता है
00:37:01जो इस उधारन में भी सोचे कि
00:37:03मैंने किया
00:37:03बहुत लोग कहिंगे
00:37:05मैंने बट्ती जलाई
00:37:06मैं उठा
00:37:07मैंने सोचा
00:37:08मैंने पानी पिया
00:37:08मैं फिर सो गया
00:37:09तुमने कुछ नहीं करा भाई
00:37:11अणूओं परमाणूओं का खेल है
00:37:14तुमसे बहुत
00:37:16पहले से माह है
00:37:17और ये सब मागियोस था
00:37:18तुम क्या कर रहे हो
00:37:19तुमसे 500 साल पहले भी ऐसे ही कोई उठा था
00:37:22उसने ऐसे ही पानी पिया था
00:37:23तुमसे 5000 साल पहले भी कोई ऐसे ही उठा था
00:37:25ऐसे ही पानी पिया था
00:37:26जानवरों को भी जब
00:37:28प्यास के अनुभूती होती है तो लबभग वैसे ही होती है
00:37:30यसे अभी तुम्हें हुई है तो तुमने विशेश क्या गर लिया है और आज से 5000 साल बाद भी किसी को प्यास लगेगी तो उसके ऐसे ही प्रक्रियाएं होंगी वो ऐसे ही पानी पियेगा तुम इसमें कहीं होई नहीं अब यह पानी का उधारण तो ठीक है
00:37:48पानी तक ठीक हो जाता है कि पानी पिया पर जब यही बात पिया किया जाती है तो नहीं मानेंगे कि वहाँ भी पानी है पानी पिया तो ठीक है पानी पिया पर जुन्नू पिया अब दिक्कत आ जाएगी मामला वहाँ भी बिलकुल यही है वहाँ भी शरीर ने मस्तिश को बता
00:38:18मृत्ति में जाओ हो जो तो खो जा किया दाया कॉलेज में होता था लफंगा पीछे पढ़ा रहता था आज कल का हैं फिर से दुबारा इस मृत्ति को सक्री किया गया पता करा यहां है वहां है फिर बत्ती जलाई गई और किसम की बत्ती जलाई गई मानलशादी.com वो भी एक �
00:38:48कहेंगे किया मैंने तै किया मैंने प्यार किया मैंने भी वहां किया यह सारी समस्या आ जाती है करने में समस्या नहीं है करने का श्रे लेने में समस्या है चलो करा सु करा यह देख तो लो कि तुमने कुछ नहीं करा सब हुआ
00:39:09और अगर तुम करने का श्रेय ना ले रहे होते
00:39:14तो जो हुआ उससे कुछ बहतर हो जाता
00:39:18जब भी तुमने कुछ किया तो जो हुआ सो बुरा हुआ
00:39:23अगर तुमने न किया होता तो होता तो तब भी
00:39:28ऐसा नहीं है कि तब जिंदगी में पिया नहीं आता
00:39:31पर अभी जो आया फिर उससे बहतर आता
00:39:33अध्यात्म वरजना नहीं करता
00:39:37कि अरे प्राकृतिक काम
00:39:39सारे त्याग दो लोगधर्म में यही चलता है
00:39:41सारे प्राकृतिक काम त्याग दो
00:39:42एक गुरुजी आये बोले हमने तीन साल से पानी नहीं पिया है
00:39:49बोले तुम क्या है तुम ना तुम्हारी कोई अवकात ना हैसियत तुमने तीन साल से पानी नहीं किया है तुमने सिर्फ पानी नहीं पिया है तुमने सिर्फ पानी नहीं पिया है हमने तो पानी पी पी के पेशाब नहीं किया है
00:40:09बताओ तुम बड़े कि हम
00:40:10माने प्राक्रतिक काम सारे त्याग दो
00:40:15लोकधर्म ये बन गया है
00:40:17और प्राक्रतिक काम त्यागे नहीं जा सकते
00:40:20अब समझ में आ रहा है लोकधर्म में इतना पाखंड क्यों चलता है
00:40:22इतना BTS क्यों चलता है
00:40:24BTS माने
00:40:25Behind the Scenes
00:40:27क्यों आश्रमों डेरों में इतनी उची उची दिवारे होती है
00:40:31क्योंकि Behind the Scenes करना बड़ेगा
00:40:34क्योंकि लोकधर्म की बुनियाद ही यह है कि हम कुछ ऐसा कर रहे हैं
00:40:38जो प्रक्रतिक में संभव नहीं है
00:40:39क्योंकि मैं भगवान का अशिर्वात प्राप्त है
00:40:41तो हमारे हाँ चमतकार होते है
00:40:42हमारे हाँ तैसा हो रहा है जो प्रक्रति में होई नहीं सकता
00:40:45इसलिए समझ में आएगा कि क्यों लोकधर्म को
00:40:48वैग्यानिकों से, खोजियों से, चिंतकों से
00:40:51और डॉक्टरों से बड़ी नफरत होती है
00:40:53वो इनका श्रेय कभी नहीं देते
00:40:56बावाजी बिलकुल डॉक्टरों के भरोसे जिन्दा होंगे
