- 5/18/2025
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00:00और डरना नहीं
00:01कोई भी तृभुवन में नापक को पराजय नहीं दिखा सकता है बात पक्की समझ लेना
00:07कभी भी हरी का एक शुभाव है
00:11कोई उनको गाली दे दे अपमान कर दे
00:13उनकी निंदा कर दे वो पिता के समान सह लेते हैं छमा कर दे
00:17लेकिन उनके भक्त का अपमान कर दे तो राम रोस पावक सोज रही
00:21जो अपमान भक्त कर कर रही तुम चुप रहना तुम मत बोलना
00:25जो अपमान भक्त कर कर रही राम रोस पावक सोज रही
00:28पलटू सहाब कह रहे नाम जापक कभी डरना मत
00:32कभी भै मत करना और कभी लड़ना मत
00:35हरी अपनों अपमान से जन की सही न जाए
00:39हरी का अपमान कर दोगे सह जाएंगे कैसे भी वो बड़े करपाल हुए
00:44अनंतमाताओं का प्यार रखते हैं चल उद्धन्ड़ता कर ले
00:47हरी अपनों अपमान से जन की सही न जाए
00:52जनकी सही नजाय दुर्वासा की क्या गतिकी नहीं
00:56महां तपश्वी दूब का रस पीने वाला बलकल की लंगोटी लगाने वाला
01:01उनको ये ब्रहाम हो गया कि चक्रवर्ती समराट रानियों के बीच में रहने वाला
01:05मेरे से बढ़कर भजनानंदी कैसे हो सकता है
01:08जाकर के कृतिया प्रगट कर दी उनको अंबरीश जी को कष्ट देने के लिए
01:13दुर्वासा जी के द्वारा प्रगट की हुई कृतिया भगवान के निजपासर सुदर्शन जी ने भस्म कर दिया
01:19और त्रिभुण में दोडाया दुर्वासा जी को
01:21अंततो गत्वां विरिश जी के पैरों में गिरना पड़ा महांतपस्वी भगवत सुरूप दुरवासा जी को
01:27जनकी सही नजाय दुरवासा की क्यागति की नहां
01:32और भुवन चतुर्दिस फिरे सबय दुरियाय जो दी नहां
01:36सबसे पहले भाग करके भगवान संकर की सरण में
01:39क्योंकि भगवान संकर के अंससी प्रगठ्वी दुरवासा जी है
01:42भगवान संकर ने का मैं हरी का द्रोह करने वाले को
01:47तो विचार पूर्वक रास्ता बता सकता हूँ लेकिन हरिदास का
01:51भगवान के भक्त का द्रोख कर दे
01:53ये मेरी सामर्त ने कि मैं इस समय सुधर्षन को प्रार्षना करके रोख शकूँ
01:57या तुम्हें कैलास में रख शकूँ
01:58तुरंते आंस निकलो
02:00सबै दूरी आये जो दीन हाँ
02:02ब्रह्मा जी के पास गए
02:03ब्रह्मा जीन का ततकान निकलो ने सुधर्षन चका अनर्थ कर देगा ब्रह्मलोक में
02:07हरी के पास गए
02:09और कहा आपका एक ब्रत है कि मेरी सरण में चाहे जितना बड़ा अपराधी आजा मैं कभी त्याक्ता नहीं
02:14तो भगवान ने कहा अपराधी कितना भी बड़ा चराचर जगत का हो मैं उसे सरण दे सकता हूं लेकिन मेरे भगत का पराधी उसके लिए कोई गुंजायस नहीं
02:23अब ये सुधर्षन मेरी आज्या में नहीं है
02:25अगर अम्रीश जी कह देंगे तो ये सुधर्षन सांथ हो सकता अन्यता नहीं भाग के अम्रीश जी के ही चर्णों में आना पड़ा
02:32पाही पाही करी परे जवे हरी चर्णन जाई तब हरी दीनी जवाब मोर बस ना ही गुसाई
