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  • 5/18/2025

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00:00हमको इतना ग्यान होना चाहिए कि हमें क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए
00:05हम कौन है, हमारा उद्देश्च जन्म का क्या है और उसकी प्राप्ति कैसे होगी
00:12हम कौन है, हमारे जद्म का उद्देश क्या है और उसकी प्राप्ति कैसी होगी
00:18ये शब से पहले भगवत प्रेमी मात्माओं का सत्संग
00:25भगवत प्रेमी
00:27अगर भगवत प्रेमी मात्माओं का सत्संग ना मिले
00:31तो इन चारों प्रश्णों का उत्तर नहीं मिल सकता
00:34क्योंकि हमारी बुद्धी इतनी पवित्र नहीं है कि सास्त्रों के शिद्धांतों को समझ सके
00:40तो उनकी पवित्र बुद्धी जब हमारी बुद्धी की योगी शब्दों में सुनाते हैं
00:45तो हमारी समन में आ जाता है
00:46इसलिए भगवत प्रेमी महात्माओं का शंग
00:49दूसरा
00:52मेरी भी मृत्यू निश्चित है
00:55मेरा भी सरीर शुटेगा
00:58दूसरों का फूकने जा रहे हैं
01:00तो हमको ये चिंता हो जानी चाहे कि मेरी भी मृत्यू होगी
01:03कब होगी
01:05कैशे होगी
01:06कौन सी दुरगटना गटेगी इसका कोई पता नहीं
01:09इसलिए
01:10हम अपने
01:12मृत्यू पर विजय प्राप्त करने के लिए
01:14भगवान का भजन करें
01:16मृत्यू भजन कराती है
01:18जब मृत्यू का भई आता है
01:21तो भजन होता है
01:22अपने लोगों को तो
01:24सावधान करने के लिए
01:26हर समय गार्ड मिल गया है
01:28यह किदनी जैसे
01:30या साध्य रोग है या हर समय कहती रहती है
01:32मरोगे भजन करो
01:35इधर उधर मत देखो
01:37मरोगे कभी भी मर सकते हो
01:38बड़ी कृपा भगवान की
01:40हर समय पीड़ा याद दिलाती रहती है
01:43भजन करो
01:44तो हर समय विवेक से जागरत रहो
01:47कि तुम्हारी भी मिलती होगी
01:48तुम्हारा भी सरीर शूटेगा
01:49तीस श्रीवाद
01:51सास्त्रों का
01:55नित्य श्वाध्याय करो
01:56चाहे एक पेज ही करो
01:58दो इस लोग की
02:00अर्थ साहित पढ़ो गीता जी के
02:02दो इस लोग स्रीमत भागवत के पढ़ो
02:04दो दोहा की बीच की सब चोपाई
02:06अर्थ साहित पढ़ो
02:07सास्त्रों श्वाध्याय करो
02:09चोथा
02:11संसारी पुरुषों के बीच में बैठ करके
02:14हसी मजाक प्रपंची की बातें
02:16ये छोड़ दो कुशंग छोड़ दो
02:18जाके संग कुमति मति
02:20उपजय करत भजन में भंग तजोरिमन
02:22हर भी मुखन को शंग
02:24इस से तुम्हारे प्रश्णों का उत्तर हो जाएगा
02:26तुम्हारा
02:27इस संसार में आने का क्या करतव है
02:30तुम कौन हो
02:32जो तुम्हारा लक्ष क्या बना
02:35उसकी पूर्ती कैसे होगी
02:36इंचार बातों से हो जाएगी
02:38भगवत प्रेमी महात्माव का शंग, अपनी मृत्यू का चिंतन, नाराण स्वामी कहते हैं यदि तुम्हें परमकल्यान चाहना है तो दो को मत भूलो श्री भगवान को और मृत्यू को मरना है, आज नहीं तो पता नहीं कौन सा च्छाण होगा जिस समय सरीर छूट जाएगा
03:08प्रपंच यह हमारी भक्ति को छीन करता है, देखो जैसे राजा विजयी होकर राज सिंगासन पर बैठता है, तो पूरा राज परिकर उसके अधिन हो जाता है, मंत्री, शेनापती, शेना, खजाना, सब बैभो, इशी प्रकार, विवेक और अविवेक, यह अपने अपने �
