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00:00पिछले 20-50 सालों में भारत में ये बहुत हो गया है कि शरीर तगड़ा होना चाहिए
00:04तो आप पहले के मंदिरों में चले जाहिए और वहाँ पर आप राम लखन सीता हैं आप उनके मूर्तियां देखिए
00:10उनको बहुत ज़्यादा बाहुबल युक्त नहीं दिखाया गया है
00:13मैंने पहले भी कहा था कि तुलसीदा सुकुमार और सुकोमल इन शब्दों का प्रयोब करते हैं कई बार करते हैं
00:19और सीता जी के लिए सुकुमारी तो उनको ऐसा दिखाया भी गया है फिर पुरानी मूर्तियों में और चित्रों में सुकुमल सुकुमार पर अब जरा हमें उग्रता ज्यादा आ रही है पिछले कुछ दशकों से तो अब जो राम लक्षमान हनुमान की हमको छवियां दी ज
00:49मूर्ति में प्रदर्शित कर दिया और अब 21 शताब्दी है तो 21 शताब्दी के लोग जो सोच रहे हैं उसके हिसाब से वो अपने अनुरूप राम की छविया बना लेते हैं ये समस्या है हम सच के नहीं पार्खी होते हैं नाम इस बात से कम मतलब होता है कि वो सचमुच क्य
01:19सब लोग है अपने ये जब बड़े होंगे तो ये किस चीज को वैल्यू करेंगे ये जिस चीज का मूल करेंगे उसी के अनुसार राम मूर्ति बना देंगे