00:41:00पर कहेंगे डॉक्टर के भरोसे नहीं जिन्दा है भगवान का शिरवाद है
00:41:03कृतगनता की सीमा हो गई नहीं है इन ग्रैटिचूड की सीमा हो गई की नहीं हो गई
00:41:09एहसान फरामोशी इसको भी बोलते न
00:41:11जिन्दा हो medical science के भरोसे
00:41:13और क्या क्या रहो
00:41:15क्योंकि लोकधर्म की
00:41:21बुनियाद ही यही है
00:41:22कि प्रक्रति से
00:41:26किसी तरह से लड़के रहना है
00:41:27प्रक्रति को
00:41:29उसका श्रिय ही नहीं देना है
00:41:31प्रक्रति के विरुद्ध जाना है
00:41:34बाल उगते हैं तो सारे बाल
00:41:37छील दो
00:41:38हम नहीं कह रहे हैं कि
00:41:48उसको खूब तुम तड़का लगा के खाओ
00:41:49और उसमें घी तेल खूब होना चाहिए
00:41:51पर बहुत सारे तो ऐसे हैं जो
00:41:53जान बूज करके ऐसा भोजन करते हैं
00:41:56कि कुट्य उखला दो तो उल्टी कर दे
00:41:58करते इसी से तो सिद्ध होता है
00:42:02कि हम कितने धार में कादमी है
00:42:03प्रक्रति के विरुद्ध जाना धर्म नहीं है
00:42:13और प्रक्रति के विरुद्ध तो
00:42:15जाया भी नहीं जा सकता
00:42:19इसलिए जब भी तुम बोलोगे कि तुम प्रक्रतिके विरुद्ध जा रहे हो, तुम सिर्फ क्या कर रहे हो, यह अच्छे से गांट बांध लो, किसी के सच्चा ही भले न पता चल सकती हो, पर किसी का पाखंड तो इस एक बात से ही पकड़ा जा सकता है, किस बात से, वो बोल
00:42:49पर आप होते हूँ, सुपर नैचुरल हूँ, यहां कुछ सुपर नैचुरल, जूट को पकड़ने का बहुत साधारन तरीका है, जादू और चमतकार, जहां चमतकार पाओ, वहां जान लेना धर्म नहीं है, प्रक्रत में चमतकार, और समस्या यह है कि दुनिया के जादा त
00:43:19संत की पदवी ही आपको तब तक नहीं दी जाएगी जब तक आपको चमतकार करके न दिखा दो, और चमतकार का अरतिय ही होता है, सुपर नैचुरल, प्रक्रत से अतीत, प्रक्रत से आगे, जो हो नहीं सकता, प्रक्रत के नियमों में, पर हमने करके दिखा दिया, छू करके
00:43:49आँ ये तो आप सोच रहेंगे कि कल खाने में भिंडी बनाएंगी नहीं हो सकता तो नहीं हो सकता
00:43:59या कि चेरा जी को पकड़ा बाबा जी बैठें बढ़िया भीतर एकदम सफेद वस्तर धारान करके
00:44:13कितने साल पुरान हैं बाबा जी ये पुराना चुटकुला है सुनाओगा बहुत चलता है बाबा जी कितने साल पुरान है
00:44:21बोल रहा है क्या नहीं सकते हैं बता नहीं सकते हैं कुछ पता नहीं है इनका बख्रते से पहले से हैं
00:44:31बोले फिर भी कुछ बताईए तो बोले कम से कम 400 साल बोले आप कुछ कह नहीं सकते तो 400 साल क्यों बोल रहे हो
00:44:44बोले नहीं 400 साल थे तो हम इन्हें देख रहे हैं न शार साल तो हमारी उमर है
00:44:49तब से इनको देख रहे हैं तो
00:44:51greater than equal to 400
00:44:54वहां पर शत्षत नमन्वत करने लग जाना भग जाना और हो सके तो
00:45:02FIR करना न जाने कितनों को बचा लोगे
00:45:05आरे यह बात समझ पर वास्तविक धर्म में चमतकार के लिए किसी पराभौतिक घठना के लिए
00:45:18कोई स्थान नहीं है
00:45:22बहुत साफ साफ जोर दे करके समझा रहे हैं श्री कृष्ण गीता में आप इसको गीता का मर्म भी बोल सकते हो
00:45:29जो हैसो प्रक्रते मात्रा और वहां कोई अपवाद नहीं होते
00:45:34वो सबकी माँ है
00:45:35वो इश्वर की भी माँ है
00:45:38जानते हो ना ब्रहमा को भी मरणशील माना गया है
00:45:47जिन्होंने ब्रहमा आदिकी भी बात करी उन्होंने सोयम ही बोल दिया कि ये ब्रहमा भी
00:45:52जब समय की जो पूरी अधारणा है उसमें ब्रहमा भी मरते
00:45:57और सहाब तो गाई गए है क्या गाई है दिवेश जी सुनाएंगे
00:46:06कोटी देवता मरते हैं
00:46:0733 कोटी देवता मरेंगे वोले सब मरते हैं ये
00:46:12सब प्रक्रति के अब प्रक्रति में तो
