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पूरा वीडियो : अब तो जाग मुसाफ़िर प्यारे! || आचार्य प्रशांत, बाबा बुल्लेशाह पर (2013)
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Transcript
00:00सूफी खानी है ना कि किसकी हयाद नहीं आ रही है
00:03शायद जुन्याट की है
00:04बादशाओ के पास गया
00:06उच्टे और आजकल इस सराई में कौन रहता है
00:08आजकल पून रहता है इस सराई में
00:10बादशाओ नेका ते दिमाग खराब है महले ये मेरा
00:13इसको सराय बोल रहा है
00:14तो बोल गए तुम नहीं लगते हो
00:15मैं जब पिछली बार आया था यहां पर तुम्हारा बाप पोटा था यहां पर
00:19जब मैं उससे पहले आया था तो तुम्हारा दादा होता था यहां पर
00:21अगी बार आओंगा तो पक्का है कि तुम नहीं होगे
00:24तो सराय नहीं तो क्या है यह
00:25कहते है बादशाओ को बिल्कुल उसी ही समय बार चमक गई
00:29उसमें का चलो बैभी चल रहा हूं तुम्हारे साथ
00:31सराय में नहीं रहना असली घर ढूँँ
00:33ये घर तो सराय ही
00:35यह ही कहानी है जिसमें वो उसके महल की शकपे उत्फान मचा रहा था
00:40बादशाने का बड़ी आवाद आ रही शकपे बन चड़ गया
00:43तो देखा यह चड़े बोड़ा उपर उसकी सुम्दूं की यह शाय दिए
00:46सानिको को फेजा पकड़ के नीचे बुल फाया
00:48यह शकत पे क्या कूद रहे हो
00:50तो गोलता मेरा वूट खोग हो, भोगूज रहा हूं
00:52करफ रहे उत्फों तपर उत्फान से आउट खोगी है तो वो खोगूज रहा हूं
00:57भोलता चार मंजिम का मेरा महल है
00:59उसकी शकपे बूँज चया पकड़ यह आएगा
01:02गलत जगा पे खोज रहा हूट को
01:04इतने होशियार तो तुम हो कि तुम्हें समझ में आता है
01:07छट पे महल की छट पे
01:09खोजने से उट नहीं मिल सकता
01:11पर इतने होशियार तुम नहीं हो कि तुम यह समझ में आए
01:14कि महल के अंदर तुम जो खोज रहे हो
01:15वो कभी महल के अंदर नहीं मिल सकता, वक्ति फिर्चमत भी, मिलकुल सही बोले,
01:21कि जब महल की शत पर उट नहीं मिल सकता जैसे, ऐसे ही महल के अंदर भी कुछ चीज़ें जो कभी नहीं मिल सकती हैं.

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