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  • 6/7/2025
Transcript
00:00इंद्रिय विशय हैं तेहनियां नीचे को भी मूल
00:23मनुझ समाज सकाम रहा व्रिक्ष ही डोला जूल
00:40इस्तर के वास्तविक्ष रूप का जो अनुभव है
00:47जिया नहीं जा सकता भोतिक संसार में
00:53समझ नहीं कोई इसका आदि कहां अंत कहां
01:02मापी नहीं जाए जो गहराई आधार में
01:08नर को चाहिए के ऐसे जड़ जड़ वाले इतर को
01:16शस्त्र से विरक्ति के मिटा दे एक बार में
01:22और तक पश्चात ऐसे स्थान की करे वो खोज
01:28जाके जहां नोट ना पड़े ना इस पार में
01:34हित कर है उस देव को मान चले आधार
01:53जिसके हाथ अनाधि से सूत्र और विस्तार
02:02जूटी प्रशन सा मोह कुसंग से मुक्त रहे जो इस जीवन में
02:19शाश्वत सत्य समझ के जिनोंने भौतिक काम मिटा दिया छण में
02:31मुक्त है जो सुख दुख के द्वन्दों से
02:39जाने रहना हर की शरन में
02:51वे उस शाश्वत राज को पाएं दुरलभ है जो तीनों भौवन में
02:59वे है मेरा परमधाम पावन सारे धामों से है न्यारा
03:11वह मेरा परमधाम पावन सारे धामों से है न्यारा
03:24वह सूर्य न चंद्र न अक्न न विद्युत से होता है उजिहारा
03:32वह मेरी जोत से जोतित है वह गहनक शत नहीं जाते
03:41जो परमधाम में पहुँच गए वे जग में लोट नहीं आते
03:50इस बद्ध जगत के जीव सर्व मेरे ही शाश्वत अंश समझ
04:08मैं परम वन्श धर मैं ही मुखिया जग मेरा ही वन्श समझ
04:17बंधन में होने के कारण छे इंद्रियों से संघर्ष करें
04:26मन इन में सम्मिलित होने से अनुभव विशाद और हर्ष करें
04:35देहात्म बुद्धि को उसी भांति जीवन्य देह में ले जाए
04:52जैसे सुगंधि को आयू यहां से वहां वहन कर पहुंचाए
05:01इस भांति एक तन त्याग जीव दूझे तन को धारन करता
05:10प्रतिपल प्रतिपग प्रत एक जीव बस कर्मों का बंधन करता
05:19इस प्रकार स्थूल देह करके धारन जीव कर्ण चक्षुना सा जिवा त्वचा नहीं पाता है
05:37चारों और मन के पंजित पाचों इंद्रियां हैं पाचों इंद्रियों पे मन छासन चलाता है
05:52इस प्रकार इंद्रिया विशय के विशेश समुच्चय के भोग में मन रम जाता है
06:06इंद्रिया प्रिथक मन प्रिथक प्रिथक जीव संग रहने से लगे सब में जिवनाता है
06:15मूणों की समझ से परे है ये रहस्च जीव कैसे तन त्यागे और कैसे तन धरता
06:28ना वो जाने प्रक्रिती के गुणों के आधीन होके कैसा तन धरता है कैसे भोग करता
06:42किन्तु नेत्र जिसके प्रशिक्षित है जान द्वारा सिंदु में रहस्च के वो गहरा उतरता
06:55सब देखे सब जाने वास्तव को पहचाने मरता है किन्तु लेके जग में अमरता
07:05आतम साक्षात कार को जो प्राप्त योगी जन उनके नगदर पन में स्वष्ट सब जलकता
07:27मन जिनके विकसित नहीं आत्मा से परिचित नहीं उनका अविवे की मन कुछ न देख सकता
07:41सूर्य का जो तेज सारे विश्व का अधेरा हरे मैं प्रकाश पुंज मेरे तेज से दमकता
07:56चंद और अगनी भी मुझी से तेज पाते हैं तेज में कोई मेरे समानता न रखता
08:08मैं अवाध गति से करूं लोकों मज्य प्रवेश यथा स्थान उन्हें चित रखे
08:36मेरे शक्ति विशेश
08:41शीमबली चण में एक घायल सिंघ की भाधिंदा हाड रहा है
08:55पांचा अली केशु पकड़ने वाले हाथ उखाड रहा है
09:10इसने घसीता दौपदी को धर्पी पे उसको पचाड रहा है
09:28इसने घसीता दौपदी को धर्पी पे उसको पचाड रहा है
09:39इसने सती का मान विगाड़ा उसका हाल विगाड रहा है
09:56तो शाजन यही वो हाथ है ना जिसने पांचा अली दौपदी को निर्वस्त करने का पाप करवाय था
10:04अब मैं तुम्हारे इस हाथ को तुम्हारे शरी से उखार का ठैक दूगा

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