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Jagannath Rath Yatra 2025: 27 जून से जगन्नाथ यात्रा की शुरुवात हो रही है ऐसे में क्या आप जानते है की भगवान जगन्नाथ की बढ़ी बढ़ी आँखों पर पलकें क्यों नहीं है? आइये जानते है | Jagannath Rath Yatra 2025 Interesting Stories...

Jagannath Rath Yatra 2025: Jagannath Yatra is starting from 27th June, so do you know why Lord Jagannath's big eyes do not have eyelids? Let's know | Jagannath Rath Yatra 2025 Interesting Stories...

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Transcript
00:0027 जून से जगनाथ रथ यात्र की शुरुआत हो रही है जिसमें देश विदेश से लोग बढ़ चड़ कर हिस्सा लेने के लिए आ रही है
00:11दुनिया भर में जगनाथ भगवान को अलग-अलग रूपों में पूजा जाता है
00:16कही पर वो कानहा के रूप में विराजमान है तो कही पर भगवान जगनाथ के रूप में
00:21लेकिन क्या आपने गौर फरमाया है कि ओडिशा के पुरी में जगनाथ भगवान की मूर्ती कुछ अलग ही ढंग से प्रतीध होती है
00:30जी हाँ एक लौता पुरी ऐसा क्षित्र है जहां पर जगनाथ भगवान को बड़ी बड़ी आँखों और बिना पलकों के पूजा चाता है
00:39लेकिन भगवान जगनाथ के इतनी बड़ी बड़ी आँखे क्यों तरशाई जाती है आई आज के वीडियो में जानते है
00:45दूसरे तेवी देवताओं के मुर्तियों के तुल्ला में भगवान जगनाथ की आँखे असाधरन रूप से बड़ी होती है
00:55इसके पीछे धार्मिक मानेता भी है
00:57जेहां कहा जाता है कि भगवान जगनाथ की दर्शन के लिए प्रदिदिन लाखों भक्त पहुंचते हैं
01:03ऐसे मानेता है कि भगवान की दृष्टी से कोई भक्त अच्छूता न रह जाए
01:07इसलिए उनकी आँखे बड़ी बनाई जाती है
01:10ये उनकी सर्वदर्शता और अपार करुणा का प्रतीक माना जाता है
01:14भक्तों का विश्वास है कि भगवान जगनाथ सभी को एक समान रिष्टी से देखते हैं
01:19और उनके खृदे में सभी के लिए स्थान है
01:21भगवान जगनाथ के प्रतिमा में एक और खास बात होती है
01:24उनकी आखों पर पलकों का भाव
01:27जी हाँ, दार्मेक वानेताओं के अनुसार
01:29यदि भगवान पल भर के लिए भी आखे मून ली या पलके छपकाएं
01:33तो उस क्षण में हजारों भक्त उनकी दर्शन से वंचित हो सकते हैं
01:37इसलिए उनकी मूर्ति ऐसी बनाई जाती है
01:39जिसमें वे बना पलक छपकाएं
01:41अब पलक अपनी भक्तों की ओर निहारते रहते हैं
01:45ये भी मानेता है कि भक्त भले ही भगवान की दर्शन न कर पाएं
01:48लेकिन भगवान की दृष्टी से कोई भग्त छूटना नहीं चाहिए
01:52साथ ही आपकी जानकारी के लिए बता दे कि भगवान जगनाथ बलभद्र और सुवध्रा की मूर्तियास थाई नहीं होती
01:58जब भी आशानकाथ एक मास आता है तब इन मूर्तियों को परंपरा के अनुसार समुद्र में विसरचित कर दिया जाता है
02:05और उनकी नई प्रतिमाई बनाई जाती है इस विशेश प्रक्रिया को नव कलेवर कहा जाता है
02:10नव कलेवर का अर्थ होता है कि नया शरीर ये परंपरा हर 12 से 19 सालों में निभाई जाती है
02:16मूर्तियों का निर्वान पवित्र नीम के पेड़ों से होता है जिन्हें विशेश पहजान और नियमों के उनुसार चना जाता है
02:23साथ ही इस पूरी प्रक्रिया को शास्त्रों के नुसार बहुत विधी पूर्वक किया जाता है और ये उत्सव हजारों वर्षों से चला आ रहा है
02:31रतियात्रा भगवान जगनाद की महिमा और भक्तों की आस्था का जीवन्त प्रतीक है जो हर साल उन्हीं और अधिक करीब लाने का मांध्यम बनती है
02:42तो एक बार मेरे साथ भोलिए जैश्री जगनाद
03:01कर दो एक बार मेरे साल उन्हीं प्रतीक है

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