00:46:22सहज होना ही मुक्ति है
00:46:34महान नहीं होना है
00:46:40बाबाजी नहीं होना है
00:46:41कुछ ऐसा करके नहीं दिखाना है
00:46:43जो एकदम निराला हो
00:46:44उल्टी बात है
00:46:46निर्विशेश हो जाना है
00:46:48एकदम सहज
00:46:51एकदम साधारण
00:46:54जैसे सागर में बूंद
00:46:57जिसका कोई प्रथक अस्तित तो हो ही न
00:47:00एक हूँ बिल्कुल
00:47:01अलग नहीं हो
00:47:03कुछ विशेश नहीं है
00:47:05सागर की बूंद में बाकी बिंदो
00:47:07क्या पेक्छा कुछ विशेश होता है क्या
00:47:08तो वैसा हो जाना
00:47:11लेकिने बात फिर खतरनाक है
00:47:14जुन्न सुनेगार कहे गई
00:47:18तो मीडियोक्रिटी को
00:47:19आज पहली बार इन्होंने
00:47:21स्विकार करा, एंडॉर्स करा है
00:47:23इन्होंने कहा है कि अध्यात्म का
00:47:25मतलब ही है पूरे तरीके से औसत हो जाना
00:47:28मीडियोकर हो जाना
00:47:28कुछ और बात हो रही है
00:47:31बहुत आगे की बात हो रही है
00:47:32इसलिए पहले अध्याय में नहीं थी बात है
00:47:34अब जाए के हो रही है
00:47:36अभी भी खतरनाक है
00:47:43क्या है आधी राट को पिज़ा काई खा रहा है
00:47:45सहज
00:47:45वो समत करने लग जाना
00:47:58उसी बात से डरता था इसलिए धाई साल तक वो बात करी नहीं
00:48:02पर मैं क्या करूँ अब स्वयम कृष्ण हमें वहां तक ले आये हैं जहां वो बात करनी पड़ेगी न करूँ
00:48:07तो आपको यह समझाया नहीं जा सकता श्लूक
00:48:10क्रिश्ण कह रहे हैं कि जो तत्वग्य होता है युक्त मुक्त वो देखते हुए सुनते हुए इसपर्ष करते हुए सुंगते हुए स्वाद लेते हुए आते हुए जाते हुए सोते हुए जगते हुए बात करते हुए सांस लेते हुए त्याकते हुए ग्रहन करते हुए आ�
00:48:40उठ रहा है, बैठ रहा है, खा रहा है, पकड़ रहा है, छोड़ रहा है, देख रहा है, देख रहा है, और यह जान रहा है कि यह सब कुछ मैं नहीं कर रहा है, यह सारा काम तो प्रकृति कर रही है.
00:48:51क्लाइमेक्स है यह
00:48:57पर यह बात मैं लगभग
00:49:01हर तीसरे इस लोग के लिए बोलता हूँ
00:49:02मैं क्या करूँ
00:49:04सब ऐसे ही है
00:49:06वो सब एक से ही है
00:49:08तुम्चहारी बात
00:49:15ऐसे हो जाओ
00:49:16वो यह नहीं कह रहे हैं कि तुम भी ऐसा कर रहे हो
00:49:19ध्यान से समझना
00:49:20वो कह रहे हैं जो तत्वग्य होता है
00:49:23वो ऐसा हो जाता है
00:49:25आप पहले तत्वग्य हो जाओ
00:49:26तत्वग्य माने कौन सा तत्व जानना है
00:49:28पिरियोडिक टेबल नहीं जानना है
00:49:30आत्म अवलोकन से आत्म ग्यान
00:49:34जो आत्म ग्यानी हो तत्वग्य को आत्मग्य समझी
00:49:37क्योंकि अहम भी प्रक्रदिगाई तत्व ही है तो तत्वग्य जो कहा है पाने आत्मग्य स्वयम को जानने वाला जो स्वयम को जानने लग जाता है वो ऐसा हो जाता है उसको नहीं पता होता एक अर्थ में क्यों कर क्या रहा है क्योंकि वो तो कर नहीं रहा है तो उसे पूछ
00:50:07कुछ किया क्या मैंने हम से कहा कुछ हुआ बहुत कुछ पर हमने जो नहीं है उसके माध्यम से जो होता है वो फिर बहुत शोब होता है
00:50:27बार बार सुना करते हो ना अर्जुन निमित मात्र निमित कारण तुम निमित हो जाओ तुम कर नहीं रहे तुम्हारे माध्यम से हो रहे
00:50:38जन में बास का बड़ा महत्त होता है जापाने पाया भी बहुत जाता है बैंबू
00:50:48क्यों होता है
00:50:52पूला होता है पूला
00:50:57उसके बीच से वा भेह जाती है रुकता नहीं
00:51:02जो हो रहा है उसके माध्यम से हो रहा है
00:51:05भारत में उसी बास से संबंदित एक बड़ा सुरीला हमारे पास प्रतीक है
00:51:13बासुरी
00:51:16तो वहाँ तो इतना ही है कि इसमें से बह गई
00:51:19यहां कहते हैं नहीं बहा ही भर नहीं है ऐसा बहा है कि संगीत पैदा हो गया