02:39मोर द्रोह करी बचए करो जन द्रोहक नासा माफ करें अम्रीश बचओ के तबही दुरवासा
02:46मेरा पराद कर दे तो मैं छमा कर सकता हूँ भक्त का पराद कर दे तो नहीं इसलिए जाओ अगर अम्रीश जी छमा करें तो छमा हो सकती है
02:53तो पल्टू द्रोही संत कर तिने सुदरसन खाए
02:57हरी अपनों अपमान से जनकी सही न जाए
03:01इसले निर्भय निश्चिंत होकर के निरंतर नाम जब करो
03:05श्रीपाद प्रभुधानंद जी कहरे मत कुरू
03:08ऐसा कोई कर्म मत कर जिससे तेरी दुर्गती हो जाए
03:12नावद ऐसी कोई बात मत बोल जिससे तेरे को अपराध लग जाए
03:17ये बाणी है आए अमोल बहुत विचार पुर्वक बोलना चाहिए
03:21विश्मरासेस द्रश्यम भगवत प्राप्ती का स्वरूप है कि संसार और सरीर की याद न रह जाए
03:30क्या कर इस्मर मिठुन महस्तत गवर नेलम इस्मरार्तम जिनका इस्मरन करना प्रमंगल में है
03:38ऐसे स्यामा स्याम गवर श्याम जोड़ी का इस्मरन कर संसार की संपूर्ण भोगों का विस्मरन हो जाए
03:46कुछ मत बोल अपराध करने वाली बाद
03:48कुछ मत कर अपराध करने वाली क्रियाए
03:51सदय गौर्श याम प्रिया प्रीतम का इस्मरण कर
03:53बहुजन समवायाद दूरमुद विज्या ही
03:57बहुत लोगों से मिलना छोड़ दे
04:00सादक को जिसको भगवत प्राप्ति करनी हो
04:16भगवान की चक्कर में पढ़कर माया चकर से मुक्त हो
04:23फिर भगवान जो करवावे उनकी इच्छा की बात है
04:26उपासक बिलकुल शावधान रहे तब तक मौन का अस्रे ले
04:30जब तक भगवत प्राप्ति न हो जाए
04:32किसी के पास बैठने की बिलकुल जरूरत नहीं है
04:35चार उपासक बैठकर परस पर बोधे अंतहा
04:39भगवत शर्चा कर लो वो बात ठीक है
04:41लेकिन दूसरे को उपदेश देने की गल्ती मत करना नहीं
04:44तो फस जाओगे
04:45उपदेश देने की शामर्थ गुरुदेव
04:47जब आज्या करते हैं और भगवत प्राप्त हो जाता है
04:50तब अन्यथा नहीं
04:52अन्यथा तो जो तुम उपदेश करोगे
04:54वही तुम्हारे में प्रशन आ जाएगा फेल हो जाओगे
04:56बहुजन समवायाद दूर मुद्विज्ययाही
05:01बहुत लोगों से मिलना जुलना उनको उपदेश करना बंद कर दे साधक
05:06भगवत प्राप्ती करने के लिए पहले मौन का आस्रे लेकर अपने को बिल्कुल किसी काम का साबित ना होने दे
05:15बिल्कुल अक्षर-क्षर समझ लो
05:18अपने को महान साबित मत करो
05:20महान होते विए भी अपने को अगला पगला साबित करो
05:23चोरी-चोरी चुप-चाप निकल जाओ
05:26कोई जान न पावे तुम्हारे पास भजन रुपी धन है
05:29और भगवान को प्राप्त कर लो
05:31फिर वो जब प्रकासित करेंगे
05:33फिर कोई तुम्हें परास्त नहीं कर सकता
05:36विस्तरे, सब्जग, भिमल, कीरती, शाद, शंगती, नाटरे
05:39दूर मुदि विच्चिये, दूर रहो इस समाज से
05:43ये महाकुरुषों के आदे से उनको समझो
05:45दूर रहो, क्यों कह रहे हैं?