03:38सद्धिया, साब कुछ, साब लोट जाते हैं उनके चरणों में, और ऐसे ही अज्ञान जहां राजा बना हरदय में, तो काम, कुरूद, लोब, मुव, मद, मसर, इरश्वा, देद, दुनिया का प्रपंच सब उसके, पाप का खजाना, यह सब इकत्रिक हो जाता है, इसलिए
04:08अब अभिमान तो त्यागना चाहिए लेकिन श्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए, श्वाभिमान नहीं त्यागना चाहिए, बहुत प्रारुम्य मिनरिष्टिक ब्रमचरी के समय, उस शमय भी भगवत कृपा से विवेक जागरत था, तो हमने का श्वा को आपने कहां से �
04:38अभिमान, श्वा कहां इस्थापित किया, आपने दे भाव में इस्थापित किया, जाति पक्षमें, कुल पक्षमें, तभी तो आप उसकी रक्षा के लिए कह रहे हो कि श्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए, श्वा की रक्षा करनी की जरूरत नहीं स्वासुरक्षित है
05:08अग्यानी है शरीर अनेक हैं आत्मतत्त्त पूर्ष अनेक से प्रमात्म, आत्म इन्में एक
05:17पुरुष जड़ चैतन ये सब शरीर अलग अलग हैं लेकिन परमात्मा आत्मा इनमें एक है जो ये जानता है वो किससे किसकी रक्षा करेगा कहां किससे अभिमान करेगा
05:37तो अज्ञान अविवेग इसी को नश्ट करना साधना है विवेग इसी को जाक्रत करना परमशिधा वस्ता है
05:47जो
05:506 गंटे माला जबता है
05:53पर वो
05:55विशयी पुरुषों का संग करता है
05:57वो मनमानी विशय भोग की चेश्टा करता है
05:59तो उसका प्रकास नहीं होगा
06:016 गंटे बजन का
06:02बड़ा भारी प्रभाब
06:04बाबा तो लिख रहे हैं कि
06:07सम मिट्टी हो जाएगा
06:086 गंटे बजन करता है
06:10इसके बाद सोलता है
06:11यार बजन से पाप तो नश्ट हो जाएगे
06:13मनमानी पापा चरंग कर लेते हैं
06:15मौज लेते हैं, मस्ती लेते हैं
06:17संसारिक
06:17तो बाबा कहने उसका 6 गंटे का किया हुआ बजन सा मिट्टी पड़ जाएगा
06:21प्रकासित नहीं होगा
06:23बिपरीत भावना का त्याग करके
06:27यदि थोड़ा भी भजन किया जाए
06:28तो अखंड भगवद इस्मृती की तरफ ले जाएगा
06:31और 6 गंटे भजन किये और फिर मनमानी आचरंग किये
06:34तो लाब नहीं मिलेगा
06:35इसलिए लोग के देते 20 वर्स से भजन कर रहा हूँ
06:37लेकिन भजन का कोई प्रकास तो होई नहीं है
06:39तो मनमानी आचरंग कर रहे हो
06:41यदि तुम भगवत प्राप्ती करना चाहते हो
06:46जाती पक्ष, शरीर पक्ष, इंद्री पक्ष, मन पक्ष
06:54इनमें मत फसो
06:55मन से अपने को अलग देखो
06:57जाती से अपने को अलग देखो
06:59सरीर से अपने को अलग देखो
07:01इंद्रियों से अपने को अलग देखो
07:03तबी तुम इन पर सासन कर पागो
07:05एक बिवस्ता है
07:06जैसे बड़ा भाई, छोटा भाई
07:09चूटा बड़े के पेर चूटा है, ये हमसे बड़े हैं, तो बड़े हो गए क्या, ये तो एक बिवहारिक भेद है, एक बिवहारिक भेद है, वरणाश्चन में बिवहारिक भेद है, ये सत्य नहीं है, क्योंकि सत्य वस्तू तो एक है, और वो वासुदेवा सरवम, भगवा
07:39को शरीर जाती को हम भागवतिक बात को श्वयकार करते हैं हम सब एक पर्मात मुश्वरूप हैं हमारे सब के शरीर एक ही पंचभूतों से बने हुए हैं कुमार के आँ छोटा सकोरा बड़ा सकोरा इसके बाद तशला मिट्टी का घडा मिट्टी का अब उसमें चारों में को�
