01:30शांति वनस्पत यह शांति विश्वे देवा शांति ब्रन्हां शांति सर्वग्वंश शांति शांति यो
01:50महराज राम आज आपके जन दिवस पर मैं आपका रित्विच वशिष्ट चारो दिशाओं के समस्त रिशियों के ओर से आशिर्वात देता हूं कि आपका सर्वदा कल्यान हो
02:11आप स्वयम मुर्तिमान धर्म हैं अतह जहां भी आपके नाम का उच्चारण हो वहां धर्म के वृद्धी हो
02:23महराद मैं आपके मंत्री मंदल और अयोध्या के प्रजा के ओर से आपके जन दिवस पर आपका अभिवादन करता हूं
02:35इस शुब आउसर पर यदि गुरुदेव आज्या दे तो मैं वो प्रस्ताव आपके सन्मुक रखूं जो प्रजा के मन में है
02:46आरे सुमंत्र जो प्रजा के मन में हो उसे राजा तक पहुंचाना मंत्री का करतव्य है
02:55उसके लिए आज्या के आवशक्ता नहीं
02:58अरे सुमंत्र आप जो भी कहना चाहते हैं निस्सन कोच होकर कहिए
03:05महराज आपके राज में प्रजा को समस्त सुक प्राप्त है
03:10अयोध्या में निवास करने वाले सभी मनुष्य प्रसन, धर्मात्मा, निर्लोवी, सत्यवादी तता अपने अपने धन से संतुष्ट रहने वाले हैं
03:21आपके राज में कोई भी कुटुम्ब ऐसा नहीं जिसके पास गाय, बैल, धर्ती और धन्दान्य का अभाव हो
03:33नगर में कोई भी ऐसा नहीं जिसके पास सोने के हाभुशन नहों
03:40राम राज में यह सब कुछ है महराज, परंतु
03:45यह सब होते हुए भी प्रजा उत्साहीन और शितिल हो रही है
03:54कारण
03:56महराज, राजा का यह भी धर्म है कि वो निरंतर ऐसे महान कार्य करता रहे
04:04जिससे उसके राजवन्ष पर प्रजा का गरुब बढ़ता रहे
04:08जहां केवल स्थिरता रह जाती है माधीरे दीरे शितिलता आने लगती है
04:16जीवन और प्रगती के लिए उल्लास अवश्यक है
04:21उल्लास का प्रतिक है उत्सव
04:25जिस राजव में कोई उत्सव नहीं होता उस राजव में प्रजाजनों के रिदे बुजे बुजे से रहते हैं
04:32अता प्रजा का मनबल बढ़ाने के लिए उत्सवों का होना अवश्यक है
04:38इसलिए आपके वन्ष में सदा राजाओं ने समय समय पर दिग विजे आदी महन कार्य किये हैं
04:45कई प्रकार के यग्य किये हैं
04:48हम भी उनसे पूर्ण तया सहमत हैं
04:50यदि सबकी सम्मती हो तो हमारे मन में राजसुय यग्य करने का संकल पाया है
04:57इसे धर्म सेतु भी कहते हैं यह धर्म का पोशक और समस्त पापों का नाश करने वाला है
05:07इसमें राजा का शाश्वत धर्म पतिष्चित है अतह यही राजधर्म की चरम सीमा है
05:15कि जो भी राजा इसे करे वह अक्षय यश्का भागी होगा
05:20महराज मेरे विचार में आपको ऐसे यग्य की अवश्यक्ता नहीं है
05:27इसमें यश्ट अवश्य मिलेगा परंत उसी के साथ भूमंडल के समस्त राजवंचों का विनाश भी हो जाएगा
05:37राजसु यग्य का आर्थ है समस्त राजाओं को युध्ध की चुनौती देना
05:44उससे पृत्वी पर जितने आत्मसम्मान वाले पूर्शार्थी हैं उन सब का संहार हो जाएगा
05:51हे महाबली रगुनंतर आज आपके गुणों के कारण इस पृत्वी के सभी राजा आपको महापुरुष मान कर आपकी और उस भक्ति भाव से देखते हैं जैसे पुत्र अपने पिता को देखता है फिर आपको अपनी शक्ति के बल पर उन्हें जुगाने की क्या आवश्यक
06:21आपको ऐसे यग्य की आवश्यक्ता नहीं
06:31हे कह कई नंदन हम तुम्हारी बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए हैं शास्त्र कहता है यदि बालक की कही उही बात अच्छी हो तो उसे ग्रहन करना चाहिए
06:44हे निश्पाब भरत तुम्हारे मुख से निकला हुआ ये धर्म संगत वचन सारी प्रत्वी की रक्षा करने वाला है
06:55अताहे जुत्तम यग्य की ओर से हम अपने मन को हटा लेते हैं
07:00हे रगुकुल नंदन
07:03यदि आप आज्या दें तो एक प्रस्ताव रखूं
07:09कहो
07:11महराज अशुमेद नामक महान यग समस्त पापों को दूर करने वाला परम पावन और दुश्कर हैं
07:19आप अशुमेद यग कही अनुस्ठान करें
07:22सव में तुमने आतिस उंदर प्रस्ताव रखा है
07:26कुम्बोधर रिशी ने हमारे अन्न भंडार से इसलिए अन्न लेना स्विकार नहीं किया क्योंकि हमने अभी तक ब्रह्म हत्या का प्रैश्चित नहीं किया है
07:37इसलिए यदि गुरुदेव आग्या दें तो हम अशुमेद यग्य का संकर्प करते हैं
07:48अशुमेद यग्य करने से पूर्ण रूप से सहमत है
07:54इससे रगुकुल की अश्पता का चारों दिशाहों में लहराएगी
08:03और जैसे आर्य सुमंत्र ने कहा प्रजा के अंदर भी स्फूर्ती और उच्छा की लहर भैल जाएगी
08:11तो प्रभू मेरी यह प्रार्थना है कि इस महा यग्य के प्रमुकृ रित्विज आप होंगे
08:20मुनिवर आप शास्त्र विधी के अनुसार मेरा यग्य कराईए
08:27आपका मुझ पर विशेश स्ने है आप मेरे गुरू और परम महान है
08:36इस यग्य के भार को आप ही वहन कर सकते हैं
08:41मैं इस यग्य का पूरा उत्तरदाईत हो लेता हूँ
08:57मैं आपका मुझ ए कर सकते हैं
09:06कि कि अ आपका मुझ आप मैं आपका रहताई नची कर दोनले जिसाओ के आप।