05:48क्योंकि अभी राग मिटा नहीं, आशक्ती मिटी नहीं, फिसल जाओगे, वहीं पहुँच जाओगे
05:52जो छोड़ने के लिए निकले थे, उसी में रम जाओगे
05:55अपने चित को चित चोर प्रभु के चरणों में निरंतर चिंतन में लगाने के लिए
06:02बहुजन समवायाद दूर मुदिविज्य याही
06:05बहुत समाज से मिलना जुलना उपदेश करना इसा बंद कर दे सादक
06:10अपने चित को प्रभु में लगाए और अपने को प्रकासित ना होने दे
06:15भगवदर रशिक जी ने भी कहा है
06:17मौन रहे जब बोले तो हरदय की ग्रंथी खोले इतनी सामर्थ हो
06:22हरदय का परिवर्तन कर दे जिसके सामने बोले उसका जीवन परिवर्तित हो जाए
06:27यसी दो में होता है क्योंकि वो उसी में रमण करते हैं
06:31इसले हे प्रिय प्रिय निवशत दिव्य श्रीले ब्रंदावनां तहा
06:36अप्राक्रिचिदानंद में ब्रंदावन में प्रवेश पाने के लिए
06:40प्रगट ब्रंदावन का आश्रे लेलो यहां आते जाते रहो
06:44या यहाँ वास करो सत्संग शुनो और उसे अपने जीवन में उतारो
06:48जब उपाशक इस तरह की रहनी में रहता है तो उसकी दसा क्या होती श्रीपात ब्रणन करते है
06:55कहते करनिहित कपोलो नित्यमस्त्रोणि मुंचन परिहत जनसंगो रोचमानानुयानः
07:08प्रतिपद बहुलार्द्या राधिका कृष्ण दासे वसति परमधन्या कोपी ब्रंदावने श्मिन
07:22कोपी कोई कोई भिरला ऐसा कैसा प्रथम से शंगम्त्यक्द्वास साथ शंग का त्यागी
07:31साथु संग का नुरागी माताओ बहनों की तरफ या प्रतिकुल शरीरों की तरफ कामभोक रूपी पिसाथ से बिलकुल दोर
07:40जैसे भी भगवान हमारी देह का निरवाह करें उसमें राजी
07:43प्रीत पुर्वक प्रभु का निरंतर नाम जब करते हुए कोई ऐसा कार नहीं जो फसादे कोई ऐसी बाड़ी नहीं जिससे अप राद बन जाए
07:53राद दिन श्यामा स्याम गौर श्याम जोरी का सुमिरन हो रहा है और समस्त बेवहार से सुने बहुजन समवायाद दूर मुद्विज्य किसी से किसी भी तरह का कोई संपर्क नहीं ज्यान से सुनें किसी से किसी भी तरह का कोई संपर्क नहीं
08:10और स्रीजी के एतुकी कृपा से आप लोगों का ऐसा ही जीवन है
08:14किसी से संपरक आपका नहीं
08:15अब उसकी दसा क्या होगी जब राद दिन स्यमा स्यम का सुमिरन
08:19संसार का कोई चिंतन नहीं
08:21भुले कर निहित कपोलो नित्यमश्रूनि मुंचन
08:24प्रिया प्रितम की याद में रो रहा है
08:29परिहर्त जन संगो रोच्यमाना अनुयाना
08:32उसको अब किसी का संग अच्छा नहीं लगता है
08:35बस स्रीजी की शेवा स्रीजी का चिंतन स्रीजी की नाम रूप में डूबा हुआ उपासक
08:41प्रतिछण व्याकुलता पुर्वक्ष्री स्यामा स्याम को पुकारता रहता है
08:46और प्रतिपद बहुलार्तिया राधिका कृष्ण दास से रात दिन स्रीजी की सेवा में मगन रहता है
08:52प्राता से लेके सैन तक सैन से लेके प्राता तक जो अश्टयाम सेवा अपने हां स्री जी की चल रही आठो पहर प्रतिछण स्री जी की दास्यता में सेवा में प्रतिपद बहुलार्त्या राधिका कृष्ण दासे बहुत बड़ा सवभाग्य है जो आप अपने घरों में ठा