08:09मिट्टी से और जो बनाने वाला वही एक है हमें बनाने वाला एक है हमारी सब की मिट्टी एक है हम सब एक ही चात में चड़े हुए है छोटे बड़े बिवार का भेद है परमार्थ में इसको स्वैकार नहीं किया गया परमार्थ में एक बात स्वैकार की गई है सब मेश्री �
08:39हमारे हैं बगवारन के रूप हैं यह कुछ कोई हमारे प्रभू है ना पेरे राम
08:54के मनियद, सुहद शुशेव जहां लो, अन्जन कहां अख जो फुटेंग उसंठी नश्थ हो जाएं से अमूच
09:03मुख जात या मुख पक्षव मुख रम ऐला एक छतुरी के दिच्व Tigers नीली छतुरी के नीच्व सब रह
09:10रहें जहां भी चले जाव इन रीली छतुरी रही मिलेगी और इस नीली छतुरी और भी सियाम्
09:16छतुरी को बनाने वाला भी एक ही ए रही है यह बीच का
09:21बेवहार है परमार्थ में इश्की माननेता रही है भाई सची बात मान लिजिए जाति पाति कुल कर्म धर्म ब्रत संस्रत हे तु अविद्या नासी हमारे सेवक जी कहते हैं अविद्या के अंतरगत है विद्या के अंतरगत नहीं है बे मतलब की ठसक बे मतलब का घ्रणा भा�
09:51कुन कर्मी भागसा भगवान ने कहा है ये बिवार के लिए जैसे बड़ा भाई मंजूला भाई छोटा भाई लेकिन हुआ सब एक पिता के हैं सब एक पांच भौतिक बने हुई जब हम परमार्थ में चलते हैं तो ना अपने शरीर की जातिपक्ष को देखें न सामने वाले क
10:21अविद्या में सेवक जी महाराज करें जाति पांति कुल कर्म धर्म ब्रक संस्रति हे तु यह आवागमन का हे तु है यह अविद्या नासी हित जु महाराज ने कृपकर कि इस अविद्या का नास कर दिया
10:32जब साधक साधना में चलता है तूसे सरीर बहुत प्यारा लगने लगता है
10:38अपने सरीर के सुक्षु विधा खान पान ऐसा
10:42सरीर की रक्षा करना चाहते हो हरदय को गंदा करते हो हरदय को सुरक्षित रखना नहीं चाहते
10:47फिर कैसे तुम्हारी परमार्थी की यात्रा बढ़ेगी
10:50उचित शरीर को भोजन दे दो
10:53उचित पवित्रता रखो
10:55में प्रधान बात है हरदय की पवित्रता
10:57हरदय को सुरक्षित रहे
10:59हरदय हमारा कामादी दोस्ते
11:00आंकारादी दोस्ते गरशित ना हो जाए
11:02शरीर को शुद्ध करना बाहे पवित्रता है
11:08हरदय को शुद्ध करना भगवत प्राप्ती का हेतु है
11:11जल और रज के इसपर्ष से बाहरी पवित्रता शरीर के होती है
11:17साबुन से चाहे जाए वरांद हो थोड़ा रज का इस पर्ष जरूर होना चाहिए अगर रज का इस पर्ष नहीं ज्यादा मत करिएगा नहीं नालियां जाम हो जाएंगी वास्कल के ऐसे थोड़ी रज तो बाद में ऐसे बिना रज के पवित्रता नहीं बिना रज के नहीं
11:31पवित्रता है, शरीर पवित्र, हरदय पवित्र, वानी पवित्र, तो परम पवित्र भगवान का सतती स्मरण होता है, आप देखो, दस दिन पवित्र रहके देखो, तो आपको छूने की इच्छा नहीं होगी किसी को, और जीवन पवित्र रखो, तो शरीर से आपका वैराग
12:01और राग द्वेश, इरश्या, अहंकार, काम, चूरी, हिंशा, व्यविचार, इनके त्याग से हर्दय पवित्र होता है, एक गंदी बात है सब्सक्राइब, इससे हर्दय पवित्र होता है, जितना सत्संग करोगे, विचारवान रहोगे, सहन सील रहोगे, नाम जब करोगे, �
12:31कर देते हैं, और कुछ कर लेते हैं, क्रोध करने से एक महिना के भजन में आपके क्रोध का प्रभाथ ढग देगा जाके, पुझपा दुड्यावगा,