00:51:24दोनों में मूल बात है वो है निर विरोध होने की प्रकृति का विरोध नहीं है
00:51:32ये नहीं करा कि हवा बहना चाह रही थी और बास ने उसको बीच में का
00:51:36हवा बहना चाह रही है और बास ने बहने दिया
00:51:41कृष्ण की बासूरी जैसे कृष्ण की बासूरी इस पाचवे अध्याय का प्रतीक हो
00:51:49जीवन में संगीता अत्मक्ता उसी अविरोध से आती है
00:51:58नौन रेजिस्टेंस
00:52:01पर नौन रेजिस्टेंस सिर्फ उसके लिए जो तत्वग्य है
00:52:10इसलिए मैं आपसे कहता हूँ आप आत्मग्यान पकड़के रखो
00:52:13यह सब आगे फलित होता है इस होता ही
00:52:15यह सब आत्मग्यान के फल है
00:52:17आज भी इस लोक में सबसे पहले कृष्ण शर्ट क्या रख रहे हैं
00:52:21यह सब किसके लिए बात
00:52:22तत्वग्य के लिए
00:52:24तो तत्वग यह नहीं हो तो यह सब बातें आपके लिए बस बातें
00:52:27आत्मग्यान जो अपने आपको जानने लग जाता उसको दिखाई देता है
00:52:32मैं तो पूरे तरिगे संस्कारेत हूँ, प्रक्रते हूँ, भावों पे चलता हूँ
00:52:36जिसको मैं अपनी हस्ती बोलता हूँ, वो तो इधर उधर से पचास चीज़ें जोड़ा हूँ
00:52:42एक मामला है, उसके कोई अपनी मौलिकता नहीं है, उसके बात फिर वो
00:52:47आप समझ में आ रहा है कि लोगधर्म कितनी नकली चीज़ है
00:52:51अब समझ में आ रहा है कि हमने घर में, बाजार में, दिवालेओं में, कितने गलत जगह पर सम्मान स्थापित कर दिया
00:53:04हमने सब उन लोगों को सम्मान दिया जो प्रक्रति विरुद्ध चले
00:53:15महराजी सोते नहीं, दो महीने नहीं सोते
00:53:19आप जाके किसी डॉक्टर से पूछो के अगर दो महीने सचमुच नहीं सोया है
00:53:26तो बहुत खतरना आगे तुरंत इसको तुम पैगल खाने में डालो
00:53:28ये इतना बावला हो गया होगा अगर दो महीने सचमुच नहीं सोया है
00:53:33कि किसी की भी हत्या कर सकता है
00:53:34वैसे दो महीने न सो के जिन्दा रहना संभव नहीं है
00:53:37कोई बोले दो महीने खाना नहीं खाया है और जिन्दा है ये संभव हो सकता है फिर भी
00:53:42पर दो महीने अगर कोई सोया नहीं है और जिन्दा है ये संभव है नहीं
00:53:49पर चलता है
00:53:50प्रक्रतिके विरुद्ध जाना और पाखंड करना ये दोनों बिलकुल एक बात है
00:54:00तो आप पूछेंगे फिर साधना माने क्या होता है
00:54:03साधना का अर्थ होता है प्रक्रतिके विरुद्ध तुमने जो जो आयोजन कर रखे उनको गिराना यही साधना है
00:54:09प्रक्रतिके और ज़्यादा खिलाफ जाने को साधना नहीं बोलते है प्रक्रतिके तुम पहले ही बहुत खिलाफ को अपनी खिलाफत को अपने विरोध को हटाने को साधना बोलते है
00:54:28तो आप कहेंगे इसका मतलब ही है कि
00:54:35भूख लगी है तो खा ले
00:54:36हाँ इसका मतलब है भूख लगी है तो खा ले
00:54:39और इसका मतलब है उतना ही खा ले जितनी भूख लगी है
00:54:41दोनों बातें याद रखो न
00:54:44कोई जानवर भूख से आदा नहीं खाता
00:54:46आप सोचते हो कि भूख लगी तो खा लेंगे तो जानवर हो जाओ कि गलत बात है आप जानवर से गिरे हुए हो
00:54:52क्योंकि जानवर बिलकुल भूख लगने पर खाता है पर जितनी भूख है उतना ही खाता है
00:54:56तो बिलकुल अध्यात में यही कहता है भूख लगी है तो
00:55:01पर उतने ही खालो जितनी
00:55:04हम उतने ही नहीं खाते इतनी भूख लगी है
00:55:06हम उतना खाते इतना अहंकार कहता है
00:55:08जानवर के हंकार बहुत कम है
00:55:10वो अहंकार वश नहीं खाता है
00:55:12वो भूख वश खाता है
00:55:13वो पेट वश खाता है वो प्रक्रते वश खाता है
00:55:16हम प्रक्रते वश नहीं खाते हैं
00:55:18हम विक्रते वश खाते हैं
00:55:19बिलकुल अध्यात्म कहता है
00:55:21जब भूख लगे खालो पर उतने ही खाना बिटा
00:55:24जितनी भूख लगी है उस स्यादा मत खाले न