09:22रूप हो और नाम का परिचय नहों तो आप जान नहीं सकते हैं, यह कौन है, सामने बेठा है, यह कौन है, बोले अमुख है, परिचय मिल गया, नाम से परिचय मिला, यह कौन है, बोले कृष्ण कांदा है, अच्छा यह कौन है, बोले मनुहर दास है, यह कौन है, बोले राध
09:52रूप ग्यान नहीं नाम भीना
09:57ऐसे रूप दिखाया जाए
09:58आप परिचय नहीं जानते
10:00और यह ही बत्या गया यह अमुक
10:03अच्छा यह अमुक है
10:04नाम ही परिचय देता है रूप का
10:07जैसे कुछ भक्त जब कहते हैं
10:10कि मैं भगवान की रूप का ध्यान करता हूँ
10:13हमारी प्रार्थना है कि रूप का परिचय आपको नाम कराएगा नाम
10:18अगर नाम का ध्यान नहीं करोगे तो रूप का ध्यान नहीं हो सकता है
10:23पहले नाम जब करते हुए नाम का ध्यान तो वही रूप प्रकासित होगा
10:27ये बच्पन में गुर्देव जी ने सिखाया था
10:29और ये कई बार सत्संग में बताया है
10:31कि गुर्देव ने कहा जब नाम जब करते हुए
10:33उसमें रूप प्रकासित हो जाए
10:35तो जानना तुम्हारा नाम जब रंग ला रहा है
10:37वो दिमाग में बात बैठ गए थी
10:39गुर्देव ने कहा था हर स्वास नाम चलना चाहिए
10:42बच्पन में बच जीवन भर लक्ष यही रहा है
10:45कि मेरा नाम निरंतर चले जो गुर्देव ने दिया है
10:47उटते बेटते चलते फिरते जाकते सोते
10:50साथ समय नाम का भ्याज
10:53इसलिए जब इस पर ध्यान गया तो माला गौड हो गया
10:56जब ये ध्यान गया कि निरंतर नाम चलना चाहिए
11:00तो फिर माला में विक्षेपन वहोने लगा
11:03कि गड़ना उसको गुमाना उसमें इतने
11:06अब जब हमारे जीवन का लक्ष ये लिरंतर बैठे हैं चल रहा है
11:11चल रहे हैं या क्रिया में हैं
11:13जैसी विस्थिती गुरु प्रशाद से
11:16चालिस वर्ष का लग अभ्यास
11:19उसी बात का ये जीवन का सार रहा है
11:22देखी हैं रूप नाम आधिना
11:26बिना नाम जबकि रूप का नभू नहीं कर सकते
11:29देखो माई सुन्दरता की सीवा
11:32बोले ध्यान करेंगे स्री जी का रहे
11:34प्यारो ढूम छमते ने अच्छी उसुका दे नाम तो या ध्यान गम
11:37इन महापुरुशों की सामर्थ नहीं आपकी क्या सामर्थ है
11:40बोले भी कैसे ध्यान करें
11:41बोले राधा लिखो बार बार राधा
11:44और एक दिन मुस्कुराती हुई कि सुरी जी उसी नाम लाम पे दिखाई देंगी
11:48देख ले ना
11:49देखी है ये रूप नाम आधी ना
11:52रूप ग्यान नही नाम भी ना
11:54रूप बिसेस
11:57नाम बिन जाने
12:01कर तल गत ना
12:03परही पहिचाने
12:06सुमीरी ये नाम
12:08पुरा सार बात रखे
12:10सुमीरी ये नाम
12:13रूप बिन देखे
12:15आवत हिर्दै
12:17शनेह बिसेखे
12:20कई बार सत्संग में कहा है
12:25मात्मा गांदी जी का एक
12:27भाषन होना था
12:28राष्ट श्रतंतरता का
12:30पूरा का पूरा विधान
12:33वो रच्ते थे