12:40पाप का चिन है क्रोध
12:43जिसमें क्रोध है वो चाहे कोई भी हो
12:47उसे समझना चाहिए अभी अंताकरन पूर्ण पवित्र नहीं हुआ
12:50क्रोधी मनुष्ची का अध्यात में कुद थान नहीं होता
12:55विशेष्ट या गुर्जनों और स्रेष्ट जनों की बातों में
13:02उनके निरणय में क्रोध नहीं करना चाहिए भजन करना कठिन
13:10करके बचाना कठिन और बचा के पचाना कठिन
13:13ये बड़ी सुनहली पगडंडी है भगवत मारगी की
13:18इसमें बहुत समाल समाल करके पग रखा जाता है
13:21ये निठले आदमी जो हैं जो दूसरों के गुर्दोस देखते हैं
13:26दूसरों की निंदा करते हैं दूसरों की चुगली करते हैं
13:30दूसरों पर क्रोध करते हैं गंदी भावना रखते हैं
13:33ना ये ग्यानी है ना ये योगी है ना ये भगप हैं
13:36प्रपंचिया निढले हैं कायर है कुजपा दुडिया वाबा सिद्धमा पुरुष है भाक्त सब जगे भगवान को देखता है तो क्रोध कैसे कर सकता है
13:46उमादे राम्चरन रत विगत काममदको निजप्रभुमे देखें जगत केशन करें भी रोध भक्त के अंदर तो और ग्यानी आत्मश्वरुप है दोईत है नहीं तो क्रोध किसे और योगी परमात्मश्वरुप है तो योगी ग्यानी और भग्त इनमें ना क्रोध होते ना �
14:16इससे लाभ लिया और मुझे बहुत प्रशंद है और सब सादुकों को इसका उप्योग करना चाहिए
14:20अभ्यास योग युक्तेन चेतसाना न्यगामिना परमं पुरुशं दिव्यं यातिपार्थानु चिंतयन हे अर्जुन
14:32ऐसा अभ्यास कर लिया जाए कि मन हमारा अन्यत्र कहीं जाये ना चित्त हमारा कहीं अन्यत्र जाये ना निरंतर इष्ट में के चिंतन में मनन में लगा रहे
14:44एदि ऐसा अभ्यास कर लिया गया
14:47तो परम्पुरुष दिब्यपरमात्मां की प्राप्ति इसी से केवल हो जाएगे
14:51पार्थान चिंतन
14:52केवल चिंतन मात्र से भगवत प्राप्ति
14:56ऐसा भ्यास सादक को करना चाहिए
14:58हार्षण अपने इष्ट का चिंतन हो
15:00इसी से परंपुरस दिवय परमात्मा की प्राप्टी हो जाती है
15:03एक संग में दुश्टांत में देते थे कि
15:07जगन्नाथ जी की सेवा में स्रियंग पारशद रहते थे
15:10उनमें से एक पारशद वैस्या संशak करने लगे कुर संग के कारण
15:14तो जब सब पारशदों को पदा चला तो उन्होंने बुलाया और कहा देखो तुम परमपावन सी जगनात जी के अंग सेवी हो या जगनात जी की सेवा छोड़ो बैस्या का संग करो या बैस्या संग छोड़ो जगनात जी का अंग संग करो तो भगवान की माया से मुहित हु�
15:44लेवि थे तो जब सरीर पूरा हुआ तो जगणाथ जी ने शवप्ण में अपने पार्षदों को आदेश
15:49कि उसकी अंतियस्टिक किले हमारे पार्षदों जैसी की जाए तो उनका प्रभुष्ण कि कहा कि प्रभु उन्हों
15:55आपको छोड़कर वैस्या को स्वविकाल कर लिया था
15:57तो बोले उन्होंने छोड़ दिया था
15:59यह उनकी हिमत है
16:00हमारी हिमत नहीं हमारा स्वभाव नहीं है
16:03हमारी सामर्त नहीं है
16:04हमने एक बार जिसको पकड़ लिया उसको कभी
16:06छोड़ते नहीं
16:07तो भगवान यहां कह रहे है कि कभी-कभी वो मोहित हो जाता है
16:10उस आधंध छोड़ता लेकिन मैं उसे नहीं छोड़ता है
16:14ये खास बात समझो
16:16मैं उसे नहीं छोड़ता उसका किया हुआ अपराध
16:22किया हुआ पाप भले उसको थोड़ा समय दंड भुगदाने के लिए
