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  • 2 days ago

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00:00तम गुण के सुत्तीन मोह प्रमाद अग्याएं इन में हो कर लीन नरकोए नरकन रकन
00:30मुचे लोखों को जाते हैं मानव क्रम शहसत गुण धारी और रजोगुण प्रेरित मानव होते प्रित्वी लोग बेहारी
00:50लिप्च तमोगुण में जो रहते वे हैं अधोगत्य के अधिकारी
01:10तीनों गुण से चारोगत्य में फिरते हैं अविरत्य संसारी
01:18तीनों गुण से चारोगत्य में फिरते हैं अविरत्य संसारी
01:26हो जाता जब मनुझ को भली भाती यह ग्यां
01:38तीनों गुण से प्रक्विती के कार्य सभी गत्ति मां
01:48रचते यही विधां
01:52ऐसा ग्यानी जो पर्मेश्वर की वास्तव में पहचान करें
02:10और ये भी जाने वह रहता इन तीन गुणों से सदा परें
02:19दुविधा संशय धम और भांती जड से सबात कर लेता है
02:28वह पुन्यवान मेरे स्वभाव को पून प्राप्त कर लेता है
02:37जब देह धारी जीव तैने से संबध तीनों गुण लांग जाने में समर्थ हो जाता है
02:55जन्म जरामित्यू के असई है जो है ताप मुक्ती ओन से पाने का पंथ तब ढूंड पाता है
03:09कर सकता है इसी जीवन में उसे प्राप्त भोगों में जो शेष्ठ भोग अम्रित का आता है
03:22अम्रित के भोग है तुचाहिए यठात बोध और वह बोध मेरी खिपा से आता है
03:31एनात सतरज तम गुणों से जो के रहता है परे
03:50किस तृष्टी से किस जान से पहचान उसकी मन करे
03:57वह प्रकृति के तीनों गुणों को कौन विधि से लांगता
04:08मैं अलप मति तुम से उजाला इस विशय पर मांगता
04:15मैं अलप मति तुम से उजाला इस विशय पर मांगता
04:23यक्ति जो प्रकाशवान पद पहों की विध्यमान जीशा ना करे किसी से लालसा रखे नहीं
04:41परश्टुत आ सकती हो के मोह आ उपरश्थित हो उनके आने जाने पर चिन्ता करे नहीं
04:56भोतिक जो गुण समस्त उनसे दूर रहत टस्त दुर बलता वश कोई काम ना करे नहीं
05:11गुण ही किया शील जानके ये तच्च दिव्य खुदा सीन पंथ से कभी फिरा करे नहीं
05:23ये जुमे स्थित है जो मतिमान सुक दुख माने एक समान
05:45माटि कंकर या पाशान या फिर हो सोने की खान
05:59सब के प्रति रखे सम द्रिश्टी उसके मन हो जान की ब्रिश्टी
06:14सित अनकूल हो या प्रति कूल जो न रहे समरसता भूल
06:28निन्दार प्रशन सामाहि इर कभी जो हारे नाहि
06:43मान अपमान करेन प्रभाव सब में रखे समता भाव
07:00शत्र मेत्र के संग जो रखे सम व्यवहार
07:15जिसने भौतिक आर्य सब मन से दिये विसार
07:25अडिग अडोल अकंप वेह अमित अनन्त अजीत
07:36पार्थ प्रकृति के गुणों से उसको जान अतीत
07:47जोन परेस्थितियों का दास जिसमें भग्ति की उन सुवास
08:05अचल अकल उशित जिसका चेत के वल हरी में रहे प्रवेत
08:19प्रकृति के गुण लागे वो तुरंत प्रहमस्तर तक जाय वो संत
08:34निर्गुण निराकार जो इश मैं उसका आश्चय जगदीश
08:48जो अविनाशी अमर है शाश्वत कालातीत
09:04स्वाभा विक्पद चरम सुख पावन परम पुनीत
09:14गर बोले संसार में ऐसा तरवर ना है
09:31जिसकी जड़ आकाश में शाखाएं भूमाई हाल गुनी शाखाएं भूमाई
09:45नाम उसका अश्वत है व्रिक्ष अनूठा जान
10:00वेद सोत्र हें पत्तियां ब्रह्म स्वरूप महान दे अरजुन ब्रह्म स्वरूप महान
10:14जिसको इस तर की पहचान वेह रखता वेदों का ग्यान
10:32शाखों का नहीं पारावार भूसे नब तक पैविस्तार
10:46सत्रज तम गुण प्रकृति के तीन उनसे पोशित तरू अमलीन
11:00इंद्रिय विशय हैं तैनियां नीचे को भी मूल
11:16मनुज समाज सकाम रहा व्रिक्ष ही डोला जूल
11:27भूल
11:28भाण

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