00:02तो गाउं में जितनी महिलाएं होती थी जो बूड़ी हो गई है या किसी लायक नहीं है
00:07उनको चुड़ाल घोशित करके पत्थर उप सर से मार दो
00:10नहीं तो नहीं खिलाना पड़ेगा और खाने को है नहीं
00:12तमामतर है कि हर समय अकाल, दुर्भिक्ष, फैमीन्स पढ़ते रहते हैं
00:15अर्थवस्था तो जरजर थी
00:17तो जो अकेली महिलाए होती थी वो अर्थवस्था पर बोध होती थी
00:20इसलिए पश्टिन में ये विच हंटिंग और भारत में स्की पथा चली
00:24अब वो अकेली घर में बैठी होई है, उसको ना शिक्षा दिया, ना ग्यान दिया, कुछ कर तो सकती नहीं है
00:29तो कहा कि इसको सती ही कर दो, पैसे बचेंगे, नहीं तो ये बैठी-बैठी खाएगी
00:3245 साल का पुरुष है, उसने 5 साल की रड़की पर सादी करी है
00:35तो मर जाएगा 10-20 साल में, अब लड़की बाल विध्वा हो जाएगी, बाल विध्वा हो जाएगी, उसको पढ़ाया लिखाया तो है, नहीं तो करेगी क्या हो
00:41तो कहा इसको जलाई दो, नहीं तो economic burden बनेगी
00:43असली बात ये थी, ये सब हमारे विश्वास रहे हैं, आप बताओ, मुझे मैं पूछना चाहता हूँ
00:48तो बाबाजी जब आपके सामने बैट करके अपने विश्वासों की पूरी पोटली खोल देते हैं
00:53तो आप इज़त क्यों देने लग जाते हो, आपका मुझे नहीं खुलता है
00:56आप किसी चीज को गलत फहरा ही नहीं सकते, तो नेती-नेती क्या है, शिवत तो क्या है, प्रलय क्या है, निर्मार्शक्तम क्या है, बोलो
01:04हम बहुत ज्यादा इज़त दे रहे हैं विश्वास को, और दिये ही जा रहे है, और विश्वास बेचने वालों के आगे हमें पता भी नहीं चलता, कि हमारे हाथ क्यों जुड़ जाते हैं, सर क्यों जुग जाता है, हमें पता भी नहीं चलता