शतरंज जो आज भी तमाम लोगों के जहन में करियर की बजाय शौक के रूप में आता है। वहीं शतरंज जो वास्तव में आज भी उत्तर में अपनी वैधता को लेकर संघर्ष कर रहा है। जबकि दक्षिण में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। देखा जाए तो उत्तर और दक्षिण भारत के बीच बहुत बड़ा सांस्कृतिक अंतर भी है। अगर दक्षिण की बात हो तो यहां एक अरबपति भी चप्पल पहनकर बस स्टॉप पर खड़ा दिखाई देता है, जबकि उत्तर में 5 करोड़ रुपये वाले व्यक्ति को भी राजसी सम्मान दिया जाता है। #Chess #ChessPlayers #VantikAgarwal #asianetnewshindi #Nationalnews #Hindinews #LatestNews #HindinewsLive #asianetnews #Todaynews #HindiSamachar #HindiNewsUpdate #ViralVideo #HindiLiveNews #BigNews #SamacharInHindi #SportsNews
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00:00शत्रंज यह सब्द सुनते ही आपके दिमाग में क्या आता है अगर मैं यह कहूँ कि यह सुनने के बाद आपके दिमाग में जो भी आ रहा है वह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहां रह रहे हैं तो गलत नहीं होगा
00:26जी हाँ भारत के उत्तरी भाग में सत्रंज को जिस तरह से देखा जाता है उससे तमाम लोगों को निराशा महसूस होती है यह बात कोई और नहीं बलकि 2024 के सत्रंज उलंपियाड में दोहरा वस्वन पदक और अरजुन पुरसकार विजेता वंतिका अगरवाल कहती है आम तोर
00:56पर उन्होंने कहा कि अगर कोई मुझसे सवाल करता है कि आप क्या करती है जब मैं लोगों को इसका जवाब देती हूं कि मैं सत्रंज खिलारी हूं तो उसके बाद आने वाला अगला सवाल असहच कर देता है क्योंकि लोग उसके बाद पुछते हैं कि वह तो ठीक है लेकिन
01:26के बजाए शौक के रूप में आता है वहीं सत्रंच जो वास्तों में आज भी उत्तर में अपनी वैधता को लेकर संगर्ष कर रहा है
01:35हालाकि दक्षिण में ऐसा बिलकुल नहीं है देखा जाए तो उत्तर और दक्षिण भारत के बीच बहुत बड़ा सांस्कृतिक अंतर भी है
01:43अगर दक्षिण की बात हो तो यहां एक अरपपती भी चपल पहन कर बस टॉप पर खड़ा दिखाई देगा
01:50जबकि उत्तर में पांच करोंड रुपए वाला व्यक्त भी राजसी सम्मान का हकदार है
01:56मीडिया रिपोर्ट में उत्तर और दक्षिण में सत्रंज को लेकर सोच के अंतर को उदाहरण देकर बताया गया
02:04जिक्र किया गया कि दिल्ली के सत्रंज ग्रैंड मास्टर परिमार जन्नेगी जो अब अमेरिका में बस गए हैं
02:10और सहज ग्रोवर भी लगभग सत्रंज छोड़ चूड़ चुके हैं
02:14उन्हें लगता है कि वे इस खेल में जो हासिल करना चाहते थे उसे ये हासिल कर लिया है
02:18यह वाश्ताउ में संस्कृति और मान्सिक्ता का ही अंतर है
02:22वहीं अगर दक्षिण की बात हो तो सत्रंज की संस्कृति बहुत गहरी है
02:27अगर आज आप विश्वनाथन अनंद की बात करें तो आपको अंतर दिखाई देगा
02:32मीडिया रिपोर्ट में बताये गए आकड़े भी इन दावों का समर्थन करते हैं
02:37रिपोर्ट में बताया गया कि अकेले दिल्ली एंसियार में दोसों से ज़्यादा सत्रंज कोचों की मासिक कमाई पांच करोण रुपए है फिर भी अगर गुणवत्ता की बात हो तो वहां उतनी अच्छी गुणवत्ता नहीं मिलती है
02:50यहां परिवार मामूरी लागत के अंतर के कारण कई बार कोच भी बदल देते हैं जबकि दक्षिन में ऐसा बिलकुल नहीं है आज कोई भी सत्रंज खिलाडी भूग से नहीं मर रहा है बात यहां भी है कि यहां कोई भी रिटायर नहीं होता प्रसिक्षकों पर भी कोई नि
03:20सरकार की ओर से प्रोच सहन दिया जाता है सत्रंज में तमिलनाडु का विशेश रूप से उभर कर आना कोई संयोग नहीं है तमिलनाडु में सत्रंज घर-घर की संस्कृति का हिस्सा है भले ही या प्रतिसपर्दी ना हो लेकिन माता-पिता सभी जानते हैं कि इसे खेलना कै
03:50कर यहां अंतर आम बात है फिलहाल आपका इसको लेकर क्या सोचना है या आप हमें कमेंट के जरीए बता सकते हैं