16:27लेकिन मैं उसे छोड़ता नहीं हूँ
16:28उसकी दुरगती कैसे हो सकती है
16:30इसलिए घटना घट सकती है
16:32ये तो भगवान कहने गए मनमानी मत करना
16:35कहने घटना घट सकती है
16:37आपने अपराध किया आपको पाप का दंड मिल सकता है
16:40लेकिन मैं उसके अंदर ऐसी व्याकुलता पैदा करूँगा
16:43कि वो सब प्रपंज छोड़कर दोड़कर मेरी तरव भाग परेगा
16:47क्योंकि मैं उसे नहीं छोड़ता
16:49जैसे गुपियों में थोड़ा भिमान आया
16:52मैं अंतर ध्यान हुआ लेकिन उन्हीं की बीच मेरे को
16:54जहां व्याकुल ही मैं प्रगट हो गया
16:56तो भगवान कह रहे हैं कि
17:00एक बार जिसके बीतर थोड़ी भी साधना चल पड़ी
17:03थोड़े भी संसकार भक्ती के पड़ गए
17:07नाम जब करना वानी पाठ करना
17:09थोड़ा भी भगवत कार
17:10कर्म चैव तदर्थियम शदित तेवा भी धीयते
17:15तो उसका कभी पतन नहीं हो सकता
17:18जो संसकार पड़ गया भक्ती का
17:20क्योंकि सत वस्तु का कभी अभाव नहीं होता
17:23तो भी प्रभु गती क्या होती उसकी
17:26तो भगवान कह रहे
17:28प्राप्य पूर्णि क्रताम लोका
17:31नुशित्वा सास्ति समा
17:34सुची नाम स्रीमताम गेह
17:37योग भरष्टो भी जायते
17:40प्राप पूर्णी कृताम लोकान
17:43उसने गंगाय सनान किया है
17:44उसने नाम जब किया है
17:46उसने वानी पाच किया है
17:47उसने ठाकुर सेवा की
17:48तो कोई साधारन है
17:49बहुत बड़ा धनी है
17:50भले लोक भरष्ट हो गया है
17:53भले इंद्रिया उसके कबजे में नहीं
17:54भले मन उसके कब्दे में ने लेकिन साधारण जीव नहीं है
17:57वो भगवान का जन है उसने नाम जब किया है वानी पाठ किया है ठाकुर सेवा की धाम बास किया
18:02तिर्चावगाम किया प्राप पुर्णी कृताम लोगाम
18:05जो बड़े बड़े यागिकों को
18:08बड़े यागिकों को जो सांगो पांग करते हैं उन लोगों को श्वरगादी लोगों को पर अधिकार होता है
18:17इसलिए वो पुर्णी कर्म करते हैं तो पुर्णी लोग उनको प्राप्त होते है
18:22पाप कर्म करने वालों को नरक भीजा जता है
18:25परंतु साधत
18:26पुर्णि कर्म छोड़ किये
18:28भजन किये
18:29तो जैसे किसी रास्ते में चलके
18:31उसकी बिई आई पी ब्यवस्था की जाए
18:33ऐसी ब्यवस्था उसकी होती है स्वर्ग में
18:35जितने दिन उसको अगला जन्म नहीं मिलेगा
18:38उतने देन, भारी ब्यवस्था स्वर्ग में उसकी होगी, पुर्णि वताम लोके, जो बड़े-बड़े पुर्णि आत्मा पुरुस्थ प्राप्त करते हैं, इतनी अमों की यग्यकिया, स्वमेध, यग्यकि, सांगो पांग उनको, उसकी बियाइपी ब्यवस्था होगी, प्
19:08पर उसकी ब्यवस्था वोगी, सरीर छुटते ये दिव्य लोक में जाकर के दिव्य भोगों की ब्यवस्था, क्योंकि मन चंचल था ना, इंद्रियां चंचल थी ना, मृत्य लोक के भोगों, ले भोग, स्वर्ग के भोग, सुंदर सुंदर जितने भोग हैं, उन सब की बाह�
19:38साधारन थोड़ी है उसकी बियाईपी बिवस्था होई अब अंत समय से साधन में विचलित मना हो जाने के कारण जो बड़े-बड़े परिश्रमों से पुल्डियों से प्राप्थ होता हुआ इसे स्वाभाविक उसे रात्ते में प्राप्थ हो रहा है यह उसकी गती नहीं है
20:08प्रापूंग

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