12:34बहुत से भारती
12:36उस भाषन में सम्मिलित होने जा रहे थे
12:39तो कुछ गाउं के लोग भी
12:41उसी डिब्बे पे बैठे जिसमें
12:43मात्मा गान है
12:44परिश्य नहीं था उनका
12:47ऐसे गांदी जी बैठे थे
12:49गाउं के ऐसे बैठे
12:50बहुत शाधारन जीवन
12:52असाधारन सोच
12:53वो बीडी सिग्रेट गाउं के लोग
12:57लोगों ने मना के
12:58उनका धाट तो
13:00चुप करने
13:01अब जेवी स्टेशन आया
13:03मात्मा गांधी की जै
13:04और वो उत्रे जैमाला
13:07अरे मैं जिनके
13:09दर्शन करने जा रहा था
13:11उनका रूप तो सामने था
13:12केवल नाम का परिश्य नहीं था
13:14कि ये कौन बोले मात्मा गांधी
13:16तो रूप सामने था पमान कर दिया
13:18अब हिल ना कर दी
13:19उनके सामने दूमबरपान कर रहे है, मना किया जनूं ने, लेकिन माने नहीं तो, गांधी जिनी उनको ऐसे रोग दिया, रूप शामने है पर नाम का परिशे नहीं है तो क्या, जब जाना महात्मा गांधी की, जै बोली गए, यही है महात्मा, औरे, इनके हम भासन सुनने जा
13:49रूप हो पर नाम का परिश Ohio नहीं तो आप जानने सकतें ये कौन है जब नाम आया तब परिशय हुआ तो ऐसे
13:55आप भाव से सुमिरन करो राधा राधा राधा तो ये नाम रूप को और देखा गुषौवी जी के रहे
14:15सुमरी ये नाम रूप भी नुदेखे रूप देखा नहीं और आपसे सच्ची कहते हैं
14:21त्रिभुवन में ऐसी कोई स्याही नहीं बनी जिससे प्रभू के रूप की दचना की जाए
14:26जिनकी नख कांती सहस्त्र कोटी सूरी संप्रभा
14:31हजारो करोणों सूरी एक साथ उदे हो तो नख कांती के तेज की बराबरी
14:36उन प्रभू को कैसे कौन सी स्याही बनी है जिससे हम वो नीलिमा जो प्रकति से अतीत सच्चिदानंद रूप आए
14:43प्रभू कैसे सच्चिदानंद रूप आए
14:47उस सच्चिदानन्द रूप के लिए प्राकर्तिक से आई कैसे हो तकती है
14:50जैसे उदारण में
14:52भगवान की श्री अंग कांती कैसे
14:55वो इसलिए नवीन जलधर
14:57बस बरशा होने वाली ऐसा मेग
14:59तो ऐसे हजारों बार मेग देख लिए
15:01तो क्या हमें भगवत साक्षातकार का आनंद मिला क्या
15:04नई
15:05भगवान की अंग कांती कैसे
15:07श्री राम जी के लिए गुश्वामी तुसिदा
15:09केकी कंठाव नीलम
15:11मोर की जो कंठ की नीलिमा है
15:14बोले ऐसा कुछ
15:15तो क्या मोर के कंठ की नीलिमा देख ली
15:17तो स्री कृष्ण की अंग कांती देख ली क्या
15:19हरीजू की अंग कांती नहीं
15:21ये सब प्राकृतिक है
15:24उदारण ही नहीं बैठता
15:25कैसे है वो
15:27बोले क्रिष्ण क्रिष्ण क्रिष्ण रटो वो
15:29जैसे कि तैसे पूरे आ जाएंगे
15:31करोड काम
15:33मुर्षित हो जाएंगे ऐसे स�ंदर हैं
15:35तो ऐसी कोई से आई है क्या
15:36ऐसे करोड कामों को
15:39मुर्षित करने वाले
15:40स्री लाल जू
15:42लाडली जू के रूप को देखकर
15:44प्रेम बेशुद हो जाते हैं
15:46उन लाडली जू के लिए ऐसी कौन गोर-कांठी है
15:48स्याही?