00:55:27क्योंकि उस स्यादा खाऊगे तो प्रक्रति के
00:55:28विरुद्ध चले गए
00:55:30जब नीन लगी है तो सो ले इसका मतलब
00:55:33कभी भी सो जाए हाँ
00:55:33जब नीन लगी तो सो जाओ पर उतना ही सोना
00:55:36जितनी की शरीर को जरूरत हो
00:55:38ऐसा तो नहीं कहीं डिप्रेशन में सोई पड़े हो
00:55:41और डिप्रेशन इसलिए पकड़ा क्योंकि कामना है पूरी नहीं हो रही थी
00:55:45डिप्रेशन इसलिए आ गया क्योंकि चचेरे भाई
00:55:48को कनेडा का वीजा लग गया
00:55:50और अब तुम दिन में बारा घंटे सोते हो कि हाई हाई
00:55:56मैं ही रह गया
00:55:57बिल्कुल जब नीन लगे तो सो लो पर उतने ही सो जितने की खरीर को जरूरत है
00:56:03बात आ रही है समझ में
00:56:09अब उस पे आते हैं जिस पो लेकर के लोकधर्म बिल्कुल असाहज हो जाता है
00:56:15जैसे कि आज कम्यूनिटी पे आप वो चर्चा कर रहे थे
00:56:19कि प्रदेश में आग्या लाग हुई है कि एक भी
00:56:25जेंट्स टेलर नजर नहीं आना चाहिए
00:56:28जो महिलाओं के कपड़े से ले
00:56:31इनको सबको भगाओ
00:56:33विमेन कमीशन ने
00:56:36ये संस्तुते करी है
00:56:39रिकमेंडेशन है
00:56:41कि जितने जेंट्स टेलर बंद करो
00:56:43और तो एक कपड़े सीते हैं
00:56:46तो ये
00:56:46उनको छूते हैं
00:56:50विसी तरीके से ये जितने भी
00:56:51सलून में महिलाई जाती हैं वहाँ एक भी जेंट्स नहीं होना चाहिए
00:56:54ये महिलाओं के बाल वाल छूते हैं
00:56:56कंदे अंदे ये घड़बडबात है
00:56:58तो मैंने सोचा कि फिर
00:57:01उन जेंट्स डॉक्टर्स का क्या होगा
00:57:04जो महिलाई पेशेंट्स को देखते हैं वो तो हर तरीके से चूते हैं
00:57:07फिर मुझे अपना खयाल आया
00:57:10मेरी तो डॉक्टर यहीं बैठी हुई है आज
00:57:12यह भी तो मुझे सीधे मूँ खुलवा करके
00:57:16फिर यह सब भी बंद होना चाहिए
00:57:19मामला एकी तरफ का थोड़ी होगा कि
00:57:21जेंट्स लेडीज को नहीं चू सकते
00:57:24फिर लेडीज भी जेंट्स को नहीं चू सकती
00:57:25यह सब वही है लोकधर्म प्रकृति के विरुद्ध जाना है
00:57:31क्योंकि जिस चीश से लोकधर्म सबसे ज़्यादा डरता है वो है देह
00:57:35सबसे बड़ा पाखंड देह को लेकर होता है
00:57:39और देह में भी किसको लेकर सेक्स
00:57:41लोगधर्म को सबसे ज़्यादा डर इसी से लगता है
00:57:48पागल रहता है सेक्स और इसलिए महिलाओं से बहुत डरता है लोगधर्म
00:57:51भयानक डरता है इसलिए लोगधर्म महिलाओं को कैद करने की हर संभव कोशिश करता है
00:57:55क्योंकि प्रकृति ने कुछ ऐसा संतोलन बनाया है
00:58:02कि सिक्स की तीवरता ज्यादा पुरुषों में पाई जाती है
00:58:07और भारत नहीं दुनिया भर की बात है
00:58:11महिलाएं उतनी ज्यादा उतेजित या बावली नहीं पाई जाती है
00:58:15इतना पूरुष पाये जाते हैं, यह प्रैक्रत एक चीज है, इसमें कोई, किसी एक अश्रय यह नहीं है,
00:58:22तो महिलाओं को अलग रखो नहीं तो,
00:58:26तो लोग धर्म फिर पूछेगा, अच्छा आप कह रहे हैं सहज हो जाओ,
00:58:32तो मतलब सहज ही सेक्स भी कर लो,
00:58:34तो वास्तविक धर्म जवाब देगा, हाँ, पर उतना ही कर लो, जितना सहज है,
00:58:43उतना ही जितना सहज है,
00:58:48उतना नहीं कि कामी नर, कुत्ता सदा, छे रितु बारा मास,
00:58:53कामी कुत्ता एक दिन, अनतर रहे उदास,
00:58:59प्रक्रति के साथ अगर चलोगे,
00:59:01तो जैसे पशु होते हैं, कि जब उनका सीजन आता है,
00:59:06तो थोड़ा से हवास कर लिया, बाकि उन्हें नहीं मतलब होता बहुत ज़्यादा,
00:59:11मनुष्य ने अपनी सेक्शुलिटी को, कामुक्ता को इतना दबाया है,
00:59:15कि मनुष्य निरंतर निरंतर कामुक रहता है,
00:59:18क्योंकि लोकधर्म ने कराई यही है,
00:59:21suppression of sexuality,
