00:00शुति धर गुण धर क्यान धर आत्म साध्य करते चरे गुर्वर की हर बात
00:20ललित कला और वेद शास्त्र का पाच पढ़ाते हैं
00:29अस्त्र शस्त्र में गुरु दोनों को निपुण बनाते हैं
00:43प्रम्हुर्थ की वेला कहो ओम
00:51ओम कहें से पावन हो रोम रोम
00:59अस्त्र शक्रिया अस्त्र काम
01:03य्लित्त्र काम
01:05युण बनाते हैं
01:09युण बनाते हैं
01:12आज मैं तुम्हें
01:39मनुष्य के शरीर में एक सूक्ष में शरीर होता है
01:50उसके अंदर शक्ति के साथ मुख्र केंद्र है
01:56सबसे पहले मूलाधार चक्र है
02:00जो लिंग और गुदा के मध्य में स्थित है
02:04इसी चक्र में कुंडलेनी शक्ति का निवास है
02:09ये मूलाधार चक्र मनुष्य देह का आधार स्वरूप है
02:14इसलिए इसे मूलाधार पद्म कहते हैं
02:19इसमें पृठी तत्र की प्रधानता है
02:21इस मूलाधार पद्म का ध्यान करने से आरोग्य आदि की प्राप्ति होती है
02:27दूसरा स्वाधिष्ठान चक्र है
02:29जो लिंग के मूल स्थान में स्थित है
02:33इसमें वरुन तत्र की प्रधानता है
02:37इसका ध्यान करने से भक्ति, आरोग्य और प्रभुत्व की सिध्धी मिलती है
02:44तीसरा पद्म मनिपूर चक्र है
02:47जो नाभी देश में अवस्थित है
02:49इसमें अग्नी तत्व की प्रधानता है
02:52इसका ध्यान करने से आरोग्य, आश्वर्य, एवं जगत के पालन और विनाश करने की शक्ति मिल सकती है
03:01चौथा पद्म 12 पंखुरी वाला अनाहत चक्र है
03:06जो हिदय मंडल में विद्यमान है
03:09इसमें वायू तत्व की प्रधानता है
03:11इसका ध्यान करने से अनिमादी सिध्धियों की प्राप्ती होती है
03:16पांचमा विशुध्ध चक्र है
03:18जो कंट में विद्यमान है
03:20इस पद्म की 16 पंखुडियां है और इसमें आकाश तत्व की प्रधानता है
03:26इसका ध्यान करने से मनुष्य जरा और मृत्युपाश की पीड़ा से मुक्त हो सकता है
03:33छटा आग्या चक्र है जो दोनों भवों के बीच स्थित है
03:38इस पद्म की केवल दो ही पंखुडियां है
03:41इन दोनों के बीच एक गोल आकार ओंकार स्वरूत चियोती सदा जलती रहती है
03:47इस के त्रिकोन मंडल में ब्रहम, विश्नु और शिव का निवास है
03:54इस ही आग्या चक्र के ऊपर इड़ा, पिंगला और सुशुमना इन तीनों नाडियों के मिलने का भी स्थान है
04:03दिव्यनाद का भी यही स्थान है
04:06इस स्थान में साधक को जिस जोती के दर्शन होते हैं
04:12वह वास्तव में उसकी अपनी जीवात्मा का ही प्रतिविम्ब होता है
04:16इस पद्म में दिव्य जोती के दर्शन पाने पर योग का परमफल प्राप्त होता है
04:23वो योगी प्रकृती के बंधन से मुक्त हो जाता है
04:28इसके पश्चाथ साथ्वा चक्र है
04:31सहस्रार चक्र एक हजार पंखुणियों वाला ये पद्म ब्रह्म रंद्र के उपर महाशुन्य में स्थित है इनके अतिरिक्त और भी कई सूक्ष मिशक्ति केंद्र है परंतु मैंने तुम्हें केवल मुख्य केंद्रों का ही विवरन संख्षेप में बताया है
04:52योग के द्वारा इन चक्रों को जागरित किया जाता है इन शक्ति केंद्रों की जागरित होने से मनुष्य में ऐसी ऐसी शक्तियां जागरित हो जाती है
05:10कि जिनके द्वारा वो एक स्थान पर बैठा हुआ बहुत दूर की वस्तों को देख सकता है
05:17बहुत दूर की आवाजों को सुन सकता है
05:22बहुत दूर बैठे हुए किसी दूसरे योगी से साक्षात संपर्क कर सकता है
05:29गुर्देव आपने कहा कि योगी किसी दूसरे स्थान पर जाकर दूसरे योगियों से साक्षात संपर्क कर सकता है
05:44इसका आर्थ है कि हमारा ये शरीर उड़कर किसी दूसरे स्थान पर जा सकता है
05:51नहीं, पंच भूतों से बना हुआ हमारा ये स्थूल शरीर प्रक्रती के नियमों में जकड़ा हुआ है
06:00ये उन नियमों का उल्लंधन नहीं कर सकता
06:05फिर जिनके अंदर पूर्ण योग शक्ती का विकास हो जाता है
06:11वो स्थूल शरीर को छोड़कर अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा जहां चाहें जा सकते हैं
06:21कल मैं ये विद्या तुम्हें सिखा दूँगा
06:41आज मैं तुम्हें सूक्ष्म शरीर से यात्रा करने की गुप्त विद्या सिखाऊंगा
06:55इस गुप्त क्रिया में समन स्थूल शरीर को एक स्थान पर छोड़कर जाना होता है
07:05और फिर वापस आने पर हमारा सूक्ष्म शरीर फिर इसी स्थूल शरीर में प्रवेश कर जाता है
07:15इसी लिए ये आवश्यक है कि ये स्थूल शरीर तब तक सुरख्षित रखा जाए
07:25मैंने था यदि कोई भूल से इसे मृतिक समझ कर इसका नाश कर दे तो बहुत बड़ा अनर्थ हो सकता है
07:39इसी लिए इस कुटिया को चारों और से बंद कर दिया गया है
07:46बाहर से इस कुटिया की सुरख्षा का उत्तरदायत तो गुरु माता पर है जो इसकी रखवाली करेंगी
07:58इस कुटिया को वही कर सकता है जिसके अंदर योग की सारी शक्तियां जागरित हो चुकी हो
08:07ये शक्तियां बड़ी कठिन और लंबी साधना से जागरित होती है