16:03जो रूप माधुरी है वो केवल नाम जानता केवल नाम राधा नाम जानता है कृष्ण नाम जानता है वो बड़े धन भाग उपासक है वे बात समझ कर नाम का ध्यान करते हैं तो बोले सुमिरिय नाम रूपै बीनु देखे
16:21आवत हिर्दय सनेह भी सेखे
16:26नाम जबते जबते जम नाम में प्रेम हो जाता है
16:29प्रेम पूर्वक जम नाम जबते है
16:30तो भगवान का रूप प्रियाजु का रूप हमारे हिर्दय में प्रकासित हो जाता है
16:35जो इस तरह से अपने जीवन को प्रहु में लगाता है
16:39वो महान दुरलव ब्रंदावन नित्य बिहार अरस के प्रेम को प्राप्त कर लेता है
16:45नाम
16:46नाम के समान सिर्फ नाम है
16:49जहां नाम गया
16:51तो नामी ऐसे आता है जैसे स्वामी के पीछे सेवक चलता है
16:55स्वामी जहां जाता है
16:57वही सेवक पहुंच जाता है
16:59गुश्वामी जी बहुत सुन्दर नाम की महिमा का वरणन करते हुए कहते हैं
17:04शमुझत सरीस नाम अरुनामी प्रीति परस पर प्रभु अनुगामी
17:17नाम रूप द्विईश उपाधी अकथ अनादी सुसा मुझी साधी
17:28कोबर छोट कहत अपराधु सुनी गुन भेद समुझी है साधु
17:39देखी हैं रूप नाम आधीना रूप ग्यान नहीं नाम भीना
17:51महाराष्ट के कुछ महाभागवत जलाकर यही प्रश्न किया था
17:55कि दो चोपाई कोबर छोट कहत अपराधु ये और देखें रूप नाम आधीना
17:59गुश्वामी जी कहे रहे हैं सास्त्र शम्मत बात है कि नाम और नामी एक है
18:07समुझत सरिस नाम अरुनामी सब संतों ने सब सास्तों ने एक मत में कहा है
18:13जेही कृष्ण तेही नाम
18:15जो कृष्ण है वही कृष्ण नाम है
18:18जो राधा वही राधा नाम में आपकी जिव्यापे है
18:21यद्यपी सबने ऐसा कहा है कि नाम और नामी अभेद है
18:27पर गुश्वामी जी कहते हैं अभेद होते विए भेद देखा है
18:31क्या भेद दिखा है स्वामी और सेवक का
18:35अर्थात नाम स्वामी है और नामी सेवक है
18:40जहां स्वामी पौशता है तो अनुगामी होता है सेवक
18:44पीछे पीछे चलता है
18:45पहले नाम फिर नामी आता है
18:47किसी को भी कहीं भी भगवत साक्षात कार हुआ है
18:51तो पहले नाम, राधा, राधा, राधा, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, राम, कृष्ण, हरी, तब हुआ है, ये बात पकड़ लो, स्वामी आ गया है, सेवक कहां छुपेगा, नाम स्वामी है, नामी सेवक है, जा नाम गया, वा नामी को आना पड़ेगा, आना �
19:21का अनुगमन करते हैं नाम के पीछे रहते हैं नाम और रूप दोनों प्रभू ही के ही उपाद है अनिर्वचनी है एक ही है सुन्दर है एक ही होते हुए भीन में ये भेद है कि नाम स्वामी और नामी सेवक है
19:37प्रगट में देख लो नाम जापको के पास भगवान सेवा करते हुए स्वयम पाए गए
19:44क्योंकि वो नाम जब कर रहे
19:45बहुत से उदारण ऐसे है
19:49अरजुन जी की सेवा में स्वयम सच्चिदानन्द प्रभु स्री कृष्ण पंखा जल रहे
19:54आप कहरें कि वैसे अपराध लगता है
20:05कि नाम बढ़ा कि नामी बढ़ा तो इसमें कहने में अपराध सा लगता है
20:08क्योंकि मेरे इस्ट काई नाम है इस्ट काई रूप है
20:10पर फिर भी बेद है यह साधू जन समझेंगे
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