00:59:22तो फिर कामी नर, कुता सदा,
00:59:24छे रुत बारा मास,
00:59:27और हम कुत्ते को कहते हैं,
00:59:28कुत्ता देख, कुत्ता है, सेक्स में कुत्ता बन गया,
00:59:30कुत्ता क्या बन गया, कुत्ता तो बहुत कम सेक्शुल होता है,
00:59:32कुत्ते से कहीं ज़्यादा सेक्शुल तो इंसान होता है,
00:59:36जब कुत्ते का सीजन न चल रहा हो,
00:59:38तुम उस वक्त उसको उतेजित करके दिखा दो,
00:59:39वो हो गई नहीं,
00:59:41वो गएगा भईया, यह सब,
00:59:42अभी मा का आदेश नहीं आया है,
00:59:45जब सही महीना आएगा,
00:59:46तब हम देखेंगे, अभी कुछ नहीं,
00:59:48सोने तो भाग यहां थे भौँ,
00:59:52अकामी नर कुत्ता सदा,
00:59:54चैरे तु बारा मास,
00:59:56बारा महीने आदमी का बच्चा,
00:59:58वो सेक्स के ही ख्याल देता रहता है,
01:00:01यह प्रक्रते के विरोध का नतीजा है,
01:00:06यह हमने करा है,
01:00:07शुचिता, चेस्टिटी, वर्जिनिटी के नाम पर,
01:00:11इससे क्से खोपड़ा विल्कुल भर गया है,
01:00:15और भूख को दबाने का हमें इतना,
01:00:19प्रशिक्षन मिला,
01:00:21क्या बाजार में निकल जाएए,
01:00:22तो आधी दुकाने खाने पीने की सामान की होंगी,
01:00:25और दुनिया इस वक्त मर रही है,
01:00:28इसलिए नहीं की खाने को कम है,
01:00:29इसलिए की खाने को बहुत ज्यादा हो गया है,
01:00:36आज आप अगर जाते हो दिल की बीमारी लेके,
01:00:39या पेट की बीमारी लेकर के,
01:00:42तो उसकी ज्यादा बड़ी वज़ा ये नहीं होती,
01:00:44कि खाने को बहुत कम है
01:00:47उसकी ज्यादा बड़ी वज़य होती है
01:00:48कि खाने को आज बहुत ज्यादा हो गया है
01:00:50ये प्रक्रते के विरोध का नतीजा है
01:00:52क्योंकि सेक्स के बाद अगली चीज
01:00:55जो प्रक्रते में आती है वो क्या होती है
01:00:57भूख
01:00:58तो जैसे हमने सेक्स को दबाया वैसे हमने भूख को भी खूब दबाया नतीजा ओबीसिटी
01:01:03नतीजा सारी खाने की बिमारियाँ
01:01:06डियाबिटीज हो, कार्डियक बिमारियाँ हो, हाइपरेटेंशन हो, यहां तक की अर्थराइटिस
01:01:12कुत्ता, आप जाएंगे अगर वैट्स के पास, कुत्तों को अर्थराइटिस हो रहा है
01:01:19कौन से, जंगली कुत्ते नहीं, घरेलो कुत्ते
01:01:22उनको हम, सब लोगधर्म वाले अपनी ममता में तो मेरा बेबी है
01:01:29उनको इतना खिला देते, इतना खिला देते, उनका वज़न इतना बढ़ जाता है
01:01:33कि उनके पाउं की हड़ियां समभाल नहीं पाती है, कुत्तों को अर्थराइटिस
01:01:38कुत्ते चल नहीं पा रहे हैं
01:01:42क्योंकि हमने खाने को बहुत बड़ी चीज बना दिया
01:01:48क्या, देखो फलाने रिशी थे, उन्होंने इतनी दिन आहार नहीं किया
01:01:51जिस चीज को तुम कह दोगे कि फलानी चीज का आहार न करना बड़ी बात है
01:01:55तुम उसी चीज में पाऊगे कि तुम अब पूरी तरह डूपते जा रहे हैं
01:01:58तुमारी सारी कामना उस तरफ को चली जाती है
01:02:00पराने रिशी ने इतनी दोग आहार नहीं किया
01:02:04और आप उन धर्मों को देखिए जहां आहार की सबसे यादा पाबंदी है
01:02:07वहां सबसे यादा मोटे लोग पाए जाएंगे
01:02:09और वह सबसे यादा चटपटा भोजन भी कर रहे हैं
01:02:12गुदारण की जैन
01:02:13या कि हमारे याँ जो व्यापारी वर्ग होता है बनिया
01:02:20अब भूँच चलता है
01:02:24यह से जैनों में रहता है न खाने पीने को थोड़ा अलग रखो
01:02:27वैसे ही वैश्णवों में खूब यह चलता है
01:02:31यह निखाना वो निखाना और आप वहाँ जाईए तो इतनी सारी नमकीन
01:02:35इतना चटपटा जैन शकंजी भंडार जैन शकंजी भंडारी क्यों
01:02:39मैं लोकधर्म की बात कर रहा हूँ
01:02:46मैं आप भली भाते जानते हैं
01:02:49यती रिथंकरों का बड़ा अनुयाई हूँ
01:02:52मैं लोकधर्म की बात कर रहा हूँ
