Major DP Singh का वो सच, जब Kargil War में Doctor ने कहा 'ये मर चुका है' | Oneindia Hindi देखिए उस जांबाज की कहानी जिसने मौत को भी मात दे दी और देश का पहला ब्लेड रनर बनकर इतिहास रच दिया। ये कहानी है भारतीय सेना के उस वीर योद्धा की, जो मौत के मुंह से वापस आया। हम बात कर रहे हैं मेजर देवेंद्र पाल सिंह यानी डीपी सिंह की, जिन्हें भारत के पहले 'ब्लेड रनर' के रूप में भी जाना जाता है। 15 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान जम्मू-कश्मीर के अखनूर सेक्टर में ऑपरेशन विजय में लड़ते हुए मेजर डीपी सिंह बुरी तरह घायल हो गए थे। उनका एक पैर लगभग नष्ट हो चुका था। हालत इतनी गंभीर थी कि डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। लेकिन मेजर डीपी सिंह ने हार नहीं मानी। डॉक्टरों ने उनका दाहिना पैर काट दिया, पर उनके हौसले को नहीं काट सके। जहाँ कोई भी इंसान जिंदगी से हार मान लेता, वहां से मेजर डीपी सिंह ने एक नई शुरुआत की। उन्होंने प्रोस्थेटिक लिंब (कृत्रिम पैर) के सहारे चलना और फिर दौड़ना शुरू किया। साल 2009 में उन्होंने अपनी पहली मैराथन में हिस्सा लिया और 2011 तक वह भारत के पहले ब्लेड रनर बन चुके थे।
This is the inspirational story of Major DP Singh, a Kargil War hero who was declared dead after sustaining severe injuries in 1999. Despite losing his leg, he made a miraculous comeback to become India's first blade runner. This video covers his journey of resilience and his recent visit to Army Public School, Akhnoor, where he motivated students.
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00:00ये कहानी है मेजर डीपी सिंग की तारीक 15 जुलाई साल 1999 जमु कश्मीर के अखनूर सेक्टर में कारगिल वॉर के दौरान मेजर युद्ध लड़ते लड़ते घायल हो गए
00:20खाव इतना गहरा कि एक वक्तों डौक्टर ने भी उन्हें मृत घूशित कर दिया उम्र महज 25 साल लेकिन ये कहानी है जीवन, जज़बा, जुनून और जिन्दगी की और यह सब कुछ जिस नाम से जुड़ा है वो है मेजर दिवेंदर पाल सिंग उर्ठ डीपी सिंग
00:39उनका एक पैर बुरी तरह जखमी हो चुका था बाकी शरीर के अंदर सतर से ज्यादा श्रापनेल यानी छर्रे जा चुके थे सिती ऐसी कि उन्हें डेट डिक्लियर किया गया
00:51इस परिस्तिथी में हर कोई भी जहां जीवन से हार मान जाए उन्होंने वहाँ एक नई शुरुवात की
00:58मजबूत इरादे वाले डीपी सिंग ने 2009 में पहली बार मेराथन में भाग लिया
01:042011 में डीपी सिंग देश के पहले ब्लेड रनर बने
01:08अब आप सोच रहे होंगे कि ये कहानी में आज क्यूं बता रही हूँ
01:12अब वैसे तो देश के वीरों की विजय गाथा का कोई दिन नहीं है और ना होना चाहिए
01:17पर ये कहानी आज बताना इसलिए जरूरी लगा क्यूंकि अभी कारगिल विजय दिवस हाल ही में बीता है
01:22और कारगिल के ये जाबाज हीरो मेजर डीपी सिंग जब आर्मी पब्लिक स्कूल अखनूर पहुंचे
01:28तो स्टूडेंट समित पूरा स्कूल कारगिल के उस युद्ध के दौर में पहुँच गया
01:33मानो सब कुछ आखों के सामने हो रहा
01:35स्कूल के प्रिंसिपल गीता देवी ने इस आयोजन को अत्यंत गौरव और प्रेणा का छण बताया
01:41जबकि APS अखनूर के अध्यक्ष ब्रिगेडियर अंकुर बंगा नेभी देश के युवाओं को प्रेरिद करने में मेजर सिंग के अथक प्रियास की प्रिशनसा की
01:48इस दोरान मेजर डीपी सिंग द्वारा कही बातें आपको उर्जा से भर देंगी और गौरवानिवित भी कर देंगी तो चलिए सुनते हो उन्होंने क्या कुछ बताया
01:57नगाती उन्होंने के वह सब्वाद के और किसे निवीत दीव में ब सब्वाद कुछ वर्जा tulee लिए सब्वाद कुछ निए और पने कुछ बीक ने कुछ से को मैं प्रूधा है
02:11में अपनी कमी को पहचार की उसको में एक्षाइब करना था, यहां तो बेरे प्रत्कम्जूरी है, यह मेरी बीट में होता था, आपके ज़से बत्या, तो मैं हर सब्सक्राइब में अर्मोस हुई था,
02:37मेरे अंदर एक दर था, कि मैं कल दग्दी को दिवा, तो दर कहते बैठा, तो अलग थानी, लेकिन उस दर के कारण मुझे जैसे मैं आपके सामयाँ ख़ड़ाओ के बात पर पार रहा है, ने, पावरपार्ण में ही कर रही है, मैं प्यारी देश आपके काम भी ओ रहा है, लेक
03:07जो आपके सामयाँ जोर से बात पर रहा है, जिस सी से ढर लगा है न, उसके पीछे पढ़ जाओ, तो मुझे समसे जन्दा तरभीया रहता था कि मैं कैंटे खड़ाओ के बिसी कितानों डोरू, कैंटे किष्या को प्रूचुओं के मेरा सब्स्त्रे को लियाता, एक्को अग
03:37मेजर की कहानी से हमें कभी हार न मानने वाली सीख मिलती है
03:42मेजर डीपी सिंग इस कहावत को भी चरितार्थ करते हैं
03:45कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
03:47विस खबर में फिलाल इतना ही
03:49पर आप हमें जरूर पताएं
03:51कि ये कहानी आपको कैसी लगी
03:52साथ ही ऐसी और खबरों के लिए जुड़े रहवन इंडिया हिंदी के साथ धन्यवाद