01:02:55मैं बात कर रहा हूँ कि आज के जो लोग हैं
01:02:57वो धर्म का किस प्रकार वेवहार अभ्यास कर रहे हैं
01:03:00तुम जबान को जितना दबाओगे तुम चटपटे की और उतना भागोगे
01:03:05जहां जहां भोजन को लेकर के जितनी ज्यादा वर्जनाई रखी गई
01:03:15वहां उतना ज्यादा चटपटा, मसाला, मिर्च ये चलेगा
01:03:18अरश में आ रही बात ही है
01:03:30जहां कहीं तुम ये कर दोगे कि एक वर्ग है वो अपने शरीर को पूरा ढखके रखे
01:03:35वहां उतनी ज्यादा sexual psychosis फैल जाएगी
01:03:41उधारन के लिए अरब देशों में
01:03:44जेलों में AIDS के इतने मामले आते हैं, पूछो क्यों
01:03:48समलैंगिकता खूब फैल जाती है वहां पर
01:03:51क्योंकि वहां अपने sex एकदम वर्जित ही कर दिया आप
01:03:55पड़े हुए हो कोई महिला तो है नहीं और महिलाई है तो कोई
01:03:58पुरुष तो है नहीं
01:03:59तो फिर homosexuality होती है और फिर उसमें
01:04:04पूरी जेल में एक कोगर HIV था तो फिर सब को लगता है
01:04:06जिस चीज को तुम दबाओगे वो चीज भयानक विस्फोर्ट के साथ फूटती है फिर
01:04:17और यहीं काम लोग धर्म करता है
01:04:20अहिंसा समझे बिना लोगों को अहिंसक बनाओगे तो भयानक हिंसा होगी
01:04:30प्रेम समझे बिना लोगों को प्रेम सिखाओगे तो कुरूर हो जाएंगे
01:04:37दान समझे बिना लोगों को दान सिखाओगे तो लालची हो जाएंगे
01:04:49मुक्त समझे बिना लोगों को मुक्त बताओगे तो और बंधन में फिस जाएंगे
01:04:54कुछ नहीं बताना होता
01:04:59इसलिए लाउज़ू ने कहा कि इन सब शब्दों को कीमत नहीं है
01:05:02तता तुम्हें इन शब्दों को छोड़ना पड़ेगा अगर सहज होना है
01:05:05तो सहाब बोले साध हो सहज समाध हिभली
01:05:07बाकि जितनी ये सीखी सिखाई बातें होती है न
01:05:11ये सिर्फ पाखंड पैदा करती है और कुछ नहीं
01:05:13सीधा सरल साधारन जीवन जीओ
01:05:15पर ये सीधा सरल साधारन है ये बहुत
01:05:17अगर इतनी आसान बात होती तो मैंने पहले ही आपको सतर में बोल दी होती
01:05:21मैं आपको सीधा सरल साधारन बोलूँगो तो आप कहेंगो तो मैं
01:05:25तो बात उतनी सीधी सरल साधारन भी नहीं है
01:05:30साधारन होना बड़ा असाधारन काम है
01:05:33ordinary होना बड़ा
01:05:36बनना ordinary है पर जो ordinary बन जा है वही extraordinary है
01:05:40यही गड़बड़े बात अब कैसे समझाओं
01:05:51महान वो है जिसे महान
01:06:00और कौन महान नहीं है बिलकुल बदकार है जलील है
01:06:06गिरा हुआ है कैसे पहचाने
01:06:09जिसमें तुमने एक बार महानता की भूख देख ली
01:06:12जान लो कि बिलकुल गिरा हुआ आदमी है
01:06:14ये बहुत विवहारिक बाते हैं
01:06:19इनको पकड़ के रखी है, जो नाराज हो जाए, हाँ नमन नहीं किया, हमें शक्षत नमन करो, बड़े आचारे जी हम, पाउनी छूरा तू, ये क्या दर रहे है, जान लूँ ये जलील आदमी, भूल अभी तो थिर नमन नहीं किया, चप्पल से मारूँगा, भाग यहां से, �
01:06:49पानी गिर रहा था, लोगों ने का, बाबा जी का चर्णामरित है, कतार बंद गई, वो एक के बादे एक एसी का पानी पी रहे हैं, ये लोगधर्म है, महानता के तलवे चाटना, ये लोगधर्म सिखाता है, वास्तविक धर्म, तुम्हें किसी के भी तलवे चाटने से आ�
01:07:19की बात है, अहंकार मिथ्या है, ये स्वयम अहंकार को देखना है, बड़ा अजीब बेटा है वो प्रक्रतिका, उसे खुद ही देखना पड़ेगा कि वो नहीं है,
01:07:42और वो देखने का तरीका क्या है, आत्मग्यान, आत्मग्यान के अलावा कोई तरीका नहीं है, और आत्मग्यान कैसे होगा, विधी क्या है, आत्मवलोकन, बस, बाकी सब प्रपंच है, फंस मच जाना,
01:08:03प्रक्रति पर भरोसा करना सीखो, तुम नहीं भी रहोगे, वो तुमसे बहुत पहले से है, और वो तुमसे बहुत विस्तार में है, तुम तो अपने आपको इतना सा बस परिभाशित करते हो, कुरसी पर बैठा हुआ हूँ,
01:08:21वो सब कुरसियों की कुरसी है, वो पूरे ब्रहमांड की कुरसी है, जिस पर पूरा ब्रहमांड विराज़ता है, भरोसा करो, वो जानती है, वो जानती है, खीक, और वो मा है, मा मारती नहीं है, मा बस नए कपड़े पहना देती है, चिंता मत करो, पर कई होते हैं ऐसे छो�
01:08:51वैसे हमारी जान जा रही होती है तो हम भी चिलाते हैं
01:08:57कहीं नहीं जाओगे प्रक्रति हो
01:09:00दूसरे रंग दूसरे रूप में आ जाओगे यही पुनरजन में
01:09:03तुम नहीं आओगे
01:09:06क्योंकि तुम तो हो जी नहीं तो तुम आ कहां से जाओगे
01:09:09पर जिन तत्तों से तुम बने हो वो तत्तों दुबारा खड़े हो जाएंगे
01:09:14लगातार खड़े हो रहे हैं लगातार गिर रहे हैं तुम क्यों डर रहे हो
01:09:17जब तुम हो तब भी मा की गोद में हो जब तुम नहीं हो तुम तब भी मा की गोद में हो
01:09:21तुम क्यों परेशान हो
01:09:22जो जान गया कि भीतर सब प्रकृती प्रकृती
01:09:27उससे मृत्यू का डर हट जाता है एकदम
01:09:29मर सकता ही नहीं क्योंकि कभी पैदा ही नहीं हुआ
01:09:32वो तो ऐसा है जैसे बच्चा खेल रहा था
01:09:36खेलते खेलते सो गया फिर जग जाएगा
01:09:39जब जगेगा तब तक माने कपड़े बदल दिये होंगे
01:09:44ठीक है किनी और कपड़ों में जग लेंगे
01:09:47और ये जिवात्मा वाली बात नहीं है
01:09:50ये लहर वाली बात है
01:09:53लहर उठी लहर गिरी कहीं और अब दूसरी लहर खड़ी हो जाएगी
01:09:56ये लहर मिट थोड़ी गई है सागर में गई है
01:09:58इसके कुछ अणू कुछ परवाणू कुछ बूंदें अब उस लहर में उठेंगे
01:10:02कुछ उस लहर में उठेंगे अपना अपना गलग
01:10:04तागर कभी मिटा है क्या और सागर सिर्फ सागर में नहीं है
01:10:09सागर नदियों में भी है, सागर बादलों में भी है
01:10:11सागर ग्लेशियर
01:10:13हिमनद में भी बैठा हुआ है
01:10:15सागर तुम्हारे चाय के पतीले में भी है
01:10:18आलमंड मिलक वाली
01:10:20या सागर सिर्फ सागर में है
01:10:24सागर
01:10:26सागर से ही पानी उड़ा, बादल बना
01:10:30बादल से बरसा
01:10:32बरस करके
01:10:34तुम्हारे चाय के प्याले में आ गया
01:10:36तो सागर तो सागर है वो हर जगह है
01:10:38तुम कहां के लिए परशान हो रहे हो
01:10:40तुम कहां मर सकते हो तुम कहां जाओगे
01:10:42तुम्हें जाने के कोई जगह ही नहीं है
01:10:43जहां भी जाओगे यही रहोगे
01:10:45अभी तो महा बैठे हुए थे
01:10:48बंगाल की खाड़ी में
01:10:50थोड़ी देर में किसी का शर्बत बन जाओगे
01:10:52पर कहीं चले गए क्या
01:10:54बूंध है कहां जाएगी
01:10:56एक बार मैंने एक बूंध की आतरा लिखी थी
01:10:59आठवी नौवी में था
01:11:01मिलेगी तो आपको दिखाऊंगा
01:11:04मैं बूंध हूँ ने ऐसा गिया वैसा गिया
01:11:06जितना मैं अपना कलपना उड़ा सकता था किया
01:11:08अन्तता मैं स्याही बन गई
01:11:10और अब इस कागज पर उतर रही हूँ
01:11:12मैं बूंध हूँ
01:11:16खूब उसमें इधर गई, इधर गई, दुनिया भर
01:11:18बूंद का परेटन पूरा
01:11:20पूरे ब्रहमार्ण में घूमाई बूंद
01:11:22और ये भी नहीं कि H2O बन के ही
01:11:24वो बीच में
01:11:25टूट भी गई थी, हाइड्रोजा न लग गया
01:11:28अक्सीजा न लग गया, सब कुछ हो गया
01:11:46जनम लोगे, तो ही मरोगे
01:11:48कोई नहीं प्यादा हुए है
01:11:50अब ऐसे ही चल रहा है
01:11:53जो चला रहा है, सब जानता है
01:11:55उसका नाम इश्वर नहीं है
01:11:58बड़ी मा बहतर नाम है
01:12:01इश्वर अगर कोई है, तो वो भी बड़ी मा का
01:12:06कोई छोटू सा बच्चा है
01:12:16कोई भी बड़ी मा बच्चा है

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